सबको पता था वह मार डाला जाएगा। - 6 Suraj Prakash द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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सबको पता था वह मार डाला जाएगा। - 6

सबको पता था वह मार डाला जाएगा।

सूरज प्रकाश

गैब्रियल गार्सिया मार्खेज़ के उपन्यास

का अनुवाद

chronicle of a death foretold

6.

वह लम्बे अरसे तक, बिना किसी मोह भ्रम के उसके बारे में सोचती रही थी। तब भी जब उसे अपनी आंखों की जांच कराने के लिए अपनी मां के साथ रिओहाचा के अस्पताल में जाना पड़ा था। रास्ते में वे होटल देल पुएरतों में रुकी थीं। वे होटल के मालिक को जानती थीं। पुरा विकारियो ने बार में एक गिलास पानी मांगा था। पुरा विकारियो अपनी लड़की की तरफ पीठ किये पानी पी रही थी, तभी एंजेला ने कमरे में चारों तरफ लगे दर्पणों में खुद के ख्यालों को प्रतिबिम्बित होते देखा था। एंजेला विकारियो ने एक ठण्डी सांस भरते हुए अपना सिर घुमाया था। वह उस वक्त वहां से गुज़र कर जा रहा था। बयार्दो सां रोमां की निगाह एंजेला पर नहीं पड़ी थी। तब एंजेला ने टूटे दिल से अपनी मां की तरफ देखा था। पुरा विकारियो पानी पी चुकी थी और अब आस्तीन से अपना मुंह पोंछ रही थी। पुरा विकारियो तब अपने नये चश्मे से एंजेला की तरफ देखते हुए बार से ही मुस्‍कुरायी थी, उस मुस्कुराहट में, एंजेला विकारियो को अपने जन्म से लेकर अब तक, पहली बार वह उसी रूप में दिखायी दी थी, जैसी वह थी। एक बेचारी औरत, जो अपनी पराजयों की आराधना में लीन थी।

“छी, वाहियात”। उसने खुद से कहा था। वह इतनी अशांत थी कि घर वापसी की पूरी यात्रा के दौरान वह ज़ोर-ज़ोर से गाती रही थी और बिस्तर पर गिर कर तीन दिन तक लगातार रोती रही थी।

यह उसका पुनर्जन्म था, “मैं दिलों-दिमाग से उसे लेकर पागल थी।” उसने मुझे बताया था। उसे देखने के लिए एंजेला को सिर्फ अपनी आंखें बंद करनी होती थीं। वह समुद्र में उसकी सांसों की आवाज सुन सकती थी। बिस्तर में आधी रात को बयार्दो सां रोमां के शरीर की दहक से एंजेला की नींद उचट जाती, हफ्ता खत्म होते न होते उसकी यह हालत हो गयी थी कि उसे एक पल के लिए भी चैन न मिलता। तब उसने बयार्दो सां रोमां को अपना पहला खत लिखा था। यह एक औपचारिक चिट्ठी थी जिसमें उसने बयार्दो सां रोमां को लिखा था कि उसने, एंजेला ने, उसे होटल से बाहर आते देखा था। उसे और भी अच्छा लगता अगर उस पर बयार्दो सां रोमां का निगाह पड़ी होती। वह फालतू में ही इस खत के जवाब का इंतज़ार करती रही थी। दो महीने तक इंतज़ार करते-करते थक जाने के बाद उसने पहले ही खत की तरह अस्पष्ट सी शैली में एक और खत लिखा था। इस खत का मकसद भी उसे पत्र का जवाब न देने की शिष्टता न दिखाने के लिए उलाहना देना थ। छः महीने बाद उसने छः खत और लिखे थे, जिनमें से किसी का भी जवाब नहीं आया था। जो भी हो, वह यही मान कर चल रही थी और उसके पास इसका सुबूत भी था कि ये खत उस तक पहुंच रहे थे।

