तानाबाना - 16 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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तानाबाना - 16

16

तब सहारनपुर के लिए फिरोजपुर से एक ही गाङी जाती थी । फिरोजपुर से तीन बजे चलती, वाया फरीदकोट, बठिंडा, पटियाला , अंबाला होती हुई सुबह पाँच बजे सहारनपुर पहुँचती । वहाँ सामने एक और गाङी तैयार खङी रहती । सवारियाँ अपनी अपनी गठरी संभालती भागकर उस पर सवार हो जाती और गंगा मैया की जय, शिव शंभु की जय, बम बोले की जय से स्टेशन गूँज उठता । इस गाङी में आधे लोग अपने किसी स्वजन की अस्थियाँ लाल थैली या मटकी में लिए गंगा में विसर्जित कर उन्हें मोक्ष दिलाने जा रहे होते । और बाकी आधे किसी पर्व पर स्नान कर अपने पापों से मुक्ति पाने । गंगा है ही पापनाशिनी, मुक्तिदायिनी । उसकी लहरों के स्पर्शमात्र से रोग शोक, पाप सबका शमन हो जाता है । लोग स्टेशन पर खङे माँ गंगा का गुणगान कर रहे थे । अपने दिवंगत पितरों जीवात्मा की यादें साँझा कर रहे थे । जिनको किसी काम से रास्ते में ही उतरना था, वे मन ही मन इन लोगों से ईर्ष्या कर रहे थे पर प्रत्यक्ष में भाग्य सराह रहे थे – मर कर तो सबने जाना ही हुआ जी गंगा में । बङे नसीबोंवाले हो जो जीवित रहते गंगा स्नान का पुण्य लूटने जा रहे हो ।

कुछ अधीर लोग बार बार समय पूछ रहे थे, अभी कितनी देर लगेगी गाङी आने में । घूँघट में लिपटी औरतें सामान की गट्ठरियों के ऊपर गट्ठरी हुई बैठी थी । अचानक एक ओर से हर हर गंगे का जयकार उठा । मतलब गाङी आ गयी थी ।

चंद सैकेंड में दूर से धुँआ उङाती चीखती रेल आती दिखाई दी । लुङकी हुई गठरियाँ हरकत में आ गयी । सामान संभालती उठ खङी हुई । मरद गाङी के रुकने के इंतजार में चढने को उतावले हो रहे थे और औरतें खो जाने के डर से उनके एक कदम पीछे जा खङी हुई । गाङी रुकी । सवारियों का रेला डिब्बों की ओर बढा । तीसरे दर्जे का डिब्बा । चंद सैकेंडों में ही ठसाठस भर गया । जिसको जहाँ जगह मिली, अपनी चादर बिछा कर बैठ गया । सीटों पर, सामान वाली बर्थपर, नीचे फर्श पर,गलियारे में जहाँ तहाँ सब जगह लोगों से भर गयी । बाईजी को एक सीट मिली तो उन्होंने बहन को भी पास बैठा लिया । दोनों एक सीट पर सिकुङ कर बैठ गये । छोटा ऊपर रखा सामान सरका कर लेटने लायक जगह बना रहा था कि एक दुबला पतला लङका अपनी डरी सी आवाज में मिमियाया – भैयाजी मैं भी ऊपर आ जाऊँ । आजा आजा हमने कौन सा सारी जिंदगी यहीं रेल में तंबू गाङने हैं । रात काटनी है मिल जुल कर कट जाएगी । और वे दोनों ऊपर की सीट पर अधलेटे हो गए । लङका नया नया फौज में भरती हुआ था और पहली बार नौकरी पर जा रहा था । उसे कल मेरठ की सिक्ख लाईन्स में हाजिरी देनी थी । घर में विधवा माँ और दो छोटी बहनों को छोङ कर आया था । इसलिए बातबात पर भावुक हो जाता । दोनों आधी रात तक दुख सुख करते रहे फिर थक कर सो गये ।

