Sajna sath nibhana - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

सजना साथ निभाना--भाग(१)

फ़रवरी की हल्की ठंड!!
सेठ धरमदास का हवेलीनुमा मकान जो उनके दादा जी ने बनवाया था,समय के साथ-साथ मकान में भी आधुनिक परिवर्तन किए गए,नये बाथरूम बनाए गए, सहूलियत के हिसाब से उसमें फेर-बदल होते रहे,बस नहीं बदलीं तो उस घर की परम्पराए।।
सामने बहुत बड़ा लोहे का गेट,गेट से अंदर आते हुए अगल-बगल फुलवारी लगी है फिर आंगन है और आंगन में तुलसी चौरा है, जहां सुबह-शाम दिया जलाया जाता है।।
सेठ धरमदास अग्रवाल के घर की छत में चहल-पहल मची हुई है,सब देवरानियां-जेठानियां मिलकर छत पर बड़ियां और पापड़ बना रहे हैं,सब जो जिस काम में माहिर बस अपनी-अपनी कला दिखाने में लगा हुआ है,सब एक-दूसरे से हंसी-ठिठोली कर रही है।
वैसे तो घर में इतनी बहुएं नहीं है जितनी की घर की छत पर दिख रही है,वो तो सेठ धरमदास का परिवार इतना बड़ा है कि ज्यादातर चचेरे, फुफेरे,ममेरे भाई सब उसी मुहल्ले में आस-पास रहते हैं और सुख -दुख के अवसर पर सब एक हो जाते हैं,सारी महिलाएं छत पर आए दिन मिलकर कोई ना कोई काम करती रहती है क्योंकि सेठ धरमदास की बड़ी बेटी की अगले महीने शादी है तो सारी महिलाएं मिलकर आचार, पापड़ और बड़ियां बना रही हैं, विवाह की तैयारियां जोरों पर है।।
तभी धरमदास जी की पत्नी पूर्णिमा ने अपनी छोटी बेटी को आवाज लगाई__
विभावरी....ओ विभावरी....वो नीचे डलिया में नींबू कटे रखे हैं आचार के लिए जरा ऊपर तो ले आना ।
नहीं मम्मी!मैं ऊपर नहीं आ रही,धूप तेज हैं मेरा रंग काला पड़ जाएगा, अगले महीने दीदी की शादी है,बरात वाले क्या कहेंगे,दूल्हे की साली कितनी काली है,विभावरी बोली।।
ये सुनकर छत पर मौजूद सभी लोग हंसने लगे।।
सुन ज्यादा नखरे मत कर, चुपचाप सर पर दुपट्टा डालकर ऊपर चली आ, पूर्णिमा बोली।।
अच्छा!! मां आती हूं, गुस्सा मत करो,विभावरी बोली।।हम खुद को कभी नहीं देखते और दूसरों को उपदेश देते रहते हैं, इसका कारण हैं कि हम खुद की श्रेष्ठता दूसरों पर थोपकर अपने अहं को संतुष्ट करना चाहते हैं।।
ये अलग बात है कि दूसरों को उपदेश देने में किसी का कुछ नहीं घिसता, बस जरा सी जींभ हिलानी पड़ती है, परन्तु इसे अपने खुद के आचरण मे ढ़ालना कठिन हैं।।

