त्रीलोक - एक अद्धभुत गाथा - 6 Sanaya द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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त्रीलोक - एक अद्धभुत गाथा - 6

(उपन्यास)
त्रीलोक - एक अद्धभुत गाथा
6
नंदनी के याद करनेके बाद बड़बोला खुद प्रकट होता है। वो हवा मे तैरते हुए आता है।
और कहता है - "लगता है तुम्हे मेरा याद बहत सताता है। तुमने मुझे याद किया और लो मे हाजिर।"
बड़बोला नंदनी के चहरे पर झलकरहि भावनाओ और बातोंको देखते हुवे कहता है - "तुम्हारी चहरे देखकर ही पता चलता है की आज क्या हुवा? तुम्हारे मनमे उसके लिए चिंता हैना? बताओ बताओ?"
बड़बोला बड़ी कौतुहल से पूछता है। नंदनी अपनी आंखे झुकाकर कहती है - "हा पर इतना चिंता तो जायज है। इतना चिंता तो किसी भी दोस्त का होसकता है। इसमें प्यार कैसे हुआ?"
नंदनी राघव से प्यार नाहोनेका दावा करके बताती है। नंदनी कभी भी किसीभी हालत मे ये नहीं चाहती थी की वो राघव से प्यार करें। चाहकर भी नहीं।
बड़बोला नंदनी को सक के नजर से देखकर बताता है - "अच्छा क्या सचमे वो दोस्ती था या उससे भी बढ़कर? तुमने उसके लिए जिस तरह से फिक्र किया, मुझे नहीं लगता की वो दोस्ती है?"
बड़बोला नंदनी को चिढ़ाता है। नंदनी थोड़ी नाराज़ होकर कहती है - "तुम मेरी जासूसी कररहे थे?"
बड़बोला कहता है - "हा अब तुम्हारी मदत करने आया हु, वो भी प्यार के मामलेमे, तो जासूसी तो करनी ही पड़ेगी ना? तुम मुझे सच तो कहोगी नहीं?"
नंदनी बड़बोला को प्यारी नयन से घुस्सेसे देखती है।
बड़बोला - "देखो नंदनी तुम जब डिनर के लिए बैठी तो तुम्हे कुछ कमी महसूस हुआ और वो कमी इसीलिए हुवा क्यों की तुम्हारा दिल किसीके लिए इंतजार करहा था। और जब राघव की बीमार होने का खबर तुम्हे हुवा तो तुम्हारा मन और भी बेचैन होने लगा ऐसा क्यों की तुम्हारे दिल मे उसके लिए फ़िक्र करता है। बाकि लोगो के दिल मे भी फिक्र हुवा था जैसेकि दीपिका पर उसका फिक्र कम था क्यों की वो राघव को एक दोस्त की नजर से देखती है। और राघव की झूठ को पकड़कर उसकी सचको उगलवाना एक प्रेमिककी ही खूबी होती है नंदनी। और मेरे इनता तर्क रखनेके बाद भी तुम्हे यकीन नहीं होता है तो तुम खुद ही बताओ जिस जादुइ शक्ति का तुमने इस्तेमाल किया, उसकी जगह तुम डॉक्टर कों भी बुलासक्ति थी। पर तुमने ऐसा नहीं किया। अब मान भी जाओ की तुम्हारे दिल मे उसके लिए कुछ ज्यादा ही फिक्र है?"
बड़बोला का इतना सारा तर्क रखनेके बाद बोलनेके लिए नंदनी के पास कुछ बचा ही नही था और उसने नचाहते हुवे भी स्वीकार करलिया की उसके दिल मे राघव के लिए बहत फिक्र है।
नंदनी - "अच्छा ठीक है पर ये तो बस फ़िक्र है। इससे थोड़ी प्यार साबित होजाता है।"
बड़बोला भी नंदनी का छुपा हुवा प्यार को बाहर निकलना चाहता था। और वो भी अपनी अनुभव को आधार मानते हुए कहता है - "वो तो पता चल ही जायेगा, की तुम्हारे मनमे उसके लिए प्यार है या नहीं?"
रात बहत होगयी थी। होटल मे लगभग सब लोग सोचुके थे। पर नंदनी के मन मे संका की पहाड़ टुटरहि थी। वो कभी नहीं चाहती थी की उसका जीवन का मोड़ कुछ ऐसा हों। वो जितना होसके उतनी ज्यादा जल्दी इस प्यार का झमेला सा दूर रहना चाहती थी। उसके लिए प्यार झंझट नहीं थी, क्यों की प्यार के नाम पर उसके एक गुरु और भगवान नारायण ही थे जो उसे बाल्यकाल से स्नेह, प्यार और साथ देतेथे। उसे राघव से होने वाली प्यार से कोई झमेला नहीं था, पर जो उसके बाद आने वाली सबसे बड़ी मुसीबत की चिंता थी। उसकी शादी भैरव के साथ तय होचुकी थी और ऐसी अबस्था मे उसके लिए प्यार मे पड़ना अपनी और भैरव की जीवन को अगनीकुण्ड मे डालना जैसा था।
अपनी मन को शान्त करके नंदनी सोती है। अगली सुबह हमेशा की तरह वो नारायण की पूजा करती है। उसने अपने साथ एक भगवान नारायण की मूर्ति लायी थी। उसी मूर्ति की वो पूजा करती है। पूजा ख़तम करनेके बाद वो डायरेक्टर साहअब की रूम मे चली गयी। डायरेक्टर साहब का रूम मे सब लोगो का एक साथ मिलने वाली बात तय हुई थी। नंदनी भी डायरेक्टर साहब का रूम के अंदर चलती है। थोड़ी देर मे सब लोग पहुँचजाते है। सब लोगो के आने के बाद अपनी डिस्कशन सुरु करते है।
सब लोग कहा पर घूमने के लिए जाना है?, क्या क्या करना है?, छुट्टियां कैसा और किस तरह से मानना है?, इसी बात पर डिस्कशन चल रही थी। सब लोग अपनी अपनी आईडिया रखते है।
दीपिका अपना सुझाब सबके सामने रखकर कहती है - "हमें पहाड़ पे चढ़ने जाना चाहिए। मुझे तो माउंटेन क्लाइम्बिंग बहत पसंद है। क्यों क्या कहते हो सब?"
