वो भूली दास्तां भाग-१७ Saroj Prajapati द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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वो भूली दास्तां भाग-१७

जब से चांदनी को विशाल की पिछली जिंदगी के बारे में पता चला था, तब से उसे अपने उस व्यवहार के लिए बहुत शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। जो अब तक वह विशाल के साथ करती आई थी। बिना उसके बारे में जाने समझे पता नहीं मन में क्या क्या गलत धारणा बना बैठी थी और एक वो था जो उसके इतने गलत बर्ताव के बाद भी कभी बुरा नहीं मानता था। उसका दुख तो मेरे दुख से कहीं ज्यादा था। फिर भी कैसे उसे सीने में छुपा दूसरों की जिंदगी संवारने व उनके चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए हमेशा हंसता मुस्कुराता उनके साथ लगा ही रहता है।
और एक वो है कि उसने अपने दुख के आगे दूसरे के दुख को कम ही समझा। पूरे परिवार को कितनी तकलीफ दे रही है। उसके कारण ही तो परिवार को वह घर छोड़ना पड़ा। फिर भी मैं अपने दुख में जी रही हूं ।। कल्याणी आंटी और विशाल से तो मेरा कोई रिश्ता भी नहीं ।फिर भी वह मेरी खुशी के लिए कितना कुछ करते आए हैं और एक मैं हूं जो हमेशा उन्हें तकलीफ देती रही। मां और आंटी सही तो कहते हैं ,दुनिया में हमसे भी ज्यादा दुखी लोग हैं। विशाल ने यह बात समझ ली और मैं। हां अब मैं भी इस दुख के चोले को उतार कर अपने परिवार, अपने जीवन और दूसरों के सुख के लिए काम करूंगी।
लेकिन इससे पहले मुझे विशाल से माफी मांगनी होगी। कितना दुख पहुंचाया है, मैंने उसे अपने बातों से। यही सब सोचते सोचते पूरी रात आंखों ही आंखों में निकल गई चांदनी की।

आज जल्दी उठकर रसोई में गई देखा तो मां नाश्ते की तैयारी कर रही थी। जाते ही अपनी मां की गले में झूल गई और बोली "मां आप हटो, आज मैं नाश्ता बनाऊंगी।"
"अरे आज मेरी बिट्टू इतनी जल्दी कैसे उठ गई और ऊपर से नाश्ता भी बनाएगी क्या बात है भई।"
"कुछ नहीं मम्मी, बस आज मेरा मन किया कि बहुत दिन हो तो आज आप बैठो और मेरे हाथ का गरमा गरम नाश्ता करो।"
"वह तो ठीक है बेटा पर तुझे काम के लिए देर हो जाएगी।"
"अरे मम्मी, मैं सब मैनेज कर लूंगी आप टेंशन मत लो और जाओ अपनी पूजा करो।"
आज अपनी बेटी को पहले की तरह बेफिक्री सी बातें करते देख चांदनी की मम्मी को बहुत ही अच्छा लग रहा था। उसने मन ही मन भगवान को शुक्रिया अदा किया।
चांदनी जब से एनजीओ में आई थी। उसकी नजर विशाल को ही ढूंढ रही थी। लेकिन वह आज ना तो अपने ऑफिस में था और ना ही कहीं दिखाई दे रहा था। जब उसने बातों ही बातों में सीनियर स्टाफ से इस बारे में पूछना चाहा तो पता चला कि विशाल की तबीयत सही नहीं है और शायद आज वह ना आए।
सुनकर चांदनी उदास हो गई। कितना सोच कर आई थी वह कि आज विशाल से अपनी पिछली सभी बातों के लिए माफी मांग लेगी और और भी बहुत कुछ ! जा तो वह उसके घर भी सकती है लेकिन आंटी के सामने शायद खुलक कुछ कह ना सके। उसका मन नहीं लग रहा था काम में। बार-बार उसकी नजरें गेट पर चली जाती । शायद विशाल आ जाए।
छुट्टी से कुछ देर पहले जब वह क्लास में पढ़ा रही थी, तभी एक कर्मचारी ने आकर उसे बताया कि विशाल सर आ गए और आपको बुला रहे है ।
सुनकर चांदनी को ऐसा लगा कि उसके मुंह मांगी मुराद पूरी हो गई हो ।वह क्लास के बाद जब विशाल के ऑफिस की ओर जाने लगी तो उसे मन ही मन एक उलझन सी महसूस हो रही थी। पता नहीं क्यों वह उसका सामना करने से कतरा रही थी। उसे अपने आप पर गुस्सा भी आ रहा था कि सुबह से तो वह उसका इंतजार कर रही थी और जब बुला रहे है तो मन में यह अजीब सी उथल-पुथल क्यों! वह किसी तरह से हिम्मत बटोर विशाल के पास चली गई। उस समय विशाल के साथ स्टाफ की तीन चार मेंबर और बैठे हुए थे। विशाल ने उसे बैठने के लिए कहा और बोला
"चांदनी जी मैंने आप सबको यहां एनजीओ के जरूरी काम से बुलाया है। मैं यहां एक नया प्रोजेक्ट शुरू कर रहा हूं। उसी के बारे में आप सबसे राय लेनी थी।" काफी देर तक मीटिंग चली। मीटिंग के बाद सब जाने लगे तो चांदनी वहीं खड़ी रही। तब उस ने कहा "आपको मुझसे कुछ काम है!" चांदनी ने हां में सिर हिला दिया।
"हां बताइए क्या कहना चाहती हैं आप!"
