बैंगनी दुपट्टा Apoorva Singh द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

बैंगनी दुपट्टा

अमर एक स्मार्ट और गुड लुकिंग लड़का है जो एक प्राइवेट बैंक मे मैनेजर के पद पर न्यू दिल्ली में कार्यरत हैं।दो दिन बाद अमर का जन्मदिवस है। है।हर साल की तरह इस बार भी अमर ये जन्मदिन अपने घर लखनऊ में ही अपने माता पिता के साथ सेलिब्रेट करेगा।इसलिए अमर ने चार दिन का अवकाश लिया। शाम को अमर की मां का कॉल आया।अमर ने बताया कि वो कल घर आ रहा है उसने चार दिनों का अवकाश लिया है। ये बहुत अच्छा किया किया अमर अब कुछ टाइम तो हमारे साथ रहोगे मां ने कहा। कल कितने बजे की गाड़ी से आ रहे हो बेटा; मां दोपहर दो बजे की ट्रेन से।ठीक है बेटा अपना ध्यान रखिएगा और खाना पीना सब टाइम से और सर्दी भी बढ़ गई है तो कुछ गर्म कपड़े भी पहन लेना ठीक है। जी मां मै पूरा ध्यान रखूंगा।अमर ने कहा और कॉल रख दिया
अगले दिन अमर सही समय से रेलवे स्टेशन पहुंच गया और ट्रेन का इंतजार करने लगा ।ट्रेन लगभग दस मिनट की देरी से थी।ट्रेन आने के बाद उसने अपना रिज़र्वेशन सीट देखी और अपना सामान सेट कर के आराम से बैठ गया। समय व्यतीत करने के लिए उसने अपने पसंदीदा लेखक की किताब पढ़ने लगा। ट्रेन अपने गंतव्य की तरफ चलने लगी।कुछ स्टेशनों को क्रॉस करने के बाद ट्रेन इटावा स्टेशन पर रुकी।वहां कुछ यात्री ट्रेन से उतरे और कुछ ट्रेन में सवार हुए।इन्हीं में थी दो महिलाएं जिनमें एक मां थी और एक बेटी।लड़की का नाम था पूर्वा।पूर्वा ने रिज़र्वेशन सीट फाइंड की ओर अपनी मां को बैठने के लिए बोला और स्वयं भी अपनी सीट पर पाल्थी मारकर बैठ गई।पूर्वा ने क्रीम कलर का ड्रेस पहन रखा था और उस पर बैंगनी रंग का दुपट्टा उसके खूबसूरती को और बढ़ा रहा था।अमर ने देखा तो बस देखता रह गया।पहली बार किसी लड़की को देख कर उसके मुख से निकला " beautiful"। पूर्वा ने देखा तो अमर ने हड़बड़ा कर अपना मुंह खिड़की की तरफ कर लिया।पूर्वा अपनी मां से बाते करने में व्यस्त थी। अमर ने दोबारा से देखा और सोचा की कितनी बिंदास है इतने लोगो की भीड़ में भी किस तरह आराम से पलथी मारकर बैठी हुई है सीट पर।अमर बीच बीच में चुपके से पूर्वा को देख लेता और नजर मिलने पर हड़बड़ा के मुंह को विंडो की तरफ कर लेता।पूर्वा ये देख कर नीचे गर्दन कर धीरे से मुस्कुरा दी। मां आपको नीद आ रही है आप अपनी सीट पर आराम कर लीजिए पूर्वा ने कहा। मां के सोने के बाद स्वयं भी शॉल ओढ़कर सोने की कोशिश करने लगी।अमर ने जब देखा पूर्वा सो चुकी है तो बस उसे निहारने लगा। धीरे धीरे ट्रेन लखनऊ पहुंच गई।और सभी यात्री अपने अपने गंतव्य की तरफ रवाना हो गए।लेकिन जिन्हें अपनी मंजिल साथ तय करनी होती है उन्हें किस्मत कैसे ना कैसे भी मिलाती ही है अगले दिन अमर को कुछ कपड़े खरीदने के लिए लखनऊ के प्रसिद्ध अमीनाबाद में जाना होता है।वहीं पूर्वा को भी अपनी दोस्त के साथ कुछ काम से आना होता है।एक बार फिर दोनों की मुलाकात होती है और बिन कुछ कहे बस मुस्कुराकर आगे बढ़ जाते हैं।शाम को जन्मदिवस सेलिब्रेट करने के बाद जब सभी लोग बैठे थे तो अमर के माता पिता ने पूछा;बेटा अमर शादी के बारे में आपका क्या ख्याल है।अगर पहले से ही किसी को पसंद करते हो तो बता सकते हो।अमर ने मन में कहा पापा पसंद तो है कोई लेकिन हमें खुद ही उसके बारे में उसके नाम के अलावा कुछ नहीं पता तो आपको क्या बताऊं। अमर ने कहा पिताजी आपको जो भी ठीक लगे आप कीजिए हमे कोई ऐतराज नहीं है।ठीक है बेटा तो फिर ये मेरे दोस्त की बेटी की तस्वीर है एक बार आप देख लो अगर पसंद हो तो बात आगे बढ़ाए हम।अमर ने फोटो उठाई और अपने कमरे की तरफ बढ़ गया।उसने जैसे ही फोटो को देखा तो आश्चर्य से उछल पड़ा तस्वीर में कोई और नहीं पूर्वा ही थी।उसने गॉड को धन्यवाद कहा।और अपने माता पिता को विवाह के लिए सहमति दे दी।कुछ ही महीनों में अमर और पूर्वा का विवाह संपन्न हो गया। एक दिन अमर का अवकाश था पूर्वा थोड़ा सा उदास बैठी थी तो अमर ने कारण पूछा - पूर्वा ने कहा आज हमे अपनी बड़ी बहन की बहुत याद आ रही है और उनकी जो आखिरी निशानी थी एक बैंगनी दुपट्टा उस दिन ट्रेन में हमसे कहीं गुम हो गया।अमर ने सुना तो मुस्कुराया और अन्दर जाकर अलमारी से एक सुंदर सा दुपट्टा लाकर पूर्वा को दिया बोला कहीं वो बैंगनी दुपट्टा ये तो नहीं....।


अपूर्वा