समय के गर्भ में Rajesh Malik द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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समय के गर्भ में

समय के गर्भ में

राजेश मलिक

पृथ्वी की डोर आसमान के हाथ में थी। वह जिसे चाहे इधर और जिसे चाहे उधर कर दें।

पृण्य घट और पाप बढ़ रहा था। मुल्क, ज़मीन, परिवार कई हिस्सों मेंबट गये थे। चारों तरफ़ लूटमार, हत्या, बलात्कार, भ्रश्टाचार, दंगा-फंसाद का रहा था। बाप बेटी की इस्मत से खेल रहा था। कोई अपने बच्चे को बेच रहा था। कोई अपने माँ-बाप को मार रहा था।

भूतकाल यह सब देखकर हैरान था। जे़हन में कई सवाल पनप रहे थे, ‘‘आख़िर इन इंसानों को क्या गया है? क्यों अपने ही खून के दुशमन बन बैठ है। प्रभु, यह कौन-सा समय आ गाया हैं?’’

‘‘यह वर्तमान है.’’

‘‘कौन हो तुम?’’

‘‘मैं वर्तमान हूँ.’’

‘‘पर यहाँ क्या करने आये हो?’’

‘‘ मैं तुम्हें सच्चाई बताने आया हूँ’’

‘‘कौन-सी सच्चाई?’’

‘‘भूतकाल! यह एक कड़वी सच्चाई है.’’

‘‘तुम यह क्या कह रहे हो मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है। जो भी कहना है

साफ-साफ कहो...।’’

‘‘तुम बूढ़े हो चुके हो। तुम्हारा समय अब समाप्त हो चुका हैं.’’

‘‘ऐसा नहीं होसकता.....मैं कैसे बूढ़ा हो सकता हूँ यह मेरा समय हैं, और मेरे होते हुए

यहाँ कोई नहीं आ सकता.’’

‘‘तुम जिस समय को अपना कह रहे हो, उसी समय ने तुम्हें यहाँ से जाना होगा.’’

‘‘ तुम मुझे यहाँ से नहीं भगा सकते.’’

‘‘ भूतकाल! अब मेरा समय .’’शुरू हुआ है

‘‘ यह नहीं हो सकता, वर्तमान...।’’

‘‘तुम बेकार की जिद् कर रहे हो....चाहकर भी तुम कुछ नहीं कर सकते.’’

वर्तमान की बातों से भूतकाल निरूत्तर हो गया। चेहरे की रंगत उड़ गई थी। भूतकाल की दशा को देखकर वर्तमान अपने आप को रोक न सका,‘‘भूतकाल!को देखकर अगर तुम चाहो तो कुछ दिन मेरे साथ रह सकते हो.’’

वर्तमान की बातों से भूतकाल के मुरझाये चेहरे की रंगत खिल उठी थी। उसने वर्तमान का शुक्रिया अदा किया। और साथ-साथ चल पड़।

‘‘वह देखो....।’’ वर्तमान के कहते ही भूतकाल की निगाहों पृथ्वी की तरफ घूम गई। उसने बिना एक क्षण गंवाये ही पूछ लिया, ‘‘यहाँ क्या हो रहा है?’’

‘‘तुम स्वंय देख लो....।’’

भूतकाल-वर्तमान के साथ पृथ्वी पर जा पहुँचा और इस दृशय को करीब से देखने लगा।

‘‘दोस्तों! यह सारा काम विपक्षी पार्टी का है, वह यह नहीं चाहते, कि इस देश में पानी हो.... लेकिन हम उनके इन नपाक इरादों को इस देश में नहीं चलने देगें। चाहे इसमें मेरी जान ही क्यों न चली जाये...।’’

ज़िदाबाद के नारों से मैदान गूंज उठा।

‘‘दोस्तों! जिंदाबाद मैं नहीं, आप लोग हैं इस देश में पानी था, पानी है और पानी रहेगा, बस आप लोग हमे वोट दीजिए फिर देखिए बजाय दस लीटर के हर महीने पन्द्रह लीटर पानी मिलेगा.’’

भीड़ में से एक आवाज़ उठी, ‘‘आप से पहले इसी मंच पर दूसरी पार्टी के नेता ने बीस लीटर पानी देने का वादा किया है। और आप हम लोगों को पन्द्रह लीटर पानी देगे.....।’’

‘‘अरे भाइयों, यह सारे नेता एक ही चट्टे के है। कोई पन्द्रह लीटर पानी, कहेगा, कोई बीस, तीस...बुर्जुगो ने कहा है, चोर का भरोसा कर लेना लेकिन नेता का नहीं.’’

