घरौंदा Priya Gupta द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Passionate Hubby - 5

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन...

  • इंटरनेट वाला लव - 91

    हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त...

  • अपराध ही अपराध - भाग 6

    अध्याय 6   “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच...

  • आखेट महल - 7

    छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक...

  • Nafrat e Ishq - Part 7

    तीन दिन बीत चुके थे, लेकिन मनोज और आदित्य की चोटों की कसक अब...

श्रेणी
शेयर करे

घरौंदा

बाजार में अचानक उन्हें इस रूप में देखकर मैं दंग रह गए वह मुझे देख नहीं सकी बाजार में भीड़ काफी था ना कुछ कहती पूछती तब तक वह भीड़ में समा चुकी थी घर आने पर भी मैं सोच में थी कि वह वही थी या कोई और काफी ताल मिले हो गए थे उनसे ना तो उनका कोई नंबर था और ना ही कोई पता एक बार दुर्गा पूजा के मेले में ही उनसे मुलाकात हुई थी तो वह भी 5 मिनट की सिर्फ हाल-चाल उनका परिचय यही था कि मैं और वह एक ही मकान में रहने वाले पड़ोसी थे जब पहली बार उस मकान में गई थी तो सबसे पहले उन्हीं से मुलाकात हुई देखने में लंबी पतली दुबली सलवार कमीज पहने एक महिला अपने रूम से बाहर देख रही थी उस समय शाम का समय था मैं अपने दोनों छोटे बच्चों को लेकर रूम में चली गई सफर के थकान के कारण हम जल्दी सो गए नींद खुली तो सुबह हो चुकी थी बच्चे और मेरे पति सोए हुए थे मैं रूम से बाहर निकली तो वह मुझे नल पर हाथ धोते हुए दिखाई दे फिर मैं अंदर चली गई कुछ पल बीते थे कि अचानक शोरगुल होने लगा मैं बाहर निकली तो देखी बगल के रूम से एक महिला बोल रही थी जिसका जवाब वह और उनके पति दे रहे थे फिर अचानक एक और महाशय की एंट्री हुई देखने में वह नवयुवक की थे एक साथ सभी का एक दूसरे पर दोष लगाना तू-तू मैं-मैं शुरू हो गया मुझे तो ऐसा लग रहा था कि मैं कोई सत्तर के दशक की फिल्म देख रही हूं जिसमें एक चाल में सुबह का दृश्य चल रहा हर आवाज सुनकर पति और बच्चे उठ चुके थे पति मुझसे पूछेगी क्या हुआ मैं बोली लगता है 2 पड़ोसी में बहस हो रही है फिर मैं इनसे बोली ऐसा कीजिए आप बाहर चलिए यह मुझे भी मेरा बाथरूम और टॉयलेट दिखा दीजिए फ्रेश हो जाऊंगी वह मेरा मुंह देखने लगे क्या हुआ चलिए मैं बाल्टी हाथ में लेकर खड़ी हो गई तब वह बोले कि तुमको तुम रुको मैं देख कर आता हूं तब मैं बोली कि क्यों आपको पता नही तब वह बोले कि मैं रूम देखने से प्रेम नहीं आया था एक मित्र ने देखकर एडवांस दे दिया मैं भी यहां पहली बार आया मैं बुरी तरह चौकी और बोली क्या इसके बाद हम दोनों बाहर निकले इधर उधर देखते आगे बढ़ते हुए पूरे फ्लैट का मुआयना किया जिससे यही पता चला कि इस चलने पर कुछ 5 फैमिली रहते हैं और सभी को एक साथ कॉमन बाथरूम और टॉयलेट शेयर करना होता है मुझे तो फिर वही चोर वाली दृश्य नजर आने लगे हर किसी तरह हम लोगों ने स्नान किया फिर बच्चों को बाहर के नल पर स्नान कराएं तब तक भारी बारिश से उस प्लाट के सदस्यों का वहां पर आवागमन होते रहा इसके बाद नाश्ता