GHAR KO SAB PATA HAI books and stories free download online pdf in Hindi

घर को सब पता है

भारत एक ऐसा देश है जिसमें लोग पूरे देश को ही अपना परिवार मानते हैं सभी लोगों आपस में मित्र की तरह रहते हैं सभी में अपनापन, सहानुभूति और इंसानियत आज भी जिंदा है। सभी दूसरों की खुशी को अपनी खुशी और दूसरों के दुख को अपना दुख मानते हैं। लेकिन यह जो मैत्रीयपूर्ण संबंध कि बात में लोगों के बीच कर रही हूं वही संबंध यहां की वस्तुओं, जगहों, पेडों, जानवरों में भी आपस में है क्योंकि जिस देश का जैसा माहौल होगा वैसा ही उसके आसपास के वातावरण में भी देखने को मिलेगा।

जिस तरह इस देश के लोग आपस में बात कर के अपने खुशी को दुगना और दुख को आधा कर लेते हैं वैसे ही इस कहानी में घर कैसे आपस में अपने संबंध को निभा रहे है वह देखने से ही हमें पता चल जाएगा कि “घर तो आखिर घर होता है“ वैसे भी भारतीय समाज में घर को बहुत ऊंचा दर्जा दिया गया है। कहा गया है कि घर तो एक मंदिर है और उसमें रहने वाले लोग उसके भगवान। जिस तरह मंदिर के हर कण कण में भगवान समाये हुए होते हैं उसी तरह मंदिर रूपी घर में उसके हर सदस्य की छवि समायी हुई होती है वह तो घर के हर सदस्य के साथ ऐसे जुड जाता है जिस तरह उसमें रहने वाले लोग आपस में जुडे होते हैं। और जुडा हुआ हो भी क्यों ना! एक घर ही तो होता है जिसे हमारी बहुत सी पीढी देखने, उनके साथ रहने का सौभागय मिलता है , वह सौभागय जो हमें तो मिलना बहुत मुशिकल है।

ये कहानी उन दो घरों की है जो अपने अपने विचारों को आपस मे कैसे बांट रहे है।इन घरों के आपस के वार्तालाप सुनकर आप लोग भी स्तब्द रह जाओगे घर एक ऐसी जगह जहां हमारा जन्म होता है ; जहां हम खेलते कूदते हैं और अपना सारा जीवन बीताते हैं तो हम क्या सोचतें है वो घर जो हमारे सारे कामों में हमारा साथ होता है वो र्सिफ एक ईंट और चूने से बनी इमारत है ! लेकिन ऐसा नहीं होता घर केवल एक इमारत नहीं होता वो हमारे हर कार्य का साक्षी होता हैं। और वैसे भी इमारत तो मकान को कहा जाता है क्योंकि वो सिर्फ एक चारदीवारी होती है वहां कोई नहीं होता रहने वाला और उसको घर बनाने वाला

घर तो हमेशा से ही एक जीवन्त संरचना हैं। जब हम उसकी दीवारों को छूते है; उसके फर्श पर चलते है तो मानों उसमें एक तरंग का संचार होता है। और मानो ऐसा लगता है कि वह हमें यह सब करता देखकर अंदर से बहुत खुश हो रहा हो!

आज मैं आप लोगों को घर की ऐसी कहानी से रूबरू करवाने जा रही हूँ जिसमें शर्मा निवास और तिवारी सदन के बीच में क्या बातचीत हो रही है जिसे सुनकर आप भी मानने लगगें कि “घर“ वास्तव में एक सजीव जगह है और वह कैसे अपने अंदर रहने वाले सदस्यों से आपस में जुडे हुए है।

शर्मा निवास जहां पर आज लडकी का जन्म हुआ है, और तिवारी सदन जहां आज लडके का जन्म हुआ है...................................

तिवारी जी का घर :- आज मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं है क्योंकि मेरे आंगन में आज बेटे का जन्म हुआ है। तिवारीजी की बहू ने पुत्र को जन्म दिया है इसी कारण आज मेरे आंगन में आसपास के सभी लोग के द्वारा बधाई देने के लिए तांता लगा हुआ है कोई आ रहा है कोई जा रहा है और कई औरतें ने तो ढोलक लेकर गाना बजाना ही शुरू कर दिया और ये क्या बेटे के आगमन की खबर सुनकर किन्नर भी आ गए और न जाने कितनी दुआएं दे डाली नवांगतुक शिशु को और उसके माता पिता को और फिर दुआओं के बदले अपना मुंह मांगा इनाम भी मांगने लगे।

लेकिन अभी तो तिवारीजी पौत्र खुशी में इतने बावले हुए पडे है कि अभी तो चाहे कोई उनसे कुछ भी मांगले वो दे देंगे और सच भी है नए मेहमान की खुशी होती ही कुछ ऐसी है क्योंकि कहते है ना “मूल से ज्यादा ब्याज प्यारा“ और वो भी बेटा होना,

बेटे को हमारे समाज में पहले से ही सर्वोच्च स्थान मिला हुआ कहतें हैं कि बेटा होने से वंश आगे बढेगा और अपने परिवार और पीढियों का नाम रोशन करेगा।

शर्मा जी का घर :- बहुत ही सुस्त और मुरझायी हुअी स्थिति में

तिवारीजी का घर :- बहुत ही इतराते हुए अंदाज में शर्मा जी के घर से पूछता है क्यों रे क्या हुआ तूझे, जो तू आज इतना उदास लग रहा है ?

शर्मा जी का घर :- आज मेरे आंगन में भी नये मेहमान ने जन्म लिया

तिवारी जी का घर :- तो फिर इसमें उदास होने की क्या बात है ये तो बहुत अच्छी बात है न जब इस नवांगतुक शिशु के आने से जो बधाईयों के स्वर तेरी दीवार रूपी कानों में गए होंगे और उस नन्हें बच्चे की किलकारी को जब तूने सुना होगा उससे तो तेरे अंदर एक नई चमक आ जानी चाहिए फिर भी तू इतना मुरझाया हुआ क्यों ?