पहली बार, अपनी किस्मत की देवी को यह पता चला था कि नफरत और प्यार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक-दूसरे के पूरक मनोभाव। वह जितने अधिक खत भेजती, उसके भीतर की ज्वाला उतनी अधिक धधकती, लेकिन साथ ही अपनी मां के प्रति विद्वेष भावना भी उतनी ही बढ़ती जाती। “उसे देखते ही जैसे मेरे पेट में शूल उठने लगते थे।” उसने मुझे बताया था,“लेकिन मां को देखते ही मुझे बयार्दो सां रोमां की याद हो आती थी।” छोड़ी हुई, परित्यक्त बीवी की तरह उसकी ज़िंदगी घिसटती रही थी। किसी बूढ़ी नौकरानी की ज़िंदगी की तरह वह अब भी अपनी सखियों के साथ बैठकर मशीन पर सीना-पिरोना करती। पहले की तरह कपड़े के फूल बनाती, कागजी चिड़िया बनाती और जब उसकी मां सोने के लिए अपने कमरे में चली जाती तो वह अपने कमरे में पौ फूटने तक जागती रहती और खत लिखती रहती। उसे पता था, इन खतों का कोई भविष्य नहीं है। वह, अपनी मर्जी की मालकिन बहुत कुछ सहन करने लगी थी, शांत चित्त की हो गयी थी और उसके लिए, एक बार फिर कुंवारी कन्या बन गयी थी। वह अपनी मन मर्जी के सिवाय किसी की भी अधीनता स्वीकार करने को तैयार नहीं थी और उसे अपनी धुन के अलावा किसी और की चाकरी मंजूर नहीं थी।

वह अपनी ज़िंदगी के आधे से भी अधिक समय तक उसे हर हफ्ते खत लिखती रही थी। कई बार मुझे समझता ही नहीं था कि क्या लिखूं। हंसते-हंसते लोट-पोट होते हुए उसने मुझे बताया था,“लेकिन मेरे लिए इतना जान लेना ही काफी होता था कि ये खत उसे मिल रहे थे। शुरू-शुरू में ये खत एक वाग्दत्ता के, सगाई हो चुकी लड़की के से अहसासों वाले सुकोमल खत होते। फिर ये खत गुप्त प्रेमिका की तरफ से छोटी-छोटी सूचनाओं के संदेशों के माध्यम बने, इनमें लुका छिपी खेल रही दिल की रानी की तरफ से खुशबूदार, इत्र सने कार्ड होते। ये खत कारोबारी पलों में भी बदले, प्रेम के दस्तावेज बने और एक ऐसा वक्त भी आया कि ये पत्र एक छोड़ी हुई, परित्यक्ता बीवी की तरफ से रोष पूर्ण उलाहने बन गये। एक ऐसी बीवी की तरफ से जिसने एक क्रूर बीमारी सी ईजाद कर ली थी कि जैसे भी हो, अपने मरद को वापिस आने पर मजबूर करना है। एक रात जब वह अच्छे मूड में थी तो उसने पूरे लिखे गये खत पर दवात से स्याही उडेल दी और नीचे एक पंक्ति जोड़ दी, “अपने प्रेम के सुबूत के रूप में मैं तुम्हें अपने आंसू भेज रही हूँ।” कई बार रोते रोते थक जाने के बाद वह खुद अपने पागलपन का मज़ाक उड़ाती। इस बीच छः बार डाकघर की इंचार्ज बदली थी और छ: बार उसे उसकी मदद मिली। बस, उसे एक ही बात कभी नहीं सूझी कि ये सब कुछ छोड़-छाड़ क्यों नहीं देती। इतना सब होते हुए भी वह उसके इस पागलपन के प्रति निष्ठुर बना रहा। यह सब किसी गैर मौजूद व्यक्ति को लिखने जैसा था।

दसवें बरस के दौरान एक सुबह, जब हवाएं चल रही थीं। वह अचानक उठ बैठी। उसे पक्का यकीन था कि बयार्दो सां रोमां उसके बिस्तर में नंगा लेटा था। तब एंजेला विकारियो ने उसे बीस पेज लम्बा उत्तेजनापूर्ण पत्र लिखा। इसमें उसने सारी शर्म हया छोड़ कर वे सारी कड़वी सच्चाइयां उंड़ेल कर रख दी थीं जो वह उस अशुभ रात से अपने सीने में यह दफन किये हुए थी। उसने उस खत में उन शाश्वत घावों की बात की थी जिसे उसने उस रात उसके शरीर पर लगाये थे। एंजेला विकारियो ने उसकी जीभ के नमकीन होने और उत्तेजक अफ्रीकी लिंग की खड़ी उठान का जिक्र किया था। शुक्रवार के दिन उसने यह खत डाक घर की इन्‍चार्ज को थमा दिया था। डाकघर की इन्‍चार्ज दोपहर के वक्त कशीदाकारी करने और चिट्ठियां इकट्ठे करने आती थीं। उसे पूरा यकीन था कि वह इस तरह खुद को हलका करने से ही वह अपनी तकलीफों का अंत कर सकेगी। लेकिन इसका भी कोई जवाब नहीं आया था। उस दिन से उसने इस बात की तरफ भी ध्यान देना छोड़ दिया था कि वह क्या लिख रही है यह लिख ही किसे रही है, लेकिन फिर भी वह बिना किसी रुकावट के सत्रह बरस तक लिखती रही थीं।

