भाग -3
दोस्तो ज़िन्दगी के सफ़र में हमने अभी तक देखा कि रॉय साहब किसी बात से बहुत चिंतित है और श्याम जी, जो उनके महाविद्यालय में एक बाबू हैं और रॉय साहब के खास दोस्त भी तो वो उनसे उनकी चिंता का कारण पूछने जाते है
लेकिन रॉय साहब की हालत देखकर वो उनसे कुछ सवाल नहीं करते ...
तो चलिए अब देखते है कि श्याम जी कैसे रॉय साहब की चिंता का कारण पता करते है
सारी परस्थिति को देखते हुए रॉय साहब को थोड़ा सहज महसूस करवाने के लिए मैंने बोला कि
रॉय साहब ,बहुत दिन हो गए टपरी पर जाकर चाय पिये हुए चलिए आज पीने चलते है बहुत इच्छा है आज कन्हिया के यहां जाकर उसके हाथ की चाय पीने की ,
लेकिन रॉय साहब का बिल्कुल भी मन नहीं था लेकिन वो मुझे मना नहीं करना चाहते थे इसलिए वो मेरे साथ आने के लिए सहमत हो गए।
रास्ते में मै इधर उधर की बाते किये जा रहा था ताकि रॉय साहब का थोड़ा सा ध्यान भटका पाऊं और उनकी चिंता का कारण जान पाऊं, लेकिन रॉय साहब अभी भी चूपी साधे हुए थे ।
खैर अब हम कन्हैया की चाय वाली टपरी पर पहुंच चुके थे ।
मुझे और रॉय साहब को देखकर कन्हैया झट से अपने चाय बनाने का काम छोड़कर बाहर आया और जोर से आवाज लगाई अरे छोटू .....
अरे गुरु साहब आए है जरा कॉर्नर वाली टेबल अच्छे से साफ कर ।
छोटू जल्दी से दौड़कर आया और रॉय साहब और मुझे देखकर बोला अरे साहब आप लोग आज यहां !
दरअसल छोटू ही कॉलेज में पूरे स्टाफ को चाय पिलाता है हालांकि कैंटीन में चाय बनती है पर सबको कन्हैया के हाथ की चाय ही ज्यादा पसंद आती है तो ज्यादातर स्टाफ और छात्रों मेसे किसी ना किसी का जमावड़ा यहां लगा ही रहता है ।
छोटू जल्दी से डेस्क साफ करने लगा तभी कन्हैया ने छोटू को हटाते हुए कहा अरे मैं करता हूं जल्दी से, गुरु साहब इतनी देर खड़े थोड़े रहगें ।
कन्हैया ने अपने कंधे पर लगे तौलिए से टेबल और कुर्सी को साफ किया और बोला आइए साहब अब एकदम चका चक है पूरी टेबल , अब आप यहां आराम से बैठिए मैं अभी आपके लिए एकदम कड़क चाय बनाकर लाता हूं।
रॉय साहब और श्याम जी जब भी आते थे उनकी ये कोर्नर वाली जगह फिक्स थी जब भी आते यहां ही बैठकर चाय की चुस्कियां लेते हुए पूरे दिन भर की सारी अच्छी बुरी बाते किस्से सब यहीं किया करते थे और इसीलिए मैं आज रॉय साहब को यहां लाया की शायद आज फ़िर एक बार उनकी दुःखी होने के भाव को चाय की चुस्कियों के साथ कम किया जाए ।
रॉय साहब अब भी उतने ही बैचेन थे जितने मुझे ऑफिस में मिले थे मैंने फिर उनसे वही सवाल दोहराया रॉय साहब आप ठीक है ना !
रॉय साहब थोड़ी देर चुप रहे और फिर चुपी तोड़ते हुए बोले श्याम जी अपनी एक तो बुरी आदत है अपन अपने बच्चो के प्यार में इतने अंधे हो जाते है कि हम उनके आगे पीछे का अच्छा बुरा कुछ नहीं देख पाते ।
हम कमाते है तो सिर्फ बच्चो के लिए, बचत करते है तो सिर्फ बच्चो के भविष्य के लिए और उनकी छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी परेशानी होने पर जीवन भर की कमाई एक ही पल में बिना कुछ सोचे बिना कुछ समझे उन्हे सौंप देते है ।
लेकिन वहीं जब हमारी कुछ परेशानी आती है तो वो क्यों नहीं समझते? क्यों उसे जानकर भी अनजान बने रहते है? या यूं कहूं बनने का ढोंग करते है ।
और रॉय साहब आगे भी कुछ कहना चाहते थे लेकिन उनका गला भर आया था और इसे मैं बखूबी समझ पा रहा था मैंने जल्दी से उन्हें पानी का ग्लास भर के दिया और उनको थोड़ा धिलासा देते हुए हुए बोला रॉय साहब क्या घर में बच्चो के साथ तो ऐसी कोई बात तो नहीं हुई है आपकी जिससे आप इतने चिंतित दिख रहे है ?
इस सवाल को मैंने पूछ तो लिया लेकिन मैं मन ही मन ये दुआ कर रहा था कि ये बात सच ना हो क्यूंकि इंसान तब नहीं टूटता जब उससे सब कुछ छीन जाए बल्कि तब ज्यादा दुखी होता है जब उससे उसके बच्चे उनसे कुछ ऐसा व्यवहार कर जाए जिसकी उन्नहोने कल्पना भी ना की हो ।
दोस्तो कहते है पहला प्यार भुलाया नहीं जाता, फिर पता नहीं लोग अपने माँ-बाप का प्यार उनका त्याग उनकी अपने बच्चो पर दिन रात मेंहनत की कमाई को बच्चो कि ख़ुशी के लिए न्योछावर कर देना क्यों भूल जाते हैं।
दोस्तो ये था ज़िन्दगी के सफ़र का तीसरा भाग म् सभी को कैसा लगा जरूर बताइएगा ,आप अपनी प्रतिक्रिया मुझ तक जरूर पहुंचाईयेगा हमे आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा 🙏🙏