शर्मा जी का घर :- नही! मत बोल ऐसा......... मेरे साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ क्यों कि मेरे यहां नए मेहमान के रूप में एक बेटी ने जन्म लिया और जब से उस नन्हीं परी ने जन्म लिया।

तब से मेरे कानों में तो एक ही स्वर ही सुनाई पडता है (शर्मा जी की माताजी की आवाज) पहला बच्चा ही बेटी अरे रे रे ! मेरे तो भागय ही फूट गये मैंने तो कितने अरमान सजा रखे थे पोते की आस में मेरे तो सारे अरमानों पर ही पानी फिर गया । बेटी हुई है ये क्या कुल का नाम रोशन करेगी अगर पोता होता तो मौहल्ले में मेरा कितना नाम हो जाता। पता है पास वाली वो शुक्लाइन कैसी हंस रही थी मुझ पर और ताना कसते हुए बोल रही थी मुंह मीठा नहीं करवाओगी क्या ? मैंने भी कह दिया अरे बेटी होने पर मिठाई क्या खिलानी अगर पोता होता न तो पूरे मौहल्ले में क्या पूरे शहर में मिठाई बंटवाती तू ही बता सही बोल रही हूं कि नहीं (अपने पुत्र को संबोधित करते हुए) मुझे तो आज पूरे दिन से बस यही शब्द सुनाई दे रहें है।

कुछ समय बाद

तिवारी जी का घर :- आज तो नन्हें राजकुमार की शरारतों को देखकर मेरा दिल गदगद हो गया कभी तो वो अपने छोटे छोटे पैरों से ठुमक ठुमक कर मेरे फर्श पर चलते तो और कभी तिवारी जी की पीठ पर बैठकर घुडसवारी का मजा लेते,तिवारी जी भी मानों उसके साथ फिर से बच्चे ही बन गए हो । ऐसे नजारे से तो मुझे तिवारीजी का बचपन भी याद आ गया जब वो अपने पिता की उंगली पकडकर चलना मेरे आंगन में ही सीखे थे और देखो मैं कितना खुशनसीब हूं जो आज उन्हें अपने पोते के साथ खेलते हुए भी देख पा रहा हूं।

शर्मा जी का घर :- हां आज ये ही द्रश्य मेरे आँगन का भी था जहां नन्हीं परी ने भी उनकी पायल की मधुर आवाज से मेरे कानों मे मानो रस ही घोल दिया हो।

तीन साल बाद

तिवारी जी का घर :- आज तो तिवारीजी छोटे राजकुमार का स्कूल में एडमिशन कराने गए थे और बहुत खुश थे कि शहर की सबसे बडे स्कूल में एडमिशन हुआ है , इस स्कूल में पढकर तो हमारा नन्हा राजकुमार बहुत बडा ऑफिसर बनेगा।

शर्मा जी का घर :- हाँ आज मेरी बिटिया का भी स्कूल में एडमिशन हो गया लेकिन शर्मा जी की माताजी ने पहले ही सख्त आदेश दे दिया था शर्मा जी को, कि ज्यादा फीस वाली स्कूल में लाडली का एडमिशन न कराए वैसे भी लडकी है इसे कौनसा पढ लिखकर अफसर बनना है जाना तो पराए घर ही है ना शर्मा जी की माताजी के ऐसे शब्द सुनकर आज मेरे दिल पर बहुत ठेस लगी लेकिन मैं कर भी क्या सकता था मुझे तो जबसे बिटिया का जन्म हुआ है तब से माताजी के इन कडवे शब्दों की मानो आदत ही हो गई।

कुछ समय बाद

शर्मा जी का घर :- आजकल तो मुझे कब सुबह होती कब शाम कुछ पता ही नहीं चलता क्यों कि पूरा दिन बिटिया रानी की कार्यों को देखने से मन ही नहीं भरता। बिटिया रानी ने तो मेरे हर कोने में अपनी एक खुशबू फैला दी है और मेरे मुरझाये हुए से मन में एक नई चेतना जगा दी है। जब कभी वो अपनी मां के साथ गोल गोल रोटियां बनाती हैं तो मेरे रसोई की महक से आसपास के लोग जल उठते हैं और कभी अपनी चौक में बैठी दादी के सर पर अपने छोटे छोटे हाथों से तेल मालिश करने की जिद करती है, और कभी अपने पापा का ऑफिस से आने का इंतजार करती और जैसे ही पापा सामने से गेट पर आते हुए दिखते है वैसे ही दौड कर उनके पास चली जाती और ऐसे मिलती जैसे पापा से बहुत दिनों बाद मिली है और फिर उन्हें अपनी स्कूल की अपनी सहेलियों की सारी बातें बताने बैठ जाती और उनसे भी उनके ऑफिस का हाल ऐसे जानती जैसे वो तो एक छोटी गुडिया रानी नहीं है वो तो एक दादी अम्मा हो। रात होते ही तो भाग कर अपने दादाजी के कमरे में पहुंच जाती और कहती दादाजी आज तो मुझे वो वाली कहानी सुनाना जिसमें एक बहादुर लडका कैसे जंगल में शेर से अकेले ही लड लेता है , जब दादाजी उसी कहानी सुनने की मांग का कारण पूछते तो उन्हें कहती दादाजी मुझे भी तो उस बहादुर लडके की तरह ही बनना है। जो उसकी तरह सारी मुसीबतों का अकेले ही सामान करना सीख जाउं और फिर कहानी सुनते सुनते कब सो जाती पता हीं नहीं चलता । लेकिन दादाजी उनकी इतनी समझदारी पूर्ण बातों को सुनकर सोचने लग जाते कि इतनी सी लाडो रानी को इतनी बडी बडी बातें आती कहां से है।