इसी बीच, अगस्त के एक दिन, जब वह अपनी सखियों के साथ बैठी कशीदाकारी कर रही थी तो उसे दरवाजे पर किसी के आने की आहट मिली। कौन आया है, यह देखने के लिए उसे सिर उठाने की ज़रूरत नहीं थी। “वह मोटा हो गया था, उसके सिर के बाल झड़ने लगे थे और नजदीक की चीज़ें देखने के लिए उसे चश्मे की ज़रूरत पड़ने लगी थी।” वह मुझे बता रही थी, “लेकिन, खुदा गारत करे, यह वही था।” वह डर गयी थी, क्योंकि वह जानती थी कि वह उसे उसी तरह खत्म हुआ देख रहा था, जिस तरह वह उसे देख रही थी, और वह यह नहीं सोचती थी कि वह उसे अब भी उतना ही प्यार करता होगा, जितना प्यार वह उसके लिए सहन कर पायेगी। उसकी कमीज़ अब भी पसीने से उतनी ही भीगी हुई थी जितनी उसने उसे पहली बार मेले में पहनी भीगी कमीज़ में देखा था। वह अभी भी वही बेल्ट लगाये हुए था। चांदी मढ़े उसके बिनसिये झोले भी वही थे।

बयार्दो सां रोमां ने एक कदम आगे बढ़ाया। उसने इस बात की परवाह नहीं की कि कशीदाकारी करने वाली लड़कियां हैरानी से उसे देख रही हैं। उसने अपने झोले सिलाई मशीन पर रख दिये।

“लो,” उसने कहा था, “आ गया हूँ मैं।” उसके पास कपड़ों से भरा हुआ एक सूटकेस था। वह रहने की नीयत से आया था। दूसरा सूटकेस यूं ही था। उसमें लगभग दो हजार चिट्ठियां थीं जो एंजेला विकारियो ने उसे लिखी थीं। उन्हें तारीख वार बंडलों में रंगीन रिबनों से बांध कर करीने से रखा गया था। इनमें से एक भी चिट्ठी खोली नहीं गयी थी।

बरसों तक हम किसी और चीज के बारे में बात ही नहीं कर सके। हमारी दिनचर्या, जिसमें आलतू-फालतू की आदतों का शुमार रहता था, अब सिर्फ इकलौती परेशानी के इर्द गिर्द घूमने लगी थी। सुबह मुर्गे की बांग होते ही हम सिर जोड़ कर बैठ जाते और किसी संयोग से घटी कई घटनाओं के सिरों को तरतीब देने की कोशिश करते। हम जानना चाहते कि आखिर ये बेतुका हादसा हुआ तो कैसे हुआ। यह तो तय था कि हम ये सब किन्हीं रहस्यों से पर्दा उठाने की नीयत से या इच्छा से तो नहीं ही कर रहे थे, लेकिन हमारी मंशा इतनी ही थी कि हमें किस्मत ने जो काम सौंपा था, उसे पूरा किये बगैर और स्थान की सही जानकारी के बगैर हम में से कोई भी यूं ही जीवन गुज़ारता नहीं रह सकता था।

