हमसफर - (भाग 1) Kishanlal Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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हमसफर - (भाग 1)

"तुम्हारे पिता का नाम क्या है।खानदान?जाति?"नरेश को देखते ही देवेन ने कई प्रश्न दाग दिए थे।अप्रत्याशित प्रश्नों को सुनकर पहले तो वह घबराया लेकिन फिर घबराहट पर काबू पाते हुए बोला,"यह सब बातें मैं पहले ही आपको बता चुका हूँ।"
"मतलब तुम्हे अपने पिता,खानदान के बारे में कुछ पता नही है।"
"लेकिन अब आप ये सब कयो पूछ रहे है?"
"समाज मे रहने के लिए ये सब जरूरी है।जिसे अपने पिता और खानदान का पता न हो।ऐसे आदमी के हाथ में मैं अपनी बेटी का हाथ नही दे सकता।" पश्चिमी सभ्यता,सस्कृति के समर्थक और अपने को मॉडर्न कहलवाने मे गर्व अनुभव करने वाला देवेन दो टूक शब्दों में बोला,"रिया का रिश्ता तुमसे तय करने की मैने गलती की थी।उसी गलती को सुधारने के लिए मैने तुम्हे बुलाया है।तुम्हारी शादी मेरी बेटी से नही हो सकती।"
नरेश को यह बात सुनकर आशचर्य नही हुआ था।आश्चर्य तो तब हुआ था,जब देवेन ने बेटी का रिश्ता उससे तय किया था।
हमारा समाज चाहे कितनी ही उन्नति कर ले।हम पढ़ लिख कर शिक्षित,प्रगतिशील,सभ्य कहलाने का ढोंग भले ही कर ले।पर अपने संस्कारो से पीछा नही छुड़ा पाते।देवेन की बाते सुनकर वह घर से बाहर निकल आया।बाहर आकर उसने ऑटो ढूंढने का प्रयास नही किया।वैसे भी इतनी रात को शहर के बाहरी इलाके में वाहन मिलना मुश्किल था।इसलिए वह सड़क की तरफ न जाकर,रेलवे लाइन की तरफ चला आया।
दोपहर में अचानक देवेन का फोन आया था।उसे आगरा बुलाया था।क्यो बुलाया है?यह नही बताया था।ड्यूटी से ऑफ होते ही नरेश ट्रेन में बैठ गया।देवेन के घर पहुँचते पहुँचते रात के बारह बज गए थे।देवेन उसी का इन्तजार कर रहा था।यहाँ आने पर उसे अचानक बुलाने का कारण मालूम चल गया था।
कार्तिक का महीना आधी रात बीत चुकी थी।पूर्णिमा का चांद पूरे यौवन पर था।चंद्रमा की रोशनी के आगे
तारो की झिलमिलाहट फीकी लग रही थी।दिन तो अब भी गर्म रहता था,लेकिन रात ठंडी होने लगी थी।
वातावरण मे अनाम सी खामोशी छाई थी।दूर तक किसी तरह की आवाज नही।किसी तरह की आहट नही।चारो तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था।रात के सन्नाटे में खामोश खड़े पेड़ भी मनहूस लग रहे थे।वह अकेला अपने ही बारे में सोचता हुआ चला जा रहा था।पिता और खानदान के नाम पर उसे पहले भी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था।जहाँ भी उसके रिश्ते की बात चलती।पिता और खानदान के नाम पर आकर अटक जाती थी।सब जगह ना सुनते हुए वह परेशान हो गया।तब एक दोस्त ने अखबार में या मैरिज ब्यूरो का सहारा लेने की सलाह दी।उसने ऐसा ही किया था।
उसके पास अनेक पत्र आये थे।लेकिन बात एक ही जगह आगे बढ़ी थी।रिया कान्वेंट में पढ़ी थी।उसके पिता देवेन ने जुली से प्रेम विवाह किया था।रिया के माता पिता को भी नरेश पसन्द था।नरेश ने भी कुछ नही छिपाया था।सब कुछ साफ बता दिया था।सब कुछ जानने के बाद भी रिया के माता पिता ने अपनी बेटी का रिश्ता नरेश से कर दिया था।
रिश्ता होने पर वह खुश था।कुछ दिनों बाद रिया उसकी होने वाली थी।रिया के साथ जिंदगी गुज़ारने का सुंदर सपना वह देखने लगा था।
सपने कभी सच नही होते।सपने बन्द आंखों का भृम होते है।आंखे खुलते ही कांच की तरह टूटकर बिखर जाते है।