तिवारी जी का घर :- हमारे राजकुमार को तो मुझ में रहने की फुर्सत ही नहीं उन्हें तो घर के बाहर ही खेलना अच्छा लगता है। स्कूल से घर लौटने के बाद तो उनके पैर मेरे आँगन पर टिकते ही नहीं है वो तो अपने दोस्तों के साथ पूरा दिन बाहर मैदान में कभी क्रिकेट तो कभी गिली डंडा और ना जाने कितने खेल खेलते है। उन्हें तो डांटकर फटकार कर घर बुलाना पडता है उनका बस चले तो वो रात को भी अपने दोस्तों के साथ ही रहे मेरे यहां आए ही नहीं! मैं तो एक सुनसान इमारत की तरह हो गया हूं वो राजकुमार के जन्म पर खुशी का माहौल था मानों वो तो अब गुम ही हो गया है ।

शर्मा जी का घर :- मेरी बिटिया रानी के तो खेल भी घर में ही होते है वो अपनी सहेलियों के साथ घर में ही अपने गुडे गुडियों के साथ खेलती रहती कभी उन गुड्डे गुडियों को स्कूल पढने भेजती तो कभी उन्हें इतना बढा बना देती कि गुडिया को दुल्हन की तरह सजाकर, गुड्डे को घोडी पर बैठाकर उनका ब्याह ही रचा देती.......बिटिया का कभी मां के साथ काम में हाथ बंटवाना कभी स्कूल में इनाम जीतना कभी पिता की गोद में बैठना कभी गुडे गुडियों से खेलना मैं तो बिटिया के इतने सारे रूप देखकर मानो बावला ही हो गया हूं मुझसे तो मेरी खुशी संभाले नहीं संभाल नहीं रही है।

दसवीं कक्षा के परिणाम का दिन

तिवारी जी का घर :- क्या हुआ तुझे, आज जो तू इतना मुस्करा रहा है ? (शर्मा जी के घर को संबोधित करते हुए )

शर्मा जी का घर :- हां आज मैं बहुत खुश हूं ,और ये खुशी भी आज कितने दिनों बाद मेरी नसीब में आई है। क्यों पता है तूझे आज क्या था ?

तिवारी जी का घर :- अरे मुझे कैसे पता हो सकता है तू भी क्या पहेलियां बुझा रहा है बता ना....

शर्मा जी का घर :- अरे आज रिजल्ट का दिन था और हमारी बिटिया रानी पूरी स्कूल में फर्स्ट आई है आज बिटिया रानी की खुशी को देखकर मै भी बहुत खुश हो गया। तू बता तेरे राजकुमार के रिजल्ट का क्या हुआ ? तू इतना सर झुकाए कैसे खडा है ?

तिवारी जी का घर :- अरे क्या बताऊं यार मेरे राजकुमार तो पूरी स्कूल में तो क्या क्लास में भी दूसरे स्थान पर आए हैं उनका तो मानों पढाई में मन ही नहीं लगता है।

बीस साल बाद

तिवारी जी का घर :- क्यों रे आज तो तू ऐसा लग रहा है मानो सारी दुनिया की खुशी तेरे यहां आ गई हो।

शर्मा जी का घर :- अरे ये भी क्या पूछने वाली बात तूझे नहीं पता इस बात के तो पूरे शहर में चर्चे हो रहे और तू यहां मुझसे पूछ रहा है

तिवारी जी का घर :- अरे बता भी सही क्या हुआ ?

शर्मा जी का घर :- आज मेरी बिटिया रानी ने तो मेरा सर गर्व से ऊँचा कर दिया चारो तरफ सिर्फ मेरे ही नाम के चर्चे है हर किसी के मुंह पर बस मेरा ही नाम है कि शर्मा जी के घर के बेटी ने तो कमाल कर दिया क्योंकि आज बिटिया रानी आइएएस ऑफिसर जो बन गई है। जिस बिटिया को उनकी दादी ने बडे स्कूल में एडमिशन करवाने से मना कर दिया और कहा था कि इसे कौनसा अफसर बनाना है उसी ही बिटिया ने आज अपनी मेहनत के बलबूते पर चारों तरफ अपने नाम के डंके बजवा दिये और उस की सफलता से आज सारे लोग खुशी से फूले नहीं समा रहे है जिस बेटी के जन्म पर जो आसपास के लोग एक पल को भी उस नन्हीं सी जान को देखने नहीं आए थे और न ही उसके आगमन पर बधाई दी थी वो ही लोग आज उसके कलेक्टर बनने पर पूरे दिन से घर के बहार बधाई देने के लिए लाइन लगाए खडे हैं आज तो मेरे आंगन में चारों तरफ ऐसा लग रहा है मानों फूलों की बारिश हुई है और उस बारिश में बिटिया रानी नहा रही है। मिठाई की डिब्बों की खुश्बू चारों तरफ की माहौल में और चार चांद लगा रही है। मैं तो मेरी बातों में तेरे राजकुमार के बारे में पूछना ही भूल गया उनका क्या हुआ वो भी किसी बडी पोस्ट पर होंगे, उनका तो एडमिशन भी शहर के जाने माने स्कूल में हुआ था।

तिवारी जी का घर :- हां हुआ था पर वो ऐसा कुछ नाम नहीं कर पाए जिससे मैं उनकी तारिफ में कुछ कह पाऊँप वो तो अभी एक कंपनी में छोटी सी पोस्ट पर कार्यरत है....

कुछ दिनों के बाद

शर्मा जी का घर :- आज तो सुबह से ही सारे लोग बहुत परेशान है सब को ऐसे देखकर मेरा भी मन दुखी हो गया।

तिवारी जी का घर :- क्यों ऐसा क्या हो गया जो तुम इतना मायूस हो ?

शर्मा जी का घर :- कल रात को शर्मा जी की माताजी को दिल का दौरा पड और उन्हें यहां के डॉक्टर ने जवाब दे दिया कि अब कुछ नहीं हो सकता ये अब ज्यादा दिन की मेहमान नहीं है इन्हें घर ले जाओ और सेवा करो। और जब से ही सारे घर में मायूसी छाई हुई है।

तिवारी जी का घर :- ये तो बहुत दुख की बात है अब क्या होगा ?

