The Author Jyoti Prakash Rai फॉलो Current Read क्षात्रावास By Jyoti Prakash Rai हिंदी महिला विशेष Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books नफ़रत-ए-इश्क - 6 अग्निहोत्री इंडस्ट्रीजआसमान को छू ती हुई एक बड़ी सी इमारत के... My Wife is Student ? - 23 स्वाति क्लास में आकर जल्दी से हिमांशु सर के नोट्स लिखने लगती... मोमल : डायरी की गहराई - 36 पिछले भाग में हम ने देखा की फीलिक्स ने वो सारी बातें सुन ली... यादों की अशर्फियाँ - 20 - राज सर का डिजिटल टीचिंग राज सर का डिजिटल टीचिंग सामाजिक विज्ञान से बोरिंग सब्जे... My Passionate Hubby - 4 ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –Kayna... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी शेयर करे क्षात्रावास (1) 1.4k 5.3k रमेश बाजार से घर लौट रहा था तभी उसे रास्ते में राजू मिला और कहने लगा आज तू तो बड़ा जल्दी बाजार से लौट रहा है, क्यूं क्या कोई अलग योजना है क्या तेरा ?रमेश ने कहा नहीं यार मित्र आज घर जाने के बाद कहीं और जाना है इसलिए जरा जल्दी लौट रहा हूं। राजू हंसते हुए कहने लगा शायद प्रेम लीला वाली बात होगी जो मुझसे नहीं बता रहा है, है न ? रमेश मुस्कुराते हुए हा का इशारा करता है और चल देता है। राजू के मन में क्या सूझा की वो सायकिल सीधा अपने गांव की तरफ मोड़ दिया और वहां पहुंच कर अपने कुछ दोस्तों को इकट्ठा किया छोटू, मुन्ना, बिल्लू, और लाला के साथ मिलकर एक योजना बनाई। और फिर सब एक साथ गांव से बाहर किसी महाविद्याल की तरफ निकल पड़े। रास्ते भर सब बड़े जोश में चिल्लाते हुए जा रहे थे कि आज मजा आएगा और हम सब एक साथ जिंदगी का आनंद उठाएंगे। सभी उस जगह जा पहुंचे जहां महाविद्यालय की ओर से लड़कियों के ठहरने की व्यवस्था की गई थी। शाम हो चुकी थी अब कुछ पल ही शेष रह गया था पहरेदार के आने में और तब तक रमेश वहां आ पहुंचा। रमेश पहुंचते ही सायकिल की घंटी बजाई और शीतल के नाम की आवाज लगाई। रमेश को देखते ही राजू और सभी दोस्त छुप गए और देखने लगे तब तक एक लड़की दौड़ती हुई बाहर आती है और रमेश को देख कर हंसते हुए कहती है कब से इंतजार कर रही हूं। इतना समय कहां लगा दिए ? रमेश बाजार जाने की बात कह कर बताया की मां को बोलकर आया हूं कि तुमसे मिलने जा रहा हूं। शीतल बहुत खुश हुई और सबका हालचाल पूछते हुए बाहर की तरफ दोनों चलने लगे, और पास के ही एक बरगद के पेड़ के नीचे जा कर बैठ गए और बातें करने लगे। यह सब राजू और उसके दोस्त बड़ी आसानी से देख रहे थे। रमेश ने शीतल से कहा अगले महीने तुम्हारी पढ़ाई पूरी हो जाएगी और परीक्षा की तिथि आने तक तुम भी घर जा सकती हो। शीतल ने कहती है - नहीं मै अभी यहीं रुकने वाली हूं और पढ़ाई का कुछ हिस्सा बाकी रह गया है जो पूरा करने के लिए पर्याप्त समय होगा। थोड़ी ही देर में चौकीदार वहां आता है और सब लड़कियों को खाना खाने के लिए बोल कर चला जाता है। समय देख कर शीतल भी चलने के लिए कहती है तभी रमेश सायकिल से एक थैला निकाल कर शीतल को देते हुए कहता है ये लो तुम्हारे लिए मां ने खाने के लिए कुछ दिया है। आज मां ये सब बनाकर तुम्हे दे रही है जब तुम विवाह के बाद आओगी तो तुम्हे भी ये सब करना पड़ेगा सब के लिए। करोगी ना ? शीतल ने कहा हां मै भी इन सब कामों में तेज हू मुझे खाने की हर चीज बनानी आती है और जो नहीं आती है उसे झट से देखते - देखते सीख सकती हूं। अभी तक राजू और सभी दोस्त वहीं छुपे हुए थे और रमेश के जाने की रहा देख रहे थे। शीतल और रमेश एक दूसरे से गले मिलते हैं और फिर एक दूसरे को अपना ध्यान रखने का संदेश देते हुए चल पड़ते हैं। साढ़े आठ बज चुके थे और ठंड भी बढ़ रही थी रमेश शीतल को दरवाजे तक छोड़ता है और फिर घर की ओर चल देता है। शीतल अंदर जाती है और फिर कुछ ही पल में बाहर वापस आती है और भोजनालय की तरफ जाने लगती है थोड़ी ही दूर जाने के बाद वापस लौटती है और कुछ सोच रही होती है तभी राजू और सभी दोस्त मौका देखते ही चारों तरफ से घेर लेते हैं और चाकू दिखा कर उसे चुप रहने की धमकी देते हुए मुंह दबाकर उसी बरगद के पेड़ की और ले जाते हैं और हांथ पैर को रुमाल से बांध देते हैं जैसे ही शीतल का मुंह खुलता है वह जोर से चिल्लाती है बचाओ - बचाओ इतने में दो लड़कियां जो खाना खा कर लौट रही थी शीतल की आवाज सुनकर बरगद की ओर दौड़ती हैं। वहां पहले से ही मौजूद छोटू और मुन्ना उन दोनों को भी धर दबोचते हैं और जमीन पर गिरा देते हैं। जैसे ही कुछ हरकत करने की सोचते हैं तब तक शीतल ने कोमल को अपना तरीका अपनाने की सलाह दी और देखते ही देखते कोमल और नैना ने मुन्ना को ही धर दबोचा और और पटकते हुए कराटे का एक हाथ आजमाती हैं इतने में ही मुन्ना अचेत होकर गिर पड़ा। यह देख बाकी के सभी दोस्त उसको उठाने और भागने लगे। कोमल ने राजू को पकड़ा और कंधे के दाईं तरफ एक पंच जड़ते हुए चेतावनी दी, आज के बाद फिर कभी तुम लोग यहां नजर आए तो हड्डी पसली तोड़ कर घर भेज दूंगी वरना यहां दिखाई मत देना कभी। नैना शीतल को रुमाल से छुड़ाती है और तीनों वापस अपने छात्रावास में आ जाते हैं। दोस्तों मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि यदि हौसला है तो पर्वत भी पानी बन सकता है और यदि हम सब एक साथ हैं तो हर चुनौती को आसानी से मात दे सकते हैं जैसा इन तीनों ने किया। धन्यवाद Download Our App