जी उठा तुलसी का पौधा
“बन्नो तेरी अँखियाँ सुरमे दानी, बन्नो तेरा टीका लाख का रे......” | शुभदा बड़ी तन्मयता से गाते हुए, गहने पहन कर शीशे में देख रही थी | तभी उसके पति शरद सिंह आए और उसकी कमर में हाथ डालते हुए बड़े प्यार से बोले - “अरे वाह! आज तो बड़ी तरन्नुम में हो |”
“बेटी की शादी जो है |” शुभदा बोली |
बेटी की शादी की बात सुन कर शरद सिंह भावुक हो उठे | वे शुभदा का हाथ पकड़ कर कहने लगे, “हमारी प्रिया बिटिया कितनी प्यारी, मासूम और समझदार है | चहक –चहक कर पूरा घर खुशियों से भर देती है | उसका सेन्स ऑफ़ ह्यूमर तो लाजवाब है | उसके बिना घर कितना सूना हो जाएगा, शुभदा |”
कहते हुए शरद सिंह की आँखें भर आईं | वैसे भी बेटियां पिता को ज्यादा प्यारी होती हैं | शरद की नम आँखें देख शुभदा भी भावुक हो गई, “शरद, कैसे रहेंगे हम अपने दिल की धड़कन के बिना? न जाने ससुराल में सब उसके साथ कैसा व्यवहार करेंगे ?” शुभदा रोते-रोते बोले जा रही थी | शरद सिंह बड़े प्यार से उसे समझाते हुए बोले,
“शुभदा, हमारी बिटिया की ससुराल बहुत अच्छी है | तेज बहादुर जी लोकप्रिय राजनेता हैं | उन्होंने अपने पुत्र राज बहादुर में भी अच्छे संस्कार ही डाले होंगे | जहाँ तक प्रिया का सवाल है, तो मुझे पूरा विश्वास है कि हमारी मल्टी नेशनल कंपनी में जॉब करने वाली होशियार, मिलनसार बिटिया सब का मन जीत लेगी | सब की लाड़ली बन जाएगी, देख लेना तुम |”
“हूँ, यह बात तो सच है | प्रिया है ही इतनी प्यारी .... मुझे तो अब शादी की चिंता है | हे गणपति महाराज ! सब इंतजाम अच्छी तरह हो जाएं |” शुभदा ने गहने सँभालते हुए कहा |
शरद सिंह मुस्कराए और बोले, “ चिंता छोड़ो शुभदा | मैंने सारे इंतजाम अच्छी तरह कराये हैं | शुभदा, शादी का जश्न तो ऐसा होगा कि सब देखते ही रह जाएँगे |”
तभी चहकती हुई प्रिया भी आ गई और पापा-मम्मी से लिपट कर बोली, “पापा आज लंच के लिए रेस्टोरेंट चलें और फिर वहीं से शॉपिंग ?” शरद सिंह अपनी लाड़ली की सब ख़्वाहिशें पूरी करना चाहते थे | वे इस एक महीने को यादगार बना लेना चाहते थे | अतः तुरंत ही तैयार हो गए | उनके मन में शादी की खुशी थी और बेटी से बिछड़ने का दुःख |
चुलबुली सी प्रिया कभी मम्मी –पापा का मन बहलाती, तो कभी शादी के हसीन सपनों में खो जाती | राज और प्रिया स्काइप पर देर रात तक अपने भविष्य के ख्वाव सजाते | उनकी प्यारी जोड़ी को देख कर दोनों के माता-पिता की जीवन-बगिया में खुशी के फूल खिल उठे थे |
समय जाते देर नहीं लगती | विवाह की तिथि भी आ गई | सब लोग रिसॉर्ट में पहुँच गए | पूरा रिसॉर्ट अत्याधुनिक साज सज्जा, तरह तरह की सुन्दर लाइट्स, शेंडीलियर्स, पेंटिंग्स और फूलों से सज़ा हुआ था | फूलों की महक ने वातावरण को दीवाना सा बना दिया था | खाने–पीने के लिए विविध प्रान्तों और देशों के व्यंजनों की भरमार थी | पहले दिन शाम को सगाई एवं संगीत संध्या का कार्यक्रम था | सभी इंतजाम अद्भुत थे |
