इतना बड़ा सच(भाग 2) Kishanlal Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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इतना बड़ा सच(भाग 2)

वह कुछ चिड़चिड़ी हो गई थी।शायद सास बनते ही औरत में कुछ गुण स्वत् ही आ जाते है।राम बाबू कपड़े बदलते हुए मन ही मन सोच रहे थे।
पंकज के लिए बहुत रिश्ते आये थे।एक से बढ़कर एक।उनका साला राकेश भी अपनी दोस्त की लड़की का रिश्ता लेकर आया था।लड़की के पिता का अपना कारोबार था।लड़की माँ बाप की इकलौती संतान थी।सारी धन दौलत की एक मात्र वारिस।लड़की का पिता भारी भरकम दहेज देने के लिए भी तैयार था।
रामबाबू को दहेज का लालच नही था।उनकी एक ही शर्त थी,जिसे उनका बेटा पसंद करेगा।उसी लड़की से वह अपने बेटे की शादी करेंगे।
जितने भी लड़कियों के रिश्ते आये।सबके बारे में बेटे को बता दिया था।पंकज कई लड़कियों को देखने भी गया था।उसे रामबाबू के सहकर्मी रमेश की बेटी शिखा पसंद आयी थी।शिखा उच्च शिक्षित,संस्कारी और सुंदर थी।बेटे की पसंद पर रामबाबू ने उसका रिश्ता शिखा से कर दिया था।
पति के इस निर्णय पर सुधा नाराज हुई थी।रामबाबू ने पत्नी की नाराजी को गम्भीरता से नही लिया था। उन्हें विश्वास था,उन्होंने यह निर्णय लेकर कोई गलती नही की थी।उनका यह विश्वास सही निकला था।शिखा ने आते ही अपने व्यवहार से सुधा का मन मोह लिया था।सुधा को अब शिखा से कोई शिकायत नही थी।लेकिन जब दूसरी औरते अपनी बहुओं द्वारा लाये दहेज का बखान करती तब सुधा को उनकी बातें सुनकर मलाल जरूर होता था।ऐसा जब भी होता तब सुधा असामान्य हो जाती।फिर कई दिनों तक उसका मूड उखड़ा रहता।घर के हालात देखकर राम बाबू को लगा शायद आज भी कोई ऐसी ही बात हो गयी होगी।
रामबाबू के बैठते ही शिखा खाने की थाली ले आयी।शिखा थाली रखकर जाने लगी,तो रामबाबू बोले,"आज चुप कयो हो बेटी"?
"वैसे ही।"शिखा ठिठक कर खडी रह गई।
"सास से कोई बात----रामबाबू ने जान बूझकर बात को अधूरा छोड़ दिया था।
"नही तो, शिखा साडी का पललू उगली मे लपेटते हुए बोली,"ऐसी कोई बात नहीं है।"
"बेटी तुम कुछ छिपा रही हो।कोई बात जरूर है।"रामबाबू के बार बार पूछने पर शिखा बोली,"कमला आंटी आयी थी।वह गई है ,तब से ही मम्मी बेड रूम मे है।"
कमला का नाम आते ही रामबाबू का माथा ठनका था।कमला ब्याह कर इस कॉलोनी में आई।तब से ही राम बाबू उसे जानते थे।वह उन औरतो में थी जो दूसरों के घर मे आग लगा कर तमाशा देखती है।राम बाबू को कमला से चिढ़ थी।उसकी आदत से वह वाकिफ थे।इसलिए उन्हें कमला का घर आना पसंद नही था।लेकिन सुधा को उससे लगाव था।सुधा की कमला से खूब पटती थी।
खाना खाने के बाद राम बाबू उठे,तो उनकी नज़र मेज पर रखे लिफाफे पर पड़ी।पंकज का था।वह पढ़ने लगे।
पंकज की शादी होते ही उसकी नौकरी लग गई थी।वह लेक्चरार होकर गोहाटी चला गया था।आसाम से हिंसा,असंतोष की खबरे जब तब आती रहती थी।इसलिए बेटे को इतनी दूर भेजने से पहले पत्नी के साथ उनका भी घबराया था।लेकिन आजकल नौकरी मिलना भी मुश्किल है।इसलिए दिल से न चाहते हुए भी बेटे को भेज दिया था।
अब तो पंकज को वहाँ रहते हुए एक साल हो गई थी।बीते एक साल में वह तीन बार घर आ चुका था।उसका फोन रोज आता था।अब वह बेटे के दूर होने पर चिंतित नही था।