नियति... - 1 - संघर्ष की एक दास्तां Apoorva Singh द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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नियति... - 1 - संघर्ष की एक दास्तां

इस वर्ष का सामाजिक क्षेत्र मे महिलाओ के पुनरुत्थान के लिए नारी शक्ति पुरुस्कार दिया जाता है मिस नियति कपूर को।जिन्हें महिलाओं द्वारा साहिबा जी की उपाधि दी गयी है।मैं निवेदन करता हूँ नियति जी से कि वो मंच पर आकर माननीय राष्ट्रपति जी से ये पुरुस्कार ग्रहण करें।इस आयोजन के एंकर ने जैसे ही अपने शब्दो को विराम दिया पूरा आयोजन स्थल वहां मौजूद ऑडियंस की तालियों से गुंजायमान हो गया।और ऐसा हो भी क्यों न अपूर्व फाउंडेशन की संस्थापक नियति कपूर को इस सम्मान से सम्मानित किया जा रहा है।

नियति कपूर,जिसने अपूर्व फाउंडेशन की स्थापना कर कई महिलाओ को इस काबिल बनाया कि वो समाज में सर उठा कर जी सकें।किसी शारीरिक कमी होने के कारण कोई भी उन पर कटाक्ष न कर सके।नियति मंच पर आती है और अपना पुरुस्कार ग्रहण करती है।एवं कुछ शब्द बोल कर माननीय राष्ट्रपति जी को धन्यवाद कह अपने घर के लिए निकल जाती है।
गाड़ी चलने लगती है और नियति हमेशा की तरह गाड़ी की विंडो से दिल्ली से आगरा के बीच में पड़ने वाले दृश्यों को देखने लगती है।तभी नियति का फोन बजता है जो उसके दोस्त राघव का होता है।नियति फोन उठाती है।राघव नियति को इस सम्मान के लिए बधाई देता है,और पार्टी के लिए कहता है।

नियति - राघव,पार्टी भी मिल जायेगी,पहले मुझे घर तो पहुंचने दो।वही आना और भाई को भी ले आना सभी बैठ कर पार्टी करेंगे।

राघव नियति की बात सुन कहता है हां हां ले आऊंगा उसे भी।तुम्हारा भाई अक्षत मेरा दोस्त जो है।

नियति- हां जी।अब मैं रखती हूँ बाकी बाते आकर करती हूँ।
अरे सुनो तो पहले,यहां मीडिया इंतज़ार कर रही है तुम्हारा..राघव नियति से कहता है।जिसे सुन नियति कहती है और मुझे पता है तुम उसे हैंडल कर लोगे।क्योंकि तुम्हे अच्छे से पता है मुझे मीडिया से दूर ही रहना पसंद है।सुर्खियों में रहना जंचता ही नही।

राघव - ओके।।तो मैं देख लूंगा।तुम आराम से आओ और हां अतीत में न पहुंच जाना।अभी तो मैं भी वहां नही हूँ जो तुम्हारे आंसू पोंछ सकूँ।

राघव की बात पर नियति बस मुस्कुरा देती है जिसे राघव समझ जाता है।और बाय कह कॉल कट कर देता है।नियति खिड़की पर सर रख कर आँखे बंद कर लेती है और ठंडी हवाओ को अपने चेहरे पर महसूस करने लगती है।कभी धूप कभी छांव का मौसम होता है।कुछ ही घंटो के सफर को पूरा करने के बाद नियति आगरा पहुंच जाती है।उसके घर के बाहर गाड़ी रुकती है वाचमैन दरवाजा खोलता है ड्राइवर गाड़ी घर के अंदर लेता है।दरवाजा बंद कर दिया जाता है।

गाड़ी रुकती है नियति गाड़ी से बाहर कदम रखती है,और अपने घर को देखती है।वो घर जो उसने अपनी मेहनत से बनाया होता है।

दो मंजिला बंगले नुमा घर होता है।जिस पर संगमरमर के पत्थर फर्श पर लगाये गये होते हैं।लकड़ी और शीशे का अद्भुत कॉम्बिनेशन इस्तेमाल किया गया होता है दरवाजे और खिड़कियों के लिए।बाहर हरे और क्रीम कलर का टच दिया गया है तो वहीं अंदर सफेद और हलके नीले रंग का इस्तेमाल किया गया है।नियति बाहर गार्डेन से होते हुए अपने घर में प्रवेश करती है जहां उसका दोस्त राघव और भाई अक्षत दोनो ही उसके स्वागत के लिए खड़े होते हैं।

नियति को देख दोनो ही उससे कहते हैं तो साहिबा जी इस नारी शक्ति सम्मान के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ।हमारी तरफ से भी शुभकामनाये दीदी , अक्षत की पत्नी कोमल आरती की थाली लेकर आते हुए कहती है।
कोमल को देख नियति बहुत खुश होती है और धन्यवाद कहती है।कोमल नियति के टीका वंदन कर आरती उतार उसे घर में आने को कहती है।नियति घर में प्रवेश करती है और सभी के साथ घर के ड्राइंग रूम में जाकर बैठती है।कोमल रति को तीन कप चाय लाने के लिए कहती है और स्वयं नियति से बातचीत करने लगती है।

नियति सभी का अपनापन देख हाथ जोड़ कर आभार व्यक्त कर कहती है आप सब मेरे लिए मेरे अपनो से भी बढ़कर हैं।जब मेरे अपनो ने मुझसे मुंह फेर लिया तब भी आप सब ने मेरा साथ नही छोड़ा।
जिसे देख अक्षत और कोमल उसे डांटते हुए कहते हैं चुप करो दी!! हम लोग क्या आपके अपने नही है जो इस तरह कह रही हो।अब बाकी घरवाले भले ही न हो लेकिन हम सब एक फॅमिली की तरह हमेशा साथ हैं।हमारे बुरे समय में आप ही थी जिन्होंने हमारी मदद की धन से भी और मन से भी।याद है मुझे जब हमे जरूरत थी अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए धन की,तब वो आप ही थी जिन्होंने स्वयं के पास धन न होते हुए भी रुपयो का अरेंजमेंट किया था।जब हमारा बिजनिस लॉस में चल रहा था हम कितने तनाव में थे तब आपने ही हमारा हौसला बढ़ाया था।न जाने कितनी ही राते हम चारो ने साथ बैठ कर सोचते विचारते गुजारी हैं।कितने ही बड़े बड़े निर्णय ले पाये है हम आपकी मदद से।आज हम जो भी है वो आपके साथ के कारण ही है।तो कृपया आज के बाद आप खुद को अकेला तो समझे ही नही और हमारा रिश्ता खून का भले ही न हो लेकिन विश्वास,प्रेम और आत्मीयता का रिश्ता है।यही तो रिश्तो में होता है अच्छे बुरे समय में एक दूसरे के साथ खड़े रहना।
अक्षत कोमल की बात सुन नियति हाथ बढ़ा दोनो के गले लग जाती है।सभी पूरी तरह से भावुक हो जाते हैं।राघव इन तीनो से अलग सोफे पर बैठा हुआ ये भरत मिलाप देखता है।जब कुछ ज्यादा समय हो जाता है तो कहता है मैं क्या यहां बैठ कर भजन पुजन करूँ अकेले।

