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The Last Murder - 4

The Last Murder

… कुछ लोग किताबें पढ़कर मर्डर करते हैं ।

अभिलेख द्विवेदी

Chapter 4:

"मैम, मैं आपको अपनी किताब की कॉपी देने आयी थी । ईबुक आयी थी पहले, आपने तो पढ़ी नहीं होगी । ये पेपरबैक में भी आ गयी है तो वही देना चाहती थी । आपसे काफी इंस्पायर्ड हूँ तो सोचा आपसे फीडबैक मिलेगा तो मेरे लिए एक बहुत बड़ा अवार्ड होगा ।" संविदा ने अपने पास पड़े हैंडबैग से किताब निकाला और सुमोना की तरफ सकुचाते हुए बढ़ा दिया ।

सुमोना ने एक कश लिया और मुस्कुरा दिया । मुस्कुराहट में भी वो तरस खा रही थी । देखकर भी उसने उसे टेबल पर से नहीं उठाया ।

"मुझसे इंस्पायर्ड हो! मुझसे इंस्पायर्ड होकर क्या किया अब तक? कॉपीराइटिंग? या ये नॉवेल लिखा है?"

संविदा को ऐसे किसी सवाल की उम्मीद नहीं थी । किसी को भी नही होगी कि आप जिससे इंस्पायर्ड हो वो आपसे ये पूछे कि इंस्पायर्ड होकर क्या किया । यहाँ कोई भी जवाब किसी एक बात को झूठा साबित कर सकता था ।

"नहीं, अभी तक तो ऐसा कुछ भी नहीं किया है आपसे इंस्पायर्ड होकर, लेकिन आगे कोशिश रहेगी कि आप ही की तरह एक पहचान और नाम कमा सकूं!"

"ये ऐसा नहीं है जैसे कि कोई सामने बैठकर अपने सीनियर से कह रहा हो कि तुम्हारी बराबरी करने वाला हूँ?" सुमोना की हर बात में अलग तेवर और अंदाज़ था और संविदा ने बिलकुल नहीं सोचा था कि उसका पाला ऐसे पड़ेगा ।

"नहीं मैम, मैं तो ये सपने में भी नहीं सोच सकती कि…" इससे पहले की संविदा की बात पूरी होती, सुमोना ने उसे बीच मे ही टोक दिया ।

"जब सपने में भी सोच नहीं सकती तो ये क्यों कहा कि मेरी तरह कुछ करना चाहती हो? जब सक्सेस पहली बार कदम को छूती है तो नसों में हलचल बहुत ग़ज़ब की होती है । लेकिन जिसको उस हलचल से खेलना आता है वो स्टारडम को हासिल कर पाता है । संभल कर चलना, ऑथर की वैल्यू उतनी है नहीं जितनी दिखती है ।"

"ध्यान रखूंगी आपकी बातों का ।" संविदा को बड़ा अजीब लग की पल में शोला और पल में मावा कैसे हो गयी ।

"मैंने तुम्हारी किताब आधी पढ़ी थी क्योंकि ऑनलाइन ज़्यादा देर नहीं पढ़ पाती । समय मिला तो इसे पढूंगी । बाकी अब तक जितना पढ़ा है उसके हिसाब से किताब बहुत हल्की है लेकिन आजकल के रीडर्स को हल्की ही चीज़ चाहिए तो तुमने सही लाइन पकड़ा है ।" सुमोना ने इस बात को भी बिना किसी स्माइल के साथ कहा था लेकिन इतनी सी बात से संविदा के चेहरे पर स्माइल ज़रूर आ गयी । हाँ, दिल बहुत जोर से धड़क रहा था उसका ।

"ठीक है मैम! वैसे मेरी अगली किताब भी आने वाली है तो मेरी रिक्वेस्ट है कि लॉन्चिंग में आप ज़रूर आइएगा ।"

"पहले आने तो दो! क्या पता मेरा मूड नहीं करे या शायद शहर में ना रहूँ? अभी से कुछ भी नहीं कहा जा सकता ।"

"ओके । ठीक है । आपको मैं फिर कभी मिल सकती हूँ?"

"आज जब बिना बताए और झूठ बोलकर मिल सकती हो तो अगली बार के लिए परमिशन क्यों चाहिए?"