करके यह दुकान चलेगा और मुझे कहते हैं मकान मालिक से मिल लेना अभी काम खत्म करके उनसे मिलने पहुंचे मेरे मन में मकान मालिक का वही बुजुर्ग वाली छवि थी थोड़े ही हो पर सामने जो महिला भी थी और मुझे मकान मालिक से मिलना है तब वह बोली कि मैं घर की मालकिन हूं बोलिए क्या बात है क्योंकि वह भी मेरी उम्र थी मैंने अपना परिचय देते हुए कहा कि नीचे रूम तो वह कमरे में ले गई फिर बातों का सिलसिला चला बातों ही बातों में सुबह के वाक्य के बारे में पूछे तो पता चले कि मामला यह है कि वह महिला सुबह शांत हो रही थी और उनके यहां उनके यहां का कहानी यह है कि भारी बारिश सभी पहले खुद टॉयलेट यूज करते हैं बीच में किसी दूसरे की इंट्री नहीं होने देती जिस कारण करीब 2 दिन सुबह की कहानी यही होती है वक्त कुल 5 सदस्य थे दो बेटे एक बेटी और पति पत्नी ना सुन करता वे मुस्कुराए फिर मन में कल्पना करके की मूवी में जैसे लाइन में लगना पड़ता था कहीं मुझे भी कल से शायद ना लगना पड़े मकान मालिक के बातों से पता चला कि किसी से इतना लगाव नहीं रखती सिर्फ अपने ही मांग रहती है और जब से आई है तब से किसी ना किसी से कोई ना कोई बात पर टकरार हो चुका है ना मन में फिर सोचने लगता है यह रोल वाली मूवी की दादा टाइप महिला है ना कुछ देर बात कर वापस कमरे में चली गई और फिर अपने कामों में व्यस्त हो गई शाम में पति आए तो किस टॉपिक पर बोली तो वहा क्या कर नजरअंदाज कर दी कि हमें उनसे क्या मतलब जैसे वह रेंटल है वैसे हम भी रेंटल अगले दिन सुबह उठी तो उन्हीं लोगों को बाथरूम के पास खड़ी पाई और सही में जब तक सभी सदस्यों ने बाथरूम यूज नहीं किया तब तक दूसरे का कोई मौका नहीं मिला वह बड़ा अजीब माहौल था आज लिख रहे हो तो हंसी आता लेकिन उस परिस्थिति में तब क्रोध आता था रोज उनका यही सिलसिला चला था कपड़ा धोने से लेकर बर्तन होने तक सब में जब तक उनका काम पूरा हो तब तक नहीं हटती मेरे पति ने मेरे लिए यह विकल्प निकाला कि तुम 5:00 बजे उठकर सब काम करके टेंशन फ्री हो जाया करो मैंने भी यही ठीक उपाय लगा धीरे-धीरे समय बीतने लगा उनसे बस हाय हेलो तक बात सीमित रही 1 दिन में ऊपर छत पर कपड़े डालने चढ़ी बेटी रूम में खेल रही थी तो मैं उसे खेलता देख अकेली चली गई थोड़ी देर बाद जब नीचे आए तो उसे कमरे में ना देख कर मैं घबरा कर उसे ढूंढने लगे बिल्डिंग में सब लोगों के यहां जाकर देखा ही नहीं मिले मुझे डर लगा कि कहीं वह बाहर ना चली गई हो और मैं छत पर दरवाजा बंद कर नीचे जाने वाली ही थी कि अचानक मुझे उसकी आवाज वहीं महिला के रूम से सुनाई पड़ी ना जल्दी से उसके रुम में के पास जोर से नाम पुकारते हुए बोली तो दौड़ती मेरी बेटी आई के पीछे वह महिला की आग और बोलने लगी कि आपकी बिटिया को खोजते हुए रूम में चली आई आइए ना अंदर जाना बहुत कम था जो बहुत जरूरी था वही था पांच व्यक्ति पर एक छोटा एक छोटा पलंग एक ब्लैक एंड व्हाइट टीवी चटाई और घरेलू सामान वह चाय लेकर आए तो बोली कि आपकी बिटिया बहुत प्यारी है बातें भी बहुत प्यारी करती है मैं बोली इसकी बातों पर मत जाइए बहुत शरारत करती है फिर बोली इसके पापा क्या करते हैं बहुत