राघव को सुन नियति अक्षत कोमल अलग होते है और अक्षत कहता है अच्छा अब तेरा इतना ही मन है तो कर ले।पूछ क्यों रहा है।
क्या यार अक्षत बहुत ही खिल्ली उड़ाई जा रही है मेरी।तु मिल अकेले में तब बताता हूँ तुझे अभी तो कोमल भाभी तेरे साथ है उनके सामने तुझे पीटना सही नही रहेगा।

ओह नो...राघव!! भूल जा ये सब मेरे भाई।।मैं तो बस मज़ाक कर रहा था।अक्षत राघव के करीब जाकर धीरे से कहता है।

ये हुई न बात।चल भूल गया सब कुछ।राघव अक्षत के कंधे पर हाथ रखते हुए कहता है।

तब तक रति चाय नाश्ता ले आती है और चारो बैठ कर साथ में चाय पीते हैं।और अपनी बातचीत को आगे बढ़ाते हैं।

नियति - राघव,आज कोई समस्या तो नही आई किसी महिला को सम्हालने में।अपने दुखो से तंग आकर किसी ने कोई हंगामा तो नही किया।

नही नियति,किसी ने कोई हंगामा नही किया बल्कि जो भी कार्य हम उन्हें जीवनयापन करने के लिए सीखा रहे हैं उन्हें बड़ी ही लगन से सीख रही हैं।

अच्छी बात है राघव।और जो हम नए प्रोजेक्ट पर कार्य शुरू कर रहे है उन महिलाओं के लिए जो वृद्ध है अर्थात साठ की उम्र व्यतीत कर चुकी है,उसकी प्रगति कहां तक पहुंची।

नियति की बात सुन राघव कहता है,वो प्रोजेक्ट शुरू हो चुका है वृद्ध महिलाओं के अनुभवों का तुमने जिस तरह से सदुपयोग करने का सोचा है वाकई काबिले तारीफ़ है।सच में तुम्हारी सोच को सैल्यूट करता हूं मैं। कह राघव हाथ को माथे पर रखते हुए खड़ा हो जाता है।

बस राघव इतना बड़ा भी कोई कार्य नहीं कर रही हूं मै।
राघव - हां जानता हूं देवी जी।आप चाहे आसमान से सितारे तोड़ लाए लेकिन कहोगी यही ऐसा कोई बड़ा कार्य नहीं किया।राघव के इस तरह देवी जी कहने पर नियति के चेहरे पर मुस्कुराहट आ ही जाती है।

अक्षत और कोमल इन दोनों की बाते सुन मुस्कुराते है और आपस में कहते है सच में इन दोनों का रिश्ता अलग ही है।दोस्त से ज्यादा है ये और कपल से कम ही है।राघव किस तरह समझ जाता है नियति की तकलीफ को।अपने हंसमुख स्वभाव से गंभीर नियति को हंसा ही देता है। न जाने और कितना इंतजार करना होगा राघव भाई को।न जाने कब नियति दी अपनी लाइफ में आगे बढ़ पाएंगी।

नियति - राघव बहुत मस्ती मज़ाक हो गया।अब मै कमरे मै जाती हूं थोड़ा रेस्ट कर लूंगी।और आधे घंटे बाद आकर तुम सबसे पार्टी के विषय में चर्चा करती हूं।तब तक आप लोग भी रेस्ट कर लीजिए।नहीं तो अक्षिता जाग गई फिर तो हो गई बातचीत।

(अक्षिता,अक्षत और कोमल की चार साल की बेटी।बहुत ही प्यारी है। फर्स्ट स्टैंडर्ड में पढ़ती है।)अक्षत कोमल नियति के इस पुरस्कार मिलने की खुशी में उससे मिलने शाहगंज से ताजगंज आए हुए है।

नियति अपने कमरे में चली जाती है लेकिन पुरस्कार वहीं टेबल पर छोड़ जाती है।जिसे राघव उठकर उसे ले जा कर बाकी अवार्डों के साथ रख देता है।
कुछ देर बाद नियति आ जाती है और सभी मिल कर पार्टी के बारे में बात करने लगते हैं।

राघव - नियति इतने वर्ष हो गए तुम्हे अपने परिवार से अलग हुए कम से कम आज तो उन्हें भी इस पार्टी मै इन्वाइट करो।इतनी बड़ी खुशी की बात है सब भूल कर तुम एक कोशिश ही कर लो।

राघव की बात सुन नियति एकदम से उदास हो जाती है और पहुंच जाती है पांच वर्ष पहले अतीत की यादों में..