प्रिया और राज दोनों ने एक दूसरे को हीरे की सुन्दर अंगूठियाँ पहना कर जीवन के इस रिश्ते पर मानो मुहर लगा दी थी | दोनों पर नूर बरस रहा था | फ़ोटोग्राफ़र सारे नज़ारों को कैमरों में कैद कर रहे थे |
सगाई के बाद संगीत और डांस का दौर चला | ओर्केस्ट्रा की धुन पर युवक, युवतियां, बूढ़े, जवान सभी थिरक रहे थे | डिस्को लाइट के बदलते रंगों की रोशनी में एक मादक सा वातावरण बनता जा रहा था | जाम भी छलक रहे थे |
रात ढलने लगी तो एक-एक कर सारे रिश्तेदार थक कर लॉबी में बैठने लगे | प्रिया की मौसी कहने लगीं, “दीदी, जीजाजी ने शादी तो बड़ी धूम धाम से की है | शादी के बहाने पूरे परिवार का मिलना हो गया |”
इस पर प्रिया के मामा बोले, “ यह सब तो ठीक है, पर आज कल शो ऑफ़ करने की तो होड़ सी लगी हुई है| हर एक अपनी अमीरी बढ़ चढ़ कर दिखाने में लगा हुआ है | चाहें लोग कितने ही तारे क्यों न सजा लें, पर दूसरा उससे बढ़ कर कुछ नए तारे तोड़ कर ले आता है | सच पूछो तो इसकी कोई लिमिट ही नहीं है |”
मामी जी बोलीं, “ खाने की बर्बादी देखी आपने, इतनी तरह के व्यंजन हैं कि लोग समझ ही नहीं पा रहे क्या खाएं क्या छोड़ें | प्लेट भर- भर कर खाना झूंठा डाल रहे हैं |
“मैं तो अपनी सौम्या बेटी की शादी बिल्कुल सिंपल ढंग से करूंगा | देखना, वह एक अपनी तरह की यादगार शादी होगी | सबसे अलग, सबसे सिंपल | शादी में फ़िजूल खर्च की जगह मैं उनके लिए कुछ सेविंग करा दूँगा और कुछ पैसे चैरिटी में लगाऊंगा | मामा ने बात पूरी की तो तो सभी को लगा कि रात काफी हो गयी है, अब सोना चाहिए |
दूसरा दिन शादी का दिन था | राज के माता-पिता बहू के आगमन की खुशी में ख्वावों की एक नई दुनिया में खोए हुए थे | घोड़ी के स्थान पर सुन्दर सजे हुए हाथी के ऊपर लगे सिंहासन पर राजकुमार सा दूल्हा विराजमान था | राज घराने जैसे सुन्दर परिधानों में सजे संभ्रांत बाराती बैंड के साथ बड़े उल्लास से नाचते हुए चल रहे थे |
प्रिया रिजोर्ट में ऊपर बने दुल्हन के कमरे की खिड़की से बारात का नजारा देख फूली नहीं समा रही थी | राज और प्रिया की आँखें चार हुईं और वह शर्म से लाल हो गयी | उसके नयनों में प्यार के दीये जल उठे थे | उसका मन प्यार की मधुर वीणा से झंकृत हो गया था | प्रिया को जीवन संगिनी बनाने की चाहत लिये दूल्हे राजा स्टेज पर पहुंचे, जहाँ जयमाल होने वाली थी | मेहँदी में पिया का नाम, मन में पिया की छवि और आँखों में हया के बादल लिये प्रिया चंद्राकर सजी हुई डोली में बैठ कर ऊपर से स्टेज पर अवतरित हुयी | लग रहा था, जैसे कोई परी अपने राजकुमार से मिलने चाँद से उतर कर जमीं पर आ रही हो | उस अद्भुत नज़ारे को देख कर सब आश्चर्य चकित और मुग्ध थे | प्रिया और राज ने एक दूसरे को वरमाला पहनाई | गुलाब की पंखुड़ियों की वर्षा होने लगी | तालियों की ध्वनि, आतिशबाजी और बन्दूक की आवाज से वातावरण गूँज उठा था |
