अनाथ बेटी
रात के सात – साड़े सात के करीब खुले स्ट्रेट किए बाल, ओठों पर हल्की सी मरून सलवार कमीज़ से मिलती लिपस्टिक लगाएँ। कंधे पर लेडिज पर्स हाथ मे लैपटॉपबेग, कलाई में मेटल वॉच ड़ाले, ब्लॅक हील्स के साथ अपनी गाड़ी पास वाले सर्विस सेंटर मे दे। राधिका घर की ओर धीरे – धीरे अपने कदम बड़ा रहीं थी। वह हमेशा की तरह बेफिक्री और बिंदास नहीं थी। आज वह बेचैन और उदास थी। शायद यह बेचैनी रात - दिन मेहनत करने के बाद हाथ से निकल गए प्रोजेक्ट की वजह से थी या लंच टाइम में ऑफिस से जिस व्यक्ति को मिलने गयी थी उनका घर पर ना मिलने की वजह से थी वह खुद नहीं जानती। वह अपनी ही सोच मे खोयी थी की तभी उसे लगा कोई उसका पीछा कर रहा हैं। उसने पीछे मूड कर देखा कोई नहीं था। उसे लगा शायद ये उसका भ्रम था उसने अपनी गति तेज़ कर ली। कुछ दूर आगे निकल कर उसने फिरसे पीछे मूड कर देखा तो एक बूढ़ा व्यक्ति उसका पीछा करते हुए आ रहा था। राधिका को लगा कोई भिखारी होगा, वह वापस जाने लगी तो वह भी उसके पीछे हो लिया। मेले फटे - पुराने कपड़े, एक मटमेली चादर, लंबे बाल, महीनो से बिना हजामत की हुई दाढ़ी और बिना जूतो के वह धीरे – धीरे राधिका का के पीछे चल रहा था।उनको देख कर ऐसा लग रहा था की उनको कई महीनो से भर पेट खाना नहीं मिला हैं। राधिका को उनके ऊपर दया आ गयी वह अपने डर को परे धकेल उस व्यक्ति की ओर मुड़ी। वहा उन के पास पहुच कर उस ने पूछा
“कोन हैं आप? और मेरा पीछा क्यों कर रहें हैं? क्या चाहिए आपको मुज़से?”
राधिका का यह सवाल सुन वह बूढ़ा व्यक्ति ठिठक गया। उसे अपनी हालत और हालात का ख्याल आया। उन्हे पता चला उनके पीछे – पीछे घूमने वाली उनकी परी उनसे ऐसा सवाल क्यों कर रहीं हैं। उन्होने खुद को संभाला और कहा
“वो मैं...मैं...वो”
यह आवाज़ सुन राधिका को एक पल भी नहीं लगा यह जानने के लिए की वह और कोई नहीं पर जिनसे वह आज दोपहर मिलने गयी थी वही उस के मेहता अंकल हैं। उसने ना आगे देखा ना पीछे रोते बिलखते हुए वह आगे बढ़ी और कस कर उनके गले लग गयी।
वह बचपन की यादों मे खो गयी। उसे वह दिन याद आ गया जिस दिन उसने ‘यादों का आँगन’ नाम के उस अनाथलय मे पहली बार पैर रखा था।उसी दिन वहां उसे एक भाई के साथ पूरा परिवार मिल गया था। उस के वहां आते ही ओम नाम के ७-८ साल के उस लड़के से उसकी दोस्ती हो गयी थी। उस दिन शाम को ३५ साल का एक व्यक्ति अपनी २५-३० साल की पत्नी के साथ वहां आए थे। उन्होने सब को तोफ़े, चॉक्लेट और मिठाई दी। राधिका का को भी एक दो चॉक्लेट मिले वह उसी में खुश हो गयी।
