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वापसी.

वापसी

अभी सूरज देवता प्रकट भी नहीं हुए थे के पूरा घर ॐकार के दिव्य स्वर से निनादित होने लगा था इस घर की भोर ऐसी ही सुरीली होती है

बाहर पंछियों का मधुर कलरव और घर में गंभीर मधुर ओजस्वी ॐ की गूँज

ये स्वर है पंडित दीना नाथ शुक्ल जी का जिन्हें आदर और प्यार से लोग पंडित जी कहते हैं

पंडित जी बीस बीसुआ कान्य्कुब्ज ब्राह्मण हैं

बड़े धर्म कर्म नियम के पाबंद आजीवन नियम से ही चले वे

दिनकर शायद विलंब कर दे परंतु पंडित जी चार बजे बिस्तर छोड़ कर नियमित क्रिया कलापो में व्यस्त हो जाते हैं

चाहे मौसम जो भी हो

बड़े ही सहज सरल एक्रोध कम ही आता है वे जब मौन हो जायें समझो क्रोध में हैं

विभा जी उनकी पत्नी और बच्चे समझ जाते और सजग हो जाते

दो बड़ी ही ज़हीन और खूबसूरत सी बेटियाँ इरा और इला पंडित जी की दो आंखें ही तो थीं

दोनों बेहद अनुशासित और माता पिता को सम्मान और प्यार करने वाली

इरा को गायन में रुचि थी तो इला को सिलायी कढ़ाई में रुचि थी

विभा ने बड़े मनोयोग से दोनों बेटियों की परवरिश की थी

बड़ा ही सुखी जीवन निर्झर सा बहता जा रहा था

पंडित जी के यहां प्याज़ लहसुन की नो एंट्री

गैस सेलेनदर धो कर लगता था

वे केवल दो वक्त भोजन करते केवल धोती पहन कर बीच में नाश्ता पानी कुछ नहीं

मेहमानों की खूब खातीर दारि करवाते विभा जी से

कहते खीर बनाओएतुम्हारे हाथ की खीर तो लाजवाब होती है

विभा समझ जाती के इनका खीर खाने का मन है

भोजन मौन ही करते थे

हिन्दीएसंस्कृत और इंग्लिश के प्रकांड विद्वान

उर्दू में भी दखल रखते थे

प्रिन्सपल थे स्कूल में

पढ़ाना उन्हें प्रिय था ए प्रिन्सपल होने के बावजूद एक क्लास ज़रूर लेते थे

ईमानदार और सख़्त

वे कहते किसी के साथ अन्याय मत करो

मगर उससे ज़रूरी है अन्याय मत सहो

यही बेटियों को समझाते थे

लोग ब्याह के प्रपोजल लाते तो कहते

हीरे जैसी बेटियाँ है कोई जौहरी दिखेगा तभी ब्याह करूँगा

मुझे जल्दबाज़ी नहीं करनी हैएपहले पढ़ाई पूरी हो तब ब्याह

इरा ने संगीत में एम ए किया फाइनल इयर था

एम ए क्म्प्लीट होते ही वर की तलाश शुरू हुई

बड़े लड़के देखे

अन्ततः एक परिवार पसंद आया और ब्याह पक्का हो गया

अरेंज मैरेज में आप क्या देख सकते हैं

घर घर के लोग और लड़का

सभी ठीक लगा और धूम धाम से ब्याह हो गया

इरा ससुराल चली गयी ए घर सूना सा हो गया

पर यही विधान है एपंडित जी रिटायर हो गये

पूजा पाठ में अधिक समय व्यय करने लगे

वे माँ शारदा और भोले बाबा के प्रचंड भक्त थे

समय शनैः शनै रू गुज़र रहा था

इरा ससुराल में व्य्व्स्थीत होने का प्रयास कर रही थी मगर यहां माहौल ही अलग सा था

असंयमित खान पानए अनियमित जीवन शैली

घर में जवान ननद थी पर कोई अनुशासन नहीं

कभी भी कोई आ रहा हैएकोई जा रहा है कोई बौद्धिक वार्तालाप नहीं

जब बात हो केवल पैसे की

ये सब तो इरा सह ही लेती

मगर पति का शराब और शबाब का चस्का इरा को पल पल मारने लगा

इरा ने सोचा पति सौरभ से बात करनी पड़ेगी

उसने माँ को कुछ नहीं बताया के पिताजी का क्या हाल होगा सुन कर

वो चुपचाप गरल पान कर रही थी

किंतु कब तकघ्

उसने सौरभ से प्यार से बात की

सुनिए आप अखाद्य खाते हैंए समय पर भोजन नहींए जागना सोना नहीं

ड्रिंक करके स्टडी में सो जाते हैं दूसरे दिन रुम में दुर्गंध से मेरा सर भन्ना जाता है