विभावरी जैसे ही छत पर आई, उसे देखकर सब हंसने लगे।।
क्यो?सब मुझे देखकर क्यो हंस रहे हो,विभावरी ने सबसे पूछा।।
अरे! तूने तो अपने चेहरे को इस तरह से ढ़क रखा है कि एक महीने बाद तेरा ही ब्याह होने वाला है,मधु काकी बोली।।
मेरा ब्याह तो नहीं होने वाला है लेकिन दीदी का तो होने वाला है,मेरी दीदी इतनी सुन्दर इतनी गोरी उनके बराबर ना सही थोड़ी तो लगूं कि मैं उनकी बहन हूं, जयमाला में उनके साथ जाने लायक तो लगूं,विभावरी बोली।।
तभी विभावरी ने छत की बनी दीवार पर नींबू की डलिया रख दी और उसी दीवार से टेक लगा कर खड़ी होकर बातों में मग्न हो गई, तभी किसी ने उसके भइया दीपक को नीचे से आवाज लगाई___
दीपक भइया.....दीपक भइया.... और विभावरी जैसे ही दीवार से नीचे झांकने लगी , नींबू भरी डलिया में हाथ लगा और वो सीधे नीचे खड़े लड़के पर जा गिरी।।
पूर्णिमा उठी और बड़बड़ाई,इस लड़की से एक भी काम सही ढंग से नहीं होता,पता नहीं ससुराल जाकर क्या करेंगी,सारे नींबू खराब कर दिए और राधा जो उनकी नौकरानी है उसे आवाज़ देकर कहा जरा आंगन तो साफ कर लें,
राधा बोली, अच्छा मालकिन!!
फिर पूर्णिमा ने नीचे झांककर देखकर पूछा,कौन हो बेटा, किससे काम हैं।।।
अरे, आंटी जी दीपक भइया है, मैं उनके दोस्त राहुल का छोटा भाई, राहुल भइया ने दीपक भइया के लिए कुछ किताबें भिजवाई हैं,वहीं देने आया हूं।।
अच्छा!बेटा आंगन के बगल से गैलरी से होती हुई छत के लिए सीढ़ियां हैं, वहीं से चढ़कर ऊपर आ जाओ, पूर्णिमा बोली।।
ठीक है आंटी आता हूं,उस लड़के ने जवाब दिया।।
और वो जैसे ही ऊपर आया,विभावरी खिलखिला कर हंस पड़ी।।
पूर्णिमा बोली,अब खड़ी खड़ी हंस क्या रही है,सब तेरा ही तो किया कराया है,हल्दी लगे नींबू गिरगे इस पर तो पीला ही दिखेगा ना,अब जा और भइया की किताबें छत वाले कमरे में रखवा दे।।
विभावरी बोली,चलो भइया के कमरे में,मैं इतनी किताबें नहीं उठा सकतीं।।
पूर्णिमा ने पूछा, तुम्हारा नाम क्या है? बेटा।।
उस लड़के ने उत्तर दिया, आंटी मेरा नाम नवल किशोर है,
विभावरी अब तो पेट पकड़ पकड़ कर हंसने लगी,ये कैसा नाम हुआ,इस ज़माने में कौन ऐसा नाम रखता है।।
नवल किशोर को बहुत बोरियत हो रही थी,विभावरी की बातों से,
तभी पूर्णिमा बोली,विभावरी,बस बहुत हुआ,अब चुप हो जा और जाकर किताबें रखवा दे दीपक के कमरे में।।
चलो अब खड़े क्या हो,विभावरी बोली।।
नवल किशोर चुपचाप दीपक के कमरे में चल पड़ा, कमरे में जाकर विभावरी ने कहा ,रख दो किताबें टेबल पर, नवलकिशोर ने क़िताबें रख दी,इतने में विभावरी ने जैसे ही अपने चेहरे से टुपट्टा हटाया तो नवल किशोर,विभावरी को देखता ही रह गया__
विभावरी बोली ऐसे क्या देख रहे हो?कितने में पढ़ते हो?
अभी कालेज में हूं बी.एस.सी.फर्स्ट इयर में, नवलकिशोर बोला।।
