पागल-ए-इश्क़ - (पार्ट -4) Deepak Bundela AryMoulik द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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पागल-ए-इश्क़ - (पार्ट -4)

कंटीन्यू पार्ट -4
महक की कार तेज गती से घर की तरफ दौड़े जा रही थी.. महक पीछे की सीट पर बैठी बैठी सोच रही थी.. कि रेनू को जरूर कुछ आभास हों गया हैं.. तभी दयाल जी ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा..
मेम... कहीं रेनू बिटिया को कोई शंका तो नहीं हुई..?
यहीं तो मैं भी सोच रही हूं.. पता नहीं क्यों दिल बैठा जा रहा है... अब आप ही बताये दयाल जी ऐसे में मुझे क्या करना चाहिए...?
मेरे हिसाब से तो आपको अब सारी बात दोनों को बता देनी चाहिए...!
हुम्म.. आप सही कह रहें है दयाल जी... आज रेनू का बर्थडे भी है...!
आज नहीं आप कल भी तो बता सकती है.. !
क्या सोचा था क्या हों रहा है... इतने सालों बाद वो आई और आज ही के दिन ऐसा होना था... !
डोन्ट वेरी अब जो होना था हों गया जो होगा अच्छा ही होगा.. उस ऊपर वाले को क्या मंज़ूर ये तो वही जानें.. !
गाड़ी महक विला के मेन गेट पर पहुंच जाती है दयाल हल्के से गाड़ी का हॉर्न बजाते है... तभी गेट के अंदर मौजूद गार्ड गेट खोलता है... और गाडी अंदर चली जाती है...
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महक को आता देख रोहन सोफे से उठ कर खड़ा होते हुए पूछता है..
मम्मा अब अप्पा कैसे है..?
महक सोफे पर बैठती हुई बोलती है.. हां अभी तो ठीक है..
थेंक्स गॉड... रोहन दोनों हाँथ जोड़ते हुए ऊपर देख कर भगवान का शुक्रिया करता है..
दयाल जी आज आप भी थक गए हों आप भी जा कर आराम कर लो..
लेकिन...आज रेनू बिटिया का जन्मदिन भी तो सेलिब्रेट करना है..?
ओ हां... हां.. ! रोहन बेटा चलो आओ तुम्हारी दीदी का बर्थडे सेलिब्रेट कर दे..
मोम.. मुझें नहीं लगता दीदी ऐसा कुछ करवाएगी.. जब से वो अप्पा से मिल कर आई हैं अपने रूम से बाहर ही नहीं निकली.. उन्होंने तो लंच भी नहीं किया..
इतना सुनते ही महक ख़डी हों जाती है.. मैं देखती हूं तुम्हारी दीदी को.. और वो रेनू के कमरे की तरफ जानें को होती है ..
मैडम मैं रुकू या घर जाऊं..?
आप अभी घर जाईये मैं आपको कॉल करती हूं... रोहन आप आओ..
जी मम्मा...
दयाल जानें को होते है.. तभी महक का फोन घनघना उठता है.. महक जल्दी से अपना सेलफोन देखती है
ओह डॉ. मित्रा का फोन..? अ हा जी डॉ. मित्रा..?
अफ़सोस...
जी आप क्या कहना चाह रहें है डॉ. मित्रा म में समझ नहीं पा रही हूं..
यहीं वो आपके पेसेंट को हम नहीं बचा पाए..
इतना सुनते ही महक धप्प से सोफे पर बैठ जाती है..
हैलो... हैलो...
रोहन जल्दी दे महक के हाथ से फोन लेता है..
क्या हुआ मम्मा..
हैलो... हैलो.. आप मेरी बात सुन रही हैं ना..?
यस..?.. जी कहें डॉ. अंकल मै उनका बेटा रोहन बोल रहा हूं..?
देखो बेटा.. जिस पेसेंट को आपकी मम्मी ने एडमिट कराया था वो अब नहीं रहें.. इतना सुनते ही रोहन भी गुम सुम सा हों जाता है.. तभी दयाल रोहन से पूछते है
क्या हुआ रोहन बाबा..?
अंकिल अप्पा नहीं रहें.. !
ओफ..
हैलो.. हैलो..
दयाल रोहन से कहता है शायद डॉ. फोन पर है. रोहन फोन दयाल जी को देकर वह भी अपनी मां के पास बैठ जाता है.. दयाल फोन लेकर थोड़ा दूर को चले जाते है और बात करते है..
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कंटीन्यू पार्ट -5....🙏