कई लोग तो कभी भी ये चीज़ें जान ही नहीं पाये। क्रिस्‍तो बेदोया, जो आगे चल कर विख्यात सर्जन बना, खुद को कभी भी इस बात से आश्वस्त नहीं कर पाया कि वह अपने माता-पिता, जो सुबह से उसे चेताने के लिए उसका इंतज़ार कर रहे थे, के घर जाकर वहां आराम करने के बजाये दादा-दादी के घर जा कर दो घंटे गुज़ारने की अंतः प्रेरणा के आगे कैसे झुक गया। लेकिन, अधिकतर लोग, जो इस हादसे को रोकने के लिए कुछ कर सकते थे, और फिर भी कुछ नहीं किया था, वे खुद को यही सोच कर दिलासा देते रहे कि मान-सम्मान के मामले पवित्र एकाधिकारों के मामले होते हैं और उनमें सिर्फ उन्हीं लोगों की पहुंच होती है जो ड्रामे का हिस्सा होते हैं। “सम्मान ही प्यार है।” मैं अपनी मां को कहते सुनता, होर्तेन्‍सिया बाउते, जिसकी हिस्सेदारी इतनी भर थी कि उसने दो खून सने चाकू देख लिये थे, जिन पर उस वक्त तक खून लगा भी नहीं था, इतनी अधिक दृष्टि भ्रम में पड़ गयी थी कि वह प्रायश्चित के संकट में फंस गयी थी, और एक दिन, जब सब कुछ उसकी बरदाश्त से बाहर हो गया तो निपट नंगी गली में दौड़ गयी थी। सैंतिएगो नासार की मंगेतर फ्लोरा मिगुएल परेशानी की हालत में बार्डर सुरक्षा के एक लेफ्टिनेंट के साथ घर छोड़ कर भाग गयी थी और उस लेफ्टिनेंट ने विचाडा के रबड़ कामगारों के बीच उसे वेश्यावृत्ति में झोंक दिया था और विलेरॉस नाम की दाई, जिसके हाथों तीन-तीन पीढ़ियों की जचगियां हुई थीं, यह समाचार सुन कर मूत्राशय के सिकुड़ने का रोग लगा बैठी थी और अपनी मौत के दिन तक उसे पेशाब करने के लिए नली का सहारा लेना पड़ा था। क्‍लोतिल्‍दे आर्मेंता का पति, डॉन रोगेलियो दे ला फ्लोर, जो कि बहुत भला आदमी था, और छियासी बरस की उम्र में भी ऊर्जा से भरा हुआ था, आखिरी बार सिर्फ यह देखने के लिए उठा था कि उसके अपने घर के बंद दरवाजे के आगे किस तरह सैंतिएगो के टुकड़े-टुकड़े काट कर उसका कत्ल कर डाला गया था। वह भी इस सदमे को बरदाश्त नहीं कर पाया था और चल बसा था। प्लेसिडा लिनेरो ने आखिरी क्षणों में उस दरवाजे पर ताला लगाया था, लेकिन वक्त बीतने के साथ-साथ उसने खुद को इस इल्जाम से मुक्त कर लिया था। “मैंने ताला इसलिए लगाया था, क्योंकि दिविना फ्लोर ने कसम खा कर बताया था कि उसने मेरे लड़के को भीतर आते देखा था,” उसने मुझे बताया था,“और यह बात सच नहीं थी।” दूसरी तरफ, वह इस बात के लिए खुद को कभी भी माफ़ नहीं कर सकी कि उसने पक्षियों वाले अभागे पेड़ और दूसरे पेड़ों की शानदार शकुन विद्या में घालमेल कर दिया था। नतीजा यह हुआ कि वह हर समय मिर्च के बीज चबाने की घातक लत लगा बैठी थी।