और तुम्हारा नाम कैसा है, नवलकिशोर लेकिन राहुल भइया का का तो इतना अच्छा नाम है,तुम्हारा ऐसा नाम किसने रखा?विभावरी ने पूछा।।।
अरे! तुम्हें पता नहीं है राहुल भइया के घर का नाम राहुल है उनका स्कूली पेपर में नाम तो चित्तकिशोर है, नवलकिशोर बोला।।
अब तो विभावरी ठहाका मारकर हंस पड़ी।।
फिर पूछा आजकल के जमाने में कौन ऐसा नाम रखता है, बूढ़ों वाला।।।
नवलकिशोर बोला, मेरे दादा जी ने बड़े प्यार से रखा था।।
अच्छा चलो ठीक है,अब बाहर चलो,विभावरी बोली।।।
दोनों फिर से छत में आ गए।।
पूर्णिमा बोली, बेटा खाने का समय है,अब सब खाना खाने जा रहे हैं तुम भी अब खाना खाकर ही जाना।
नहीं!!आंटी जी इसकी क्या जरूरत है,नवल किशोर बोला।।
अरे बेटा,तो क्या हुआ ?तुम हमारे घर पहली बार आए हो और शादी का घर है,सब लोग खाना खाऐगे और तुम ऐसे ही चले जाओगे तो अच्छा लगेगा, पूर्णिमा बोली।।
ठीक है आंटी अगर आप कह रही है तो मैं खाना खाकर ही जाता हूं,नवलकिशोर बोला।।
अच्छा तुम नीचे पहुंचो,मैं आती हूं, पूर्णिमा बोली।।
नवलकिशोर जैसे ही नीचे पहुंचा,लाठी टेकते हुए विभावरी की दादी आ पहुंची।।
उन्होंने नवल से पूछा,कौन हो तुम?कोई मेहमान हो।।
तब तक विभावरी आ पहुंची और बोली,हां दादी, दीदी के ससुराल से आए हैं संदेशा लेकर तभी तो इतनी हल्दी लगा रखी है कि अलग दिख जाए कि दीदी के ससुराल से आए हैं।।
अच्छा जी,दादी बोली ।।
तभी पूर्णिमा आ पहुंची और बोली,क्यो परेशान कर रही है बच्चे को।।
और मांजी आप भी किसकी बातों में आ रही है इसकी तो आदत है सबसे मजाक करने की।।
चलिए मांजी खाना खाइए और बेटा जाओ तुम भी हाथ धो लो।।
अच्छा आंटी जी इतना कहकर नवलकिशोर हाथ धोने चला गया।।
बहुत सारे मेहमान थे,सबकी पंगत लगी,इतने आधुनिक समय में भी सेठ धरमदास के घर में सब जमीन पर बैठकर ही खाना खाते हैं।
सबकी थालियां रखी गई और उनमें कई तरह की कटोरियों में कई तरह के ब्यंजन थे,सारा खाना महाराज ने ही बनाया था, किसी कटोरी में कढ़ी-पकौडी,किसी में तरी वाला गोभी-आलू, किसी में छोले तो किसी मे दालमक्खनी, किसी में बैंगन का भरता, किसी भी हरे चने का निमोना,किसी में खीर तो किसी में गरम-गरम गुलाब जामुन, पापड़,आचार, चटनी भी थे साथ में ,जीरे तड़के वाले चावल जो कि शुद्ध घी मे सराबोर थे और सूखे मेवे उसकी शोभा बढ़ा रहे थे, सहूलियत के हिसाब से जिसको रोटी चाहिए थी रोटी थी जिसको पूड़ी चाहिए थी पूड़ी थी।।
इतना सारा खाना देखकर नवलकिशोर सोच में पड़ गया कहां से शुरू करुं, पहले क्या खाऊं, फिर खाना शुरू किया खाना बहुत ही स्वादिष्ट था, खाना खाकर सब एक साथ उठते हैं उनके घर में,वो उठने ही वाला था कि दादी ने टोंक दिया।
कि सबके साथ उठना और वो वहीं फिर से बैठ कर,सबके खाना खा चुकने का इंतजार करने लगा।।

क्रमशः_____
सरोज वर्मा___


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