बस नियति!! बहुत कर ली मनमानी तुमने।।क्या कमी है इस रिश्ते में।बस उम्र में तुमसे दस साल बड़ा है और दो बच्चो का पिता है।।सिर्फ इसीलिए तुम इस रिश्ते के लिए मना कर रही हो।अरे शुक्र मनाओ तुम्हारे जैसी शारीरिक कमी रखने वाली लड़की को कोई अपनाने के लिए तैयार है।नहीं तो बैठी रहियो यूं ही कंवारी।।हम सबकी छाती पर मूंग दलने को।

अपनी मां के ये शब्द सुन नियति की आंखो में आंसू आ जाते हैं।

नियति - लेकिन मां अब इन सब में मेरी क्या गलती है और वाकई में क्या मै इतनी ही बोझ बन गई हूं आप सब पर।मै जॉब करना शुरू कर दूंगी मां आत्मनिर्भर बन जाऊंगी।लेकिन अभी विवाह के लिए मै मानसिक रूप से तैयार नहीं हूं।

देखो नियति।।जॉब तो तुम विवाह के बाद अपने पति से पूछ कर करती रहना।अभी तो बस तुम हां कहो।हम में और हिम्मत नहीं है इस समाज के तानों को बर्दाश्त करने की।बस अब हम सबका पीछा तुम छोड़ो विवाह कर अपनी ससुराल जाओ और अपनी घर गृहस्थी सम्हालो।वैसे भी ऐसी लड़की से कौन समझदार विवाह करेगा जो कभी मां ही ना बन सकती हो।तुम क्यों नहीं समझती हो बेटा।हम तुम्हारे भले के लिए ही ये सब सोच रहे हैं।

मां की बात सुन नियति मज़बूरी में हां कह देती है...तभी राघव उसे सोच में डूबा हुआ देख समझ जाता है और उसकी आंखो के सामने चुटकी बजाते हुए कहता है अरे देवी जी पार्टी में इन्वाइट करने को कह रहा था मै,यूं बैठे बैठे सोने के लिए नहीं।नियति राघव की आवाज़ सुन अतीत के झरोखों से बाहर आ जाती है।उसकी आँखों के कोरो पर दो बिंदु लुढ़क जाते हैं।जिन्हें वो बड़ी ही सफाई से पोंछ लेती है।

राघव नियति को देख कहता है जानता हूँ मैं कि तुम अपने घरवालों के लिए तड़पती हो।बहुत मिस करती हो सबको लेकिन अपने स्वाभिमान की खातिर कभी नही जाओगी वापस।लेकिन नियति ये भी तो एक सत्य ही है न कि जैसे भी है तुम्हारे अपने हैं और इसी दुनिया समाज का हिस्सा है।मैने तो सारा कुछ शुरुआत से देखा है।मैं और अक्षत दोनो ही गवाह रहे है तुम्हारे संघर्ष मय जीवन के।सब कुछ परे कर एक बार बस एक बेटी बनकर जाओ मुझे विश्वास है वो तुम्हे अब दिल से स्वीकार कर लेंगे।

राघव मैं जानती हूं उन सब को,बहुत ही स्वार्थी लोग है,और अगर मैं गयी भी न सब भूल कर तो वो लोग मुझे अपना जरूर लेंगे,लेकिन इसलिए क्योंकि अब मेरे पास दुनिया के सारे ऐशोआराम है।घर आई लक्ष्मी को भला कौन ठुकरायेगा।

नियति के मन मे अपनो के प्रति उसकी कड़वाहट देख राघव का दिल भर आता है वो वहां से उठ कुछ देर बाहर चला जाता है।लो फिर से उसी बात पर बहस हुई है इन दोनों में।ये राघव भाई भी न क्यूँ हर बार नियति दी से उनके अपनो से मिलने के लिए कहते हैं।जब जानते हैं दी को कितनी तकलीफ होती है उनके बारे में सोचकर ही।कोमल अक्षय से कहती है।
अक्षत - हां क्योंकि वो देखता है उसे अपनो की तस्वीर से बातें करते हुए।अपने पिता की फ़ोटो के सामने खड़े होकर हर शाम घण्टो नियति को बात करते हुए देखता है वो।इसी घर मे रहता है अपनी छोटी बहन के साथ।अब बाकी बाते बाद में करते है फिलहाल मैं राघव को देखता हूँ तुम यहाँ दी को देखो कह अक्षत भी उसके पीछे पीछे चला जाता है वही कोमल नियति के पास रुक जाती है।

राघव और अक्षत कुछ देर बाहर गार्डन में खड़े हो आसमान में निहारते हैं।जब राघव का विचलित मन शांत हो जाता है,तब अक्षत उसे वापस अंदर चलने को कहता है।राघव अक्षत के साथ चला आता है।घर के अंदर कोमल नियति को शांत होने के लिए कहती है।राघव अक्षत अंदर आ जाते हैं।और दोनों पार्टी की तैयारियों पर चर्चा करते हैं।जिसमे ये निर्णय लिया जाता है ये पार्टी उन महिलाओं के बीच मे होगी जो हमारे NGO का हिस्सा हैं।जिन्होंने वर्षो से कभी किसी पार्टी को एन्जॉय नही किया है।और इस पार्टी की खास बात होगी इसमें बाहर की कोई भी वस्तु का उपयोग नही किया जाएगा।सजावट से लेकर केटरिंग तक सारा का सारा कार्य हमारे एनजीओ में रहने वाली महिलाएं ही देखेंगी।जिससे उन सभी के आत्मविश्वास में भी वृद्धि होगी।

नियति की इस बात से राघव अक्षत कोमल सहमत होते है और सभी अक्षिता को लेकर एनजीओ के लिए निकल पड़ते है।जो उस घर के ही दूसरे हिस्से में होता है।नियति ने बहुत ही खूबसूरती और समझदारी के साथ घर के हिस्सों को एनजीओ में कनवर्ट कराया है।आखिर इतने बड़े घर में रहते भी तो केवल तीन लोग ही है।

नियति को देख वहां रहने वाली करीब बीस से तीस महिलाओं का समूह उसे चारो ओर से घेर लेता है।और साहिबाजी कह नमस्ते करने लगती हैं।इन महिलाओं में सभी किसी न किसी तरह अपंग होती है।किसी की दृष्टि नहीं होती है तो कोई बोलने में असमर्थ होती है।कोई एक पैर से अपाहिज है तो कोई सम्पूर्ण होते हुए भी नियति की तरह अधूरी है।विशेषतः ये सभी किसी न किसी तरह सताई हुई होती है।वहीं कुछ वृद्ध महिलाएं भी होती है जिनके अपने होकर भी अपने नहीं हैं।ऐसी महिलाओं का नियति सहारा बन उन्हें इस काबिल बनाती है जिससे वो आत्मनिर्भर बन एक इज्जत कि जिंदगी बसर कर सके।

नियति सबसे हाथ जोड़ प्रणाम करती है और उन सबको अपने आने का कारण बताती है।

नियति - मै यहां अपनों के बीच में अपनी खुशी बांटने आई हूं।आप सबको एक भव्य पार्टी का अरेंजमेंट करना है हम सब आज शाम को एक पार्टी करेंगे यहीं इसी एनजीओ में।और इसकी जिम्मेदारी आप सबकी।आप सबको जो भी हुनर आता है उसका उपयोग कीजिए।सजावट से लेकर खाने तक सब की जिम्मेदारी आप सभी की।इज पार्टी में कोई भी बाहरी सदस्य नहीं आ रहा है ठीक है।