अपराध के बारह दिन के बाद जांचकर्ता मजिस्ट्रेट शहर में आया था। शहर उस वक्त भी एक खुले घाव की तरह था। टाउन हाल में लकड़ी के खस्ता हाल दफ्तर में, जब धूप मृग तृष्णा के खेल कर रही होती, गन्ने की शराब डाली पॉट कॉफी पीते हुए मजिस्ट्रेट को मज़बूरन भीड़ पर काबू पाने के लिए और फौजी दस्ता बुलवाना पड़ा था। हुजूम के हुजूम बिन बुलाये ही गवाही देने के लिए बढ़े चले आ रहे थे। हर आदमी खुद को ड्रामे में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका के बारे में बताने के लिए जैसे मरा जा रहा था। मजिस्ट्रेट नया नया ग्रैजुएट था और वह अभी भी मामून के स्कूल का सूती काला सूट पहने हुए था। अपनी डिग्री की मुहर वाली सोने की अंगूठी उसने पहन रखी थी। उसके चेहरे पर नया नया पिता बनने का खुशगवार अहसास था। मैं कभी भी उसका नाम नहीं जान पाया था। उसके चरित्र के बारे में हम जो कुछ भी जानते हैं, वह हमें उस सारांश से मिला था, जिसे मैं बीस बरस बाद रिओहाचा के न्याय महल - पैलेस ऑफ जस्टिस में कई आदमियों की मदद से देख पाया था। वहां फाइलों का किसी भी तरह का वर्गीकरण नहीं था और उस जर्जर औपनिवेशिक इमारत के फर्श पर सैकड़ों मामलों की फाइलों के अम्बार लगे थे। यह इमारत ज्वार के वक्त तल मंजिल तक ऊंची लहरों की वजह से पानी से भर जाती और उस उजाड़ दफ्तर में फाइलों की खुली जिल्दें इधर उधर तैरती नजर आतीं। मैंने खुद कई बार खोये हुए कार्य कारण के उस टापू में से एड़ी एड़ी पानी में से फाइलों की तलाश की और पांच साल बाद तलाश का मुझे एक ही मौका हाथ लगा था और मैं उस सारांश के 322 पन्ने सुरक्षित निकाल पाया था। इसके पांच सौ पन्ने तो ज़रूर ही रहे होंगे।

किसी भी काग़ज़ पर जज का नाम नहीं आया था, लेकिन एक बात तो तय थी कि उसे साहित्य से गहरा लगाव रहा होगा। वह साहित्य की भूख रखने वाला प्रतीत होता था। उसने इस्‍पानी प्राचीन उच्च साहित्य और कुछेक लातिनी पुस्तकें तो ज़रूर ही पढ़ रखी होंगी। नित्शे का नाम बहुत परिचित रहा होगा। उस वक्त जजों में नित्शे को पढ़ने का बहुत चाव रहा था। हाशिये पर जो टिप्पणियां दर्ज की गयी थीं, सिर्फ स्याही के रंग की वजह से नहीं, बल्कि सचमुच खून से लिखी गयी लगती थीं। स्थितियों ने उसे जिस रहस्यमय पहेली में उलझा दिया था, उससे वह इतना हैरान-परेशान लगता था। यह उसके व्यवसाय की प्रकृति के बिल्कुल उलटा था।

उसे सबसे अधिक यही लगता था कि वास्तविक जीवन और नीति विरुद्ध साहित्य में बतायी जाने वाली घटनाओं में इतनी अधिक समानता नहीं होनी चाहिए कि इस तरह से ढिंढोरा पीट कर की गयी हत्या को भी कोई रोक नहीं पाया। इसके बावजूद, अपनी इतनी अधिक मेहनत के आखिर में जिस बात ने उसे सबसे अधिक सतर्क किया था, वो ये थी कि वह कोई अकेला संकेत, बेशक असम्भव सा ही क्यों नहीं हो, नहीं खोज पाया था जो बता सकता कि सैंतिएगो नासार गलती का शिकार हो गया था। एंजेला विकारियो की सखियां, जो रहस्य में, धोखेबाजी में उसकी भागीदार रही थीं, लम्बे अरसे तक यहीं कहती रहीं कि उसने राज़ में तो शरीक किया था, लेकिन उसने उन्हें किसी का नाम नहीं बताया था। कुल मिला कर उन्होंने यही बताया था, “उसने हमें चमत्कार के बारे में बताया था, लेकिन संत के बारे में नहीं।” जहां तक एंजेला विकारियो का सवाल था, वह टस से मस नहीं हुई थी।

जब जांचकर्ता अधिकारी ने उससे अपनी आड़ी तिरछी स्टाइल में पूछा था कि क्या वो जानती हैं कि सैंतिएगो नासार कौन था तो उसने भाव शून्य होकर जवाब दिया था।

“वह मेरा अपराधी था।”

और इस तरह से उसने खुलासे में यही हलफनामा दिया था। इसके अलावा न तो उसने यह ही बताया था कि कैसे और न ही कहां का ही संकेत दिया था। सिर्फ तीन दिन तक चले इस ट्रायल में जनता के प्रतिनिधि ने इस आरोप के कमज़ोर होने के पीछे अपनी सारी ताकत लगा दी थी। सैंतिएगो नासार के खिलाफ़ सुबूत की कमी की वजह से जांचकर्ता मजिस्ट्रेट की परेशानी का यह आलम था कि कई बार उसका अच्छा काम भी मोह भंग होने के कारण बरबाद हो गया लगता था। फोलियो संख्या 416 पर उसकी खुद की राइटिंग में और ड्रगिस्‍ट की लाल स्याही में, उसने एक हाशिये वाली टिप्पणी दर्ज की थी - मुझे एक पूर्वाग्रह दीजिए और मैं दुनिया को हिला दूंगा।