कुछ दिन बाद उसे ओम से पता चला की उस व्यक्ति का नाम नरेंद्र मेहता हैं और उनकी पत्नी का मनोरमा। वे लोग पिछेल दो – तीन सालों से यहां हर रविवार के दिन,त्योहार के दिन और कभी - कभी शाम को भी आते हैं। मेहता अंकल बैंक मैनेजर हैं, मनोरमा आंटी स्कूल टीचर थी पर उन्होने पाँच -छे साल पहले नोकरी छोड़ दी थी। वह शादी के दस साल बाद पेदा हुए अपने बच्चे की पर्वरिश में अपना पूरा ध्यान लगाना चाहती थी। दो – तीन साल पहले उनके बेटे की अचानक छत से गिरने के कारण उनके बेटे की मृत्यु हो गयी।उस के बाद उन्होने कभी नोकरी नहीं की। मनमोज़िली और बेफिक्र सी वो गुम – सुम और हमेशा उदास रहने लगी। पूरा दिन वह तरुण की तस्वीर को लिए बेठी रहती थी। मेहता अंकल से उनकी यह हालत देखि नहीं जाती थी। उन्होने उनके साथ यहां आना शुरू किया। यहां आने के बाद वह वापस जिंदगी जीने लगी थी। वह सब को पसंद थी और उन्हे सब, पर ओम से उन्हे कुछ अलग ही लगाव हो गया था। ओम मे उनको तरुण की छवि दिखाई देती थी।
मनोरमा आंटी ने अंकल से कभी कहा नहीं पर उनके मन की बात अंकल जान गए थे। उन्होने मनोरमा आंटी को एक नहीं दो – दो तोफ़े देने का तैय किया ओम और राधिका के रूप में। उन्होने अकेले ही एक दिन मैडम कुलकर्णी से बात की।
“मेहता जी आप ओम को अभी इन्फैक्ट आज ही द्तक अड़ोप्त कर सकते हैं। राधिका अभी कुछ दिन पहले ही आयी हैं।इस वजह से मुझे अभी थोड़ा पेपर वर्क करना बाकी हैं। आप उसे अगले महीने तक ले जा सकते हैं।”
सारा पेपर वर्क करके मेहता अंकल ओम को अपने साथ ले गए और राधिका को अगले महीने लेजा ने का वादा किया। उन्होने ओम का नाम और स्कूल दोनों ही बदल दिया। मनोरमा आंटी खुद रोज़ उसे छोड़ने और लेने जाती थी।दोनों को ही अपना तरुण तो मिल गया, पर दोनों को ही एक बेटी चाहिए थी। उन्होने शादी से पहले ही सोच रखा था उनकी पहली संतान बेटी ही होगी।इस लिया दोनों ने राधिका को द्तक लेने की ठान लिया था। मेहता उंकल को उस में अपनी खुशमिजाज़, सब की चिंता करने वाली और जिंदगी को खुल कर जीने वाली माँ की छवि दिखाई देती थी और मनोरमा आंटी को अपनी सास की। जिस दिन वे दोनों राधिका को लेने जाने वाले थे उस के कुछ दिन पहले तरुण को स्कूल छोड़ कर आती मनोरमा आंटी की गाड़ी से टकरा कर एक्सिडेंट मे मृत्यु हो गयी। मेहता अंकल के जीने की दो वजह चली गयी थी पर और दो वजह उनकी जिंदगी का हिस्सा बन ने के लिए उनका इंतज़ार कर रहीं थी।
मनोरमा आंटी के जाने के बाद मेहता उंकल एक दुविधा मे पड गए की राधिका को घर ले जाए या नहीं? इस उम्र मे इतने छोटे बच्चो की देखभाल वह अकेले कैसे करेंगे? जब वह बड़ी होगी तो उसे माँ की भी जरूरत पड़ेगी वह कमी मैं कैसे पूरी करुगा।यह कारण रहा की वे राधिका को अपने साथ घर तो नहीं ले गए पर शहर के सबसे नामी स्कूल और होस्टेर्ल मे भेज़ दिया।वे उसे मिलने अकसर जाया करते थे।हर छुट्टी वे तीनों एक साथ ही बिताते थे। हालाकी राधिका मेहता अंकल से दूर हॉस्टल मे रहती थी पर उनके दिल के बहुत करीब थी। वे दोनों ही एक दूसरे की बात बिना कहें समज़ जाते थे।