शर्मा जी का घर :- ये बात सुनकर सब तो चुप हो गए लेकिन बिटिया रानी ने अभी हार नहीं मानी और अपनी दादी को शहर के सबसे बडे हॉस्पीटल में ले जाने की तैयारी कर ली और जब हॉस्पीटल लेकर पहुंची तो डॉक्टरर्स की टीम ने अपनी पूरी जान लगा दी और लगाते भी क्यों नहीं, वो एक आइएएस आिॅफसर की दादी जो थी। लेकिन जब तक दादी के ठीक होने की खबर नहीं मिल रही थी तब तक बिटिया रानी को भी चैन कहाँ था वो खुद इतनी परेशान थी लेकिन अपनी परेशानी को छुपाकर कभी अपनी मां को दिलासा देती तो कभी अपने पापा को हिम्मत देती और फिर अपने दादाजी को संभालने में जुट गई। दादाजी उनको इस तरह अपनी सारी जिम्मेदारी निभाते हुए देखकर कहने लगे वाह रे! मेरा बहादुर बेटा तूने तो आज मेरी सुनाई उन कहानियों को सच करके बता दिया जिन्हें सुनकर तू हमेशा कहती थी कि मुझे भी बहादुर बनना है। और आखिरकार उनकी मेहनत सफल हुई जब डॉक्टर ने आईसीयू के बाहर आकर कहा कि अब वो खतरे से बाहर है थोडी देर बाद उनसे जाकर मिल सकते हैं। डॉक्टर के ऐसा कहने पर मानो अब सबकी जान में जान आई हो और अब तो उनसे उन कुछ पलों का इंतजार करना भी भारी हो रहा था। फिर कुछ देर बाद जब शर्मा जी उनकी माताजी के पास गए और उन्हें उनकी पोती की सारी बाते बताईं तो उनकी माताजी की आंखों से अश्रुधारा नहीं रूक पा रही थी और वो तो बस अपनी पोती से मिलने के लिए आतुर थी। और जब उनकी पोती उनके सामने आई तो आज उनकी आंखों में उसके लिए आज इतना प्यार और स्नेह था जो इतने सालों से सहज कर रखा हुआ था । आज तो ऐसा लग रहा था मानो वो आज ही अपना सारा स्नेह उस पर लूटा देंगी।

तिवारी जी का घर :- ये क्या बोल रहा है...... दादी ऐसा कर रही थी

शर्मा जी का घर :- हां और आज तो शर्मा जी की माताजी को अस्पताल से छुटी भी मिल गई और बिटिया रानी उन्हें अपने साथ मेरे यहां लेके आ गई।

तिवारी जी का घर :- फिर तो आज तू पहले के तरह खुश हो गया होगा?

शर्मा जी का घर :- अरे! पगले खुश, मैं तो इतना खुश हूं कि अपनी खुशी जाहिर भी नहीं कर पा रहा हूं क्योंकि इस बार जो शर्मा जी का माताजी का रूप है वो कुछ और ही है।

तिवारी जी का घर :- क्यों क्या हुआ, और ऐसा क्या बोल रही थी शर्मा जी की माताजी?

शर्मा जी का घर :- अरे आज सुबह की बात है जब शर्मा जी की माताजी सोकर उठी तो बिटिया रानी ने उन्हें जमीन पर भी पैर नहीं रखने दिया कभी वह अपनी दादी को दूध पीने के लिए देती तो कभी कहती ये लो दादी ये बादाम खा लो और जैसे डॉक्टर ने उन्हें पूरा आराम करने के लिए कहा था वैसे ही दादी के लिए सभी जरूरत की चीजों का उनके पास ही इंतजाम कर दिया जब दादी ने ये सभी काम बिटिया रानी को करते देखा तो वह कहने लगी तू यहां मेरी सेवा में लग गई तो वहां ऑफिस कौन संभालेगा? चल जा ऑफिस के लिए तैयार हो जा मेरी देखभाल के लिए तो यहां सब लोग है ना! लेकिन बिटिया रानी ने तो ऑफिस जाने के लिए साफ मना कर दिया और कहने लगी कि दादी मैं आपको छोडकर कहीं नहीं जाउंगी जब तक मेरी दादी पहले तरह की स्वस्थ नहीं होगी तब तक मै कहीं नहीं जाने वाली। ये सब सुनकर दादी तो आज अपने आप को माफ नहीं कर पा रही थी क्योंकि इसी बेटी के जन्म पर उन्होंने इतनी बडी बडी बाते बोली थी कि जिन्हें वे खुद आज सोचकर बहुत दुखी हो रही है जब कभी बचपन में बिटिया रानी उनके पास जाकर बैठती तो कभी भी वो उसके साथ प्यार से दो शब्द भी नहीं बोलती और कभी वो दादी से कुछ चीज मांगती तो दादी उसे देने से मना कर देती और अपनी पोती की सारी इच्छाओं को पूरा करने से मना कर देती वो कभी भी उसे एक दादी के रूप में प्यार दे ही नहीं पायी मन ही मन ये विचार आज उनको खाए जा रहे थे ये सब सोचते सोचते उनके आँखों से आंसू बहते ही जा रहे थे जब बिटिया रानी ने पूछा दादी क्या हुआ आप रो क्यों रही है तो दादी के मुंह से बस एक ही शब्द निकला मैं तेरे इस सेवा की हकदार नहीं हूं। क्यों दादी क्या हुआ आप ऐसा क्यों बोल रही है मैं आपकी देखभाल नहीं करूंगी तो और कौन करेगा नहीं बेटा नहीं मैं तो तेरी सबसे बडी गुनहगार हूं तूने मुझे क्यों बचाया??? क्यों बेटा क्यों! मैं अपने आप कभी माफ नहीं कर पाउंगी क्योंकि मैं तो पोते की लालसा में इतनी अंधी हो गयी थी कि मैंने कभी तेरी ओर प्यार भरी नजरों से देखा ही नहीं जब तू कभी मुझे दादी दादी कहकर पुकारती तो मैंने कभी तूझे अपनी गोद में नहीं बिठाया जब तूने मुझसे कुछ मांगा तो मैने कभी कुछ नहीं दिया तो मैं आज तेरे से इतना सब कैसे ले लूं तू तो मेरी जीवनदाता हूं मैं अपने पापों का प्रायश्चित कैसे करूंगी और इतना सब कहकर फूट फूट कर रोने लग गई।

