भाग - 06
मनीष की बेचैनी बढ़ती जा रही थी, एक पल को जी करता कि वह अभी अपने पापा को आराधना के बारे मे बता दे, लेकिन असली मुद्दा तो मम्मी को मनाना है, पता नही आज के रिश्ते के लिये उन्होंने पूरी तरह मना किया या नही, वैसे भी उस लड़की की फोटो देखकर वो मनीष के पीछे ही पड़ गयी थी।
इधर प्यार के नए रंगों से आराधना खिलने लगी , उसने कभी सोंचा नही था उसकी जिन्दगी मे कोई इस तरह आ जायेगा।उसके मन मे तो सवालों की झड़ियाँ लगने लगी।
क्या इतनी जल्दी किसी पर भरोषा करना ठीक है ? उनसे मोबाइल लेकर ठीक किया या नही। लेकिन पहली बार तो किसी ने उसके बारे मे इतना सोंचा है, और जो लड़का सबकी इतनी इज्जत करता हो और अपने पेरेंट्स की हर बात मानता हो वो क्या कभी गलत हो सकता है?
" ट्रिंग - ट्रिंग " मोबाइल बजने लगा , आराधना ने हड़बड़ाते हुए उसे बैग से निकाला।
और धीमे अंदाज में कहा - " हेलो कौन? "
" हेलो आरू, आई एम मनीष
पहुँच गयी न तुम , क्या कर रही हो मेरी जान "
मनीष की आवाज सुनकर आराधना चौंक सी गयी उसने शरमाते हुए बस इतना कहा - " जी हाँ , ठीक है मै आपसे डिनर के बाद बात करती हुँ न "
रात के 10:30 बज रहे थे आराधना डिनर के बाद बिस्तर पर बैठी। दिवाली आने मे अभी 10 दिन ही बचे थे और शॉप के डेकोरेशन का काम भी उसे देखना था इसलिए उसने शॉप वाली फाइल निकालकर जरूरी चीजों की लिस्ट बनायी। तभी मोबाइल पर मैसेज की बीप सुनाई दी , उसने देखा मनीष का ही मैसेज था।
" हाय आरू ,
आई हॉप यू हैव फिनिश्ड ऑल योर वर्क एंड आर फ्री नाऊ,
प्लीज रिप्लाय मी "
आराधना ने रिप्लाई देना चाहा पर नए हैंडसेट पर उसे कुछ समझ न आया और सीधा कॉल ही लग गया।
" हेलो मनीष जी "
" हाँ मेरी आरु , कैसा लगा नया मोबाइल "
" जी वेरी गुड , पर इतना महँगा.."
" तुम्हारे लिये तो मेरा सब कुछ है आरु "
बातों का सिलसिला चलता रहा मनीष ने बताया कि उसने घर वालों से उनके रिश्ते की बात कर ली है ये सुनकर तो उसके पापा बहुत खुश हुए। कल मम्मी और शीतल भी मिल लेंगे फिर तो बात बन ही जायेगी।
" लेकिन आपको नहीं लगता कि ये सबकुछ इतना जल्दी हो रहा , मुझे तो डर सा लग रहा "
आराधना ने मायूस होकर कहा।
" अगर ये इतना जल्दी नही हुआ, तो मेरी बारात कहीं और चली जायेगी मैडम ! फिर तुम आराम से राह देखना " मनीष ने मजाकिया अंदाज मे कहा।
लगभग 2 घण्टे बातचीत के बाद दोनों ने एक दूसरे को आई लव यू कहा और फिर ख्वाबों मे ही खो गए।
आधी रात गुजर गयी थी, मनीष की बातों ने अब आराधना की सारे उलझनें दूर कर दी। अब वो खुद चाहने लगी कि कब सुबह हो और मनीष उसे अग्रवाल हाउस ले कर जाये।
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एक खूबसूरत सुबह ने दस्तक दी, ट्रिंग -ट्रिंग मोबाइल बजते ही आराधना हड़बड़ाते हुए उठी और उसने ऊँघती हुई आवाज मे कहा - " हेलो "