सौरभ मेरे घर में प्याज़ भी नहीं खाया जाता

मुझे तकलीफ होती है

मैंने काफ़ी प्रयास किया इस माहौल में खुद को ढालने की

अब कुछ मेरे लिए तुम भी परिवर्तन लाओ

प्लीज़

सौरभ बोला अच्छा हुआ इरा बात तुमने ही शुरू की मैं बात करना ही चाहता था

अब तुम जान ही गयी हो तो स्टडी में सोना नहीं पड़ेगा मुझे ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह बड़ी आसान कर दी तुमने मेरी लाइफ

अब कल से हम नयी शुरुआत करते हैं

तुम घर पर ही नान्वेज बनाओ मेरा साथ दो देर से आना बंद

अच्छी बीबी की तरह हर बात में मेरी संगिनी बनो

यही पत्नी धर्म है डार्लिंग

हम तो तुम्हारे गुलाम बन जायेंगे ए जान भी माँगो तो दे दू जान

इरा स्तब्ध रह गयीण्ण्ण्ण्ण्ण्ओह कितना घटिया इंसान है येण्ण्ण्

क्या ये सुधरेगा कभीघ्

इरा ... तो क्या आप नही सुधरना चाहते

सौरभ ... नहीं असंभव है

तुम रह सको तो ठीक हैएवरना जा सकती है

इरा सुन्न हो गई थीए उठ कर चली गई

कमरे में जा कर कटे तरु सी पलंग में धराशायी हो गई

आज पहली बार वो जी भर कर रोई

उसे बेसाख्ता माँएपिताजी की याद आ रही थी

आपने क्या सोचा और क्या हो गया

माता पिता तो अच्छा ही सोचते हैं

थोड़ी देर में सौरभ शाम की पार्टी के निर्देश दे कर चले गये

शाम की पार्टी शराब और कबाब इरा को अरेंज करनी थी

इरा सोच रही थी

ण्ण्ण्ण्ण्क्या ये मैं कर पाऊँगीए क्या अन्याय सहना उचित है पिताजी ने तो ये नहीं सिखाया

क्या इसी सब के लिए पिताजी ने ये संस्कार दिए मुझे

क्या शराबएकबाब से आगे शबाब नहीं आयेगाघ्

नहीं ये शुरू हुआ तो इसका अंत कभी ना होगा

अब निर्णय की घड़ी है

केवल पुरुष की अहम की तुष्टि के लिए मैं अपनी अस्मिता को दांव पर नहीं लगा सकती

विचारों को विराम लगा फोन की घंटी से

फोन पर माँ थी इरा क्या कर रही है बेटाघ्

इरा ...कुछ नहीं माँएकुछ चिंतन कर रही थी माँ

विभा ... बेटा तू परेशान है

इरा ...हा माँ निर्णय के पल हैं ये

एक बात बताएं माँ एक्या स्वयं पर हो रहे अत्याचारों को सहन करनाएअपनी अस्मिता को रौंद वानाएपति की नाजायज़ बातों को गूँगा बन कर शिरोधार्य करना पतिव्रत हैघ्

क्या यही सुखी जीवन का मूल मन्त्र हैघ्

माँ सोच समझ के जवाब दे ना क्योकी आपके जवाब पर मेरा जीवन आश्रित है

ऐसी स्थिति में आप क्या करतींघ्

कुछ लमहे खामोशी सर गयी

फिर विभा बोली ... बेटा तू वापस आजा

तेरा चेहरा बहुत कुछ कहता रहा है अब तक

बकाया आज समझ गयी हूँ

इरा तू हमारी बेटी है हमने अत्याचार ना सहना सिखाया है अपनी बेटियोको ऐ क कामआता है

तू विवेकश

हमने जो वैल्युज़ तुझे दिए हैं उस पर खरा उतरने का शायद वक्त आ गया है

इरा तुम कायर नहीं होएजब कोई विकल्प नहो तो निर्णय में तत्परता ज़रूरी है

बेटा हम आते हैं तुझे लेने

इरा तत्काल बोलीए नहीं नहीं माँ आपके पाँव के योग्य नहीं है येदह्लीज

बात हो चुकी है यहां आपका अपमान हो मुझेस्वीकार्य नहीं

मैं आ रही हूँ

बगैर किसी तकरार केएआपके हाथों की बनी खीर खाने

और इरा बिना बहस किए सास ससुर को प्रणाम कर अपने घर वापस चली गयी

पंडित जी आह्त हुए और

पंडित जी दुखी तो हुए पर बोले ...कोई बात नहीं जो प्रभु की चाह

तुमने निर्णय करने में समय बर्बाद नहीं किया येउत्तम है जो सुधरना नहीं चाहते वे कभी नहींसुधरते ईश्वर की मर्जी में मंगल छुपा होता है