बिटिया रानी तो दादी को रोता हुआ देखकर खुद भी रोने लगी और कहने लगी नहीं दादी नहीं मैंने आपके लिए ऐसा कुछ नहीं किया, लगता है आपने दादी आपने मुझे अभी भी नहीं अपनाया क्या आप मेरी दादी नहीं है मेरा हक नहीं आप पर कि मैं आपके साथ कुछ पल बिता सकूं और आंचल की छाया में बैठ सकूं अरे नहीं बेटा ये क्या कह रही है तू और फिर दोनां दादी पोती गले मिलकर रोने लगी। लेकिन इस वाक्ये से मुझे आज इतना सुकून मिला है ना है कि उसको बयां करने के लिए शब्दों की कमी पड जाएगी । क्योंकि इस दिन के बाद से बिटिया रानी जिस दादी के एक प्यारी सी मुस्कान के लिए और अपने ओर स्नेह भरी नजरों को देखने के लिए तरसना पडता था आजकल वही दादी पोती की आवाज से ही मेरा पूरा आंगन चहकता रहता और पोती के प्यार में शर्मा जी की माताजी तो जैसे अपनी सारी तकलीफों को ही भूल गई मानों ऐसा लग रहा था उन्हें तो कुछ हुआ ही नहीं है वो तो पहले से ज्यादा स्वस्थ आने लगी है क्योंकि जिस प्यारे से रिशते को कभी उन्होंने कभी निभाया ही नहीं है उस नए रिशते की खुश्बू से वह महक उठी है, जिस तरह पतझड रितु के बाद जब बसंत रितु आती है तो सारे वातावरण में नयापन भर देती है चारों तरफ पेडों की डालियों पर नये पत्ते खिलने लगते है, नये फूल खिलने लगते हैं और बसंत अपने रंग में सारी प्रकति को रंग देती है जो पतझड रितु का सूखापन और खालीपन था उसे अपनी बसंत रूपी चादर में कहां छुपा देती है वैसी ही आज कलेक्टर साहिबा ने पतझड रूपी खालीपन को खत्म करके अपने प्यार की चादर में सबको रंग दिया। आज मेरे मन में भी जो इतने दिन से बोझ था वो भी आज हल्का हो गया है क्योंकि इससे पहले मैं कभी भी शर्मा जी की माताजी की आरे देखता तो मेरा मन गलानि से भर जाता कि उस आने वाले नन्हें मेहमान की इसमें क्या गलती थी जो वो अपने दादी के प्यार की हकदार नहीं थी लेकिन आज ये सब देखकर मेरा गुस्सा तो मानो मोम की तरह पिघल गया हो।

एक साल बाद

तिवारी जी का घर :- पता है तूझे! क्या हुआ आज...... मेरे राजकुमार का रिश्ता पक्का हो गया घर के सभी लोग बहुत खुश हो रहे हैं क्योंकि मेरे आँगन में एक नया सदस्य जो आने वाला है मेरा मन तो इस बात को सुनकर ही बहुत खुश हो गया पता नहीं वो दिन आएगा तो क्या होगा!

शर्मा जी का घर :- अच्छा, मेरे यहां भी आज ऐसा ही हुआ क्योंकि बिटिया रानी का इतने बडे घर में रिश्ता हुआ है, जिस घर के लडके से रिश्ते के लिए लडकी वालो की लाइन लगी थी तुमने कभी नाम भी सुना होगा “पांडे जी के घर का“

तिवारी जी का घर :- अरे हां हां उस घर को कौन नहीं जानता वो घर तो इतना आलीशन, इतना सुंदर, इतना आर्कषक जिसको देखने से ही मन नहीं भरता कुछ पलों के लिए ऐसा लगता है मानों उसको देखते ही रहें उस पर से नजर हटाने का मन ही नहीं करता ।

शर्मा जी का घर :- हाँ वही घर उसी घर में रिश्ता हुआ है मेरी बिटिया रानी का और होता भी क्यों नहीं मेरी बिटिया रानी तो जैसे गुणों की खान है रूप ऐसा कि मानो ऐसा लगता है जैसे कोई अपस्रा धरती पर उतर के आई हो, आवाज इतनी मीठी की कोयल की आवाज भी उनके आगे फिकी लगे और स्वभाव बहती हुई नदी की तरह इतना निर्मल और स्वच्छ जिसकी प्यार भरी धारा में हर कोई बहने को तैयार हो जाए।

उन्हें लक्ष्मी कहें कि दुर्गा कहें उनके पैर तो जिस घर में पडेंगे वो तो स्वर्ग के समान सुंदर हो जाएगा । फिर वह घर किसी जन्नत से कम नहीं रह जाएगा।

इसी बीच पांडे जी का घर भी इस बातचीत में शामिल हो गया

पांडे जी का घर :- अरे बस भी करो अपनी बिटिया रानी के बारे में ही बताते रहोगे या मेरे यहां के कुंवर सा की बात भी सुनोगे वो भी तुम्हारी बिटिया रानी से कम नहीं है उनके सहज, विनम्र , मिलनसार दयालू स्वभाव की सभी तारीफ करते नहीं थकते। इतने बडे घर के बेटे होने पर भी उनमें घमंड तो रत्ती भर का भी नहीं है।

