सजना साथ निभाना--भाग(४) Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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सजना साथ निभाना--भाग(४)

विभावरी बस स्टैण्ड पहुंच तो गई,अब किससे पूछें कि चंदननगर कौन सी बस जाती है, उसने कभी अकेले सफर ही नहीं किया था,ऊपर से अंधेरा भी हो चला था।।
उसे अपने ऊपर बहुत अफसोस हो रहा था कि कैसे वो अनपढ़ गंवार की तरह व्यवहार कर रही है कि उसे ये समझ नहीं आ रहा कि किस बस में जाना है और पता भी कैसे हो घरवालों ने कभी अकेले बाहर ही नहीं जाने दिया ना ही कालेज भेजा तो आत्मविश्वास कभी पैदा ही नहीं हुआ मन में।।
फिर जैसे तैसे उसने हिम्मत करके एक महिला से पूछा,बहनजी चंदननगर जाना है कौन सी बस जा रही है?
उस महिला ने तो पहले विभावरी को ध्यान से देखा,एक साधारण सी जोरजट की लाल साड़ी,सर पे पल्लू ओढा हुआ,मांग में सिंदूर,माथे पर छोटी सी लाल बिंदी,रोई रोई आंखें, आंसुओं से बहा हुआ काजल,गले में मंगलसूत्र और मेंहदी लगे हाथों में चार चार लाल चूड़ियां।।
उस महिला ने पूछा, अभी नई नई शादी है!!
विभावरी बोली, हां बहन जी।।
अब विभावरी क्या बोले कि कल ही शादी हुई है और आज ही मै बेघर हो गई,एक रात में जिंदगी में क्या से क्या हो गया।।
तो इतनी रात को अकेले कहां जा रही हो?उस महिला ने पूछा।।
अब विभावरी क्या बोले? उसने झूठ बोल दिया।।
सच,बुरे हालात इंसान को क्या से क्या बना देते हैं,एक ही पल में इंसान समझदार, मेहनती और साहसी बन जाता है,कहते हैं ना कि जब वो दुःख देता है तो उनसे लड़ने की हिम्मत भी दे ही देता है।।
विभावरी बोली, पिता जी की तबियत बहुत खराब है उन्हें देखने जा रही हूं।।
और तुम्हारे पति,उस महिला ने पूछा।।
मेरे पति किसी काम से दूसरे शहर गये है, इसलिए मुझे अकेले जाना पड़ रहा है,विभावरी बोली।।
पढ़ी लिखी नही हो क्या?उस महिला ने पूछा।।
कभी अकेले सफर नहीं किया तो पता नहीं,विभावरी बोली।।
अच्छा तो ये बात है,सारी तसल्ली कर लेने के बाद उस महिला ने अपने पति से कहा,सुनो जी जरा देखना तो कौन सी बस चंदननगर जा रही है।।
उसका पति उठा और पूछकर आया।।
बहन जी!वो वाली बस जा रही है,आप उसी में बैठ जाइए।।
इतना सुनकर डरी-डरी सी विभावरी बोली, धन्यवाद बहनजी कहते हुए जाकर बस में जा कर बैठ गई।।
कंडक्टर ने पूछा कहां जाना है?
विभावरी बोली, चंदननगर।।
कंडक्टर ने टिकट दे दिया और विभावरी एक बुजुर्ग के बगल में जाकर बैठ गई फिर थोड़ी देर में, विभावरी ने अपने बगल में बैठे बुजुर्ग से पूछा, चाचाजी ,कितने बजे है?
आठ बजे है,बेटी।।
फिर विभावरी ने पूछा,चाचा जी बस कितने बजे चंदननगर पहुंचेगी?
बेटी! चार-पांच घंटे तो लग जाएंगे ,शायद रात के एक या दो बज जाएंगे।।
कुछ देर में बुजुर्ग ने अपना खाना निकाला और खाने को हुए लेकिन विभावरी को देखकर मानवतावश पूछ लिया,खाना खाओगी बेटी।।
विभावरी ने मना कर दिया, नहीं चाचाजी।।
बुजुर्ग बोले,मैं खाऊंगा और तुम मेरे बगल में ऐसे ही बैठी रहोगी, अच्छा नहीं लगता,लो ये दूसरा पत्तल पकड़ो।।
विभावरी को संकोचवश लेना पड़ा,उन बुजुर्ग ने उस पत्तल में कुछ पूडियां,आलू मैथी की सूखी सब्जी और कुछ आचार रख दिया,बोले लो खा लो बेटी।।
विभावरी भी भूखी तो थी ही उसने भी बिना ना-नुकुर के खाना खा लिया।।
खाने के बाद बुजुर्ग ने थरमस से पानी निकाला,खुद भी पिया और विभावरी को भी दिया।।
बुजुर्ग ने प्रेमचन्द का उपन्यास "कायाकल्प" निकाला और पढ़ने लगे।।
थोड़ी देर में बुजुर्ग को नींद आ गई लेकिन विभावरी के मन में जो अन्तर्द्वन्द चल रहा था, उसके चलते उसे कहां नींद आने वाली थी।।
उसने "कायाकल्प"उठाया और पढ़ने लगी।।
फिर थोड़ी देर पढ़ने के बाद उसे भी नींद आ गई,बीच बीच में एकाध बार बस रूकी फिर रात के दो बजे बस चंदननगर पहुंच गई।।
कंडक्टर ने सबको आवाज दी कि भाई उतरो, चंदननगर आ गया,सब यात्री उतर पड़े साथ में विभावरी भी।।
विभावरी बहुत डर रही थी,रात का समय!!
