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न्याय - एक अछूत लड़की की कथा(भाग 1)

" अरी उठना नही है क्या?कब तक खाट मे पड़ी रहेगी।चाय बन गई।अब तो उठ जा"।
छमिया के बार बार आवाज देने पर कमली उठी तो थी,लेकिन माँ के पास न आकर सीधी नाली की तरफ भागी थी।नाली पर बैठकर कमली उबकाई लेेंने लगी।उसे देखकर छमिया ने पूूछा था," क्या हुआ री?"
माँ की बात का कमली ने कोई जवाब नही दिया।वह नाली पर बैठी उबकाई लेती रही।बेटी को उबकाई लेते देखकर छमिया को अचानक ध्यान आया।बेेटी एक तारीख को महिनेे से हो जाती थी।
लेकिन एज तारीख तो कब की गुज़र गई।।दूसरी एक तारीख आने वाली थी।लेकिन कमली महीने से नहीं हुई थी।यह बात ध्यान में आते ही छमिया सजग हो गई।वह एक टक कमली को देखने लगी।कमली कुछ देर के बाद फिर से खाट पर आकर लेट गईं।
"कलमुँही किसका पाप घर मे उठा लायी?"दो चार थप्पड़ जड़कर छमिया ने बेटी से पूछा था।थप्पड़ और गाली खाकर भी कमली ने मुँह नही खोला, तब छमिया उसके बल पकड़कर खिंचते हुए बोली,"हरामजादीअब कुछ मुँह से बकेगी या बेशरम रांड की तरह मुँह सिलकर पड़ी रहेगी।"
"राजपाल-- - -
ठाकुर दीवान सिंह पुराना ज़मीदार था।आजादी के बाद ज़मीदारी तो चली गई थी।लेकिन उसकी हैसियत,रुतबे औऱ शान शौकत में कोई फर्क नही आया था।यू तो गांव में सभी जाती धर्म के लोग रहते थे।परंतु पिछड़े, दलित, अनुसूचित और अति पिछडो की संख्या ज्यादा थी।गांव के ज्यादातर लोग भूमिहीन थे।गांव के गरीब बेरोजगार लोगों का ठाकुर अन्नदाता था।आजादी के पहले भी गरीब,पिछड़े, दलित,अनुसूचित जाति के लोग ठाकुर के खेतो में काम करते थे।आज़ादी के बाद भी उनकी स्थिती मे कोई फर्क नही आया था।
ठाकुर ने अपने खेतों पर एक छोटा सा मकान बनवा रखा था।कमली उस मकान के बाहर सफाई के साथ खेतो में मज़दूरी भी करती थी।एक दिन वह खेत मे निराई कर रही थी।बरसात के आसार नजर आ रहे थे।इसलिए सभी मज़दूर चले गये थे।कमली अकेली रह गई थी।अचानक ठाकुर के बेटे राजपाल ने उसे पीछे से आकर दबोच लिया था।कमली चीखी,चिल्लाई और राजपाल की पकड़ से छूटने का भरपूर प्रयास किया था।परंतु दबंग के चुंगल से आज तक कोई निर्बल छुटा है,जो कमली छूट जाती।
कमली ने रोते हुए अपनी आप बीती माँ को सुना दी बेटी की बात सुनकर छमिया सोच में पड़ गई।अभी तो बेटी के गर्भवती होने की बात उसे ही पता चली थी।लेकिन कुछ नही किया गया,तो यह बात ज्यादा दिनों तक छिपी नही रहेगी।कमली चाहे मुँह से न बताये लेकिन कुछ दिनों बाद उसका पेट ही चुगली करने लगेगा।
छमिया कुछ देर तक सोच विचार करने के बाद बेटी को समझाते हुए बोली,"यह बात किसी को भी मत बताना।एक दो दिन मे तुझे शहर ले चलूंगी।किसी डॉक्टर से मिलजर तेरे पेट की सफाई करानी पड़ेगी।"
"मैं सफाई नही कराउंगी।"
"क्या कह रही है तू?"बेटी की बात सुनकर छमिया ऐसे चौकी थी,मानो बिछू ने डंक मार दिया हो,"सफाई नही कराएगी तो फिर क्या करेगी?"
"बच्चा जनूँगी।"
"पागल हो गई है तू।जानती भी है तू क्या कह रही है?अभी तेरी शादी नही हुई है।कुंवारी माँ बनी तो समाज,जाति, बिरादरी और गांव में भारी बदनामी होगी।लोग थू थू करेंगे।तेरी शादी होना तो दूर लोग हमारा जीना दुश्वार कर देंगे"छमिया ने प्यार से बेटी को समझाया था।




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