अपनी माता से इतना लगाव, पिता का आदर । उनके बारे में भी कहें उतना ही कम है। लोगों को तो बस मेरी बाहरी सुंदरता दिखती है लेकिन मेरे अंदर रहने वाले लोगो का आपसी प्यार , रिश्तों की मिठास से मैं तो दिन रात खुश होता रहता हूं। क्योंकि मेरी सुंदरता तो उन्हीं लोगो के कारण ही तो है। नहीं तो कितनी भी इमारत खडी कर दो लेकिन जब तक उसमें रहने वाले लोगों में आपसी प्रेम, समझ नहीं होगी तब तक वह सुंदर इमारत भी एक पुतले की तरह ही खडी हुई दिखाई देगी जिसमें न कोई जान और न ही उसका कहीं नाम है।

भावुक स्थिति में

शर्मा जी का घर :- आज आखिर वो दिन आ ही गया है जिसका एक लडकी की जिंदगी में बहुत अहम हिस्सा होता है, जिस दिन के लिए उसने कभी सपने भी सजाए होगें तो कभी आँसू भी बहाए होंगे क्योंकि ये ही वो दिन होता है जो एक तरफ नए रिश्ते, नए घर में जाने की खुशी देता है तो कभी पुराने रिश्ते, पुराना घर खोने का दुख। जिसे आज तक एक लडकी का दिल समझ नहीं पाया कि वो इस दिन की खुशी कैसे मनाए?

शादी की तैयारियाँ

शर्मा जी का घर :- आज से तो शादी की तैयारियां शुरू हो रही है और पता है सभी बडों ने मेरी बिटिया रानी की शादी मेरे ही आंगन से करने का फैसला लिया है क्योंकि शर्मा जी के पिताजी शर्मा जी से कह रहे थे कि बिटिया की शादी किसी हॉटल, या गार्डन में जाकर करने की जरूरत नहीं है क्योंकि जिस घर से बिटिया छोटी से बडी हुई हो , जिस घर में उसने सारे त्यौहारों को मनाया है, अपने जन्मदिवस का उत्सव मनाया है जिस घर में उसने कलेक्टर बनकर अपनी पहचान बनायी है उसी घर से ही बिटिया की शादी भी होनी चाहिए और सभी ने इसी बात पर अपनी सहमति जताई। आज तो मेरा मान ओर बढ गया कि बिटिया के इतने खास दिन पर भी आज मैं उसके साथ खडा रहूंगा।

तिवारी जी का घर :- ये तो शर्मा जी के पिताजी का बहुत ही बडा फैसला है वरना तो आजकल घर से शादी करना पसंद कौन करता है सभी लोग चाहते हैं कि घर पर इतना बडा झमेला कौन करेगा जिसमें दो दिन के काम के बाद दस दिन तक का काम बढ जायेगा।

शर्मा जी का घर :- यही तो बात है, शर्मा जी की इस बात ने मेरा तो आज दिल ही जीत लिया क्योंकि जिस घर के सदस्य की शादी में आने का हक सभी परिवार वालो, रिश्तेदारों को होता है तो क्या जो घर उस इंसान के साथ आजतक खट्टी मीठी यादों के साथ जुडा हुआ था उसका इस शादी के अहम दिन में शामिल होने का कोई हक नहीं बनता ?

तिवारी जी का घर :- हां यार ये तो तू बिल्कुल सही कह रहा है मैं भी तेरी इस बात में पूरी तरह सहमत हूं।

शर्मा जी का घर :- अब तो शादी की तैयारी परवान चढने लगी है जिसे देखो वो आजकल शादी के कामकाज में बहुत व्यस्त है मुझे तो बस चारों तरफ सभी के फोन पर बात करने की ही आवाज आती रहती है कोई किसी रिशतेदार को शादी में आने का न्योता दे रहा है तो कोई हलवाई से शादी के मेन्यू की बात कर रहा है तो कोई डिजाइनर से सारे लहंगे,साडियां के नए नए डिजाइनस के लिए पूछ रहा है तो कोई फूल वाले को डेकोरेशन के बारे में बता रहा है। इन सब काम काजों के बीच ये क्या मेरी पूरी छत तो पापड,मगांडी की खुश्बू से महक रही है यहाँ पर तो ऐसा लग रहा है जैसे कोई बाजार ही लगा दिया हो।

तिवारी जी का घर :- मैं तो इतना सब सुनकर बस अब यही इंतजार कर रहा हूं कि जल्द से जल्द मेरे राजकुमार की भी शादी हो पर........

शर्मा जी का घर :- पर क्या तू बोलते बोलते चुप क्यों हो गया बता न क्या हुआ ?

तिवारी जी का घर :- अरे यार मेरी ऐसी किस्मत कहां जो मैं तेरी तरह शादी के हर लम्हें को जी पाउं क्योंकि तिवारीजी ने तो अपने बेटे की शादी के लिए एक बडा सा गार्डन बुक करा दिया है वहीं जाकर शादी की सारी रस्में करने वाले है। मेरी तो जो शादी में शामिल होने की इच्छा थी वो तो पूरी होना अब मुमकिन ही नहीं है।

शर्मा जी का घर :- नहीं नहीं ऐसा मत सोच मैं तुझे अपने यहां की सारी खबर देता रहूंगा तू उसी को महसूस करके अपने मन को खुश करता रहना। इन सभी बातों में तू भूल गया क्या तुझे तो वैसे भी तेरे राजकुमार की शादी का कितना इंतजार था क्योंकि तेरे यहां नए सदस्य का आगमन जो होने वाला है।

तिवारी जी का घर :- हाँ यार सही कहा तूने ये तो दुखी होने का समय नहीं है। ये तो खुशी मनाने का समय है जब मेरे राजकुमार दूल्हा बनेंगे, क्या गाना बजाना होगा चारों तरफ खुशियां ही खुशियां होंगी।

शर्मा जी का घर :- शादी की तैयारियां के बीच जहां सभी लोग व्यस्त हैं वहीं बिटिया रानी मुझसे जुडी हर एक यादों को जैसे अपने मन में समेटना चाहती हैं