हतोत्साह की इस पाद टिप्पणी के नीचे उसी रक्तिम स्याही से एक मज़ाकिया स्कैच भी बना रखा था - दिल को चीरता हुआ एक तीर। उसके लिए और इसी तरह सैंतिएगो नासार के नज़दीकी दोस्तों के लिए भी हादसे के शिकार का अपनी ज़िंदगी के आखिरी घंटों के दौरान व्यवहार ही सबसे बड़ा सुबूत था कि वह निर्दोष था।

दरअसल, अपनी मौत की सुबह सैंतिएगो नासार को एक पल के लिए भी शक नहीं हुआ था, हालांकि वह इस बात को अच्छी तरह जानता था कि उस पर लगाये गये अपमान के आरोप की कीमत क्या थी, वह दुनिया की कुटिल व्यवस्था के बारे में अच्छी तरह से जानता था। उसे यह भी पता रहा होगा कि जुड़वां भाइयों का सादगी भरा व्यवहार अपमान झेल पाने की हिम्मत नहीं रखता होगा।

कोई भी बयार्दो सां रोमां को अच्छी तरह से नहीं जानता था, लेकिन सैंतिएगो नासार उसे इतनी अच्छी तरह से जानता था कि जान सके कि अपनी सांसारिक अकड़ फूं के नीचे वह भी अपने जन्मजात पूर्वाग्रहों के कारण वही प्रतिक्रिया व्यक्त करेगा जो और कोई करता। इसीलिए चिंता को जानबूझ कर पास न फटकने देना ही आत्मघाती रहा होगा। इसके अलावा, जब उसे आखिरी पलों में यह पता चल ही गया कि विकारियो बंधु उसे मारने के लिए तलाशते फिर रहे हैं तो भी उसकी प्रतिक्रिया आतंकित होने वाली नहीं थी, जैसा कि अक्‍सर कहा जाता है, बल्कि निर्दोष होने की वजह से वह हक्का बक्का रह गया था।

मेरी व्यक्तिगत राय यह है कि वह अपनी मौत को समझे बगैर ही मर गया था। मेरी बहन मार्गोट से यह वादा करने के बाद कि वह वापिस आयेगा और हमारे घर नाश्ता करेगा, क्रिस्‍तो बेदोया उसे बांह से पकड़ कर घाट पर ले गया था। दोनों ही इतने निश्चिंत लग रहे थे कि इससे गलत भ्रम पैदा हो गये,“वे दोनों इतने सन्तुष्ट भाव से चले जा रहे थे, मेमे लोइजा ने मुझे बताया था,“कि मामले को रफा-दफा कर दिया गया है।” यह सच था कि हर कोई सैंतिएगो नासार को इतना प्यार नहीं करता था। पोलो कैटिल्लो, जो बिजली प्लांट का मालिक था, यह मानकर चल रहा था कि उसका शांत बने रहना, उसका निर्दोष होना नहीं, बल्कि नकचढ़ापन था,“वह सोचता था कि उसके रुपये पैसे ने उसे अछूत बना दिया है।” उसने मुझे बताया था। उसकी बीवी फॉउस्ता लोपेजे की राय थी,“दूसरे तुर्कों की तरह वह भी, वैसा ही था।” इंडालेसियो पार्डो तभी क्‍लोतिल्‍दे आर्मेंता के स्‍टोर के आगे से गुज़रा ही था और जुड़वां बंधुओं ने उसे बताया था कि ज्यों ही पादरी चला जायेगा, वे सैंतिएगो नासार को मार डालेंगे। दूसरे कई लोगों की तरह उसने भी यही सोचा था कि ये किस्सा जल्दी उठ जाने वालों का दिवा स्वप्न ही है, लेकिन क्‍लोतिल्‍दे आर्मेंता ने उसे विश्वास दिला दिया था कि यह सच है। आर्मेंता ने उससे कहा था कि वह सैंतिएगो नासार के पास जाये और उसे आगाह कर दे।