उन बुजुर्ग ने कहा, बेटी चिंता मत करो,तुम मेरे तांगे में बैठ जाओ कहां जाना है बता दो, मैं छोड़ता हुआ चला जाऊंगा।।
अब क्या करें,विभावरी की मजबूरी थी उसे विश्वास करना पड़ा उन बुजुर्ग पर।।
और वो तांगे में बैठ गई,उन बुजुर्ग ने विभावरी को सही सलामत पहुंचा दिया,विभावरी थोड़ा पीछे ही उतर गई बोली, चाचाजी बहुत बहुत धन्यवाद,अब मैं चली जाऊंगी,पास में ही घर है।।
बुजुर्ग बोले, ठीक है बेटी, हमेशा खुश रहो, इतना कहकर वे चले गए।।
मासूम इंसान की मदद करने भगवान किसी ना किसी रूप में आ ही जाते हैं।।
अब विभावरी आ तो गई,सोच रही थी कि क्या कहूंगी सबसे, इतनी रात गए वो भी अकेले।।
विभावरी दरवाजे पर पहुंची, उसने दरवाज़ा खटखटाया और दरवाजा खोला भी तो किसने पूर्णिमा ने....
दरवाजा खोलते ही विभावरी मां से लिपटकर फूट-फूटकर रोने लगी।।
तू इतनी रात को यहां..... पूर्णिमा ने पूछा।।
हां, मां उन लोगों ने निकाल दिया घर से, बोले धोखा किया है तुमने,विभावरी बोली।।
और डाक्टर साहब.... पूर्णिमा ने हतप्रभ होकर पूछा।।
वो घर पर नहीं थे,उस वक्त,विभावरी ने जवाब दिया।।
विभावरी समान लेकर अंदर आने लगी।।
तभी पूर्णिमा ने टोका___
अंदर कहां आ रही हैं?
क्यो मां,विभावरी ने पूछा!!
इतनी रात गए, ससुराल से वापस आ गई, किसी को पता चल गया तो लोग क्या कहेंगे कि रातों-रात बेटी, ससुराल से वापस आ गई,ऊपर से तेरे पापा बड़ी मुश्किल से एक सदमे से उबर पाए हैं अगर उन्हें पता चला कि तुझे ससुराल से निकाल दिया है तो वो जीते-जी मर जाएंगे और वैसे भी हमने सबको बता रखा है कि तू अपनी बुआ के साथ रहने चली गई है इसी वजह से तेरी बुआ को आज ही भेजना पड़ा, पूर्णिमा बोली।।
विभावरी ये सुनकर, पूर्णिमा के चेहरे की ओर हैरानी से देखकर बोली, मां... मैं तुम्हारी बेटी हूं, तुमने मुझे जन्म दिया है,
क्या तुम्हारे घर में मेरे लिए थोड़ी सी भी जगह नहीं है?
तुमने तो कहा था कि तुम शादी कर लो, मैं सब सम्भाल लूंगी।।
लेकिन अगर तुम यहां रहोगी तो सौ तरह के सवाल उठेंगे,हमलोग किसको किसको जवाब देते फिरेंगे, पूर्णिमा बोली।।
लोगों के सवाल, तुम्हें अपनी बेटी से भी ज्यादा प्यारे हो गये,
वाह... मां....वाह...क्या बात कही है,इसका मतलब है कि तुम्हारे घर में भी अब मेरे लिए कोई जगह नहीं है तो लो मैं यहां से भी जा रही हूं और इतना कहकर विभावरी ने समान उठाया और चल पड़ी पता नहीं कहां?
दरवाजे पर खड़ी हुई पूर्णिमा की आंखों में आंसू आ गये,वो जाती हुई विभावरी को देखकर बोली, मुझे माफ़ कर दे मेरी बच्ची।।
सुनसान अंधेरी सड़क पर चलते हुए विभावरी सोच रही थी,कैसा मजाक किया है किस्मत ने मेरे साथ सिर्फ एक रात में ही जीवन भर का तजुर्बा हासिल हो गया,अब क्या करेंगी, कहां जाएगी,जब अपनों ने ही ठुकरा दिया तो ऐसे जीवन का क्या फायदा, इससे अच्छा तो मरना ही ठीक है और वो चल पड़ी रेलवे स्टेशन की ओर।।
रेलवे स्टेशन पहुंच कर बहुत देर तक सोचती रही फिर पता नहीं उसे क्या सूझा , सोचते सोचते वो किसी गाड़ी में बैठ गई, अचानक गाड़ी चल पड़ी।।
थोड़ी देर में टी.सी. टिकट चेक करने आया उसके पास टिकट ही नहीं था,टी.सी. बोला अगले स्टेशन आते ही उतर जाना फिर क्या था,एक छोटे से सुनसान स्टेशन पर गाड़ी रूकी और विभावरी को टी.सी. ने उतार दिया।।
सुबह होने में अभी देर थी,वो स्टेशन से बाहर आई तभी दो लफंगे उसके पीछे पड़ गए, उसने अपनी चाल तेज कर दी,उन दोनों ने भी ऐसा ही किया,अब विभावरी बहुत ही डरकर तेज तेज भागने लगी,वो लोग भी उसका पीछा करने लगे,विभावरी ने अपने सूटकेस से उन लोगों के ऊपर जोर से फेंककर हमला किया और तेजी से भागी और सड़क पर आती हुई एक मोटर से टकरा गई।।

क्रमशः___
सरोज वर्मा___