"ऋषभ हम सिर्फ दोस्त हैं और दोस्त ही रहेंगे।" कृतिका के मुँह से ये जवाब सुनकर ऋषभ दुःखी हो गया लेकिन फिर भी उसने उम्मीद नही छोड़ी थी।
ग्रामीण परिवेश से आयी कृतिका जब यूनिवर्सिटी पढ़ने पहुँची तो लड़को से बात करने में सहज न हो पाती। उसके साथ पढ़ने वाला ऋषभ सादकी से भरी छुई-मुई कृतिका पर कब दिल हार बैठा, उसे पता ही नही चला। कितने दिनों से ऋषभ इस मौके की तलाश में था, कि कब वो अपना हाल-ए-दिल कृतिका को बता सके। समझ तो कृतिका भी रही थी कि ऋषभ के दिल में उसके लिए कुछ तो है लेकिन पारिवारिक दबाव, पढ़ाई और कैरियर के चलते उसको नज़रअंदाज़ करती रहती। आखिरकार कॉलेज के वार्षिकोत्सव में ऋषभ को मौका मिल ही गया। साड़ी में लिपटी कृतिका की सादगी वहां मौजूद आधुनिकता में ढली लड़कियों पर भारी पड़ रही थी। जैसे ही उसे कृतिका अकेले दिखी वो उसके सामने आ गया और अपने दिल की बात अपने लफ्ज़ो में बयां कर दी।
"कृतिका, मैं कुछ कहना चाहता हूँ..." ऋषभ ने जब उसका हाथ थामते हुए कहा तो कृतिका घबराकर इधर-उधर देखने लगी, पहली बार ऐसा मौका था कि वो किसी लड़के के साथ अकेले खड़ी थी।
"मैं तुम्हें पसंद करता हूँ कृतिका... आगे भी तुम्हारा साथ चाहता हूँ।" इतना कहते ही ऋषभ की आंखों में एक चमक सी आ गयी, लेकिन कृतिका के इनकार ने उसका दिल तोड़ दिया। उसे लगा कि शायद कृतिका उसे पसंद नहीं करती लेकिन तब भी उसने अपनी दोस्ती नहीं तोड़ी। पढ़ाई से लेकर और भी किसी काम में जब कृतिका उसकी मदद चाहती तो ऋषभ बेहिचक उसकी मदद करता।
जबकि कृतिका के मन में भी ऋषभ के लिए प्रेम का बीज अंकुरित हो चुका था बस वो हाल-ए-दिल कहने में पिछड़ जाती। धीरे-धीरे ऋषभ को लगने लगा कि कृतिका के मन में उसके लिए कुछ भी नहीं है। उसका प्यार एक तरफा ही है।
समय गुजरता गया दोनों अपने अपनी पढ़ाई के आखरी साल में पहुँच गए। सब दोस्तों ने यूनिवर्सिटी छोड़ने से पहले एक पार्टी रखी। ऋषभ और कृतिका दोनों ही मौजूद थे। न जाने क्यों कृतिका, ऋषभ को देखकर अपने प्यार का इजहार करने को तड़प उठी। वो इंतजार करने लगी कि कब ऋषभ अकेले हो और वो उससे अपने दिल की बात कह सके। जल्द ही उसे ऋषभ किसी से फोन पर बात करता हुआ अलग खड़ा दिखाई दिया।
"ऋषभ ! जिस बात को तुम कबसे सुनना चाह रहे थे, आज वो बात मैं तुमसे कहती हूँ, मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, और तुम्हें अपनी ज़िन्दगी का साथी बनाना चाहती हूँ।"
ऋषभ कुछ पल की खामोशी के बाद बोला... "तुमने देर कर दी कृतिका ! मैंने तुम्हारा बहुत इंतजार किया लेकिन शायद तुमने मुझे अपने लायक न समझा।"
"कोई देर नहीं हुई है ऋषभ, अब हम दोनों सेट हो चुके हैं।" उसने ऋषभ का हाथ अपने हाथों में ले लिया।
कृतिका से अपना हाथ छुड़ाते हुए ऋषभ अपने मोबाइल पर अपनी मंगेतर की फोटो दिखाते हुए बोला, "अब हम सिर्फ दोस्त हैं और सिर्फ दोस्त ही रहेंगे।"
शिवानी वर्मा
शांतिनिकेतन