परन्तु हाय यह क्या ! गोली की आवाज के साथ गर्म खून के कुछ छींटे उड़े और खून बहने लगा | एक क्षण में ही यह खुशहाल वातावरण दुःख, पीड़ा, चिंता और भय की सघन काली छाया से आवृत हो गया | एक चीख सुनाई दी | पल भर के लिए सब की साँसें ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह गईं | शंकाओं – कुशंकाओं के हथोड़े सब के मस्तिष्क पर प्रहार कर रहे थे | कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि कहाँ से आकर गोली लगी | पास में खड़े हुए तेज बहादुर सिंह के मित्र ने खून देखा तो वे चिल्ला उठे, “ अरे एम्बुलेंस को फ़ोन करो | तेज बहादुर को गोली लग गयी है | बहुत खून बह रहा है | कोई डॉक्टर है क्या यहाँ ?”
चारों और हाहाकार मच गया | तेज बहादुर अचानक गिर पड़े | खून तेजी से बह रहा था | तेज
एक डॉक्टर रिश्तेदार आगे आए | उन्होंने प्रारंभिक चिकित्सा दी और एम्बुलेंस बुलाई | तेज बहादुर जी की पत्नी सुमित्रा यह सब देख कर बेहोश हो गईं | शुभदा उन्हें संभाल रही थी | शुभदा और शरद सिंह को तेज बहादुर जी के स्वास्थ्य और अपनी बिटिया के भविष्य की चिंता परेशान कर रही थी | राज और प्रिया की मनः स्थिति बड़ी विचित्र थी | उनका दिल मानों कुछ पलों के लिए धड़कना ही भूल गया था | कुछ समझ नहीं आ रहा था, कि आखिर अचानक हो क्या गया | तेज बहादुर सिंह जी को अस्पताल ले जाया गया | वहां डॉक्टर्स ने उनका तुरंत ऑपरेशन किया | तेज बहादुर जी की हालत बहुत गंभीर थी | वे कोमा में आ गए थे |
राज के चाचा जी घबराते हुए कह रहे थे, “किसी ने भैया की हत्या का प्रयास किया है, यह दुर्घटना नहीं हो सकती | पुलिस को खबर करो |” पुलिस आई, फिर पूछताछ और जगह –जगह खोजबीन करने लगी | सभी लोग हैरान, परेशान थे | खुशी का वातावरण चिंता के घने अँधेरे में डूब चुका था | बहुत तलाश करने पर पुलिस ने डर के मारे छुपे हुए उस गार्ड को धर दबोचा, जो जयमाल की खुशी में हवाई फायर कर रहा था, पर दुर्भाग्य से निशाना चूकने के कारण गोली दूल्हे के पिता जी के सिर में जा लगी थी |
गोली लगने का कारण पता चलने पर मामा जी क्रोधित हो कहने लगे, “हमारे यहाँ जश्न में, लोग बन्दूक चलाना शान क्यों समझते हैं ? इसके भयानक परिणामों के विषय में आए दिन टी. वी. पर समाचार सुनाई देते हैं, फिर भी लोग क्यों नहीं समझ पाते ?”