जी साहिबा जी ,नियति सबके बीच में कुछ वक्त गुजारने लगती है तभी उसकी मेड रति उसके पास आती है और कहती है साहिबा जी कोई अमृता शिंदे आपसे मिलना चाहती है ये कार्ड दिया है उन्होंने।
नियति विजिटिंग कार्ड देखती है तो नाम पढ़ रति से कहती हैं इन्हें यहीं भेज दो।

राघव अक्षत नियति से पूछते है कौन आया है और किसे तुमने यहीं बुलाया है।

नियति - बस अभी आती ही होंगी।तब परिचय कराती हूं सबका।इन तीनों को छोड़ बाकी सभी को वहां से जाने के लिए कह देती है।

कुछ ही देर में एक तीस वर्ष की लेडी रेड कलर की प्रिंटेड साड़ी पहने हाथ में नोटबुक और पेन पकड़े चली आ रही होती है।जिसे देख सब यही सोचते है शायद कोई मीडिया से रिलेटेड पर्सन होगी।

अमृता पास आकर नियति और बाकी सभी से नमस्ते करती है।नियति उसे खाली पड़े सोफे पर बैठने के लिए कहती है।

अमृता सोफे पर बैठ जाती है।नियति सबसे उसका परिचय कराती है।

नियति - राघव,अक्षत भाई, कोमल ये है अमृता,अमृता शिंदे,हिंदी साहित्य की सुप्रसिद्ध लेखिका।इनकी लिखी पुस्तके पूरे भारत भर में पढ़ी जाती है।

ओह गॉड,तो आप है अमृता जी। मै तो आपके लेखन की कायल हूं। मैंने तो आपकी लगभग सारी रचनाएं पढ़ी हुई हैं।कोमल उत्साहित होते हुए कहती है।अब लगभग इसीलिए वो क्या है न शायद कुछ हमारे जानने में न हो इसीलिए।अक्षत कोमल को देख कहता है आप चौंकिएगा नहीं इसकी बातो से दरअसल वो क्या है न जिसे हम हद से ज्यादा पसंद करते हो और वो अचानक से हमारे सामने आ जाए तो यही हावभाव होते है जैसा इस समय इनका है।

अमृता अक्षत की बात सुन कहती है कोई बात नहीं मै समझ सकती हूं।
नियति अमृता जी से उनके स्वास्थ्य के बारे में पूछती है जिसे सुन अमृता कहती है सब ठीक है मिस नियति अभी मै यहां एक कार्य से आई हूं।

नियति - जी बताइए क्या कार्य है आपको मुझसे??
अमृता - आपके कार्यों को गहराई से देख रही हूं मैं।आपके जीवन के संघर्षों को शब्दों का रूप देना चाहती हूं।इसी संबंध में आपसे बातचीत करने यहां आई हूं।

अमृता की बात सुनकर नियति स्तब्ध रह जाती है और उससे पूछती है कि उसे ऐसा क्यों लगा कि नियति के जीवन को पन्नों पर लोगो के समक्ष लाना चाहिए।ऐसा क्या विशेष घटा है मेरे जीवन में।

अमृता - मिस नियति आपने तीस वर्ष की उम्र में अपनी विशेष पहचान बना ली है। समाज सेवा के क्षेत्र में आपका नाम है।तो ऐसा मुझे लगता है मिस नियति से साहिबा जी बनने के सफर में क्या कठिनाइयां नहीं आई होंगी,अवश्य रही होगी।आपके संघर्षों को मै आम लोगो तक पहुंचाना चाहती हूं जिससे उनमें भी विपरीत परिस्थितियों का सामना करने की हिम्मत बनी रहे।

राघव अमृता की बातों से सहमत होता है और कहता है नियति से साहिबा जी के सफर में कठिनाइयां बहुत आई,ऐसा कोई दर्द नहीं रहा जो इन्होंने न सहा हो।इनके हर दर्द को करीब से देखा है मैंने।महसूस किया है मैंने।अपनों से लेकर करीबी दोस्तों,रिश्तेदारों के

ताने,उन सब की बेरुखी महसूस किया है मैंने सब।
नियति मै भी चाहता हूं तुम्हारे इस संघर्ष को लोग जाने, तुम्हे समझे जिससे उन लोगो को करारा जवाब मिले जिन्हें बस अच्छे और सच्चे लोगो को परेशान करने में मज़ा आता है।

नियति - अमृता जी।आप मेरे जीवन के विषय में लिखना चाहती है अवश्य लिखिए।आपको जो भी जानकारी चाहिए मै बताऊंगी आपको।

नियति की सहमति मिलने पर अमृता उसका धन्यवाद करती है और कहती है

नियति जी सबसे पहले तो धन्यवाद आपका।आपने मुझे इस बात के लिए स्वीकृति दी। मै आपके जीवन के विषय में जानने के लिए उत्सुक हूं।कृपया आप मुझे अपने बारे में विस्तार से बताइए।अपने बचपन से लेकर अब तक जितने भी उतार चढ़ाव देखे आपने उन सभी के बारे में जानकारी चाहूंगी मैं।

अमृता जी इसमें धन्यवाद की कोई आवश्यकता नहीं है।मुझे खुशी होगी अगर मेरे कारण किसी एक व्यक्ति के जीवन में बदलाव आ सका तो। मै आपको अपने विषय में बताती हूं। आप सुनिए...

