यह कोई कहानी नहीं है ,यह एक कोशिश है उस प्यार को वापस लाने की जो आज हमारे इस समाज से कहीं खो सा गया है....और मुझे पूरा विश्वास है इस कहानी को पढ़ने के बाद आपके लिए प्यार का मतलब बदल जाएगा -Shubhaम
आज का दिन।
आज इतने साल बाद भी मन में बस एक ही सवाल है.....क्या 10 साल पहले जो मैंने किया था वो गलत था? आखिर क्यों मैंने उस राश्ते को चुना जो मुझे मेरे ही अपनों से दूर ले गया? पर कभी कभी लगता है शायद ऐसे भी कुछ राश्ते होते हैं जिनकी हमे मंजिल तो पता नहीं रहती है पर फिर भी हमे उन्हें चुनना पड़ता है। रात के २ बज रहे पर हमेशा के तरह मन में वही सवाल गूंज रहे। क्यों किया मैंने वो ? क्या मिला वो कर के मुझे ? क्या फिर से सब ठीक हो पायेगा ? ना मुझे कभी इन् सवालो के जवाब मिलते और ना ही मै किसी से पूछ सकता था इनके जवाब।इसलिए दिसंबर की इस शर्द रात में काले आशमान के नीचे भर्फीली हवाओ के बीच मैंने लिखने का फैसला किया।अपनी डायरी निकाला और बैठ गया लिखने । इसी उमींद की क्या पता लिखते लिखते ही मुझे मेरे सवालो का जवाब मिल जाये। या सच कहु तो जवाब तो बहना था मै तो फिर से कम ही सही पर उन् चंद अच्छे पलो को दुबारा जीना चाहता था।
२५ साल पहले।
"दादी आपने मेरा नाम कृष्णा क्यों रख दिया सब मुझे ए कृष्णा तेरी राधा कहा है कह कर चिढ़ाते रहते है " दादी की पल्लू में अपना सर छिपाते हुए और थोड़ा नाराज होते हुए मैंने अपनी दादी से कहा ये। इस वक़्त मेरी उम्र ७ साल थी। "वो पागल है तू उनकी बातो पे ध्यान ना दिया कर तू एकदम मेरे कान्हा के तरह नटखट सा और प्यारा सा है इसलिए तो तेरा नाम उनके नाम पे रखा " दादी ने प्यार से मेरे सर पे हाथ फेरते हुए कहा।मै हल्का सा मुस्कुराया " अच्छा दादी ये राधा कौन थी ?" दादी मुस्कुराते हुए "राधा कृष्ण जी की सबसे अच्छी दोस्त थी " "जैसे अमर मेरा दोस्त है ?" "हाहा उससे भी बहुत अच्छी दोस्त वो कृष्ण जी का बहुत ख्याल रखती थी उनसे बहुत प्यार करती थी " "जैसे आप लोग मुझसे प्यार करते हो वैसे ही ? " "हाहा हाँ वैसे ही बल्कि उससे भी ज्यादा " "तो क्या दादी मुझे भी राधा जैसी दोस्त मिलेगी ?" "हाँ और क्या बस तू बड़ा हो जा और कृष्ण जी के तरह अच्छा बच्चा बन के रहना चल अब तू जा के पढाई कर तेरे पापा के आने का टाइम हो रहा " दादी ये कह कर चली गई पर मै काफी देर तक तक वही बैठा रहा और सोचता रहा क्या सच मै कोई ऐसा होगा जो मुझे सबसे ज्यादा प्यार करेगा मेरी दादी और मम्मी से भी ज्यादा। ये बात मेरे छोटे से मन में घर कर गई. तबसे मै हर जगह अपनी राधा को ढूंढ़ने लगा। समय के साथ ये जूनून और भी बढ़ता गया । मै हर साल जब स्कूल शुरू होता तो सबसे पहले रजिस्टर में सारे नाम देखता की क्या इस साल हमारे क्लास में कोई राधा नाम की लड़की आई है या नहीं। सच कहु तो समय के साथ साथ मै अपने राधा की मीरा बन गया था ,जिससे ना कभी मिला ना देखा फिर भी वो मेरे लिए इतना खाश हो गया था। धीरे धीरे समय बीतता गया...
वाराणसी में एक एक छोटा सा घर था हमारा, जिसमे मै यानी की कृष अपने पापा जो की पेशे से क्लर्क है और ऊपर से ईमानदार भी और ये ही कारण है की उनके साथ के लोग आज मोटरों में चलते और वो अभी भी अपनी 21 साल पुरानी स्कूटर से। माँ और स्कूटर दोनों इक ही दिन हमारे घर आई थी पर माँ पर तो अब उम्र का असर दिखने लगा पर स्कूटर आज भी जवान है।और इसका सारा श्रेय पापा को जाता है जो खुद भले ही ना नहाये पर उनकी स्कूटर बिना नहाये कभी ऑफिस नहीं जाती है।मेरे घर की दूसरी सदस्य है मेरी माँ,शायद ही इनके जैसा दुनिया में कोई दूसरा होगा। दुनिया में सबसे ज्यादा मुस्किल अगर कोई काम है तो वो है माँ को समझना ,पता ही नहीं चलता की वो कभी कुछ अपनी ख़ुशी के लिए भी करती है या सब सिर्फ हमारी ही ख़ुशी के लिए। और हमारे घर की लास्ट मेम्बर है मेरी बड़ी बहन साक्षी ,जिसने M.A
किया हुआ और अब अपनी शादी का वेट कर रही है.मुझे तो लगता है M.A. B.A. वो ही लोग करते हैं जिन्हें बस शादी की जल्दी लगी रहती है. हाहा।दादी अभी भी हमारे साथ थी बस अब घर में ना हो कर यादो में।
मेरे घर का भी हाल हर मिडिल क्लास फॅमिली की ही तरह थी,जहा घर के बड़ो को बस दो ही काम रहते हैं एक तो लड़की की शादी की टेंसन लेना और दूसरा अपने बेटे से ढेर सारी उमींदे लगाये रखना। मैंने इस साल 12 पास किया था और मेरे माँ पापा के आशीर्वाद से डॉक्टर की पढाई करने के लिए मेरा एडमिशन देहरादून के एक अच्छे कॉलेज में हो गया था और आज मुझे वह के लिए निकलना था। आप लोग कहीं ये मत समझलेना की मैंने वहाँ इसलिए एड्मिसन लिया था क्यूकी मेरा मन किसी हिलस्टेशन से पढने का था बल्कि मैंने इस लिएएडमिशन लिया था क्यूकी उनकी एक अलग स्कीम थी की पढ़िए आज और फ़ीस दीजिये कमाने के बाद......
अब आगे..............