अफ़रातफ़री के उस माहौल में, पंडित जी ने डरते - डरते पूछा, “जिजमान, मुहूर्त निकला जा रहा है | विवाह के विषय में आपका क्या निर्णय है |”
तेज बहादुर सिंह जी की बड़ी बहन ने निर्णय लेते हुए कहा, “शादी का मुहूर्त आज ही अच्छा है, अतः शादी तो आज ही होगी |”
पंडित जी ने फेरों की रस्म पूरी कराई | ऐसी विषम परिस्थिति में प्रिया के माता -पिता ने अपनी लाड़ली को अनेक दुआएं देते हुए भारी मन से विदा किया |
प्रिया ससुराल गयी तो उसके मन पर भी भारी बोझ था कि उसकी शादी में ससुर जी के साथ ऐसी घटना घट गयी | वह ससुराल आते ही राज और अपनी सासु माँ के साथ हॉस्पिटल और घर के कार्यों में ऐसे व्यस्त हो गयी जैसे वह बरसों से इसी घर में रह रही हो | दुआएं और दवा के बावजूद भी तेज बहादुर सिंह जी को होश नहीं आ रहा था | डॉक्टर्स अपना काम कर रहे थे और पंडित महा मृत्युंजय जाप | हॉस्पिटल में देखने वालों की भीड़ लगी रहती, पर तेज बहादुर सिंह जी से मिलने की किसी को भी अनुमति नहीं थी |
एक दिन राज की बड़ी भूआजी बोलीं, “सुमित्रा, बहू तो हमारे परिवार के लिए बड़ी अशुभ है | जैसे ही इसने राज के गले में माला डाली, भैया की ऐसी हालत हो गयी | वैसे भी इसे किसी की कोई चिंता कहाँ है, दो घंटे से लैपटॉप से चिपकी बैठी है|”
प्रिया भूआजी की बात चुपचाप सुन रही थी | उनके मिथ्या आरोप से बिना किसी गुनाह के गुनाह की पुतली बनी प्रिया घायल पक्षी की भांति तड़प उठी |
तभी सुमित्रा ने कहा, “अरे जीजी, इक्कीसवीं सदी में आप कैसी बात कर रही हैं ? मैं तो सोचती हूँ कि प्रिया बिटिया के भाग्य से ही ये सांस ले रहे हैं और मुझे अटल विश्वास है कि ये पूरी तरह ठीक भी हो जाएंगे | जीजी, लैपटॉप पर इसके ऑफिस की मीटिंग चल रही है| यह वर्क फ्रॉम होम कर रही है ”
अपनी सासु माँ के उत्तर को सुन कर प्रिया को उनमें अपनी माँ की छवि दिखाई देने लगी | उसे अपने नए परिवार में अपनेपन का आभास होने लगा था | प्रिया माँ-माँ कह कर सावित्री जी को खुश रखने का प्रयास करने लगी थी |
हरदिन अपने जीवन साथी को मृत्यु तुल्य कोमा में देख सुमित्रा का हृदय पीड़ा से भर उठता | जब वह देखती कि उनकी आस्था का प्रतीक तुलसी का पौधा भी सूखता जा रहा है तो उन्हें चिंता खाए जाती | सुमित्रा गुमसुम सी रहने लगी थी |
राज भी अपने पापा की चिंता में नई शादी की खुशियाँ भूल सा गया था | प्रिया राज की मनोदशा समझती थी |जब भी राज परेशान होता, तब प्रिया मुस्कराते हुए मीठी मीठी बातें कर उसका मन मोह लेती | एक दिन राज अपने बचपन की अल्बम देख रहा था | इन फ़ोटो में कहीं नन्हा राज पापा की गोद में था, तो कहीं पापा के कंधे पर | पापा के साथ अपने फ़ोटो देख कर राज की आँखें भर आईं | प्रिया ने राज की परेशानी को भांप लिया था | उसने राज को एक जादू की झप्पी दी और मुस्कराते हुए राज के कंधे पर सिर रख कर बोली, मेरा पूरा विश्वास है, पापा जल्दी ही ठीक हो जाएँगे | मैं हूँ न, सारी चिंता मुझ पर छोड़ दो |”
प्रिया की बात सुन कर राज मुस्करा दिया और उसके गले में हाथ डाल कर बोला, प्रिया स्थिति ऐसी है कि मैं तुम्हारा ख़याल भी नहीं रख पाता | तुम सचमुच समझदार हो | पहले मैं तुम्हारी प्यारी सूरत पर फिदा था, मगर अब तो तुम्हारे गुणों का भी कायल हो गया हूँ | मैंने कोई बड़े पुण्य काम किए होंगे, जो तुम मुझे मिली हो |”
विषम स्थिति में भी प्यार के कुछ पल उन्हें अनोखी ऊर्जा दे जाते | अपने सपनों के साथी की बाहों में दिल की धड़कन की सरगम, उन्हें प्यार के असीम आनंद में निमग्न कर देती | एक दूसरे का प्यार पाकर वे सारे दुखों को भूल कर खुशी की एक नई दुनिया में कुछ पलों के लिए खो जाते थे |
दो महीने बीत गए थे, पर तेज बहादुर सिंह के स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं आ रहा था | निराशा पाँव पसारती जा रही थी | सुमित्रा जिन्दगी से हारती जा रही थी | प्रिया घर के वातावरण को जीवंत बनाए रखने के लिए हर मुमकिन कोशिश करती | कभी वह सुमित्रा को सुबह- सुबह टहलने के लिए ले जाती, कभी कोई गाना सुनाती, कभी व्हाट्सएप से पढ़ कर अच्छे सन्देश और चुटकले सुनाती | राज और सुमित्रा प्रिया की कर्मठता, लगन,होशियारी और प्यार को देख मुग्ध हो जाते | वे भी प्रिया की हर खुशी का ध्यान रखते | प्रिया ने अपने जॉब से कुछ दिन का अवकाश लिया था, पर उसकी छुट्टियाँ भी समाप्त हो गई थीं | अतः अपने बॉस से अनुमति ले कर वह घर से ही काम करने लगी थी | वह तुलसी के पौधे की भी देख-रेख करती और रोज जल चढ़ाती, जिससे सासु माँ की आस्था का वह नन्हा पौधा फिर से खिल उठे | उसने अपने मन में आशा का दीप जला रखा था | उसका विश्वास था कि जब पापा ठीक हो जाएंगे, तब घर पुनः खुशियों से भर जाएगा |
जब कभी प्रिया के मम्मी पापा प्रिया के घर आते तो, ससुराल में प्रिया को देख कर उन्हें ऐसा लगता कि अल्लहड़, मस्त, बिंदास रहने वाली प्रिया अचानक कैसे इतनी बड़ी हो गयी ? शादी के बाद कैसे लड़कियाँ इतनी समझदार हो जाती हैं ?अपनी बेटी के प्रति राज और सुमित्रा का प्यार देख कर वे मन ही मन खुश हो जाते |
सुमित्रा को तो बहू के रूप में एक प्यारी सी बेटी मिल गयी थी | स्वयं गहन पीड़ा को सहते हुए भी वह प्रिया और राज की खुशियों का ध्यान रखती | उसे लगता कि प्रिया और राज हनीमून के लिए भी नहीं जा सके | कई बार सुमित्रा जबरन दोनों को बाहर घूमने या डिनर करने भेजती | तो कभी उनकी पसंद के व्यंजन बनाती | प्रिया और सुमित्रा दोनों अस्पताल जातीं,वहां अस्पताल के स्पेशल वार्ड में तेज बहादुर सिंह के पास बैठ उनसे बातें करतीं |
सुमित्रा अपने आंसू पोंछ कर मुस्कराते हुए अचेत तेज बहादुर सिंह से कहती, “सुनो, आपको अपनी बहू प्रिया का इन्तजार था न, देखो प्रिया आगई | बिल्कुल तुम्हारे अरमानों जैसी है, हमारी बहू प्रिया |“
