Dilo ki ek aawaz upar uthati hui books and stories free download online pdf in Hindi

दिलों की एक आवाज ऊपर उठती हुई...

दिलों की एक आवाज ऊपर उठती हुई...

तीन सौ पैंसठवीं मंजिल से गिरते हुये जब वह अपने होश—हवास पर कुछ काबू कर पाया तो उसने देखा कि वह नीचे गिरता ही जा रहा है। वह मदद के लिये उस बड़ी इमारत के सामने चिल्लाया लेकिन ऊपर के कई माले हमेशा की तरह सख्त बंद हैं। मकानों की दरारों में से अधिकतर सिगरेट का धुँआं और शराब की गंध लापरवाही से निकल रही है।

अपने जिस्म को पत्थर की तरह ठीक सीधे और नीचे ही नीचे जाते देखते हुये उसके दिमाग में सिर्फ मदद......मदद की एक ही आवाज गूँज रही है। उसे तीन सौ पांचवीं मंजिल के टैरिस पर एक हैरदज़्ादा आदमी दिखाई पड़ा। उसने हाथ फैला कर कहा— 'मैं नीचे गिरता जा रहा हूँ, बताओ मैं क्या करूँ... मेरी मदद करो।' टैरिस पर सकपकाया खड़ा आदमी अकबका गया और लगभग हकलाते हुये चिल्लाया— 'अरे रुको... क्या करते हो... ऐसे तो मर जाओगे... मैं फिर कहता हूँ कि.... वहीं रुक जाओ... हमेषा गति ठीक नहीं, ज़िन्दगी में थमना भी ज़रूरी होता है, इसलिए रुको...रुको.........'

गिरता हुआ वह झल्लाना नहीं भूला, —'मालूम है... मुझसे बेहतर यह बात कौन जान सकता है... स्साले'...।

लेकिन तब तक वह दो सौ अठासी नं. के फ्लैट के करीब पहुँच गया है। उसने फिर मदद की गुहार की।

दरवाजे पर एक चुस्त—दुरुस्त बदगुमान शख्स पतलून के जेबों में हाथ घुसेड़े उसे ताक रहा है। उसने तेज आवाज में पूँछा,— 'क्या है रे, काय को चिल्लाता है? क्या नाम है तेरा? काय को कूंदा? भीख मांगने का नवा तरीका निकाला है? दो लात देउँगा तो और फटाफट नीचे पहुँचेंगा... हमें बेवकूफ समझता है..........'

उसने चाहा कि रुककर वह इस बदतमीज आदमी से निपट ले लेकिन उसके बस में ना था। उसे अपनी हालत का ध्यान आया। उसने खुद ही कुछ करने में दिमाग लगाया।

जब वह फ्लैट नं. दो सौ उनसठ के पास से निकला तो उसने बिना देखे कहा— 'भाई, मैं नीचे गिरता जा रहा हूँ... हालांकि जमीन पर हरा लॉन है लेकिन फिर भी चोट तो लगेगी...अब मुझे जरा जल्दी से बताओ कि... गिरते वक्त मेरा सही पोश्चर क्या रहे... कि पैरों को सीधा रखूँ... या सिर को हाथों से थामे रहूँ... ताकि चोट खतरनाक न बन सके...

फ्लैट की खिड़की से आस्मान को घूरता एक मनहूस और बेरोजगार नौजवान उसे देख बहुत दिनों बाद आश्चर्य—चकित हुआ और हँसने लगा।

फिर यकायक चौंक कर बोला— 'भाई साब, आप कहाँ नौकरी करते थे... जगह बताओगे...? ...टेम्पैरेरी या कि परमानेन्ट... मुझे ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा...'