‘‘यह सही कह रहा है.’’ एक साथ कई आवाज़ उठी।

‘‘दोस्तो! शान्त जाइये...अगर आप लोग ऐसे ही चिल्लाते रहेगे तो हम अपनी बात कैसे कहेंगे?’’

भीड़ को चीरती हुई एक आवाज़ गूँजी, ‘‘भाइयों, यह नेता नहीं, यह एक पढ़ा-लिखा ईमानदार है। अब तुम लोग ही बताओ कि यह नेता कैसे हो सकता है?’’

‘‘मारो...मारो...मारो इसे...इसने हम लोगों को बेवकूफ बनाया है.’’

भीड़ मंच की तरफ लपकी। अनेको हाथ उस नेता पर बरसने लगे।

वर्तमान-भूतकाल को लेकर वहाँ से चला पड़ा।

‘‘पर वर्तमान, मेरे समय मे तो पानी तालाब, नदियां, नलों, कुएँ, हैडपाइयों से मिलता था

पर अब तो पानी,.’’ राशन पर मिलता है

‘‘भूतकाल! तुम्हारे समय पर इंसानो ने पानी को बड़ी बेदर्दी से इस्तमाल किया है। जिसका नतीजा आज यह हुआ कि गिंनी-चुनी ही नदियाँ अब रह गई हैं और उनका भी जल स्वतंत्र रूप से प्रयोज्य नहीं हैं.’’

‘‘वर्तमान! तुम्हारी यह किन्नर सरकार इन देशवासियों के लिए कुछ करती क्यों नहीं?’’

‘‘भूतकाल! अब सरकार तो सिर्फणलेचुकीनामहै मात्र कि उसे चुकाने में न जाने कितनी सदियाँ लगेगी.’’

‘‘तो क्या सरकार के पास अब इतने पैसे भी नहीं हैं कि वह एक हैंडपाइप लगवा सके?’’ ‘‘भूतकाल! अब हैंडपाइप लगवाने से भी क्या फायदा....।’’

‘‘क्यो?’’

‘‘क्योंकि अब ज़मीन के नीचे पानी वहाँ तक नहीं, जहाँ तुम्हारे समय में था.’’

‘‘पर वर्तमान, ऐसा समय आया ही क्यों जो लोगों की ज़रूरतों को पूरा न कर सके.’’

‘‘भूतकाल! समय कभी किसी का इंतज़ार नहीं करता और फिर यह समय स्वयं इंसान ही लाया हैं....।’’

‘‘इस समय को देखने से पहले मैं मर ही क्यों नहीं गया.’’

‘‘भूतकाल! तुमने अभी देखा ही क्या हैं?’’

‘‘क्या अभी भी कुछ देखने के लिए बाकी हैं?’’

‘‘हाँ! अभी तुम्हें देखने के लिए बहुत कुछ रह गया है.’’

‘‘जैसे कि.....?’’ भूतकाल ने पूछा।

‘‘पहले मेरे साथ तो आओं.’’

‘‘भूतकाल-वर्तमान के साथ चल पड़ा।

‘‘बहन जी, लड़के को जल्दी बुलवाइये...हम लोगों को और भी कई जगहें लड़के देखने जाना हैं.’’ फ्रेन्च दाढी वाले का लहज़ा सख्त था।

‘‘जी भाई साहब.’’ कहकर वृद्ध ने आवाज़ दी; ‘‘काऽऽऽ.’’

का करीब आकर बोला,‘‘यस मैडम.’’

‘‘फौरन जाकर एन को भेजो.’’

‘‘यस मैम.’’ का कहकर कमरे की तरफ बढ़ गया। कुछ समय बाद जब एन आया तो उसके हाथों थी। में शराब की टेर

‘‘बैठो बेटा....।’’

एन ने शराब के गिलास को सभी की तरफ बढ़ा दिया ।

डी शराब का पहला घूँट लेकर बोली, ‘‘आप?’’ की क्वालीफिकेशन क्या है?

‘‘मैं एम.एम.सी फस्र्ट क्लास हूँ और कम्प्यूटर का बिजनेस है मेरा...।’’

‘‘और आप की हाँबी क्या हैं?’’

‘‘स्टडी और बिजनेस करना.’’

‘‘यह भी कोई हाँबी है.’’डी ने मुँह बनाकर कहा, ‘‘पार्टी और क्लबों में तो इन्जवाँय करते होंगे?’’

‘‘मुझे पार्टी-क्लब अच्छे नहीं लगते.’’

‘‘आपकी सोच तो बड़ी पुअर है। अच्छा यह बताए गिफ्टमानी में क्या-क्या दे रहे है?’’