"सॉरी… आगे से ऐसा नहीं करूंगी ।" संविदा को अपनी ग़लती का एहसास तो था ही ।

"कोई बात नहीं ।" और कहते हुए सुमोना वहाँ से उठ गयी । नौकरानी भी आकर सामने पड़ी चीजें उठाने लगी और संविदा को समझ आ गया कि जिस काम से वो आयी थी वो भी हो चुका और मिलने का टाइम भी खत्म हो गया ।

अब ये सुमोना की समय की पाबंदी थी या कुछ और वजह, ये तो फिलहाल किसी को नहीं पता था । संविदा वहाँ से निकलकर ऑफिस चली गयी । वहाँ पहुँचकर वो सीधा इरा से मिलना चाहती थी ताकि उसे बता सके कि फाइनली काम हो गया ।

"सही में? ये तो तूने कमाल कर दिया मतलब!" इरा ने खुश होते हुए कहा लेकिन खुशी में एक बनावटीपन था ।

"और क्या! पहले तो डर लग रहा था लेकिन फिर सोचा अगर स्टेप नहीं लिया तो कुछ नहीं होगा । जब इतनी हिम्मत कर के किताब लिख सकती हूँ तो प्रमोशन के लिए घर में क्यों नहीं घुस सकती!"

"हम्म! बात तो सही है । वैसे तुझे क्या लगता है, वो पढ़ेगी या कुछ शेयर करेगी?"

"उम्मीद तो नहीं है लेकिन ये बात है कि उन्हें खबर थी मेरी किताब के बारे में । दूसरी चीज़, अभी उन्होंने आधा पढ़ा है और शायद बे-मन से, इसलिए शायद पसंद नहीं आया है ।"

"ऐसे कैसे कोई आधा पढ़कर कह सकता है कि पसंद नहीं आया? अच्छा, वैसे तूने ऑफिस में एक भी कॉपी नहीं दी! नहीं देने के इरादा है?" इरा ने थोड़ा छेड़ते हुए पूछा ।

"अरे ऐसा नहीं है । दरअसल एक कॉपी मेरे वर्कप्लेस के साइड वाले सबसे नीचे के दराज़ में है । उतना कोई झुकना नहीं चाहता इसलिए किसी के हाथ लगी नहीं । तुझे पढ़ना हो तो, ले लेना और पढ़ लेना । लेकिन वहीं रख दिया करना ।"

"अच्छा! मतलब सबको फ्री कॉपी दे रही हो लेकिन अपने कलीग को ही नहीं दोगी?"

"अरे ऐसा नहीं है, वो फ्री ही तो है तो तू आराम से पढ़ । वैसे भी काशिफ, प्रशस्ति या गौरव और बाकी लोगों को किताब में कोई इंटरेस्ट तो है नहीं ।"

"प्रशस्ति है पढ़ाकू । मैंने वॉशरूम में कई बार गौर किया है कि उसके बैग में हर बार एक अलग किताब होती है ।"

"तो होने दे । उसे पढ़ने का मन होगा तो मुझसे कहेगी ही, तब बोल दूँगी कि अभी तू पढ़ रही है, फ्री होने पर तुझसे ले ले, सिंपल!"

"हम्म, ये भी सही है । वैसे पक्का कह रही है न, तू सुमोना से मिलकर आयी है न?"

"हाँ बाबा । सही में मिली हूँ । तुझे नहीं विश्वास तो जाकर पूछ लेना ।"

"मेरा घर उनके रास्ते से होते हुए ही है, पूछ भी लूँगी!"

"हाँ-हाँ, पूछ लेना और फिर मुझे बता देना कि मेरी बात झूठी थी या सच । अब चल कैंटीन में, कुछ चाय-कॉफ़ी गटका जाए ।

संविदा ने इरा की बाँहों में हाथ डाला और दोनों आगे बढ़ गए । इरा के दिमाग में कुछ उथल-पुथल चल रहा था क्योंकि उसके चेहरे की हँसी में वो बात नहीं दिख रही थी । जैसे कहीं कुछ छुपा हुआ था जो बयां नहीं हो रहा था ।

ऐसी कौन सी बात थी?

