रघुवन की कहानियां - राम दरबार Sandeep Shrivastava द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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रघुवन की कहानियां - राम दरबार

रघुवन में आज सुबह से ही प्रसन्नता का वातावरण था। सभी लोग आँखों में प्रसन्नता लिए किसी की प्रतीक्षा कर रहे थे। झुण्ड के झुण्ड रघुवन के बरगदी हनुमान मंदिर की और बढ़े जा रहे थे। बाबा वानर सुबह से ही मंदिर में जाके बैठे हुए थे। कम आयु के प्राणी यह जानने को उत्सुक थे कि आज होने क्या जा रहा है? अपनी छोटी सी आयु में ऐसा उत्सव उन्होंने कभी नहीं देखा था। साहस जुटा कर, टप्पू बंदर ने बाबा वानर से पूछने का निर्णय लिया। टप्पू बाबा वानर के पास जाके बोला “बाबा, आज कौन सा त्यौहार है, सभी लोग खुश क्यों हैं ? ऋतू में कोई परिवर्तन नहीं है। होली , दिवाली दशहरा भी नहीं है , फिर यह उत्सव कैसा है ?”

बाबा वानर आँखों में दुलार भर कर बोले “आज कोई त्यौहार तो नहीं है , पर आज का दिन किसी त्यौहार से कम भी नहीं है?”

टप्पू बोला “ऐसा क्या है आज बाबा?”

बाबा बोले “हमारे रघुवन के बरगदी हनुमान जी वैसे तो सदैव हम पर कृपा रखते हैं, परन्तु हनुमान जी की प्रतिमा का मुख यहाँ समय समय पर उदास प्रतीत होता है। इस कारण हम सभी चिंतित रहते थे, पर अब इसका समाधान मिल गया है। इसी उपलक्ष्य में आज रघुवन में सब प्रसन्न हैं। “

टप्पू बोला “हाँ मैंने भी कई बार हनुमान जी के मुख पे उदासी देखी है। मेरे मन को भी हनुमान जी को उदास देख कर पीड़ा होती थी। क्या समाधान मिला है हनुमान जी की उदासी का?”

बाबा वानर बोले “हनुमान जी का सुख श्री राम जी के सुख में है और उनके सान्निध्य में ही है। गरुड़ कल एक नगर के ऊपर उड़ रहा था। वहां उसने देखा कि एक नए भव्य राम मंदिर का भूमि पूजन हो रही था। वहां एक अस्थायी मंदिर में रामलला की प्रतिमा रखी हुई थी। मंदिर में पूरा राम दरबार लगा हुआ था, राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान जी विराजमान थे। हनुमान जी के मुख पर प्रसन्नता उन्हीं की भांति अजर अमर थी। ऐसा लग रहा था जैसे हनुमान जी राम दरबार में ही अपना संसार बनाये हैं। पर यहाँ वन में हनुमान जी की प्रतिमा वर्षों से अकेली ही विराजमान है। यहाँ ना रामलला है ना राम दरबार, हनुमान जी यहाँ कैसे प्रसन्न रहेंगे?”

टप्पू बोला “पर भगवान तो सब जगह होते हैं। हनुमान जी के तो ह्रदय में भी राम हैं। फिर मंदिर में प्रतिमा और राम दरबार की क्या आवश्यकता क्या है?”

बाबा वानर बोले “बहुत अच्छा प्रश्न किया है यह। भक्त के भावना से भरे हुए ह्रदय के लिए भगवान हमेशा साकार रूप में ही आराध्य होते हैं। हनुमान जी तो राम जी के परम भक्त हैं। उनका ह्रदय भी सदैव राम जी के साकार रूप को ही ढूंढ़ता है। भगवान का साकार रूप पूजने वाले भक्त संसार में भी मोक्ष का आनंद उठाते हैं और भगवान के लिए भी विशेष स्थान रखते हैं और भवसागर पार करने में उन्हें कष्ट भी नहीं होता है। भगवान ने गीता में कहा है -
मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते ।
श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मताः ॥ (२) अध्याय १२

भावार्थ : श्री भगवान कहा - हे अर्जुन! जो मनुष्य मुझमें अपने मन को स्थिर करके निरंतर मेरे सगुण-साकार रूप की पूजा में लगे रहते हैं, और अत्यन्त श्रद्धापूर्वक मेरे दिव्य स्वरूप की आराधना करते हैं वह मेरे द्वारा योगियों में अधिक पूर्ण सिद्ध योगी माने जाते हैं।

इसलिए हनुमान जी का ह्रदय राम जी के सान्निध्य में, राम दरबार में ही प्रसन्न रहता है।“

टप्पू बोला “तो क्या हम बरगदी हनुमान को दूसरे मंदिर के राम दरबार में भेज देंगे?”
बाबा वानर बोले “नहीं , हम इसी मंदिर में राम दरबार बनाएंगे । मोलू कछुवे को नदी के तल में एक शिला मिली हैं। उस शिला पर स्पष्ट राम दरबार शिल्पित किया हुआ है। आज हम उसी शिला स्थापना हनुमान जी के मंदिर में करने वाले हैं। आज उसी का उत्सव है।“

टप्पू भी बहुत प्रसन्न हुआ , वो उछलता हुआ बोला “हुर्रे… बहुत मजा आएगा… कब है राम दरबार की स्थापना?”

तभी नगाड़ों की आवाज़ आने लगी। फूलमाला से सजी राम दरबार की शिला रघुवन के प्राणी अपने कन्धों पे उठा कर ला रहे थे। जय सियाराम जय सियाराम के नारे लग रहे थे। सब नाच रहे थे। झूमते झूमते सबने मंदिर में प्रवेश किया। एक विशेष स्थान पर राम दरबार की स्थापना करी गई। सब हर्षोल्लाष से झूम रहे थे। भक्तिभावना पूरे वातावरण में विसर गई थी।

अब हनुमान जी के मुख पे स्थिर प्रसन्नता छाई हुई थी। सब राम दरबार और हनुमान जी को देख कर आनंदित हो रहे थे। संध्या में मंदिर में सबके भोजन प्रसाद की व्यवस्था थी। सबने पहले राम दरबार और हनुमान जी को भोग लगाया। फिर सबको भोजन परोसने के लिए पंगत लगाई गई।

फिर सबने मिलकर पार्टी करी।