‘‘एक मर्सडीज कार, एक बँगला, बिजनेस 50% की पार्टनरशीप,पाँच सर्वेन्ट, दो डॉक्टर, एक वकील.....।’’ बूढ़ी महिला ने बताया।

डी बूढ़ी महिला की बातबीच में काट बोली, ‘‘लेकिन मैं इस लड़के से मैरिज नहीं कर ,सकती। इसकी सोच बड़ी पुअर है.’’ वह कहकर उठ खड़ी हुई।

‘‘बेटी! मैरिज के बाद सब कुछ ठीक हो जायेगा.’’

‘‘मुझे मैरिज के बाद नहीं, मैरिज से पहले चाहिए...।’’

‘‘भाई साहब, आप ही इसे समझाये न.’’

‘‘डैडी! क्या समझायेंगे मुझे.....मैं खुद अच्छा-बुरा समझती हूँ। वैसे भी मैरिज मुझे करनी है, डैडी को नहीं....चलिय डैडी....।’’ डी तीखे शब्दों को उड़ेकर अपने डैड के साथ रूप से बाहर चली गई।

भूतकाल इस टृशय को देखकर हैरतअंगेज़ था। उसके होठ कपकपा उठे, ‘‘वर्तमान तुम्हारा समय तो बहुत खराब है.’’

‘‘भूतकाल, आज जो रहा है, इसमें भी तुम्हारे समय का हाथ है.’’

‘‘ तुम्हारे कहने का तात्पर्य क्या?’’

‘‘मेरे कहने का तात्पर्य यह है, कि तुम्हारे समय में इतना गर्भपात हुआ है कि आज लड़कियाँ-लड़को के मुकाबले एक तिहाई से भी कम है.’’

‘‘तो क्या आज सारी लड़कियाँ डी जैसी हैं?’’

‘‘हाँ भूतकाल, समय ही ऐसा है....।’’

दोनों बात करते-करते बहुत दूर निकल गये थे। भूतकाल की निगाहें दाहिनी तहफ घूम गई, ‘‘यह लोग लाश को कब्रिस्तान है?’’ के बजाय,घर में ही दफना रहे हैं?

‘‘भूतकाल! अब सरकार के पास इतनी ज़मीने नहीं है, कि मुर्दे जलाने और दफ़ंनाने के लिए दे.’’

‘‘वर्तमान! अगर कोई इंसान मर जाते और उसके पास ज़मीन न हो तो उसका क्या होगा?’’

‘‘ऐसे लोगों का तो ईशवर ही मालिक होगा। क्योंकी अब पहले की तरह इतने पशु-पक्षी भी नहीं रहे, जो लाशों को अपना भोजन बना सके.”

‘‘वर्तमान, आज संसार की जो स्थिति है उसे देखकर तो मुझे अत्यंत पीड़ा होती है। सोचता हूँ इस जग का क्या होगा?’’

‘‘भूतकाल, जितना तुम्हें दुःख है, उससे कहीं अधिक दुःख मुझे भी है....पर मैं क्या करूँ, अपने आप से तो नहीं भाग सकता.’’

‘‘वर्तमान, हम लाश?’’ को जला तो सक

‘‘पर लाश को?’’ जलायेंगे किससे

‘‘लकड़ी से.’’ भूतकाल ने छुटते ही कहा।

‘‘अरे भाई लकड़ी अब है कहाँ, अब जो पेड़ है भी, वह गिने-चुने है। जिसे देखने के लिए लोग अजायबघर जाते है.’’

‘‘तुम्हारी इन बातों से तेरा सिर फटने लगा हैं। अगर ज्यादा देंर यहाँ रूका तो पागल हो जाऊँगा....।’’ भूतकाल ने अपनी पीड़ा व्यक्त की।

‘‘भूतकाल, तुम अभी से भागने लगे....।’’

‘‘वर्तमान, मैं भाग नहीं रहा....मैं तो चाय पीने जा रहा हूँ.’’

‘‘चाय....।’’ वर्तमान ने जोर का अटहास लगाया।

‘‘इसमें हँसने की क्या बात है?’’

‘‘मैं इसलिए हँस की रहा हूँ कि अब चाय नहीं,.’’ शराब मिलत

‘‘तो क्या अब लोग चाय नहीं पीते हैं?’’

‘‘तुम चलकर स्वयं उस दुकान पर देखा लो.’’ वर्तमान-भूतकाल को लेकर उस दुकान पर जा पहुँचा। दोनों बायी तरफ़ खड़े होकर उस दृशय को देखने लगे।

‘‘बेटा, एक कप चाय दे दो....।’’

दुकानदार खींसे निपोरता हुआ बोला, ‘‘बाबा! किस ज़माने की बात कर रहे हो? अब पर चाय नहीं, शराब मिलती है। कहो तो दूँ

‘‘छी-छी....यह तुम क्या कह रहे हो? मेरे समय में तो हर दुकान पर चाय मिलती थी.’’