कम दिखते हैं मैं बोली हां दुकान है इसलिए एक ही बार आते हैं और दुकान में रविवार को छुट्टी नहीं होती मैं पूछी आपके वह क्या करते हैं बोली वह प्राइवेट नौकरी करते हैं ट्रेन से आना जाना पड़ता है इसलिए जल्दी निकलना पड़ता है अब बच्चे बड़े हो गए हैं तुम मैं भी छोटा मोटा काम ढूंढ रही हूं खाली समय जल्दी नहीं करता मैं बोली हां यह बात तो है मैं पूछूं एक बात बताइए आप सब कैसे इस रूम में एडजस्ट हो जाते हैं जगह कम है एक पलंग तो वह मुस्कुराते हुए बोली बच्चे पलंग पर सो जाते हैं और हम दोनों जमीन पर सो जाते हैं निंबोली ठंड के दिनों में कैसे काम चलता होगा वह बोली इसी तरह जैसे अभी चलता है उनकी बातों को सुनकर मैं इतना तो समझ चुकी थी कि यह काफी संघर्ष वाली महिला है देखते देखते मुझे वहां 1 साल रहते हुए हो गया वह एक लघु उद्योग में काम करने जाने लगी थी तभी काम 10:00 बजे तक निपटा कर चली जाती आज शाम 4:00 बजे वापस आ जाते फिर अपने कामों में व्यस्त हो जाती घर को जितना होता वह किफायत से चलाती जितना बचत हो सके उतना बचत करती बातों ही बातों में 1 दिन पता चला कि वह जमीन ले चुकी है जल्दी मकान बना कर चली जाएगी क्योंकि किराया बहुत बढ़ गया है और और उतना देने में सक्षम नहीं है लगभग 6 महीने बाद मकान तैयार हो चुका था वहां भी वह स्वयं देखरेख करने जाती थी काफी दूर था मकान बनते समय उनकी बहन जो इनसे काफी अमीर थी आती जाती थी सभी अगल बगल में बातें होती की शायद बहन पैसों से मदद कर रही है इसलिए तो मकान इतनी जल्दी बंद कर तैयार हो गया कुछ दिनों बाद उनके बच्चों ने सभी को निमंत्रण पत्र दिया और जोर देकर सभी को वहां आने को कहां बिल्डिंग वालों ने एक साथ चलने का समय तय किया गृह प्रवेश के दिन वे सभी सुबह चले गए थे हम सब दोपहर में वहां पहुंचे वहां का नजारा देखकर दंग रह गए हम लोगों को कोसों दूर तक कोई भी घरवा आबादी का क्षेत्र नहीं दिखा सिर्फ जंगल और खेती खेत नजर आ रहा था पंचायत मकान होता है वह मकान के बिलकुल ही विपरीत था वह बात तो एक कुटिया लग रहे थे ना उसमें कोई पानी का साधन ना बिजली का न बाथरूम सिर्फ घेर कर दो रू सिर्फ घेर कर दो रूम बीचोबीच खेत में था हम स हम सभी एक दूसरे का मुंह देखते रहे और उनकी की मां बहन को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था कि कैसे वह इस सुनसान जंगल में उनकी बहन या बेटी रहेगी बल्कि वह दोनों तो खुशी जाहिर करते हुए कहे जा रही थी कि बहुत अच्छा बना हुआ है मैं ठगी सी रह गई कि हम लोगों का कुछ रिश्ता ना होते हुए इतना बुरा लग रहा है कि कैसे रहेगी बेचारी वापस आते समय अकेले में मैं उनसे पूछी दीदी आप इतनी जल्दी ऐसी जगह पर क्यों चली आई ढंग से बना कर आती तब वह बोली क्या करती किराया तो बचेगा जिससे आगे कोई और काम निकलेगा वाहन आने पर मैं रात भर सो ना सके बेचैन रही बस मन में एक ही बात चल रहा था शायद इसे ही किस्मत कहते हैं सब कुछ बांटा जा सकता है पर किस्मत कोई नहीं मानता बेचारी इतना संघर्षों के बाद भी उसे ऐसी जगह पर रहना पड़ रहा था शायद इसे ही किस्मत कहते हैं इसी कारण से भगवान श्रीराम को वन जाना पड़ा प्रिया