सूरज दीपिका की आईडिया को गलत साबित करते हुए कहता है - "क्या बकवास आईडिया है। अगर पहाड़ी पे चढ़ने जाओगी तो वापस जिन्दा नहीं लौटेंगे। हमें ट्रेकिंग पर जाना चाहिए।"
अनिल कों फोटो खींचने का सोखिन था। इसीलिए उसने फोटोग्राफर का काम किया था।
अनिल - "हा हम ट्रेकिंग पर ही चलेंगे। वहा पर एक से बढकर एक जानवर और अनोखी चीजोंका फोटो खीचनेको मिलता है।"
नंदनी - "अनिल, तुम पहले फोटो की दुनिया से बाहर निकलो।"
राघव - "मुझे लगता है की हमें नेचुरल चीजे देखना चाहिए। हम जंगल, पहाड़, झरना, और बहत सारी चीज देखेंगे। ये बहुत मजेदार होगा।"
नंदनी भी सोचती है की ऊसे क्या आईडिया देना चाहिए। तभी डायरेक्टर साहब पूछते है - "तुम भी तो कुछ कहो नंदनी। तुम्हारा आईडिया क्या है?"
नंदनी - "मुझे ऐसा आईडिया आया है की जिसमे हम सब की इच्छा पूरी होंगी।"
डायरेक्टर साहब कौतहल से - "वो क्या है?"
नंदनी सबकी ध्यान अपनी तरफ खिचके - "हम adventure पर जायेंगे, जहा पर हम नेचुरल चीजे भी देखेंगे, बहत सारी फोटो भी खीचेंगे, पहाड़ी भी चड़नेको मिलेगी, और हम वहा तक चलकर जायेंगे, मतलब ट्रेकिंग भी होंगी, बहत मजा आएगा और हमारी छुट्टी भी शानदार रहेगी। क्यों क्या कहते हो? कैसी लगी मेरा आईडिया?"
इस आईडिया मे सबकी पसंदीदा चीजे थी इसलिए वो सब नंदनी के आईडिया के अनुसार adventure पे चलने के लिए राजी होगये। सब लोग अपनी अपनी सामान पैक करते है और adventure मे काम आने वाली बहत सारी चीजोंका एक लिस्ट बनाकर तयारी करते है। उनकी तयारी और जोश से ये एडवेंचर बहत ही रोचक होने वाला था। डायरेक्टर साहब सारी सामान का बंदोबस्त करते है। और टीम का लीडर का चुनाब करते है।
डायरेक्टर साहब - "adventure मे सबसे बड़ी जरुरी चीज है सहयोग और हमारे बिच मेलमिलाप। अगर हम साथ मिलकर काम नहीं करेंगे तो adventure कभी होही नहींपायेगा। और हमारे बिच मेल मिलाप है तो उसे क़ायम रखनेके लिए हमें एक लीडर चाहिए। और उस लीडर के लिए हम voting करेंगे। तो हम सब उस ब्यक्ति का नाम बताएँगे जिसे हम इस टीम का लीडर होनेका काबिल समझेंगे। तो बारी बारी से बताओ?"
दीपिका - "नंदनी ही हम सबको सम्हाल सकती है, आज तक वही तो हम सबको लीडिंग करती आयी है।"
अनिल - "हा मेरे ख्याल से दीपिका साही है, और adventure का आईडिया भी तो उसका ही था।"
सूरज - "नंदनी ही सही है।"
राघव - "मुझे भी यही लगता है की नंदनी मे ही लीडर होने का सारी खुबिया है।"
डायरेक्टर साहब - "तुम सबका यही बिचार है तो मे नंदनी को ही लीडर बनता हु।"
नंदनी - "मुझसे भी तो कोई पूछों? अकेले अकेले ही फैसला करलिया।"
राघव - "सब तुमपर भरोसा करते है। तो वो तुम्हे ही चुनेंगे ना।"
नंदनी - "अच्छा ठीक है। मे लीडर बनने के लिए तैयार हु।"
सब लोग adventure मे जाने के लिए उतावले होरहे थे। सारी तैयारियां होचुकी थी।
क्रमशः.........
प्रिय मित्रो, आपसब को तो ज्ञात ही होगा की काल्पनिक कथाये और कहानियाँ हमारी भावनाओ से जुड़ जाती है। अगर मेरे उपन्यास का कोई भी शब्द के कारण आपकी भावनाओ से खिलबाड़ होता है तो मुझे माफ करें।
प्रणाम जी 🙏🙏🙏