आगे क्या करना है सोचो

इरा ...पिताजी मैं आकाशवाणी से

गायन करना चाहती हूँ

अन्ततः वो आकाशवाणी की श्रेष्ठ गायिका बन गई

इला बहन के दुख से संतप्त थी

उसने प्रण लिया के वो ब्याह नहीं करेगी

वो कॉलेज में प्रोफ़ेसर थी उसने कॉलेज जाना शुरू कर दिया

माँ पिताजी की आत्म ग्लानि उससे देखी नही जाती थी

चुहलबाजी करने वाली चंचल इला मौन हो गयी थी

उस रोज भी गुम सुम सी स्टाफ़ रुम में बैठी थी

एक नया लड़का जिसने अभी दो दिनों पूर्व ही ज्वाएन किया था

आ गया कमरे में और बस शुरू हाहा हीही

थोड़ी देर में बोला

इला जी आप मौन व्रत में है

तो क्या क्लास में इशारों से पढ़ाती है

सब का सम्मिलित ठहाका गूँज उठा

इला झनझनाते हुए बाहर निकल गयी

सोच रही थी कितना अभद्र है ये

इसकी फ़िज़ूल बातों में हीही करते रहो यही चाहता है ये

मुझसे ये नहीं हो सकता

ये जानता नहीं मैं क्या हूँ

और मुस्कुरा दी

तभी पीछे से आवाज़ आई अकेले हँसना तो ठीक नहीं इला जी

इला चौंक गयीण्ण्ण् बाप रे ये कब आ गया पीछे से

इला ...आप यहां क्यों आ गये

स्टाफ़ रुम में सारी टीचर्स कही चली गयीं क्याघ्

वो विवेक नाम है मेरा

सब है मगर मुझे आपसे बात करनी है

इला ...देखिये मैं ऐसी वैसी लड़की नहीं हूँ मेरा पीछा ना करें

और वो तेज़ी से चल पड़ी

वो बोला आप चाहे जितनी अवहेलना करें मुझे आपसे शादी करनी है

इला .. अरे कैसे इंसान है आप जान ना पहचान और शादी

आपका दिमाग तो ठीक है

विवेक जी बिल्कुल ठीक है

जिस दिन से कालेज आया हूँ आपको देख रहा हूँ

आप ही मेरी जीवन संगिनी बनेगी

इला बिना कुछ बोले क्लास रुम में चली गयी

कई दिनों बाद लाइब्रेरी में इला किताबें देख रही थी

अनजाने ही गुनगुनाने लगी

तभी उसी धुन में वीशलीन्ग सुनायी दी

देखा विवेक था

इला किताबें ले कर निकल आयी

विवेक दौड़ता हुआ आया

अच्छा क्या हम दोस्त नहीं बन सकते वैसे गाती अच्छा हो

इला मुस्कुरा दी बोली कितनी लड़कियों से फ्लर्ट किया अब तक

विवेक सच में किसी से नहीं

अनाथालय में पला बढ़ा किस्मत से ये जाब मिलने योग्य पठन पाठ न कर पाया

परिवार के मायने पता नहीं

तुम मुझे अपने घर ले चलोगी

दोनों बेंच पर बैठ गये

इला कुछ अपने बारे में बताओ ना

इला बोली ... ध्यान से सुनो

हम ज़रा पुराने विचारों के लोग है प्याज़ लहसुन वर्जित अंडा तो छोड़ो बोलने से ही गंगाजल पीना पड़ता है जल्दी सोना जल्दी जागना