इधर समय बीत रहा था और संविदा की लाइफ पहले से ज़्यादा हेक्टिक हुई जा रही थी । अब दूसरे शहरों में भी जाना पड़ रहा था और दूसरे किताब "राइड टू किल" की लॉन्चिंग भी करीब आ गयी थी । अच्छा ये था कि उसकी और किताब की बातें अब ज़्यादा दिखने लगी थी । दूसरे किताब की उत्सुकता भी बनाई जा रही थी । कुल-मिलाकर प्रमोशन और मार्केटिंग अच्छा चल रहा था लेकिन उसकी खुद की लाइफ में खुद के लिए कोई समय नहीं था । क्योंकि आगे की कहानियाँ भी पूरी करनी थी ।

रॉबिन का साथ, संविदा को काफी हेल्प कर रहा था । चाहे वो मार्केटिंग से जुड़ी बातें हों या नेटवर्क बनाना हो । रॉबिन का एक्सपीरिएंस और इंटरेस्ट की वजह से ही संविदा को पता रहता था कि लिटरेरी वर्ल्ड में क्या चल रहा है और आगे की रणनीति क्या तय करनी थी । दोनों एक दूसरे को सारी बात बता भी देते थे तो प्लैनिंग में कोई परेशानी नहीं होती थी ।

"तुम सोशल मीडिया को इतने हल्के में क्यों लेती हो?" रॉबिन का सवाल था ।

"मुझे वहाँ टाइम देना, टाइम बर्बाद करना लगता है ।"

"ऐसा नहीं है, लेकिन अगर पहचान लंबे समय तक बनाये रखना है तो सोशल मीडिया पर एक्टिव रहो । तुम अपने पोस्ट पर कमेंट का जवाब नहीं देती, ना ही रेग्युलर रहती हो । ऐसे में लोग भूलने में देर नहीं करते ।"

"हाँ, लेकिन कहाँ-कहाँ और कितना समय दूँगी? ऑफिस के काम के साथ इतना सब मैनेज करने में हालत खराब हो जाती है ।''

"फिर ऐसे तो आगे और मुश्किल होगा । तुम चाहो तो डिजिटल मार्केटिंग एक्सपर्ट रख लो, जो तुम्हें विज़िबिलिटी दिलवाने में हेल्प करेगा ।"

"अरे, अभी इतने भी बड़े सेलेब नहीं बनी हूँ और ना ही इतने पैसे हैं । वैसे आप आज इन सब बातों के लिए क्यों कह रहे हैं?"

"क्योंकि तुम्हें शायद ध्यान नहीं कि तुम्हारी बातें कब, कौन और क्या कर रहा है । तुम्हें पता है मनीषा जैन ने तुम्हारी नॉवेल की समीक्षा लिखी है 'पंख' पत्रिका में ।"

"सीरियसली! ये तो फिर अच्छी बात है न? मैं तो खुद उनसे मिलना चाहती थी और उनका फीडबैक लेना चाहती थी!"

"उन्होंने तारीफ नहीं की है, आलोचना की है और वो भी बुरी वाली । तुम्हें भी अपने किताब को प्रोमोट करने के लिए पोस्ट्स डालनी चाहिए, दूसरों से डलवानी चाहिए ।"

"अच्छा । क्या उनकी आलोचना से कुछ असर पड़ेगा?"

"थोड़ा-बहुत तो ज़रूर पड़ेगा क्योंकि उस मैगज़ीन की रीच अच्छी है, लेकिन बिज़नेस प्रोमोशन के नज़रिए से हर आलोचना एक पब्लिसिटी का हिस्सा है तो ये साफ है कि किताब पर नज़र जाएगी । लेकिन इसको बैलेंस करने के लिए तारीफें भी ज़रूरी है । इसलिए तुम्हें इसके लिए थोड़ा मेहनत करना चाहिए ।"

"अब वो खुन्नस में लिखेंगी तो कोई हल नहीं निकलेगा । मैं क्या कर सकती हूँ, मैं देखती हूँ । मैं तो उन्हें अच्छा राइटर समझती थी, लेकिन ये तो अलग बात हुई है ।"

"बस ये समझो कि ये भी पब्लिसिटी का हिस्सा है इसलिए थोड़ा एक्टिव रहो अपने सोशल मीडिया हैंडल से । लोगों से जुड़े रहने ज़रूरी है ।"

"हम्म । वैसे 'राइड टू किल' कब लॉन्च करने के लिए सोच रहे हैं?"

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