मै नियति,उम्र यही कोई तीस वर्ष।तीस वर्ष पहले सन उन्नीस सौ नब्बे, महीना अगस्त, दिनांक दस को खुशी नगर ग्राम में श्रीविजित कपूर के घर हुआ था।ये गांव इसी आगरा जिले के अन्तर्गत ही आता है।यहां से कोई चालीस पचास किलोमीटर दक्षिण में।मेरे दो भाई और तीन बहनें है।सबसे बड़ी मै।मेरे दादाजी स्वर्गीय सरस कपूर का काफी नाम था गांव में।लोग बहुत इज्जत करते थे उनकी।काफी समृद्ध और खुशहाल परिवार था मेरा।कहते हैं न जहां कुछ अच्छाइयां होती है तो कुछ बुराइयां भी अवश्य होती है।यहीं मेरे परिवार में भी था। कहने को दादाजी सरकारी कर्मचारी,और उस पर तेज दिमाग लेकिन घर में एक कमी थी जिसका एहसास मुझे बहुत देर से हुआ।और वो कमी थी भेदभाव की।घर में व्यवहार जो था वो भेदभापूर्ण था।मतलब लड़कियों के लिए अलग कायदे कानून,और लड़कों के लिए अलग कायदे।

खैर सबसे बड़ी थी मै, गांव में एक बात कही जाती है अगर पहली संतान लड़की हो न तो वो शुभ होता है।
घर में मेरे जन्म पर बस खुशी जाहिर की गई लोगो को दिखाने के लिए।काहे कि अगर दिखावा नहीं करते तो ये जो हमारे समाज के चार लोग है न जिन्हें हम जानते ही नहीं,कभी देखा ही नहीं वो लोग क्या कहते,सरकारी नौकर होकर खरचा नहीं किया गया क्युकी,लड़की जो हुई है। तो खुशियां मनाई गई बहुत सारी।घर आए रिश्तेदारों को फूल वाली थाली भेंट में दी गई।मोहल्ले में लड्डू बंटवाए गए।और जब तक घर में रिश्तेदार रहे मेरी मां की खूब आवभगत की गई।इतनी की उनको पैर जमीन तक में रखने की इजाजत नहीं थी।धीरे धीरे घर खाली होता गया और शुरू हुई मेरी अवहेलना। मां घर के कार्यों में व्यस्त रहती और मेरी एक जगह खाट डाल दी जाती उसके उपर मां की साड़ी की एक बिछौनिया और उसके ऊपर रहती विराजमान मै।अगर भूख लगी तो बस रोती ही जा रही हूं, मां इतना व्यस्त होती कि मेरी आवाज़ भी उन तक नहीं पहुंचती।या शायद मेरी दादी इतनी सख्त थी कि चाहकर भी मां मेरे पास नहीं पहुंच पाती होगी।क्यूंकि एक मां अपने बच्चे को रोता हुआ कैसे देख सकती है।
ये सारी बाते मुझे बाद में पता चली मेरी छोटी बुआ के जरिए।जो पूरे घर में समझदार थी।पढ़ी लिखी थी।इंसानी रिश्तों और भावनाओं को समझती थी।उस समय एक वही थी जो मेरी हर जरूरत का ध्यान रखती।समय बीतता गया घर में और सदस्यों कि बढ़ोत्तरी हुई।मेरी छोटी बहन सुमति आई।उसके साथ तो मुझसे भी बुरा बर्ताव हुआ।दूसरी बार भी लड़की हुई है ये जानकर मेरी दादी उसे सात दिन का हो छोड़ दादाजी के साथ नौकरी पर चली गई।वो बहुत दुबली थी।उसे देख कर तो लगता भी नहीं था कि वो जीवित रह पाएगी।किस्मत में उसके सांसे थी तो सर्वाइव कर गई वो।उसके समय तक तो छोटी बुआ की शादी हो गई थी।वो बिल्कुल ही अकेली पड़ गई थी।भूखी है तो रोए ही जारही है,ऐसे ही गंदगी में पड़ी रहती,मुझे इतनी समझ ही नहीं थी जो उसका ध्यान रख सकूं।तीन वर्ष की ही तो थी मै।उसके बाद जन्म हुआ मेरे भाई चिराग का।पूरे गांव में लड्डू बंटवाए गए।सारे नाते रिश्तेदारों को चांदी की कटोरी भेंट में दी गई।फिर मेरी छोटी बहन कृति और उसके बाद आया सबसे छोटा भाई किशन।

समय बीतता गया हम सब बड़े होते गए जैसे जैसे समझ आई तब जाना लड़की होना भी अभिशाप हो सकता है।लेकिन जिद के पक्के थे हम। अगर कुछ भी गलत होता घर, बोलते अवश्य थे।फिर चाहे उसके लिए मुझे बाद में मार खानी पड़े।चिराग और किशन सबकी आंखो का तारा थे।घर के कोई भी कार्य नहीं करते थे।यहां तक कि उन्हें पानी का गिलास भी उठाकर नहीं रखना होता था।और हम तीनो बहनो को कच्ची उम्र से घर के काम काज करने को कहा जाने लगा।देख कर बहुत बुरा लगता था केवल लड़के होने के कारण इतना भेदभाव।

स्कूल हम सभी जाते थे लेकिन अलग अलग।हम तीनो बहनों को हिंदी मीडियम स्कूल में दाखिला दिलाया गया और हमारे भाईयो को अच्छे स्कूलों में पढ़ने के लिए भेजा गया।यहां हम बहनों की किस्मत अच्छी थी कि पढ़ाई में हम हमेशा अपने भाईयो से आगे रहे।बहुत बुरा लगता था जब फर्स्ट क्लास आने पर भी हमें वो प्यार नहीं मिलता था जिसकी उस समय हम बच्चो को जरूरत थी।न ही कभी प्यार से हमारे सर पर हाथ रखा गया।बस हमारे द्वारा लाए गए मेडलो को घर के बक्सो में ये कह कर डाल दिया ये सब तुम्हारी शादी के समय लड़के वालो को दिखाने में काम आ जाएंगे।वहीं हमारे भाईयो के जीते गए पुरस्कारों को सज़ा कर ड्राइंग रूम में बनी अलमारी में रख दिया जाता जिससे अगर कोई मिलने मिलाने वाला आता तो उनकी तारीफ़ के कशीदे पढ़े जा सके।
धीरे धीरे समय गुजरता गया और मै तेरह वर्ष की हो गई।धीरे धीरे चेहरे की रौनक और शरीर का आकार भी बदलने लगा।जो आवश्यक बदलाव होते है लड़कियों के शरीर में वो भी हुए।अब हमारा घर से बाहर निकलना लगभग बंद ही कर दिया गया था।केवल स्कूल जाना और स्कूल से घर आना।इतनी ही आज़ादी थी हम बहनों को।

यहां से शुरू होता है मेरा यानी नियति का संघर्ष..