अभी वहां पर 1-2 स्टाफ मेंबर और थे चांदनी ने उनकी तरफ देखा तो विशाल समझ गया।
उनके जाने के बाद विशाल ने कहा "कहिए चांदनी जी ऐसी कौन सी बात है जो आप मुझे अकेले में ही कहना चाहती हो। वैसे सही भी है अकेले में एक फायदा यह है भी है कि अगर आप मुझे फिर से डांटेगी तो कोई सुनेगा नहीं और भई इज्जत के चिथड़े होने से बच जाएंगे।"
विशाल की ऐसी बातें सुन आज उसे बुरा नहीं लगा। वह धीरे से बोली
" विशाल जी आप कह सकते हो ।आपको कहने का हक बनता भी है क्योंकि आज तक मैंने अपने बुरे बर्ताव से आपका बहुत दिल दुखाया है और आज मैं आपसे उन सभी की माफी मांगना चाहती हूं। जाने अनजाने में मुझसे जो गलती हो गई , हो सके तो मुझे माफ कर दो।" कहते हुए चांदनी की आंखों में आंसू आ गए।
"चांदनी जी आपको माफी एक शर्त पर मिल सकती है!"
"मुझे आपकी सारी शर्त मंजूर है। आप कहिए तो सही!"
"मेरी शर्त इतनी सी है बस कि आप अपने चेहरे पर से उदासी की चादर उतार दीजिए। क्योंकि मैं नहीं चाहता यहां काम करने वाला कोई भी इंसान दुखी या उदास हो । मेरे जीवन का उद्देश्य है कि मैं यहां काम करने वाले लोगों के जीवन से दुख तकलीफों को दूर कर उनके जीवन में खुशियों के अनेक रंग भर दूं। और आपकी उदासी मुझे नाकामयाबी का एहसास कराती है। प्लीज मेरी आपसे यही रिक्वेस्ट है कि आप यहां आए तो अपनी दुख व उदासी को घर ही छोड़ कर आए। जब तक हम खुद खुश नहीं होंगे ,दूसरों के जीवन में खुशियां कैसे लाएंगे। हां तो बताइए क्या आपको मेरी यह शर्त मंजूर है।"
"जी बिल्कुल मंजूर है। कल से आपको मैं ऐसी शिकायत का मौका नहीं दूंगी।"
"कल से क्यों ! आज से क्यों नहीं! "
"जी आज से ही कोशिश करूंगी।" चांदनी मुस्कुराते हुए बोली।
"अब तो आपने मुझे माफ कर दिया है ना।"
"माफ तो तब करता ना जब मुझे आप से कोई शिकायत होती।हम सब साथ काम करते हैं। छोटी-छोटी बातों पर यों नाराज होते रहे तो जिंदगी में कभी आगे नहीं बढ़ सकते। रात गई बात गई। अपने जीवन का तो यही उसूल है।" विशाल हंसते हुए बोला।
चांदनी भी उसकी बातें सुन मुस्कुराते हुए बाहर आ गई।
उस दिन के बाद चांदनी ने भी एनजीओ में आने वाले गरीब बेसहारा बच्चों व लड़कियों के जीवन में खुशियां भरना अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। पहले यहां काम करना उसके लिए अपना दुख दूर करने का साधन मात्र था लेकिन अब यह काम ना होकर उसके जीवन की उपासना बन गया था। अब वह विशाल के साथ मिलकर इस एनजीओ के उद्देश्य को सार्थक करने में जुट गई थी।
समय के साथ साथ दोनों एक दूसरे को अच्छे से समझने व पसंद करने लगे थे। दो टूटे दिलों में फिर से जीने की आस व प्यार का एहसास पनपने लगा था। दोनों इस बात को समझ रहे थे लेकिन स्वीकार करने में झिझक रहे थे। कल्याणी व चांदनी की मां ने अपनी पारखी नजरों से उनके मौन प्रेम को पहचान लिया था और वह दोनों ही इस रिश्ते को आपस में स्वीकृति भी दे चुकी थी। बस उनको इंतजार था दोनों की सहमति का।
संडे के दिन चांदनी के घर खीर बनी थी तो उसकी मां ने कहा "बिट्टू, विशाल को खीर बहुत पसंद है। जा तू उसे खीर दे आ।"
कल्याणी उसके हाथ में टिफिन देख बोली "अरे बेटा क्या ले आई!"