" हेलो गुड मॉर्निंग आरू "
" गुड मोर्निंग "
" जल्दी से रेडी हो जाओ मै लेने आता हूँ आज सुबह का ब्रेकफास्ट मेरे यहाँ है "
" लेकिन इसकी क्या जरूरत है जी। मै ब्रेकफास्ट बना लूँगी न "
" लेकिन- वेकिन छोड़ो, मै एक घण्टे बाद आता हूँ बस, और वैसे भी आज हमे सबसे पहले शीतला माता के मंदिर जाना है "
कॉल डिस्कनेक्ट होते ही आराधना ने घड़ी की ओर देखा 7 बज रहे थे। वह जल्दी से भागते हुए बाथरूम की ओर दौड़ी। कहीं ऐसा न हो जाये कि उसके तैयार होने के पहले ही मनीष आ जाये।
ऑरेन्ज कलर वाली सलवार सूट, खुले बाल, एक हाथ मे कंगन और एक मे घड़ी आईने में वह खुद को निहार ही रही थी, तभी कार के हॉर्न बजने की आवाज उसके कानों तक पहुँची। कंधे पर दुप्पटा लगाते हुए वह बाहर निकली सामने मनीष खड़ा था।
" अंदर आइये न,पहली बार तो आये हैं "
उसने दरवाजे की तरफ इशारा करते हुए मनीष से कहा।
" आज नहीं, वरना लेट हो जायेंगे। और अब तो आना-जाना लगा ही रहेगा "
मनीष ने मुस्कुराते हुए कहा।
आज मनीष के कहने पर आराधना सामने वाले सीट पर ठीक उसके बगल मे बैठी। कुछ देर बाद वे दोनों शीतला मंदिर पहुँच गये। पास के ठेले से मनीष पूजा की सामग्री लेकर आया, उसने बताया कि अक्सर वो यहाँ आता ही रहता है अपने हर नये काम की शुरुआत माता के दर्शन के बाद ही करता है। आराधना ने भी बताया कि हॉस्टल से वो यहाँ कई बार आ चुकी है।
" हे माँ आपकी कृपा से ही मुझे मनीष जी मिले हैं, ऐसी ही अपनी कृपा बनाये रखिये और हमारा रिश्ता अटुट कर दीजिए " आँखे बंद करके आराधना मन ही मन प्रार्थना करने लगी।
" चलो आराधना थोड़ी देर बैठे वहाँ पर "
मनीष ने एक छोटे से गार्डन की ओर इशारा करते हुए कहा।
आस-पास छोटे पौधे लगे हुए और नर्म गद्दों वाली घास मंदिर समिति द्वारा निर्माण किया हुआ गार्डन जहाँ एक दो प्रेमी जोड़े पहले से ही नजर आ रहे थे। मनीष और आराधना भी एक दूसरे की आँखों में आँखे डालकर बात करने लगे। मनीष ने आराधना से कहा कि वह उसकी तारीफ मे कोई शायरी या गाना गाकर सुनाए। पहले तो ना कि जिद लगाये हुए आराधना चुपचाप बैठी रही, लेकिन कब तक इंकार करती और उसने एक गाना सुनाना ही ठीक समझा।
" किसी शायर की गजल
जो दे रूह को सुकून के पल
कोई मुझको यूँ मिला है
जैसे बंजारे को घर,
मैं मौसम की सेहर
या सर्द में दोपहर,
कोई मुझको यूँ मिला है
जैसे बंजारे को घर।
गाते - गाते आराधना की आँखे भर आयी, उसने मनीष की ओर प्यार भरी नजरों से देखते हुए कहा- " हमेशा मेरे साथ रहना मनीष जी "
" आई एम ऑलवेज विथ यू " ऐसा कहते हुए मनीष ने अपना मोबाइल देखा अरे! मम्मी के 7 मिस्ड कॉल्स।
ऐसी क्या बात हो गयी?
क्रमशः.....