दूर रह कर भी दोनों नेही अपनी अपनी जिम्मेरदारी बखूबी निभाई और हर एक जरूरत को पूरा किया। मेहता अंकल ने राधिका की शिक्ष पूरी होने के बाद उसे एक मल्टीनेशनल कंपनी मे जॉब दिलवा दी थी। हालाकी वह खुद एक हुनहार और मेहनतु लड़की थी, साथ ही इतनी सक्षम की कोई उसे मना नहीं कर पाता।
कुछ महीनो पहले राधिका ऑफिस के काम से विदेश गयी थी। वहां से आने के दूसरे ही दिन वह मेहता अंकल को मिलने गयी थी पर वह घर पर नहीं मिले थे। आज भी वह दुपहर को मेहता निवास गयी थी पर आज भी उसे वे नहीं मिले। शाम को वे ऐसी हालत मे मिले तो उसे कुछ समज नहीं आया की महीनो पहले जो बिलकुल ठीक थे उनकी हालत अचानक ऐसी कैसे हो गयी। वह पूछना चाहती थी पर उसे अंकल की हालत देख पूछने का मन नहीं किया।उस ने खुद को संभाला और मेहता अंकल से कहा
“आप भले ही लाख कहें पर मैं आपकी आप एक नहीं सुनूगी। आप अभी मेरे साथ घर पर आ रहें हैं।”
और उनका हाथ पकड़ कर उन्हे अपने साथ ले गयी। उसने चलते चलते ही राहुल को फोन किया और उसे एक नाई और उस के एक जोड़ी कपड़े भिजवाने को कह दिया। जब तक वह अंकल को लेकर घर पहुची तो घर के बाहर कोई उस का इंतज़ार कर रहा था।उसे देखते ही उस ने पूछा
“जी आप कोन?”
“जी मैडम मैं वो बबलू मुझे वो राहुल साब ने भेजा हैं।”उस व्यक्ति ने कहा।
“हा मैंने ही उसे कहा था।उसने आपको कपड़े दिये? मैंने उसे कहा था कपड़े भिजवाने को।”
“हा मैडम जी। यी रहें आपके कपड़े।”
“आप आइए अंदर। आपको अंकल की हजामत करनी हैं।”
तब तक उस ने रात के खाने की तैयारी कर ली, पानी गरम करने रख दिया। जब हजामत हो गयी तो उस ने अंकल को नहाने के लिए भेज दिया और नाई को मद्दत के लिए भेजा। जब तक अंकल आए तब तक चावल की खीर, पूरी और छोले बन चुके थे। दोनों ने चुपचाप खाना खाया। खाने के बाद राधिका ने सब समेटा और अंकल को सोने के लिए भेज दिया। रात के दस बज गए थे पर उस की आंखों से नींद गायब थी। वह पास ही रखी किताब खोल कर पढ़ने लगी। तभी अंकल के कमरे से उसे छीलाने की आवाज़ आई। उस ने कमरें मे जाकर देखा तो अंकल नींद मे चीला रहें थे।
“मनोरमा मुझे छोड़ कर मत जायों। मैं तुम्हारे बगेर नहीं रह सकता।”
वह अंकल की ओर बढ़ ही रहीं थी की वे फिर करवट ले कर सो गए। वो अपने कमरे मे गयी। फोन उढ़ाया और राहुल को लगा दिया। राहुल उस का बहुत अच्छा दोस्त और कुछ दिनों मे उसका जीवन साथी बनने वाला था। राधिका जब विदेश गयी थी तब उसने मेहता अंकल से एक दिन कहा था।
“अंकल राधिका का आपके अलावा और कोई नहीं हैं। वो आपसे पूछे बगेर अपने जिंदगीके निर्णय लेती भी नहीं हैं। मैंने उसे अब तक कहा तो नहीं पर मैं उसे अपनी जीवन संगिनी बनाना चाहता हु।अगर आप की अनुमति तो मैं उसे अपने दिल की बात्त बताना चाहता हु।”