"आंटी जी खीर बनाई थी आज। मां ने आप दोनों के लिए भिजवाई है। कह रही थी कि विशाल जी को खीर बहुत पसंद है।"
"हां वह तो है। लेकिन आज तो वह पार्टी में गया है। उसके दोस्त का जन्मदिन है। कोई नहीं मैं उसके लिए रख दूंगी।
आंटी जी, विशाल जी अपना जन्मदिन नहीं मनाते क्या क्योंकि जब से हम यहां आए हैं और मैंने एनजीओ ज्वाइन की है, कभी मैंने उन्हें अपना बर्थडे सेलिब्रेट करते नहीं देखा।"
यह सुन कल्याणी के चेहरे पर दुख की रेखाएं उभर आई वह बोली "बेटा जन्मदिन कैसे मनाएं!"
"क्या मतलब आंटी जी!"
"बेटा जिस दिन उसका जन्मदिन होता है, उसी दिन उसकी शादी की सालगिरह भी होती थी। बस जब से वह हादसा हुआ है, उसने अपना जन्मदिन मनाना ही छोड़ दिया। पूरे साल खुश रहने वाला मेरा विशाल उस दिन अपने आप को अंधेरे कमरे में बंद कर लेता है। चाह कर भी मैं कुछ नहीं कर पाती।"
सुन चांदनी को भी बहुत दुख हुआ लेकिन उसे मन ही मन सोच लिया था कि जैसे विशाल जी ने उसे दुख की छाया से बाहर निकाला, वह भी उसे इस दुख से बाहर निकाल लाएगी।
2 महीने बाद विशाल का जन्मदिन आया। चांदनी ने कल्याणी के साथ मिल विशाल के जन्मदिन की योजना बनाई। सुनकर कल्याणी ने कहां "बेटा सुनकर बहुत अच्छा लग रहा है कि तू मेरे विशाल के बारे में इतना सोच रही है लेकिन मुझे डर है, कहीं वह बुरा ना मान जाए और तुझे बुरा भला ना कह दे।"
"आंटी जी, आप बेफिक्र रहें। अगर वह मुझे कुछ कहेंगे भी तो मैं बुरा नहीं मानूंगी। बस आप तैयारी करके रखना। मुझे यकीन है मैं उन्हें इस दिन के बारे में एक नया नजरिया दूंगी और उनको वह मानना ही पड़ेगा।"
चांदनी ने आज सबके साथ मिल पूरी एनजीओ को अच्छे से सजाया था और मिठाई का भी इंतजाम किया था। विशाल जब वहां पहुंचा तो पूरे स्टाफ व बच्चों ने उसे जन्मदिन की मुबारकबाद दी और मिठाई खिलाई।
विशाल को यह तामझाम व खुशी अच्छी ना लगी। उसे पता चल गया था कि यह सब आयोजन चांदनी ने किया है। अपने ऑफिस मे पहुंच उसने चांदनी को बुलाया और कहा "आपको यह सब नहीं करना चाहिए था।_
" क्यों भला हमारे एनजीओ के हेड का जन्मदिन है और ऐसा सूखा सूखा हो। हमें तो अच्छा नहीं लगता। हम तो और धड़ाका करने वाले थे लेकिन एनजीओ में यह सब अच्छा नहीं लगता। इसलिए अपने आप को रोक लिया। लेकिन शाम को आपके घर में जरूर रोनक लगाएंगे। कहो कैसा है मेरा आईडिया! अच्छा लगा ना आपको! "
"नहीं कोई धूमधाम नहीं होगी। कोई जन्मदिन नहीं मनेगा।"
"पर क्यों! और दिनों तो आप हंसते मुस्कुराते रहते हो और आज के दिन! आप भी हमें उदासी की चादर ओढ़े हुए अच्छे नहीं लगते विशाल जी।"
" चांदनी आज के दिन मुझसे कुछ मत कहो । मुझे अकेला छोड़ दो। "
" क्यों अकेला छोड़ दूं। क्या आपने हमें हमारे दुख के साथ अकेला छोड़ा था। नहीं ना। फिर हम क्यों!"