गाङी में सभी सवारी गहरी नींद में सो रही थी । कोई लेट कर तो कोई बैठे बैठे पर धर्मशीला की आँखों से नींद कोसों दूर थी । वह सपना देखती – माँ आरती का थाल लिए खङी है और उसकी झपकी टूट जाती । वह सपने सें देखती, वह सहेलियों के साथ गीटे खेल रही है फिर थक कर सब झूला झूलने लगती पर जैसे ही वह झूले पर बैठ पेंग बढाती, पहली ही हिलोर में झूले की रस्सी टूट जाती और वह हङबङा कर सीधी होकर बैठ जाती । इसी जागोमीटी में रात बीत गयी । खिङकी के पार आसमान में सुबह की लाली बिखर गयी । सवारियाँ जाग गयी थी और सामान सँभालने लग पङी । पाँच बजने में अभी पाँच मिनट बाकी थे कि गाङी सहारनपुर स्टेशन आ लगी । तीनों सामान उठाये स्टेशन से बाहर आये । सामने इक्केवाले यात्रियों को आवाजें लगा रहे थे । सत्यजीत ने तांगेवाले को मीरकोट चलने का हुक्म दिया और तीनों जन इक्के में बैठ गये । घंटाघर, अदालत रोड, जोगियान पुल, दालमंडी पुल होते हुए वे मीरकोट पहुँचे । घर देख धर्मशीला चंचल हिरनी की तरह छलांगे लगाती घर में घुस गयी । दोनों भाई किराया चुकाकर अंदर दाखिल हुए तो मौसी ने पूछा – बहन को विदा करा कर नहीं लाए भाई । ये तब का रिवाज था, घर के बङे बेटे को महिलाएँ नाम से नहीं बुलाती थी शायद इसलिए कि घर का मुखिया देर सवेर उसी को बनना है । सत्यजीत ने हैरानी से इधर उधर देखा ।

“ सच मौसी आई तो हमारे साथ ही है । एक मिनट पहले ही घर में घुसी थी । कहाँ चली गयी “ । बङकी बहु पानी लेने चौंके में गयी तो देखा ननद रानी चौके में चूल्हे के पीछे पीढा बिछाए सिर नीचा किए बैठी थी । भाभी की आहट से चौंक कर उठने लगी तो आँचल से रोटी नीचे गिर गयी ।

“ ये क्या ननदरानी, जूठा चौका, बासी शरीर और बासी रोटी । मुझे कहती मिनटों में ताजी रोटी बना देती । लगता है सास ने रोटी नहीं दी हमारी लाडली को “ । भाभी ने मजाक किया । किया तो मजाक ही पर धर्मशीला तो फूट - फूट कर रोने लगी ।

“ अरे रोती क्यों है । सरपोस ( खजूर के पत्तों से बना रोटी रखने का कटोरदान ) में और रोटी रखी है पर नहा तो लेना था । चुप कर, बता तो सही हुआ क्या “ ?

आवाज सुन कर सारा परिवार चौके में चला आया । माँ और मौसी ने बेटी को गले से लगा लिया – “ ओजी कभी कहीं गयी नहीं न, पहली बार अपनों से दूर गयी थी वो भी पाँच दिनों के लिए इसलिए उदास हो गयी है बच्ची । “

वे दोनों ओर से सहारा दे उसे आँगन में बिछी चारपाई पर ले गयी । भाभी अभी भी हैरान परेशान इस स्थिति को समझने की कोशिश कर रही थी । फिर काम धंधे में व्यस्त हो गयी । नहा धो कर लस्सी के साथ मिस्सी बेसनी रोटी खाकर जब मरद काम धंधे पर निकल गये और औरतें चरखा और सिलाई कढाई लेकर बैठ गयी तो एकांत पाकर भाभी ने धर्मशीला को घेर लिया – अब बताओ बहनजी हुआ क्या है ?