कभी वो मेरी दीवार पर लगे अपने मेडल को छूती है तो कभी अपने जीते हुए पुरूस्कारों को निहारती है कभी वो बचपन के लम्हों को याद करती, कभी वो सामने दरवाजे की ओर देखकर पुरानी यादों में खो जाती जब उसी दरवाजे की ओर देखते देखते वो अपने पिता का ऑफिस से आने का इंतजार करती कभी वो पुरानी साइकिल को देखकर याद करती जब उसके दादाजी उसे पकडकर पूरे चौक में साइकिल का चक्कर लगाते और जब उसके खरोंच भी आ जाती तो पूरे घर को सर पर उठा लेते कभी वो अपनी गुडे गुडियो की तरफ देखकर अपने सारी सहेलियों को याद करती। अपने कमरे को निहारकर देखती और मन ही मन ये सोच कर रोने लगती कि ये सब तो अब पीछे छूटने वाला है ।

तिवारी जी का घर :- पर वो तो ऐसी अपनी यादों मे खोई है जैसे अब कभी वापस यहां लौट कर आएगी ही नहीं..........

शर्मा जी का घर :- हाँ आएगी लेकिन सिर्फ मेहमान बनकर, जिस घर को वो अभी तक अपना मानती आई है वो अब उसके लिए पराया हो जाएगा।

शादी का दिन

शर्मा जी का घर :- मानो आज का सूरज तो अपने साथ एक नई चमक लेकर आया है जिससे मेरी बिटिया रानी के जीवन में उजाला ही उजाला हो जाएगा। आज तो चारों तरफ का नजारा ही बहुत मनमोहक है। क्योंकि आज मेरा हर एक कोना मानो एक अलग की छवि प्रर्दशित कर रहा हो कही ढोलक की थाप है तो कहीं उस पर ठुमके लगाती महिलाएं तो कहीं मेंहदी की भीनी भीनी खुश्बू है तो कहीं हल्दी का रंग ।

मुझे तो आज हर तरफ से फूलों की माला से ऐसा सजाया है जैसी कोई माली अपनी बगिया को सजाता है। और मुझ पर किए गए लाइट डेकोरेशन से तो पूरा आंगन ऐसा चमक रहा है जैसे चांद अपनी चांदनी को लेकर आज धरती पर ही उतर आया हो। मुझे तो आज नई दुल्हन की तरह सजा दिया है, इससे तो मेरा मन और भी ज्यादा उल्लास से भर गया ।

तिवारी जी का घर :- हां आज तो तेरी छवि बहुत ही मनमोहक है ऐसा लगता है मानो तुझे निहारते ही रहें...............................

शर्मा जी का घर :- बिटिया रानी को दुल्हन के रूप में देखकर मेरा मन तो आज गदगद ही हो गया, उनको इस तरह देखकर। जब छोटी सी बिटिया रानी ने चलना सीखा था वो कभी अपने नन्हें नन्हें पैरों से जब मेरे आँगन में दो कदम चलती और कभी गिर जाती और उस बात को अभी तो कुछ ही समय बिता था कि आज मुझे तो अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा कि बिटिया रानी इतनी बडी हो गई जो आज दुल्हन के रूप में इसी आँगन में शादी के लिए तैयार खडी है अभी कुछ समय पहले ही तो ये अपनी गुडिया को दुल्हन बना कर खेलती थी आज वो खुद डोली में बैठकर जाने के लिए तैयार है इस पल पर मैं तो असंमजस में पड गया हूं कि इस पल की खुशी मनाऊँ या मेरी लाडो रानी के जाने का दुख।

मैं तो शादी के हर एक पल को अपने मन में ऐसा समा लूंगा कि जिससे कि मुझे तो अपनी बिटिया रानी के जाने का दुख कभी हो ही ना। लेकिन मैं अपने आप को कितना ही समझा लूं बिटिया के जाने के दुख से मुझे तो अभी से चिंता होने लगी है। मेरा जो दरवाजा अभी तक बिटिया के ऑफिस से आने का इंतजार करता था आज उसी दरवाजे पर बिटिया को ले जाने के लिए फूलों से सजी हुई डोली रखी है। बिटिया की शादी की रस्में शुरू हो गई है अब तो बिटिया को जाने में थोडा ही वक्त बचा है। मैं तो इसी सोच में डूबा हूं कि जब किसी घर के सदस्य को बिटिया की याद आएगी तो वो बिटिया से मिलने चला जाएगा लेकिन जब मुझे याद आएगी तो मैं क्या करूंगा ।

तिवारीजी का घर :- नहीं यार ये सब बातें सोचकर दुखी मत हो तुझे तो कितना अच्छा मौका मिला है तेरी बिटिया रानी की शादी देखने का । बिटिया रानी तुझे हमेशा के लिए ही थोडे छोडकर जा रहीं है वो भी तो तुझसे मिलने आया करेगी।

शर्मा जी का घर :- हाँ तू सही बोल रहा है मैं इन सब चिंताओं में तो बिटिया की शादी के पलों को भी सही तरह जी नहीं पाउंगा।

तिवारी जी का घर :- तू आज की खुशी को जी, आने वाले कल की चिंता में इस पल को हाथ से जाने मत दे।ये जो घर में ही शादी होने का मौका किसी किसी को ही मिलता है वरना आजकल तो घर में शादियाँ होती कहाँ है।

शर्मा जी का घर :- ये क्या शादी की सारी रस्में कब पूरी हो गई और बिटिया के विदाई का समय भी आ गया। आज सभी को संभालने वाली जा रही है।मेरे आँगन को महकाने वाले जा रही है, जिसकी खुश्बू में दिन रात महकता रहता था। अब क्या होगा! सब तो एक दूसरे को संभाल लेंगे मैं कैसे अपने आप को संभालूंगां। और ये देखो मेरे आंगन में रखी डोली में बैठकर बिटिया रानी विदा भी होने लगी।