नियति बिटिया जरा यहां आ,ये कुछ कपड़े है छत पर डाल आना। मां ने मुझे आवाज़ लगते हुए कहा।
मै जो उस समय अपने कमरे में किताबो के साथ माथापच्ची करने में लगी हुई थी मां की आवाज़ सुन एक ही बार में उनके पास पहुंच गई।और कपड़ों को छत पर ले जाकर सुखाने लगी।मै तो कपड़े सुखाने में व्यस्त थी लेकिन वहां कोई और था जो व्यस्त था मुझे देखने में।मै अपना कार्य बड़ी ही लगन से कर रही थी इस बात से बेखबर कि पड़ोस के खन्ना अंकल का बड़ा बेटा घुरे ही जा रहा था मुझे।जब मैंने अपनी गरदन उठा कर घुमाई तलक नहीं तो वो मेरा ध्यान बंटाने के लिए फिल्मी गाना गाने लगा,जिसके बोल थे एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा जैसे..
वो बेसुरी आवाज़ सुन मेरा ध्यान डायवर्ट हो गया ये पता लगाने के लिए कि ये गा कौन रहा है। तब मेरी नजर सामने छत पड़ी उस लड़के पर जो ये गीत गा रहा था।जिसे देख मुझे गुस्सा आ गया और उसे चप्पल दिखा खाली बाल्टी उठा मै वहां से नीचे आ गई।क्यूंकि मुझे यही सिखाया गया था अगर कोई बुरी नजर से देखे या भद्दे कमेंट करे तो चप्पल उतार दिखा देना।जिससे उस घृणित मानसिकता की सोच को ये पैग़ाम जा सके कि यहां तुम्हारी दाल गलने वाली नहीं है।लेकिन मेरी इस हरकत का उस पर कोई असर नहीं पड़ा।उल्टा अब तो वो मुझे और परेशान करने लगा,कभी अपने घर के सामने डेरा जमा बैठ जाता और ऊंची आवाज़ में फिल्मी गाने गाता।कभी गलियों के,छतो के चक्कर पर चक्कर लगाता।ये सब देख मेरा गुस्सा सातवे आसमान पर चढ़ जाता।लेकिन सामने से कुछ कहने की इजाजत नहीं थी मुझे! तो बस गुस्से का घूंट पीकर रह जाती।मेरी यही उपेक्षा मुझे भारी पड़ेगी इस बात का मुझे तनिक भी अनुमान नहीं था।

नियति आगे बताते हुए कहती है।उस लड़के के इस तरह व्यवहार करने के कारण मोहल्ले में इस बात को नोटिस करना शुरू कर दिया।उस समय ये सारी बाते बहुत मायने रखती थीं।पड़ोसी को अगर छींक भी आ रही है तो,क्यों आईं,जरूर कुछ उल्टा सीधा खा पिया लिया होगा जिससे सर्द गरम बन गया और छींक आना शुरू हो गई।

गांव की ग्ली मोहल्ले की महिलाओं में गुपचुप शुरू हो गई।२००३में स्थिति इतनी सुगम नहीं थी जैसी कि आज है।आज हालातो में कुछ सुधार आया है लेकिन उस समय इतना विकास नहीं हुआ था।विकास होना प्रारंभ हो गया था गांवों का।कच्ची रास्ते,पक्की सड़कों में परिवर्तित होने लगे थे,शौचालय का उपयोग होना बस शुरू ही हुआ था।धन संपनन व्यक्तियों के घर शौचालय उनकी साख के रूप में बना दिखाई देने लगा। झोपड़ पट्टी की जगह मकान इटो के बनने लगे।पहले सिर्फ कुछ विशेष वर्ग के लोगो के मकान ही पूर्ण तरीके के पक्के दिखते थे।

जब किसी पवित्र लड़की के बारे में यूं इस तरह चर्चा होती है तब एक गांव में कितना मुश्किल हो जाता है एक लड़की के लिए सर्वाइव करना।इन्हीं सब से मुझे भी गुजरना पड़ा।और उस लड़के की करनी की सजा भुगती मैंने।अपनी स्कूलिंग छोड़कर।कोई गलती नहीं होने पर भी एक अपराधी कि तरह व्यवहार का सामना किया मैंने।पिताजी को इन सब बातो से कुछ लेना देना नहीं था बस उनका कहना था अब दोबारा से ऐसा कुछ सुनने को मिला तो ये छोरी रातो रात कहां गायब हो जाएगी किसी को कुछ खबर नहीं मिलेगी।और पिताजी के प्रभाव से हम लोगो से प्रश्न पूछने की हिम्मत भी किसी में नहीं होगी।

पिताजी की ये बात सुन कर मेरा मन अंदर ही अंदर दहल गया।पढ़ाई छूट गई पूरे दो वर्ष बर्बाद हुए मेरे।दो वर्ष का समय लगा मुझे वापस अपने घरवालों का विश्वास जीतने में।

मेरा दाखिला वापस से दूसरे स्कूल में करा दिया गया।पढ़ने में तीव्र बुद्धि थी तो कुछ क्लास आगे बढ़ा दी गई। इन सब से निकल ही न पाई थी कि तभी जिंदगी ने एक और मोड़ लिया।इतिहास मेरा प्रिय विषय था।और इतिहास में मै पूरे स्कूल में सबसे अच्छे मार्क्स लाती थी।मेरी इसी प्रतिभा को देख कर मेरी एक टीचर ने मुझे उनके बच्चो को इतिहास की कोचिंग पढ़ाने का ऑफर रखा।सोलह वरष की आयु में उस समय ये अवसर मिलना बहुत मायने रखता था।
मैंने डरते सहमते ये बात अपनी मां को बताई। मां जो उस समय डायनिंग पर भोजन लगाने में व्यस्त होती है।

मै - मां मुझे आपसे कुछ बात करनी है।
मां - हां तो बोलो क्या बात करनी है।

मै - मां,वो ..मेरी स्कूल टीचर ने मुझे उनके बच्चो को इतिहास पढ़ाने के लिए कहा है।

मेरी बात सुन मां कुछ पल के लिए खामोश हो जाती है तथा लगभग दो मिनट बाद कहती है..।इस बारे में मै अभी कुछ नहीं कह सकती तुम्हारे पिताजी अभी आते ही होंगे डायनिंग पर खाना खाने के लिए तब मै बात कर लूंगी उनसे।फिलहाल तुम जाओ भाईयो को बुला कर खाने के लिए यहां ले आओ।