“मेरी तो पहले से ही हा हैं बेटा। वह पगली ही अपने दिल की बात नहीं जान पायी हैं। नाही उसे तुम्हारे प्यार के बारे मे अब तक पता चल पाया हैं। वोतोंअब तक तुम्हें सिर्फ दोस्त समज़ ही मानती हैं।पर उसके मन की बात आज तक मुझसे कहा छिप पायी हैं।तुम जरूर उसके आते ही उस्से बात करो वो तुम्हें मना नहीं करेगी।”
राहुल के फोन उढ़ाते ही उस ने मेहता अंकल के बारे मे सब कुछ बता दिया।
“कल तुम कब फ्री मैं उकले को लेकर तुम्हारे क्लीनिक अंकल को लेकर आ रहीं हु।” राधिका ने पूछा।
फिर उसने ऑफिस मे कुछ दिन छुट्टी के लिए दरखास्त भेजी। सुबह उसने उठ कर नाश्ता बनाया अंकल को तैयार किया फिर पास ही बने मॉल मे अंकल को कपड़े और उनकी जरूरत की चीज़ें ख्ररीदने ले गयी। वहां खिलोनों की एक दुकान देख कर मेहता अंकल अंदर चले गए और बंदूक के लिए ज़िद्द करने लगे। राधिका जब उनको ढूंढते वह पाहुची तो हक्की- बक्की रह गयी। उस ने दुकानदार से कहा
“आप उन्हे जो भी चाहिए दे दीजिये।”
दुकानदार ने जो कहा गया वो किया। राधिका ने बाकी चिज़े खरीदी। वहाँ से वो सीधे राहुल के क्लीनिक गयी। उसे अभी जो कुछ हुआ उसके बारे मे बताया।
सब सुनने के बाद राहुल ने कहा
“राधिका अंकल को गहरा आघात पाहुचा हैं। उसी के साथ उनके सिर मे एक चोट भी लगी हैं। क्या तुम्हें पता हैं यह कैसे और कब हुआ? क्योकि एक दो महीने पहले मेरी अंकल से फोन पर बात हुयी तब वे बिलकुल ठीक थे।”
“नहीं मुझे कुछ नहीं पता। पर मैं पता करती हु। मुझे एक दिन का समय दो।” फिलहाल मुझे अंकल के इस व्यवहार की वजह बताओं।”राधिका ने कहा।
“अंकल को लगे आघात की वजह से वे मानसिक विकार के शिकार हो गए हैं। जिस मे इंसान के दो व्यक्तित्व बन जाते हैं। इस के बारे में खुद उस व्यक्ति को नहीं पता होता। अक्सर यह बचपन में किसी आघात या बार बार हुये सोषण की वजह से होता हैं।अंकल को कैसे इस उम्र मे हो गया पता नहीं। खिलोनों की अंकल की जिद्द को देख यह तो तैय हैं की उनका दूसरा व्यक्तिव एक छोटे बच्चे का हैं।”
“तो अब इस का कोई इलाज तो होगा ना।” मैं अंकल को इस हालत मैं नहीं देख सकती।” रुयासी आवाज़ मे राधिका ने पूछा।
“नहीं राधिका इस का इलाज तो नहीं हैं पर हा इस के लक्षणों जो जरूर कम कर सकते हैं।”राहुल ने कहा
“तो हम कब शुरू करे अंकल की थेरेपी?” राधिका ने पूछा
“पहले तुम्हें अंकल की इस हालत की वजह पता करनी पड़ेगी।” राहुल ने उस ले सवाल का जवाब दिया।
“ठीक हैं मैं आज ही पता करती हु।”राधिका ने बताया और अंकल को लेकर घर आ गयी।
घर पहुच कर उसने आशा ताई जो अंकल पडोस मे रहती थी उन्हे फोन किया। फोन उठ ते ही वहाँ से आवाज़ आयी।
“ हैलो हां राधिका! कैसी हैं तू? कैसे याद किया आज?
