भाग-2
दोस्तो "ज़िन्दगी के सफ़र में "के पहले भाग में हमने पढा की रॉय साहब एक महाविद्यालय में प्राचार्य है और फिलहाल अपने परिवार को लेकर काफी चिंता में है ।
उनकी चिंता का कारण अभी तक पता नहीं चल पाया कि आखिर ऐसी क्या बात हो गई जो रॉय साहब इतने परेशान है।
इसका जवाब जानने के लिए मैं उनके दफ्तर में गया। वैसे तो मैं केवल इस महाविद्यालय में बाबू के एक छोटे से पद पर ही था पर फिर भी रॉय साहब और मै एक ही उम्र के होने के कारण दोनों एक दूसरे को काफी अच्छे से जानते और समझते थे ।
हालांकि उनका दोस्तो का ग्रुप बहुत अच्छा था सब एक से बढ़कर एक,चुने हुए दोस्त थे रॉय साहब के,
लेकिन सब अपनी अपनी लाइफ में व्यस्त है ,कोई कहीं काम कर रहा है और कोई कहीं ।
खैर उनका ज़िक्र फ़िर कभी करेंगे फिलहाल तो ये जानते है कि रॉय साहब इतने परेशान क्यों है....
मैं रॉय साहब के प्राचार्य कक्ष में गया वहां जाकर देखा कि रॉय साहब के रेडियो में गाना आ रहा था जिसको रॉय साहब अपनी आंखे बन्द करके एकदम ध्यान से सुन रहे थे ।गाने के बोल थे भी कुछ ऐसे ही मानो रॉय साहब की ज़िन्दगी की परेशानियों के एकदम सटीक बैठ रहा हो
आप भी जानना चाहते होंगे कि ऐसा कौनसा गाना था
तो चलिए आप भी सुन लीजिए किशोर कुमार की आवाज़ में गाना.......
ज़िन्दगी का सफ़र है ये कैसा सफ़र
कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं
है ये कैसी डगर चलते है सब मगर
कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं
ज़िन्दगी को बहुत प्यार हमने किया
मौत से भी मुहब्बत निभाते रहे
रोते रोते ज़माने में आए मगर
हंसते हंसते ज़माने से जाएंगे हम
जाएंगे पर किधर ये किसे है खबर
कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं
ज़िन्दगी का सफ़र............hmmm la la
मैं रॉय साहब के पास गया और उनके कंधे पर हाथ रखकर कहा सर आप ठीक है ना !
जैसे ही मैंने उनके कंधे पर हाथ रखा रॉय साहब उठ खड़े हुए उनके चहरे पर एक अलग सी उदासी थी जिसे वो छुपाने की कोशिश करते हुए बोले अरे श्याम जी आप यहां ! आइए बठिए ..
मैं बस रॉय साहब को एक टक देखे जा रहा था कि जिस चहरे पर इतना नूर और आंखो में हमेशा एक चमक देखने को मिलती थी उनकी आंखो में आज नमी क्यों आखिर ऐसा क्या हुआ होगा ?
मेरे मन में हजारों सवालों का सैलाब आ रहा था जिसका जवाब सिर्फ़ रॉय साहब ही दे सकते थे ,
लेकिन जब मैंने उन्हें ऐसे देखा तो मैं उस माहौल में उनसे ओर कुछ पूछ नहीं पाया और कोशिश कर रहा था कि थोड़ी सी चिंता जिसकी मुझे ख़बर भी नहीं है उसे दूर कर पाऊं ।
कभी कभी जब खामोशियों से तकलीफ का पता लग जाए तो फिर उसे पूछकर और दुखी नहीं करना चाहिए
दोस्तो हमारे सामने जब ऐसी परिस्थतियां आती है तब हमें ये सोचना चाहिए कि कैसे हम सामने वाले के दुख को दूर कर सकते है ,
बजाय ये जाने की उन्हे दुख किस बात का है और कहते है ना कि ज़िन्दगी में किसी न किसी का साथ काफी है कंधे पर किसी का हाथ काफी है जब पता हो हमे की वो नाखुश है तो कारण कुछ भी हो उनके पास आप हो ये आपका अहसास ही काफी है .....
दोस्तो ये था ज़िन्दगी के सफ़र का दूसरा भाग आप सबको कैसा लगा जरूर बताइएगा ।आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा🙏🙏