पहली बार मां के साथ इतनी अच्छी तरह बातचीत होने पर मै बहुत खुश हुई।मै खुश होते हुए अंदर भाईयो के कमरे में गई और उनसे खाने की टेबल पर पहुंचने के लिए कहा।
भाई भी कम नौटंकी नहीं थे मेरे। बड़ा भाई कहता है आप मेरा खाना यहीं कमरे में दे जाना प्लीज़ जीजी।वो क्या है ना आज मेरे पैरो में बहुत दर्द हो रहा है।इतना कि मुझसे चला भी नहीं जा रहा है।आप मां को बोल कर खाना यहीं ले आना। कह छोटे भाई की तरफ देख कर हंसते हुए अपनी दाईं आंख दबाते हुए कहता है।सब कुछ देख कर समझ लेने के बाद भी मैंने उनसे सिर्फ इतना ही कहा --

मै - ठीक है भाई।।मै भिजवा दूंगी।कहते हुए। छोटे भाई को साथ ले वहां से बाहर डायनिंग पर सबके पास पहुंच गई।और मां की मदद करने लगी।

मां - (नियति के पिता से) सुनो??मुझे आपसे कुछ बात करनी है।
(नियति के पिता) - बात करनी है तो कहो!!यूं पूछने कि क्या बात है इसमें

मां - नियति की वो स्कूल टीचर है न श्रीमती खन्ना,जो विज्ञान पढ़ाती है उसे।

नियति के पिता - हां तो,क्या कुछ कहा,उन्होंने?नियति ने फिर से कुछ उल्टा सीधा किया क्या।
अपने पिताजी के मुख से ये शब्द सुन मेरे हृदय में धक से होती है।और मै घबराते हुए मां के चेहरे की तरफ देखने लगी। मां ने मेरी ओर देखा तथा मुझे आंखो से आश्वासन दे कर वो कहती है नहीं कहा कुछ नहीं उन्होंने..नियति को टीचिंग करने के लिए कहा है।
नियति के पिता हैरानी से उसकी मां की तरफ देखते है।जिसे देख कर वो कहती है मेरा मतलब है नियति को उसकी टीचर के बच्चो को इतिहास विषय पढ़ाने के लिए कहा है।

नियति के पिता - क्या टीचिंग।वो भी उसके घर पर।कोई जरूरत नहीं है।क्या करेगी बच्चो को पढ़ा कर।वैसे भी ये टीचिंग वगैरह तो उनके लिए सही है जिन्हे आर्थिक परेशानी है।तो फिर रहने ही दो।घर पर ही रह पढ़ाई करे।

पिता की ये बात सुन कर मेरा खिला हुआ चेहरा उदास हो गया।और मै हमेशा की तरह अपने कमरे में जाकर चुपचाप आंसू बहाने लगी।कमरे में जाकर जब मै अपनी पसंदीदा जगह खिड़की के पास बैठी थी तभी नीचे चल रही टीवी की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी।जिसमें टीवी सरियल में एक संवाद आ रहा था सब अच्छा होगा??,सब अच्छा होगा बिन करम किए सब ठीक होगा??अरे जब तुम्हारे साथ अन्याय हो रहा है, जानती हो जब तुम गलत नहीं हो फिर क्यूं नहीं कुछ कहती हो।यूं चुपचाप सब सहना गलत है, अपनी बात रखना शुरू करो!!

इस बात को सुनकर मुझे लगा शायद ये भगवान का इशारा हो मुझे सही गलत समझाने का।सोचते हुए अपने आंसू पोंछ मै नीचे गई और डरते डरते अपने पिताजी से कहने लगी।

मै - पापा,मुझे कुछ कहना है आपसे।
मेरे इतना कहते ही सबसे पहले तो पिताजी ने मेरी तरफ देखा जिसे देख मेरी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई।और जो हिम्मत की थी अपनी बात कहने की जैसे तैसे,वो भी फुस्स हो गई।

फिर उन्होंने कहा कहो क्या कहना है।

वो बाते मेरे दिमाग में फिर से घूमने लगी और हिम्मत कर कहा -- पापा मै ये टीचिंग करना चाहती हूं। पैसे कमाने के लिए नहीं बस अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए।क्यूंकि एक ज्ञान ही है जो जीवन में हर जगह काम आता है।और पढ़ाना तो बहुत अच्छा कार्य है न। डरते डरते मै अपनी बात कहती हूं।जिसे सुन कर पापा कुछ देर सोचते हैं।फिर कहते है ठीक है लेकिन तुम अकेले वहां पढ़ाने नहीं जाओगी।कृति भी तुम्हारे साथ जाया करेगी।साथ ही साथ उसकी भी पढ़ाई हो जाया करेगी।
पापा की बात सुन उस समय मुझ ऐसा लगा जैसे मेरे सपनो को उड़ान भरने के लिए कोई जरिया मिल गया हो।एक अंधेरे कमरे से निकल रोशनी की ओर कदम बढ़ने का समय आ गया हो।
मैंने उस समय अपनी खुशी को जैसे तैसे कंट्रोल किया और जी पापाजी कह वहां से अपने कमरे में चली गई।
ये मेरे लाईफ का पहला अच्छा इंसिडेंट था।उस दिन मैंने समझा कि अगर हम अपने मन की बात नहीं कहेंगे तो कुछ अच्छा होने की उम्मीद करना व्यर्थ है।
तबसे मैंने धीरे धीरे अपनी बात रखना शुरू करने का निर्णय लिया।
मैंने कोचिंग में पढ़ाना शुरू कर दिया।सोलह वर्ष की उम्र में आत्मनिर्भर बन गई थी मै।ये निर्णय मेरी लाईफ में फिर से एक अलग मोड़ लाया और एक नया सबक दे गया।

अगले दिन मै स्कूल गई और मैडम जी को अपना निर्णय बताया और उनसे स्कूल के बाद उनके बच्चो को पढ़ाने के लिए कहा।मैडम बहुत खुश हुई।उन्होंने कोचिंग के दो बच्चो के हजार रूपए देने का कहा।मैंने उनसे कहा कि मैडम जी,मै बच्चो को पैसों के लिए नहीं पढ़ा रही हूं बल्कि मुझे इससे दिली खुशी मिलेगी और वो कहावत है न ज्ञान बांटने से बढ़ता है तो बस यूं समझिए उसी कहावत को चरितार्थ कर रही हूं।