"तुम्हें नहीं पता आज के दिन मेरे साथ क्या हादसा हुआ था!"
"मुझे सब पता है आंटी जी ने मुझे सब बता दिया।"
"फिर भी तुम कहती हो, मैं इस दिन खुशियां मनाऊं! "
" हां विशाल जी, आपको इस हालत में देखकर साक्षी की आत्मा दुखी ना होती होगी। जो आपसे प्यार करता है, आपको चाहता है वह हमेशा आपको सुखी देखना चाहते हैं। चाहे इस लोक में हो या परलोक में। आज के दिन तो आप लोगों एक हुए थे ना। उस याद को हमेशा बनाए रखने के लिए आपको यह दिन मनाना चाहिए। ऊपर बैठी साक्षीजी देख कर कितना खुश होगी कि उसके जाने के बाद भी आप उसे भूले नहीं हो और ना इस परिणय दिवस को। उठिए और एक नई शुरुआत कीजिए!"
चांदनी ने विशाल के हाथों से पूरी एनजीओ में मिठाई बंटवाई। मिठाई खा हर बच्चे के चेहरे पर मुस्कान छा गई। उनके चेहरे पर मुस्कुराहट देख, विशाल को आंतरिक शांति मिली।
मिठाई बांटने के बाद वह दोनों वापस ऑफिस में आए तो दोनों के ही चेहरे पर मुस्कान थी। कुछ जरूरी बातों के बाद जब चांदनी जाने लगी तो विशाल ने उससे कहा "चांदनी जी मुझे आपसे कुछ जरूरी बातें करनी है।"
"हां हां, कहिए ना! आज तो मैं आपकी हर बात सुनने को तैयार हूं। आज जो आप कहोगे वही होगा बोलिए तो सही!" चांदनी अपनी ही मस्ती में बोले जा रही थी।
" चांदनी क्या इस जिंदगी के सफर में तुम मेरी जीवनसंगिनी बनना पसंद करोगी। क्या तुम मुझसे शादी करोगी!"
विशाल के मुंह से एकदम से शादी का प्रस्ताव सुन चांदनी को कुछ समझ ही नहीं आया। वह भी तो यही चाहती थी लेकिन एकदम से! इतनी जल्दी! विशाल अचानक ऐसे बोल देगा। उसने सपने में भी ना सोचा था।
उसे चुप देख कर विशाल ने फिर से कहा "क्या बात है चांदनी! क्या मैं तुम्हें पसंद नहीं । ऐसी बात है तो साफ-साफ कह दो मैं बुरा नहीं मानूंगा।"
"विशाल जी, ऐसी कौन सी लड़की होगी, जो आपको पसंद ना करें। मैं कुछ भी कहने से पहले आपको अपनी पिछली जिंदगी के बारे में बताना चाहूंगी। उसके बाद शायद आप यह प्रस्ताव रखें।"
" चांदनी मुझे भी मां ने तुम्हारी पिछली जिंदगी के बारे में सब बता दिया है। हम दोनों एक ही कश्ती में सवार मझधार में फंसे मुसाफिर है और मुझे पूरा भरोसा है कि अगर हम साथ साथ रहे तो हमारी जीवन नैया जरूर किनारे लग जाएगी। अब मैं तुम्हारे मुंह से इस बारे में सुनना चाहता हूं।"
"मुझे दुख के सागर से निकाल, मेरे जीवन को एक नई दिशा देने वाले आप ही हो। मुझे भी यह रिश्ता मंजूर है। बस एक ही विनती है आपसे कि आप मुझे मझधार में अकेला नहीं छोड़ोगे। एक बार तो तूफ़ानों से बच गई। शायद अगली बार इतनी हिम्मत ना जुटा सकूं।" कहते हुए चांदनी की आंखों से आंसू निकल आए।
"नहीं ऐसा कभी नहीं होगा। सुख हो या दुख हम साथ साथ मिलकर सहेंगे और हमेशा साथ रहेंगे। वादा है मेरा कि आज के बाद कभी तुम्हारी आंखों में आंसू ना आने दूंगा।" विशाल ने चांदनी के आंसू पोंछ उसे गले लगाते हुए कहा ।
क्रमशः
सरोज ✍️