‘‘आज चाय से सस्ती, शराब पड़ती है और उसी डिंमाड भी अधिक है....अब वह ज़माना गया, जब इंसान चाय पीते थे.’’

दुकानदार की बातों ने वृद्ध को निरूत्तर कर दिया। वह थके क़दमों से दायी तरफ मुड़ गया।

भूतकाल की निगाहें दुकान के अंदर बैठे ’’ बच्चे , बूढ़े, पुरूष, महिला पर रेंग गयी। चहकर अपने आप को रोक न सका, ‘‘वर्तमान, यहाँ तो सभी छोटे-बड़े नशे डूबे है। गया है इन इंसानो को?’’

भूतकाल उन लोगों के करीब जा पहुँचा, ‘‘भाइयों! इसे मत पियो, यह शराब है.... यह तुम सब को पी जायेगी चाचा, आप तो बुजुर्ग हैं इन्हें समझाइये न....।’’

सभी अपनी मस्ती में मस्त थे।

‘‘कोई मेरी बातों को सुनता क्यों नही...क्या सब के सब बहरे हो गये?’’

वर्तमान-भूतकाल के करीब जा पहुँचा। और उसके कन्धे पर हाथ रखकर बोला, ‘‘भूतकाल,शायद तुम भूल रहे हो, यह पृथवी है और यहाँ पर मेरी तुम्हारी बाते सुनने वाला कोई नहीं हैं....अब चलो यहाँ से, समय बरबाद करने से कोई फायदा नहीं.’’ वर्तमान-भूतकाल को लेकर दुकान से बाहर निकल गया।

कुछ दूर चलने के बाद वर्तमान ने कहा, ‘‘भूतकाल तुम इतने मैं परेशान हो गये। आज इंसान इतना आगे बढ़ चुका है कि वह जब चाहे बरसात करा दे, जब चाहे आसमान से हिम की पंखुडियाँ गिरा दे....।’’

‘‘यह तुम क्या कह रहे हो?’’

‘‘मैं सच कह रहा हूँ, आज घर-घर में कृत्रिम धूप की व्यवस्था है। एक स्विच दबाकर इंसान सूर्य का स्नान कर सकता है.’’

‘‘वर्तमान, अब मुझसे यह सब देखा नहीं जाता.’’

वर्तमान-भूतकाल की बात को नज़रअंदाज करता हुआ बोला,‘‘ आओं भूतकाल, तुम्हें एक और चीज़ दिखाये....।’’

‘‘अब क्या दिखाओगे?’’

‘‘उस बच्चे को देख रहे हो?’’

‘‘हाँ! देख रहे हो?’’

‘‘तो उस दृशय को देखो....।’’

‘‘डैड.’’ बच्चे ने पुकारा।

‘‘क्या हुआ और क्यों चिल्ला रहे हो?’’ मरियल-सा व्यक्ति रूम के अंदर आकर बोला।

‘‘डैडी, बहुत तेज़ भूख लगी है.’’

‘‘ तो कैप्सूल क्यों नहीं खाते.’’

‘‘डैडी, आज मैं कैप्सूल नहीं खाना खाऊँगा.’’ बच्चे ने तोतली आवाज़ में कहा।

‘‘ मैं तुमसे कितनी बार कह चुका हूँ कि खाना खिलाने की मेरी औकात नहीं....। उसने पास पड़ी कैप्सूल़ा की शीशी उसकी तरफ बढ़ दी, ‘कैप्सूल....इसी से अपनी भूख तरफ शांत करो.’’

‘‘डैडी, मैं इन कैप्सूलो से कब तक अपनी भूख शांत करूँगा?”

‘‘बेटे, तू चिन्ता मत कर, मैं तुम्हें जल्दी ही खाना खिलाऊँगा.’’ उसने बच्चे को बहलाया।

‘‘प्रामिस डैडी....।’’

‘‘प्रामिस बेटे.....।’’

बच्चा कैप्सूल खाने के बाद इधर-उधर दौड़ने लगा।

‘‘यह बताओ वर्तमान, अब लोग खाने के बजाय कैप्सूल क्यों खाते हैं?’’

‘‘वह इसलिए कि अब लोगों के पास इतना पैसा नहीं कि वह खाना खा सके।’’

भूतकाल एकाएक गिरा और मर गया। वर्तमान के पास अब समझने वाला भी कोई नहीं बचा था।

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