दुनिया से एक बार फिर दुःखी होकर, अब उसे बहुत सुने—पढ़े गये योग का ख़्याल अचानक कौंधा। यदि वह श्वांस को रोक लेने का अभ्यास करे या फेफड़ों में से हवा निकाल ले तो... क्या शरीर एकदम हल्का होकर फूल की तरह आहिस्ते से जमीन पर रख जायेगा... ऐसा ही तो बताते हैं न ! और अगर ऐसा ना हुआ तो ...फूल जैसा हल्का होकर इमारत के किसी खतरनाक कोने से ही टकरा कर वह छार छार हो गया तो... हाथ—पांव टूटे तो भी चल जायेगा लेकिन... कहीं जान से हाथ धोना पड़ा तो...' यह 'तो' इतना बड़ा बन कर उसके सामने आया कि इस बार वह फूट—फूट कर रोने लगा।

दो सौ पचास नं0 के छज्जे में झूले पर बैठा धोती—कुर्ता पहिने एक गंजा मोटी किताब पढ़ रहा है। उसने मिचमिचाई आँखों से उसे देखा और कहा — ‘ मत रोओ, गीता में लिखा है ना दैन्यम्‌ ना पलायनम्‌। स्थितप्रज्ञ हो एकाग्र भाव से तल्लीनतापूर्वक गिरते जाओ, प्रभु तुम्हारा भी भला करेंगे। उसकी भलाई से कोई नहीं बच पाया.........'

कुछ बच्चे, बचपन और जवानी की सरहद पर खड़े, फ्लैट नं. दो सौ छब्बीस के तंग बरामदे में कौन सा खेल खेलें, इस बात को लेकर झगड़ रहे हैं। एक भर आवाज चीखा...

'...सुपर मैन... सुपरमैन...'

'...इसकी लाल चढ्‌ढी कहाँ है...?'

'...हवा में मज़े मज़े ...कहाँ जा रहा...?'

'....नीचे....भई नीचे...!' कोरस में आनंद के स्वर गूँज उठे।

'....सुपरमैन...सुपरमैन....'

इस क्षण वह फ्लैट नं. दो सौ तीन के सामने से गिरता हुआ गिरता गया। दीवार पर लटके कांच में सूरत निहारता एक अधेड़ शेविंग कर रहा है। देखकर उसने दाढ़ी पर चिपका साबुन पोंछा और जोर से हँसा और जोर जोर से हाथ हिलाने लगा। गिरते आदमी ने फिर सहायता की पुकार लगाई लेकिन वह हाथ ही हिलाता रहा।

यकायक उसने पूँछा— 'कैसे गिरे...अचानक... खुली खिड़की से?.....अरे मेरी खिड़की भी कमबख़्त बक्त—बेवक्त खुल जाती है....' उसने खिड़की जोर से बंद कर ली और राहत की सांस ली।

वह अभी भी हवा में है। बेचैन और बेकरार। उसे मालूम हो चुका है कि गिरना तो अब तय है लेकिन कैसे गिरे, वह समझ नहीं पा रहा है। उसने बड़ी आजिजी से उस फ्लैट को देखा जिसके बाथरूम की बाहर वाली खिड़की चौपट खुली है।

'...बेशर्म...गुन्डे...बदमाश...'

टॉबुल की ओर लपकती औरत मुँह खोल कर चीखी। लेकिन उसे खिड़की के नीचे और नीचे गिरते देख औरत का मुँह खुला का खुला रह गया। उसका गुस्सा क्षोभ में डूब गया और टाबुल को परे फेंक वह खिड़की के नीचे ही नीवे बरबस देखती रह गई।

उसके भाग्य का वह बदनसीब गुन्डा बदमाश अब फ्लैट नं. एक सौ अठहत्तर के पास फड़फड़ा रहा है।

सामने ड्रार्इंग—रूम में तीन लोग बैठे और एक खड़ा व्हिस्की पी रहा है।

एक चिल्लाया— 'देख, क्या सीन है...!'

सबकी आँखें उसी तरफ मुड़ गर्इं।

'...क्या कहता हो रज्जन भाई, आज अच्छा षगुन हुआ ..आओ सट्टा लगायें.....आसमान से उतरा फरिश्ता या अंतरिक्ष से आया चोर... लगाते हैं...फरिश्ते पर एक के चार.....चोर पर एक के आठ...माल निकाल...जल्दी बे...'