मेरी बात सुन कर मैडम जी प्यार से मेरे सर पर हाथ रखती हुई कहती हैं बहुत बढ़िया।।ऐसे ही अपने विचारो की महक सब जगह फ़ैलती रहो।एक दिन ऐसा आएगा जब तुम अपने इन्ही विचारों के कारण इस समाज मे प्रतिष्ठा पाओगी।

मैंने अपनी मैडम जी को थैंक यू कहा उसके बाद आपकी क्लास में चली गयी।और क्लास को अटेंड करने लगी।एक क्लास खत्म हो और दूसरी के अध्यापक जो है वो आये नही थे तो मै जाकर दूसरे छात्रों की क्लास में चली गयी।

टीचर जो है संगीत विषय को पढ़ा रहे थे।संगीत,नृत्य,गायन इन सब से मुझे बहुत लगाव था।घर मे जब कोई नही होता तो चुपके से अपने भाई के कमरे में जाकर उसका हेडफोन उठाती और वहीं अपना फ़ेवरिट गाना बजा नृत्य का अभ्यास कर लेती।क्योंकि भाइयो को टीवी में सिर्फ गाने देखना और सुनना पसंद होता था तो उनकी इसी पसंद के कारण घर मे कार्य करवाते हुए मैं कुछ स्टेप्स देख लेती औऱ अपने कमरे में जा दो तीन बार प्रैक्टिस कर लेती जिससे मुझमे ये नृत्य का हुनर आ गया।लेकिन मेरे घर के सदस्यों को इस बारे में कोई जानकारी नही थी।क्योंकि मेरे घर मे ये नाच गाना,संगीत लड़कियो के लिए सही नही समझा जाता था।मैं जब भी फ्री होती थी तो स्कूल की क्लास में संगीत की मैडम जिस भी स्टेंडर्ड के छात्रों की क्लास में होती मैं वही पहुंच जाती और उनकी परमिशन लेकर संगीत की क्लास अटेंड करती।

खैर बात कर रहे थे स्कूल की तो टीचर ने राग भैरवी पढ़ाया और सबसे उस राग के विषय मे पूछने लगे।कुछ छात्राये सही उत्तर लगभग दे रही थी।लेकिन मैडम जी को उनके उत्तर से संतुष्टि नही मिल रही थी जब मेरी बारी आई तो मैंने मैडम जी को राग भैरवी का पूरा जीवन परिचय दे दिया।जिसमें राग की उतपत्ति,पकड़,पहचान,गाने बजाने का समय आदि शामिल था।

ये जान कर कि ऐसी लड़की ने बिल्कुल सही जवाब दिया है जिसके विषयो में संगीत विषय शामिल ही नही उन्होंने बाकी सभी से मुखातिब होकर कहा -

सीखो कुछ आप सभी..ये लड़की को सारा कुछ मालूम है इस राग के विषय मे लेकिन तुम लोगो को बस आधी अधूरी जानकारी।

सबसे कहने के बाद मैडम जी मेरी तरफ देखते हुए कहती है तुम्हारे अंदर प्रतिभा बहुत है बेटा, आज से तुम मेरी क्लास में जब चाहे तब आ सकती हो संगीत की विद्या के लिए।मैं तुम्हे एक घंटा अलग से पढ़ाया करूँगी वो भी बिन किसी फीस के।क्योंकि आगे रक योग्य शिष्य मिल जाये तो अपना सर्वस्व उसे सिखाने में लगा देना चाहिए ऐसा मेरे गुरुजी ने मुझे कहा था।

मैंने दोनों हाथ जोडकर मैडम जी को धन्यवाद कहा।और क्लास खत्म कर अपनी कक्षा में आ गयी।स्कूल की छुट्टी हो गयी और मैं और कृति मैडम जी के साथ उनके घर गयी जहां उनके बच्चों को मुझे पढ़ाना था।वहां जाकर मैडम जी ने अपने बच्चों से मेरा परिचय करवाया।मैडम जी के तीन बच्चे थे।जिनमें एक पुत्र और दो पुत्रिया थी।सबसे छोटा पुत्र ही था।जिसे देख मैने अनुमान लगाया शायद यहां भी ये लड़का और लड़की वाली बात लागू है ।क्यूंकी उनकी बच्चियों और लड़के के बीच जो उम्र का फासला था वो करीब दस वर्ष का रहा होगा।उनकी बड़ी बेटी मंजु जिसकी उम्र तेरह वर्ष थी।और छोटी बेटी मंजरी की उम्र ग्यारह वर्ष।खैर ये जान परिचय तो हो गया अब से मुझे उनको एक घंटे पढ़ाना था तो मैंने मैडम जी उनके अध्ययन कक्ष के विषय मे पूछा,और तीनो को साथ ले जाकर मैंने पढ़ाना शुरू कर दिया।
क्योंकि पहला दिन था तो मैंने इतिहास विषय मे उन्हें सिर्फ कुछ मुख्य बिंदु ही समझाये।अब इतिहास जैसा विशाल विषय इसे भला किताबो में कैसे समाया जा सकता है यही सोच कर मैने कुछ छोटे छोटे टॉपिक उनके ही तरीके से उन्हें पढ़ाये।जिन्हें पढ़ने में उन्हें बहुत मज़ा आया।

मैडम जी को भी मेरा तरीका पसंद आया।अब तो डेली मैं आती और कुछ रोचक तरीके से उन्हें इतिहास से अवगत कराती।जैसे कि जब मैंने उन्हें पुरा पाषाण काल के विषय मे कुछ बताया तो बिल्कुल उनकी ही उम्र में ढल जाती,और उनके ही स्टाइल में उनसे सवाल जवाब करती जिससे वो उस बारे में सोचते उन हालातो के विषय मे सोचते फिर उत्तर देते इसका परिणाम ये हुआ अब उन्हें रट्टा नही करना पड़ता था,क्योंकि सारी चीज़े वो खुद से सोचते थे तो समझते भी थे जब हम कोई चीज़ समझ जाते है तो वो पक्की हो जाती हैं।फिर हम उसे भूलते नही।

इसी तरह बीस दिन निकल गए और मैडम जी के घर उनकी बड़ी बहन का बेटा रहने आया जिसका नाम था कर्ण....।।

क्रमश..

अपूर्वा सिंह