माँ पिताजी और तलाक शुदा दीदी

वो सिंगर और मैं यहां यही परिचय है छोटा सा

और मैंने कसम खायी है कभी ब्याह नहीं करूँगी

अब सोच लो

विवेक .. मैं इंतज़ार करूँगा जब तक तुम शादी के लिये तैयार ना हो जाओ

तब तक दोस्त ही बने रहेंगे ये वादा है और उसके हाथ पर इला ने अपनी हथेली रख दी

विवेक झट से उठा और बोला आज कॉलेज बंक करते हैं चलो मुझे अपने घर ले चलो

और घर पहुँचते ही विवेक ऐसा घुल मिल गया सबसे मानो पुरानी पहचान हो

विवेक सब का चहेता बन गया

रोज आना पिताजी के साथ गप्पेंएमाँ के हाथ से बने लज़ीज़ व्यंजन खाना

दीदी का तो बड़ा ही लाड़ला

बस मैं ही एक दूरी बना के रखती थी

सभी भूरी भूरी प्रशंसा करते

दीदी ने तो कह ही दिया इला विवेक अच्छा रहेगा तेरे लिए कहे तो बात करूँ पिताजी से

पर मैं ठहरी ज़िद्दी मना कर दिया नहीं बिल्कुल नहीं मुझे शादी करनी ही नहीं है

रोज शाम दीदी और पिताजी रियाज़ करते थे

ऐसी ही एक शाम माल्कौन्स का खयाल मुख मोर मोर मुसकात जात

गाते गाते अचानक पिताजी को दिल का दौरा प ड गया

कॉलेज में एक्स्ट्रा क्लास ले रही थी खबर मिलते ही अस्पताल पहुँची

विवेक ने अस्पताल में भरती करवा दिया था

मैं रोते हुए बोली मुझे देर में खबर क्यों की

विवेक को बताया मुझे नहीं

इरा बोली नहीं विवेक को बताया तभी पिताजी संकट से उबरे है

उसने आनन फानन में सब किया

इला ने प्यार भरी दृष्टि विवेक पर डाली थका हुआ लग रहा था

इला सोचने लगी क्या मैं विवेक के साथ ज़्यादती नहीं कर रही हूँघ्

वो प्रेम करता है मुझसे ये कोई गुनाह तो नहींण्ण्

पंडित जी घर आ गये

अब तो विवेक में उनके प्राण बसते थे

दवा भी विवेक से ही लेते थे

इला देख रही थी इतने प्राण पण से कोई सगा भी सेवा नही कर सकता जिस समर्पण से वो पंडित जी की सेवा कर रहा था

इला के मानस में उथल पुथ ल मची हुई थी

अब इला उसके आकर्षक व्यक्तित्व को नीहारने लगी थी

चुपके चुपके उसे देखने लगी थी

अचानक जैसे दिन में चटख चांदनी खिलने लगी थी

कुछ तो था जो तेज़ी से बदल रहा था इला जान कर अनजान बनी बैठी थी

पंडित जी अब काफ़ी स्वस्थ हो गये थे

विवेक चाय पी रहा था इरा वहीं बैठी थी

विभा जी रात के भोजन की तैयारी कर रहीं थीं

इला एपल की बारीक फाँके पंडित जी को दे रही थी और वो खा रहे थे

इला सोच रही थी कितनी सेवा की है विवेक ने पिताजी की

कितना संस्कारों वाला है ये

कोई तो दुर्गुण नहीं और क्या चाहिए किसी पुरुष में ऐसा ही तो जीवन साथी होना चाहिए

मैं क्यों झुठला रही हूँ

अरे मुझे तो विवेक से प्रेम हो गया है

उसका आना सुखद लगता है क्यों भलाघ्

उसके जाने के बाद सब सूना हो जाता है ये कौन सा भाव है

मैं कब तक खुद से ही झूठ बोलती रहूँगी

हर आदमी सौरभ तो नहीं होता

दीदी की वापसी से गलत ही क्यों सोचना

नहीं अब और देर नहीं

विवेक शायद समझता है मुझे मुझसे कहीं ज़्यादा

मैं आज ही विवेक से बात करूँगी

पर आज क्यू अभी क्यों नहीं

विवेक से क्यों पिताजी से ही क्यों ना कहा जाए

और इला धीरे से बोली

पिताजी आपको विवेक पसंद है

पंडित जी बोले ण्ण् निसंदेह वोतो अब पुत्रवत ही है मेरे लिए

पर क्यों पूछा तुमने

इला बोली

पिताजी आप विवेक को दमाद बनाना चाहेंगेण्ण्

पल भर सन्नाटाण्ण्ण्ण्

और अचानक सम्मिलित ठहाके से घर निनादित हो उठा

माँ भी किचेन से दौड़ी आई

इरा बोलीण्ण्ण्ण्ण् देखा विवेक मैं ना कहती थी एक दिन ये होगा

इला सकपका कर बोलीण्ण्ण् अरे विवेक ये तो चीटिंग है तुमने सबको बता दिया

माँ ह्सते हुए बोली हाँ बन्नो हम तो तुमको बिदा करने की पूरी तैयारी कर चुके हैं

माँ का चेहरा खुशी से दमक रहा थाएपिताजी मुस्कुरा रहे थे

इरा की प्रसन्नता की कोई सीमा नहीं थी

इला ने विवेक से कहा

तुमने बेईमानी की है इसकी सजा तुम्हे मिलेगी

बोली माँ सेण्ण्ण्

माँ हम कल ही ब्याह करेंगे

सारा घर आंगन महक उठा खुशी की सुरभि से

लंबे अंतराल के बाद हँसी और कहकहो की वापसी हुई पंडित जी के आंगन में

रंजना प्रकाश

बिलासपुर [छत्तीसगढ़ ]

+91 98930 41429

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