फ्लैट नं. एक सौ उनपचास के किचन में आटा गूँथती काली औरत ने कहा— '...एक वो है जब कुछ ना बन पड़ा तो ऊपर से कूँद पड़ा और....एक तुम हो निठल्ले...निकम्मे... काम के न काज के...' दुश्मन अनाज के... मैं नौकरी न करुँ तो भूखे मर जाओ... उसे देखो... और कुछ भी करने की कम से कम सोचो तो सही ...'

बैठे आदमी ने दरवाजे से नीचे गिरते आदमी को एक बार देखा और चुप रहा। जब गिरते आदमी ने उसे देखा, तब भी वह उसी तरह चुप बैठा रहा। औरत के अधिक बड़बड़ाने पर वह चुप उठा। चप्पलें पैरों में फँसाकर बाहर निकल आया और आदतन सीढ़ियाँ उतरने लगा। नीचे उतरते हुये ऐसा लगा कि वह भी नीचे और नीचे गिर रहा है। सहारे के लिए उसने जेब ढूँढी लेकिन आखिरी बीड़ी वहाँ भी नहीं है।

उस वक्त फ्लैट नं. एक सौ अठारह के बाजू से वह गुजर रहा है जिसके टैरिस में दर्जनों कैक्टस के गमलों के बीच से पीले पत्तों वाली एक बेल दीवार के दरके कोने से बार बार बाहर उमड़ रही है। अस्त—व्यस्त मोटी औरत ने लगभग कान खींचते हुये लड़के को बुरी तरह से डपटा।

'...छोड़...छोड़... उसने देखा... दरवाजा भी ठीक से बंद नहीं करता...हाय रे...वह नीचे गिरा जा रहा है... उसने देख लिया... जरूर देखा होगा...'

लड़के ने ढीढता से कहा— 'किसने देखा...?'

पसरी औरत बेदम हाँफ रही है।

..उसने ...और किसने... अरे वो मुआ... जो नीचे गिरा जा रहा है...'

लड़के ने हाथों में ताकत भरी और गिचगिचा कर बोला— 'कौन गिरा... आप तो मुझे देखो कि आपके लिये मैं कितना नीचे गिर गया हूँ और गिर सकता हूँ...'

कहते हुये मनीबैग से फूली और तीन जगह से उधड़ी चिकबरी मैली पैंट एक पैर से परे ठेल कर दोनों पाँव समेट लिए।

फ्लैट नं. चौरान्वे के बूढ़े ने उसे बहुत पहिले से देख लिया। फर्क केवल इतना रहा कि वे उसे चिड़िया समझ कर खुशी—खुशी सोच रहे थे कि वाह, आकाश में अभी भी चिड़ियें हैं। लेकिन उनकी बत्तीसी निपक कर बाहर आने को हुई जब उन्हें कुछ कुछ आभासित हो सका कि इतनी बड़ी तो चिड़िया नहीं हो सकती। ऐनक लगाकर वे सप्रमाण जान पाये कि कमबख्त यह तो आदमी है, बेकार ही नीचे को भागा जा रहा है। रैलिंग से सटी कुर्सी पर फिर लेटते हुये वे बुदबुदाये— 'आह! जवानी की मौज भी क्या होती है,... जमीन आसमान सब एक हो जाता है... कहीं भी चले जाओ... ऊपर नीचे, दायें—बांये, चारों दिशायें... सभी टनटनाती, सनसनाती... कैसी मस्ती से वह नीचे चला जा रहा है और एक वे और उनका बुढ़ापा, एक कदम चलना भी मुष्किल... अब तो देखने से भी डर लगता है...।' उन्होंने टटोल कर गोली खाई और आसमान से मुँह फेर कर करवट बदल ली।

जिस दम वह फ्लैट नं. बहत्तर के नजदीक पहुँच रहा है। उसके भीतर के हॉल में पहिले से कुछ परेशान हाल लोग आपस में उलझ रहे हैं। उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा है। तभी जिसने उसे देखा, उसके साथ कई और लोग समवेत चिल्लाये।

'...वह...वह...देखो...देखा...कैसे...हाँ...गजब...एकदम...फाइन यार...'