प्रिया भी कहती, “पापा, उठिये न, मुझे आपसे बहुत सी बातें करनी हैं, आपसे बहुत कुछ सीखना है |”
वे दोनों घंटों उनसे बात करती रहतीं | परिणामतः एक दिन चमत्कार हो गया | सच है, कहने को तो डॉक्टर ही इलाज करते हैं,पर लोगों के प्रेम और अपनेपन से रोगी में एक नई उर्जा और जीने की इच्छा का संचार होता है | एक दिन प्रिया ने देखा कि तेज बहादुर सिंह जी की हाथ की उँगली में कुछ हरकत हुई |
उसने तुरंत घंटी बजा कर नर्स को बुला कर कहा, “ देखो पापा की उँगली में कुछ चेतना आई है, जल्दी से डॉक्टर को बुलाओ |” डॉक्टर्स आए और खुशी से बोले, “ गुड, नाउ ही इज़ आउट ऑफ़ डेंजर | यह तो चमत्कार हो गया |”
तीन महीने के कठिन परिश्रम के बाद तेज बहादुर सिंह जी ठीक हो कर घर आए | घर में खुशियां छा गईं | तेज बहादुर सिंह जी अत्यंत भावुक हो रहे थे | उन्हें अपने पूरे परिवार पर बड़ा गर्व था | उनकी आँखों से खुशी के आंसू बह रहे थे | उनका यह नया जीवन किसी चमत्कार से कम नहीं था |
“वैसे पापा यह हवाई फायर करने का विचार कहाँ से आया था?” राज पूछ बैठा |
तेज बहादुर सिंह बोले, “पता नहीं, पर एक बात समझ आ गई कि विवाह तो दो आत्माओं और दो परिवारों का पावनतम मिलन है | इसमें हवाई फायर करने और शान दिखा कर जश्न मनाने का कोई औचित्य नहीं है |”
“ईश्वर का लाख लाख धन्यवाद, जो आपकी जान बच गयी |” सुमित्रा ने रोते हुए कहा |
तेज बहादुर सिंह कहने लगे,
“सुमित्रा, राज, प्रिया बिटिया,| तुम्हारे पुण्यों का ही फल है, जो आज मैं यहाँ जीवित बैठा हूँ |”
“ये पुण्य तो हमारी बहू और बेटे के हैं |” सुमित्रा बोली |
प्रिया और राज ने मुस्करा कर पापा के चरण स्पर्श किये |
तेज बहादुर सिंह जी ने प्रिया और राज के सिर पर हाथ रख कर बड़े स्नेह से कहा, “खुश रहो बेटा, आज मैं प्रेम के सूत्र में बंधे अपने परिवार को देख कर बहुत खुश हूँ |
“पापा, यदि मम्मी भी भूआ जी की तरह सोचतीं, तो सब कुछ उलटा हो जाता |” राज ने मुस्कराते हुए कहा |
तेज बहादुर सिंह जी भावुक होते हुए बोले, “हाँ बेटा, सुमित्रा और प्रिया ने रिश्तों की डोर को बखूबी बांधे रखा | यदि रिश्तों के धागे एक बार उलझ जाते हैं, तो उन्हें सुलझाना बड़ा कठिन होता है | रिश्तों की खूबसूरती बरकरार रखने के लिए यह जरूरी है कि हम सकारात्मक सोच रखें | खुद भी खुश रहें और दूसरों को भी खुश रखें | जिस घर में सब एक दूसरे की भावनाओं की कद्र करते हैं और प्यार से एक दूसरे के लिए जीते हैं, वहां मुश्किलें भी अधिक दिन नहीं ठहरतीं |”
सुमित्रा कहने लगी, “सच कहा आपने, जहाँ प्यार भरे रिश्तों की मंजरी महकती रहती है, वहां दुःख की सघन काली रात भी बड़ी आसानी से कट जाती है |”
अचानक सुमित्रा की दृष्टि हरे भरे तुलसी के पौधे की ओर गयी, वह चहक उठी, उसकी आस्था का वह नन्हा पौधा उसके परिवार की तरह फिर से हरा भरा हो कर अपनी मंजरियों से पूरे वातावरण को सुवासित कर रहा था |
सुनीता माहेश्वरी
जागरण सखी में प्रकाशित