Misunderstanding Part-3 (Virah ke din) books and stories free download online pdf in Hindi

ग़लतफ़हमी भाग-3 (विरह के दिन)

देखो न , हर कोई आ गया मिलने, कौन रूठता नहीं है पर इसका मतलब ये थोड़ी होता है कि बीच राह में साथ छोड़ कर चला जाये ओ भी सिर्फ़ ग़लतफ़हमी की वजह से। रात भी आई और मिलकर चली गयी, आंखों से आँख मिलाते हुए टिमटिमाते तारे भी आये, बालों को सजाने वाली हवा भी आकर चली गयी। जानती हो आज सुबह जब मैं उठा तो मिलने के लिये आपका भाई सूरज भी आया था , किरनों से पैरों को छुआ और माथे को चूम कर चला गया। ओ विस्वास दिला कर गया है कि मैं आ गया तो एक दिन उसे भी लेकर आऊंगा। तुम दिल छोटा मत करना। जानती हो पन्द्रह दिन हो गया था ओ चिड़िया नहीं आयी थी जिसकी पूंछ को तुमने हाथों से छू कर गुलाबी कर दिया था, आज उड़ते हुये आयी और बाहर बालकनी में जहाँ मैं बैठा था पास में ही आकर बैठ गयी। पहले तो बात नहीं करती थी लेकिन आज पूंछ रही थी कि क्या बात है आज बहुत उदास हो । हमने तो ये कहते हुए बात टाल दिया कि बताओ तुम कैसी हो, और इतने दिन तक कहाँ रही। कुछ दाने चुगी और हथेली चूम कर चली गयी, जाते जाते कह रही थी की हमेशा हंसते रहा करो, आप हंसते हुए अच्छे लगते हो। हमने भी गर्दन हिला कर हामी भर ली।
चाँद भी आया था देर रात को , पर पता नहीं क्या बात थी बहुत ही सुस्त होकर, थोड़ा सा ही आया था दबे मन से। थोड़ी ही देर के लिए आया भी था, कह रहा था कौन तेरे पास बैठे , मनहूसियत छाई रहती है लेकिन फिर भी आया तो मिलने के लिए।
आज "सुबह" आयी थी मिलने के लिये , थी तो बहुत खुश लेकिन मेरे पास आते आते बहुत उदास हो गयी , कह रही थी कि आखिर बात क्या है कि तेरे पास कोई रौनक नहीं रहती। आज मैं उसके प्रश्नों का जवाब नहीं दे पाया।
लेकिन जब शाम मुझसे मिलने आयी तो एक दम तुम्हारी तरह तैयार थी और बहुत खुश लग रही थी जैसा कि तुम लास्ट टाइम मेरे से बात की थी , और उसी समय आयी थी जिस समय तुम छत पर आती थी मिलने के लिये , शाम बहुत चालाक है तेरी जुल्फों की तरह ओ बादलों को भी समेट लायी थी। लेकिन प्रण था उसका की ओ बरसेगी नहीं तुम्हारी तरह। लेकिन आज ओ बहुत खूबसूरत लग रही थी एक दम तुम्हारी तरह।
देखो सिर्फ तुम नहीं आयी मिलने बाकी सब कोई आया।
जब आप से मिलने जाना था तो मैं कितना खुश था , कितनी तैयारियां की थी मैंने, उस दिन मैंने चार बार साबुन लगाया था चेहरे पे और खूब मल मल के नहाया था। इत्र की खुश्बू मुझे नहीं पसंद है लेकिन फिर भी हल्का सा मार लिया था ताकि तुम्हे जिस्म की बदबू महसूस न हो। बालों को मैंने कंघी की थी लेकिन एक दम नई तरीके से। अच्छा एक बात तो है कि जब आप प्रेम में हो तो चीज़े इतनी प्यारी लगती है कि कुछ पूछो ही मत लेकिन जब बिरह की घड़ी आती है तो सबकुछ इसका उल्टा हो जाता है , कुछ भी अच्छा नहीं लगता । पकवान कितने भी अच्छे हो सब फीके लगते हैं। कोई कितना भी अच्छा सामने क्यूं न आ जाये लेकिन सब हुड़ -ऊक- चुल्लू ही लगते हैं । वही दुनिया जो प्यार से भरी लगती थी वही अंधकार में डूबी लगती है।
आशु जिंदगी की उधड़ी हुई पटरियों को ख्वाबों की जेसीबी और कल्पनाओं के लेवलर से मरमत कर रहा था। उसे आशा है कि एक न एक दिन तो ओ उन उधड़ी हुयी पटरियों पर चलने जरूर आएगी भले ही थोड़ा सा ही चले और फिर लौट जाये।

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