उनमें से सिर खुजलाता आदमी जिसने सबसे बाद में देखा, मुँह फाड़ कर सामने आया और सबसे आगे हो गया।

'...अरे...हाँ...'

उसकी 'हाँ' 'इतनी बड़ी और लम्बी हुई कि उसमें सबकी हाँ घुस गई और दूर तक और देर तक फैली रही। '...आइडिया...हाँ... आइडिया...ऐइटाइ तो आमी खूंजछिलाम...आर ऐइटाइ पालामछिलम ना...आखिर आसमान से टोपका...छोप्पर फोड़ के...'

सब लोग उसके चारों ओर इकट्ठे हो गये।

'...दादा,...की भालो...?..?..?..?

'अपुन को एकटो नोइ आइडिया आई...अपुन को बीमा के बारे में एड फिलिम कोरबो... तो...सुनो...आमार कम्पनी की महिमा...जार लाइफ का बीमा कराया, ओ आदमी... 365वीं मंजिल से नैचूँ को कूँदा... बूझले तो न...आमार कम्पनी सच ए फॉस्ट...के...श्शाला, जब वो 200वीं मंजिल पे पौंचा तो कम्पनी ने क्लेम का चैक हाथ में पोकरा दिया... व्ही ऑर फास्ट, व्ही ऑर अहैड द शाला टाइम... है न, ...आइडिया...एकदम नोइ...'

यह दुनिया का नियम है कि जो नीचे गिरता है, वह गिरता ही जाता है। प्रकृति भी इसमें आड़े नहीं आती बल्कि अपनी सारी गुरुत्वाकर्षण शक्ति के साथ जुट जाती है।

वह फ्लैट नं. तेईस के सामने रुकना चाहता है। लेकिन बावजूद हरचंद कोशिशों के रुकना हो नहीं पा रहा है। उस फ्लैट की तीसरी खिड़की से भी निकला एक कोमल कमजोर हाथ उसे रोकना चाह रहा है लेकिन रोक पाना नहीं हो पा रहा है।

यूँ तो बड़ा कहा जाता है कि प्यार में बड़ी ताकत होती है, आज यह कहनात बेकार सिद्ध हुई कि गिरने से प्यार रोक सकता है। अलबत्ता कारण जरूर बन सकता है। बात सिर्फ इतनी भर नहीं बल्कि आगे यह भी जताया जाता है कि दुनिया की कोई ताकत किसी को गिरने से रोक नहीं सकती। लेकिन केवल लेखक ही है जो यह कमाल दिखा सकता है, भले ही कागज के मैदान में और कलम के माथे पर भल—भल स्याही बहाता हुआ............!

............और ऐसा हुआ भी। लेकिन कुछ फर्क के साथ। हुआ यह कि फ्लैट नं. तेईस से नीचे आते आते वह सीधे हरे लॉन पर नहीं गिरा। पास के पेड़ पर आया। फिर उसकी डालियों से, टहनियों से, पत्तों में से सरसराता पके आम सा टपका। धम्म की इक आवाज, वह भी हल्की सी। धूल झाड़ी। उठ कर चल दिया, इस बार भी बिना बताये कि अब कहाँ जा रहा है। आप कहेंगे कि ऐसे कैसे ???? लेकिन आप भी तो दिल ही दिल में चाहते यही थे... तो अब कैसे कैसे की रट क्यों लगा रखी है?

अगर दिल की बात पूरी हो जाये तो भला आपको क्या और क्योंकर आपत्ति होना चाहिये...!!!!

0000000000000

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED