छूना है आसमान
अध्याय 6
रात के ग्यारह बज रहे थे। चेतना के मम्मी-पापा और उसकी छोटी बहन अलका सब गहरी नींद में सोये हुए थे, लेकिन चेतना को नींद नहीं आ रही थी। वह कभी अरूणिमा सिन्हा के बारे में सोच रही थी, तो कभी उस लड़की के बारे में सोच रही थी, जो समुद्र के किनारे अपने मुँह से रेत पर और जमीन में अप्सराओं और नृत्यांगनाओं की आकृतियाँ बनाती है। कभी उसे रोनित सर की बातें याद आ रही थीं, ‘‘कि चेतना एक तुम ही शारीरिक रूप से अक्षम नहीं हो, तुम्हारे जैसे इस दुनिया में न जाने कितने लोग हैं। चेतना शारीरिक अक्षमता एक समस्या है, अभिषाप नहीं। और आज दुनिया में ऐसी कोई समस्या नहीं है, जिसका समाधान नहीं किया जा सकता है। बस इंसान को अपनी सोच बदलने की जरूरत होती है।’’
‘‘सोच तो बदलना है सर, नहीं तो मैं इस कमरे में घुट-घुट कर मर जाऊँगी। नहीं सर, अब मुझे इस तरह घुट-घुट कर नहीं मरना है। अब मुझे किसी के ताने भी नहीं सुनने हैं, मम्मी के भी नहीं। सर, अब मैं ऐसा कुछ-न-कुछ जरूर करूंगी, जिससे मैं अपने पैरों पर खड़ी होकर आत्मनिर्भर बन सकूं। मुझे कुछ करना है सर, ......मुझे कुछ करना है......।’’
‘‘तुम करो चेतना, मैं तुम्हारे साथ हूँ......मैं वायदा करता हूँ कि तुम्हारे गाने की प्रतिभा को लोगों तक पहुँचाने का हर संभव प्रयास करूँगा।’’
चेतना अपने मन में यही सब सोचती है। उसी समय चेतना की आँखों के सामने उसके पापा की उस दिन वाली तस्वीर उभर आती है, जिस दिन वह अपने मम्मी-पापा और अलका के साथ टी.वी. पर बच्चों का रियल्टी शो देख रही थी। उसमें बहुत सारे बच्चे अपना-अपना टेलेंट दिखा रहे थे। उसी कार्यक्रम में एक आठ साल की छोटी लड़की ने एक गाना गाकर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। पूरा हाॅल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा था। कार्यक्रम को जज कर रहे जजों ने उस लड़की के गाने से प्रभावित होकर उसे गोद मे उठा लिया था।
उस लड़की का गाना सुनकर चेतना के पापा तो इतने भावुक हो गये थे कि वह एकदम उसकी मम्मी से बोले, ‘‘मेनका, हमारी चेतना भी तो गाती है, मैंने कई बार इसको यूँ ही घर में गाते हुए सुना है। इसकी आवाज भी बहुत अच्छी है, मेरी दिली इच्छा है हमारी चेतना गाने की प्राॅपर (विधिवत्) प्रैक्टिस करके इसी तरह के टेलेंट शो में गाना गाये।’’
‘‘पापा, आपने तो मेरे मन की बात कह दी। सचमुच दीदी बहुत अच्छा गाती हैं। आप भी दीदी को गाने की टेªनिंग दिलवा दो।’’ अलका ने अपने पापा की हाँ-में-हाँ मिलाते हुए कहा।
अलका और अपने पापा की बात सुनकर चेतना के चेहरे पर चमक आ जाती है, लेकिन अगले ही क्षण वो चमक धूमिल हो जाती है, जब उसकी मम्मी कहती हैं, ‘‘हाँ......हां......क्यों नहीं बहुत अच्छी आवाज है। जब यह गाती है, तो ऐसा लगता है, जैसे बहुत सारी मक्खियाँ हमारे आस-पास भिनभिना रही हैं। फिजूल की तारीफ करके, इसका दिमाग खराब मत करो। वह बच्चे और होते हैं, जिनकी आवाज में सरस्वती निवास करती है, इन जैसे बच्चों से तो सरस्वती दूर भागती है। इसे कभी कहीं भेजने की सोचना भी मत, वरना बजाय नाम रोषन करने के हमारा नाम मिट्टी में मिलाकर आ जायेगी। ऐसे बच्चे तो घर के अंधेरे कोने में ही बैठे हुए अच्छे लगते हैं।’’
चेतना की मम्मी की जली-कटी बातें सुनकर उसके पापा का दिमाग खराब हो जाता है। उन्हें गुस्सा तो बहुत आता है, लेकिन वह झंुझला कर रह जाते हैं, कुछ कह नहीं पाते हैं और चुपचाप उठकर दूसरे कमरे में चले जाते हैं। चेतना तो ऐसी हो जाती है जैसे वह है ही नहीं।
मम्मी की उन बातों को याद करके चेतना एकदम उठकर बैठ जाती है और अपने मन में कहती है कि अगर वह इतना बुरा गाती है तो वह कभी नहीं गायेगी। अगले ही क्षण उसकी अन्तर्रात्मा उससे कहती है, ‘‘नहीं चेतना, तुम्हें गाना है। अपनी मम्मी के लिए नहीं, अपने और अपने पापा के लिए गाना है। कृहाँ चेतना, तुम्हें अपने पापा का सपना पूरा करना है और एक अच्छी सिंगर बनकर अपनी मम्मी की उस धारणा को बदल देना है कि तुम कुछ नहीं कर सकती हो......याद करो चेतना तुमने अपने रोनित सर के सामने वायदा किया है, सिंगर बनने का......सोच लो चेतना जीत उसी की होती है, जो हालात से लड़ाई लड़ता है......तुम्हें हालात से लड़ना होगा, तुम्हारी इस जंग में तुम्हारे रोनित सर भी तुम्हारे साथ हैं......सोच लो चेतना अगर आज तुमने अपना बढ़ा हुआ कदम पीछे हटा लिया तो तुम फिर कभी आगे नहीं बढ़ पाओगी......चेतना, तुम्हें आगे बढ़ना है......तुम्हें आसमान छूना है......तुम्हें आसमान छूना है चेतना......।
अन्तर्रात्मा की आवाज को सुनकर चेतना के अन्दर एकदम जोष और जुनून भर जाता है और वह खुद से कहती है, ‘‘हां, उसे आसमान छूना है......उसे सिंगर बनकर अपने पापा का सपना पूरा करना है। वह सिंगर बनेगी और जरूर बनेगी......उसे अब सिंगर बनने से कोई नहीं रोक सकता......कोई नहीं......हालात भी नहीं।
आज चेतना बहुत खुष थी, इतनी खुष, जैसे उसने सारा आसमान अपनी मुट्ठी में भर लिया हो......उसकी काली रात ढल गयी हो......और सुबह का नया सूरज उसका स्वागत कर रहा हो......और कह रहा हो, ‘‘चेतना, अब तुम्हारे जीवन का अंधेरा छटने लगा है......अब तुम्हारे जीवन में कभी निराषाओं की काली रात नहीं आयेगी......अब तुम आषा के धरातल पर खड़ी होकर जितनी दूर तक जाना चाहती हो, चली जाओ। आज वह अपने रोनित सर का बेसब्री से इंतजार कर रही थी।
आखिर उसका इंतजार खत्म हुआ और शाम को जब रोनित उसे पढ़ाने आया तो उसे खुष देखकर बहुत खुष हुआ। उसने पहली बार चेतना को इस तरह खुष देखा था। और दिनों की अपेक्षा आज चेतना का चेहरा ऐसा लगा रहा था, जैसे अभी-अभी कोई ताजा फूल खिला हो।
‘‘नमस्ते सर।’’ चेतना ने मुस्कुराते हुए कहा।
‘‘नमस्ते, कैसी हो चेतना......?’’ रोनित ने उसके सामने कुर्सी पे बैठते हुए कहा।
‘‘अच्छी हूँ सर।’’
‘‘वह तो तुम्हारे चेहरे से ही पता चल रहा है। ......अच्छा यह बताओ चेतना। कल तुमने मुझसे कुछ वायदा किया था......? ......वो वायदा तुम्हें याद है न, भूली तो नहीं हो......?’’
‘‘नहीं सर, मुझे वो वायदा पूरी तरह याद है।’’
‘‘चेतना, किसी ने कहा है कि अगर इंसान दिल से कुछ करने की सोच ले, तो ईष्वर भी उसके लिए बंद दरवाजों को खोल देता है। चेतना, ऐसा लग रहा है, जैसे ईष्वर ने तुम्हारे मन की आवाज को सुन लिया है, जैसे वह तुम्हारे सारे सपने सच करने वाला है। चेतना आज तुम्हारे लिए बहुत बड़ी खुषखबरी लेकर आया हूँ, सुनोगी तो खुषी से उछल पड़ोगी।’’
‘‘क्या है सर......जल्दी बताइए ?’’
चेतना ने उत्साहित होते हुए कहा, तो रोनित ने कहा, अगले महीने एक टी.वी. चैनल वाले जूनियर सिंगर चैलेंज टी.वी. शो के लिए हमारे यहाँ, हमारे षहर में आॅडिषन करने आ रहे हैं। मेरी इच्छा है कि तुम इस शो के लिए आॅडिषन देने जाओ।’’
‘‘हाँ सर, मैं यह आॅडिषन देेने जरूर जाऊँगी।’’
‘‘चेतना, अभी तुम्हारे पास पूरा एक महीना है, इस एक महीने में तुम अपने गाने की खूब प्रैक्टिस कर सकती हो। मेरा दोस्त डाँस और म्यूजिक की कोचिंग चलाता है, मैंने उससे तुम्हें म्यूजिक सिखाने के लिए बात भी कर ली है।
‘‘लेकिन सर, पहली बात तो मम्मी मुझे म्यूजिक की कोचिंग के लिए घर से बाहर जाने ही नहीं देंगी, और अगर जैसे-तैसे उन्हें राजी कर भी लिया, तो मैं कोचिंग किसके साथ जाऊँगी......?’’
‘‘तुम इसकी चिंता छोड़ दो चेतना......इसका रास्ता भी मैंने निकाल लिया है।’’
‘‘क्या रास्ता निकाला है सर......?’’
‘‘यही कि मैं रोज शाम को तुम्हें अपने साथ घुमाने के बहाने म्यूजिक सिखवाने ले जाया करूँगा।’’
‘‘पर सर, मैं आपके साथ घूमने नहीं जा सकती।’’ चेतना ने असमर्थता जताते हुए कहा।
‘‘क्यों, मेरे साथ जाने में तुम्हें क्या परेषानी है......?’’
‘‘सर, मुझे तो कोई परेषानी नहीं है।’’
‘‘तो फिर क्या बात है ?’’
‘‘सर, ‘‘आपसे पहले मम्मी-पापा ने उसके लिए दो टीचर और रखे थे......वह रोज उनके साथ घूमने जाने की जिद करती थी। वो दोनों उससे तंग आकर यहाँ से चले गये, जिसकी वजह से मम्मी को काफी परेषानी हुई। मम्मी ने उसके लिए कई ट्यूटरों से बात की, लेकिन कोई भी यहाँ आने और उसे पढ़ाने के लिए तैयार नहीं हुआ। फिर बड़ी मुष्किल से आप मिले......तो मम्मी ने उससे कहा कि अगर अब आप उसकी ट्यूषन छोड़कर चले गये, तो मम्मी उसे बहुत मारंेगी। और फिर कभी उसे ट््यूषन नहीं पढ़वायेंगी।’’
‘‘लेकिन चेतना, इन सब बातों से तुम्हारे मेरे साथ घूमने जाने का क्या सम्बन्ध है......?’’
‘‘सम्बन्ध है सर। उसने कहा, उसे कहीं भी घूमने-फिरने जाने के लिए किसी-न-किसी सहारे की जरूरत होगी और आप उसे कब तक घुमाएंगे-फिराएंगे, थोड़े दिनों के बाद आप भी उससे ऊब जायेंगे और फिर उसकी ट्यूषन छोड़कर चले जायेंगे।’’ इसीलिए उसने सोच लिया है कि उसे सारी जिन्दगी इसी कमरे में कैद रहकर ही क्यों न बितानी पड़े, पर वह किसी टीचर को तंग नहीं करेगी।’’
चेतना की बातें सुनकर रोनित उससे सहानुभूति जताते हुए कहता है, ‘‘चेतना, यह सोचकर कि मैं तुम्हें छोड़कर चला जाऊँगा, इस डर से तुम म्यूजिक कोचिंग छोड़ दोगी......? ......मेरा यकीन करो चेतना, मैं तुम्हें कभी छोड़कर नहीं जाऊँगा......मैं तो खुद चाहता हूँ कि तुम किसी मुकाम पर पहुँचो।’’
‘‘सर, पता नहीं क्यों अब मुझे हर बात से बहुत डर लगने लगा है। लेकिन सर, मुझे आपकी बातों से बहुत हिम्मत और सहानुभूति मिलती है। उसने अपनी आँखों में भर आए आँसुओं को पोछते हुए कहा।
‘‘नहीं चेतना, अब तुम्हें किसी से डरने की कोई जरूरत नहीं है। अच्छा, देखो तुम यह फाॅर्म अपने पापा से भरवाकर इसमें लिखे पते पर जमा करवा देना।’’
‘‘ठीक है सर, मैं आज ही पापा को यह फार्म दे दूंगी।’’
क्रमशः ...........
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बाल उपन्यास: गुडविन मसीह