राधिका ने बिना यहाँ - वहाँ की बात किए सीधे मेहता अंकल के बारे पूछा।
आशा ताई ने उसे बताया की जिस दिन वह विदेश जाने से पहले अंकल से मिलने आयी थी। तब मेहता अंकल की रति और तरुन से राधिका को दिये पैसो को लेकर बहेज हो गयी थी। उस के बाद सब ठीक हो गया पर जब मेहता अंकल ने दुबारा किसी को पैसे दिये तो दोनों ने धके मार उन्हे घर से बाहर निकाल दिया। उसी वक़्त उनके सिर मे भी चोट आयी थी जिसके बाद आशा ताई ने उन्हे अस्पताल मे भर्ती करवाया। वे हर दिन उन्हे देखने जाती थी। एक दिन जब वह गयी तो उन्हे पता चला मेहता अंकल वहाँ से भाग गए हैं। अब वे कहाँ हैं ये किसी को नहीं पता।
राधिका ने उन्हे अंकल उसके साथ हैं यह बताया और फोन रख दिया।
आशा ताई का फोन रख उसने राहुल को फोन करके सारी जानकारी दी।
अंकल का थेरेपी राहुल ने शुरू कर दि थी। दोनों ही मिल कर अंकल के लिए जितना उनसे हो सके उतना कर रहें थे। उसी बीच एक दिन तरुन अंकल को लेने वहां पहुच जाता हैं। वहां आ कर वो रोता हैं गीड़गिड़ाता हैं मेहता अंकल के पेरो मे पड़ माफी भी मांगता हैं पर मेहता अंकल उस्से ड़र कर छोटे बच्चे की तरह राधिका के पीछे छिप जाते हैं। तब तक राहुल वहां आ जाता हैं। वो रति और तरुन पर बहुत ही गुस्सा करता हैं। राधिका के मना करने के बावजूद वह अंकल की हालत के बारे में उन दोनों को बता देता हैं। वह तरुन को यह तक कहता हैं की
“अगर तुम यह भूल गए हो की तुम कहा से आए हो तो मैं आज तूमे याद दिलाता हु।”
तरुन शायद सच मैं वो कहाँ से आया हैं यह भूल गया हैं। वह उसे उल्टा सवाल करता हैं।
“क्या मतलब तुम्हारा की मैं कहा से आया हु।”
“अरे ! सिर्फ सात - आठ साल के थे तुम जब अंकल ओर आंटी ने तुम्हें दत्तक लिया।तुम्हें दत्तक लेने के कुछ साल बाद ही आंटी की एक एक्सिडेंट मे डैथ हो गयी। तब से लेकर आज तक उन्होने अकेले तुम्हें बड़ा किया। तुम्हारी हर जरूरत पूरी की। आज जब उन्हे तुम्हारी जरूरत हैं तो तुमने उन्हे घर से ही निकाल दिया? कैसे भूल गए की उनकी वजह से तुम्हें उड़ने को पंख मिले। जिसने तुम्हें पंख दिये तुम आज उन्ही के पंख काटने दोड़े हो और क्या मुझे नहीं मालूम की अब यह जुढ़ा नाटक अंकल की प्रॉपर्टि के लिए किया जा रहा हैं।”
यह सुन राधिका का खून खोल उठा उसने तरुन पर चिल्लाते हुये कहा
“मेरे पापा को किसी की जरूरत नहीं अब उनका बेटा और बेटी दोनों उनके साथ खड़े हैं। मुझे नहीं पता था सब की फिक्र करने वाला तरुन शादी के बाद इतना बदल जाएगा। हमे तुम्हारी कोई जरूरत नहीं निकल जाओ मेरे घर से और वापस अपनी सकल भी मत दिखना।”
तरुन के जाने के बाद राहुल के गले लग वह फुट – फुट कर रोयी। तभी अंकल ने कोई शरारत की जिसे देख दोनों ही सारे दुख को भुला कर ज़ोर से हस पड़े।