गूगल बॉय
(रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास)
मधुकांत
खण्ड - 14
पिछले दस दिन से महा रक्तदान शिविर की तैयारियाँ बड़े उत्साह से चल रही थीं। रेडक्रास सचिव को जब गूगल ने कैम्प लगाने की बात कही तो उन्होंने उत्साह से भरकर पूछा - ‘कितने यूनिट का कैम्प लगेगा?’
‘लगभग पाँच सौ यूनिट का..।’
‘आपने कैसे अनुमान लगाया?’
‘एक सौ पचास रक्तदाताओं की लिस्ट तो आई.टी.आई. के छात्रों की आ गयी है, सौ के आसपास यहाँ के कॉलेज के छात्र हैं। पचास के आसपास बाँके बिहारी जी के भक्त हैं...सब अनुमान लगाकर मैंने पाँच सौ यूनिट का विचार किया है।’
‘गूगल भाई, पाँच सौ यूनिट का कैम्प बहुत बड़ा कैम्प होता है, उसके लिये व्यवस्था भी बड़ी करनी पड़ती है। कम-से-कम तीन डॉक्टरों की टीम बुलानी पड़ेगी।’ सचिव महोदय ने उसका हौसला बढ़ाते हुए कहा - ‘खैर, आप चिंता न करें। तीनों टीमों की व्यवस्था मैं कर दूँगा और बताओ, क्या-क्या व्यवस्था हो गयी है?’
‘टेंट वाले को बोल दिया है। दूध, बिस्कुट और फलों की व्यवस्था एक मित्र को सौंप दी है। अतिथियों का स्वागत सफ़ेद शॉल से किया जायेगा। उसके लिये सौ शॉल और रक्तदाताओं को उपहार में देने के लिये पाँच सौ हेलमेट का आदेश स्वयं बाँके बिहारी जी ने कर दिया है।’
‘सुनो गूगल भाई, पिछले सप्ताह हमारी मासिक बैठक में यह विचार हुआ था कि प्रथम बार कोई सामाजिक संस्था रक्तदान शिविर लगाती है और उसके पास रक्तदाताओं को उपहार देने का बजट न हो तो दानी सज्जनों से उनके लिये हेलमेट की व्यवस्था की जाये। आप अपने बाँके बिहारी जी से पूछ लो कि क्या वे इस काम में हमारी सहायता कर देंगे?’
‘कितनी सहायता के लिये पूछूँ सर?’
‘पाँच सौ हेलमेट आ जाएँ तो इस गर्मी के मौसम में खून की कमी नहीं रहेगी।’
‘पूछ लूँगा, परन्तु मुझे विश्वास है कि मेरे बाँके बिहारी जी रक्तदान के काम के लिये कभी ना नहीं करेंगे।’
‘गूगल भाई, अपने बाँके बिहारी से हमें भी मिलवा दो?’
‘उनपर तो सब का अधिकार है। जो चाहे, जब चाहे, जहाँ चाहे मिल सकता है। बस श्रद्धा और विश्वास की आवश्यकता है।’
‘तो ठीक है, मैं रक्तदान शिविर में एक घंटा पहले आकर सारी व्यवस्था सँभाल लूँगा’, सचिव महोदय ने उसे निश्चिंत कर दिया।
‘धन्यवाद सर।’
‘बाँके बिहारी जी का हमारी तरफ़ से बहुत-बहुत आभार प्रकट कर देना।’
बाँके बिहारी मन्दिर में जहाँ रक्तदान शिविर लगना था, वहाँ भी बड़े उत्साह के साथ तैयारियाँ चल रही थीं। बाँके बिहारी मन्दिर से लेकर गूगल ने घर की चारदीवारी और पिछवाड़े में विशाल सत्संग करने के लिये एक हज़ार सज्जनों के बैठने के लिये बड़ा शैड बनवा दिया था। मन्दिर की कमेटी में गूगल को सदस्य बना लिया गया। जब से गर्भगृह में बुलाकर बाँके बिहारी जी के विशेष दर्शन कराने वाली बातें फैली हैं, तब से लोगों के दिलों में गूगल के प्रति सम्मान बढ़ गया है। मन्दिर का पुजारी तो बिहारी जी का कम और गूगल का अधिक भक्त बन गया। अब वह गूगल के पिता गोपाल की जयंती पर लगने वाले शिविर में पूरे उत्साह के साथ लगा हुआ था।
आई.टी.आई. के छात्र और अध्यापक भी इसे अपना कैम्प समझकर अधिक-से-अधिक प्रचार में लगे हुए थे। उन्होंने पूरे क़स्बे में बैनर टंगवा दिये, पोस्टर चिपकवा दिये। लाउडस्पीकर से घोषणा आरम्भ हो गयी। आसपास के गाँवों में जहाँ-जहाँ रक्तदान अंकुरण सम्मान आयोजित किये, वहाँ से रक्तदान में संलग्न सामाजिक संस्थाएँ अपने-अपने रक्तदाताओं के साथ आने का आश्वासन दे चुकी थीं। दो संस्थाओं ने तो अपने गाँव में रक्तदान चेतना यात्रा निकालकर कैम्प में आने का कार्यक्रम बना रखा था।
प्रिंट मीडिया भी इस कैम्प के प्रचार-प्रसार में पूरा सहयोग कर रहा था। ‘बाँके बिहारी जी ने उठाया रक्तदान का बीड़ा’, ‘स्व. गोपाल के जन्मदिन पर महा रक्तदान उत्सव’, ‘गूगल ने दिखायी रक्तदान की राह’, ‘अधिकांश रक्तदानी हेलमेट पहनकर कर रहे ट्रैफ़िक नियमों का पालन’.....इस प्रकार के अनेक प्रमुख शीर्षकों से समाचार पत्रों में रक्तदान का प्रचार-प्रसार हो रहा था।
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