नई बहू के आगमन पर

पांडे जी का घर :- अभी तो मेरे यहां की रौनक ही कुछ ओर है क्योंकि सब नई दुल्हन के ग्रह प्रवेश की तैयारी में जो लगे हुए हैं कभी कोई पूजा की थाली तैयार करने में लगा हुआ तो कोई मेरे दरवाजे पर चावल से भरा कलश रख रहा है जिसे गिराकर नई दुल्हन मेरे यहां प्रवेश करेगी । और जब आगे बढेगी तो कुमकुम के थाल में पैर डुबोकर अपनी पैरों की छाप मेरी आंगन पर ऐसे छोडेगी मानो साक्षात लक्ष्मी जी ने अंदर प्रवेश किया हो। और महिलाओं ने तो नई दुल्हन के आने की खुशी में मंगल गीत गाना भी शुरू कर दिया ।

तिवारीजी का घर :- मेरे यहाँ की रौनक भी कुछ ऐसी है सभी लोग नई दुल्हन के स्वागत का व्याकुलता से इंतजार कर रहे हैं तिवारीजी ने तो नौकरों से कहकर फूलों से सारे रास्ते सजवा दिए जहां से बहू चलकर मेरे यहां प्रवेश करेगी और इस खुशी में उन सभी नौकरों को सोने चांदी के उपहार देकर कहने लगे मैं चाहता हूं कि मेरी बहू जब घर आए तो हर कोई खुश होना चाहिए।

तिवारी जी का घर और पांडे जी का घर दोनों ही आज बहुत खुश है क्योंकि उनके आंगन में आज नए सदस्य जो जुड गए हैं ।

लेकिन दोनो घर ने जब शर्मा जी के घर की तरफ देखा तो वह घर जो अभी कुछ समय पहले तक शादी की रस्मों की चहल पहल से भरा पूरा था वह अब बिल्कुल सुनसान हो गया बस चारों तरफ सन्नाटा ही सन्नाटा है ।

शर्मा जी के घर की ये दशा देखकर तिवारीजी के और पांडे जी के घरों को उस पर हंसी आने लग गई और उसे जाकर सांत्वना देने के बजाय उसकी इस हालत के मजे लेने के लिए उस के पास जाकर बोलते है, अरे! देखो आज इसका घमंड कैसे चूर चूर हो गया, पहले तो ये अपनी बिटिया रानी की तारीफ करते थकता नहीं था और आज देखो इसकी बोलती कैसे बंद हो गई। जो अभी तक फूलों से सजा हुआ था अब इसकी स्थिति देखों कैसे सूखा और मुरझाया सा हो गया। अब तूझे कौन पूछेगा तू तो बस अब अपने दुख के सहारे अकेला ही रह लेकिन हमारे तो ठाठ देख ले आज हर कोई हमें कितना मान दे रहा है और दे भी क्यों न हमारे यहां ही तो नई दुल्हन आई है और उनके आने से तो मानो हमारे यहां लक्ष्मी का आगमन हो गया हर कोई उनके आने से इतना खुश है कि हम बयां भी नहीं कर सकते, सभी के खुशी भरे मिजाज से तो चारों तरफ खुश्हाली का माहौल हो गया।

शर्मा जी का घर :- मुझे नहीं पता था कि नई दुल्हन के तुम्हारे यहां प्रवेश से तुम में इतना घमंड आ जाएगा । मुझे नहीं पता था जिसे अभी तक अपनी सारी बातें बताता था वो आज मेरा इस तरह मजाक बनाएगा। लेकिन कोई बात नहीं है मुझे तुम्हारी इस हरकत का भी कोई दुख नहीं क्योंकि अक्सर ऐसा ही होता अगर किसी जरूरतमंद के पास कोई चीज आ जाती है वो इसी तरह व्यवहार करने लग जाता है उसे अच्छा बुरा नजर ही नहीं आता लेकिन पांडे जी के घर की तरफ इशारा करते हुए तुम बताओ जो तुम नए सदस्य को पाकर इतना इतरा रहे हो वो किसकी देन है वो तुम्हें किसकी वजह से मिली है ..............

मेरी वजह से ना अगर मेरे आंगन में बिटिया रानी का जन्म नहीं होता तो तुम्हें आज ये जो खुशी मिली वो कभी नहीं मिल पाती जिस बहू के तुम हकदार बन रहे हो वो वास्तव में मेरा ही अहसान है तुझ पर अगर मेरे यहां के सदस्य कन्यादान नहीं करते तो तुम्हें बहू कहां से मिलती बताओ ? मैंने तो मेरे यहां की खुशियों को तेरे यहां भेजा है और उसपर तू मुझे ही ताना मार रहा है।

तिवारी जी और पांडे जी का घरः- माफ कर दे हमें! हमसे बहुत बडी गलती हो गई है हम तो भूल गए थे हमेशा से ही देने वाला ही बडा होता है हम तो लेने वाले है जिसने तुझसे तेरी बिटिया रानी को बहू रूप में लिया है हम अपने आप को कहां से बडा मानने लगे तूने तो आज हमें अपनी नजरों में ही गिरा दिया। ना जाने हम तुझको क्या क्या बोल गए तू तो हर रूप में हमसे बडा ही है जिसने अपने आंगन के एक सुंदर से हीरे को हमारे आंगन की चमक बढाने भेज दिया ये तो कोई बडे दिल वाले ही कर सकता है। वरना मांगना तो हर कोई जानता है लेकिन देने वाला कोई नहीं होता । तेरी महानता के आगे तो हम नतमस्तक है और हमारे पास तो तेरे इस महान कार्य के लिए देने के लिए कुछ भेंट स्वरूप भी नहीं है।

शर्मा जी का घर :- तुमने अपनी गलती को मान कर ही बहुत बडा पश्चताप कर लिया है और भेंट के रूप में मुझे तुमसे एक वचन चाहिए कि आज हम प्रण लें कि............................

हमारे सबके आंगन मे बेटी का जन्म हो! क्योंकि भागयशाली वो घर होता है जहां बेटी का जन्म होता है।

“बेटी बिना हर आँगन सूना“

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