सुबह के नौ बज गए थे ,पर रामी का कहीं अता पता न था ‘आज लगता है फिर नही आएगी ’सोचते हुए मैं स्वयं ही बर्तन साफ करने की सोच रही थी कि क्रींच की तीखी घ्वनि के साथ द्वार की घंटी बज उठी और उसके अंदर आने पर ,इससे पूर्व कि उसके देर से आने पर में कुछ कहती रामी स्वयं ही अपनी राम कहानी सुनाने लगी ‘‘ का बताई दीदी तोहरे सामने वाली प्रिंसपलनी बहुत बीमार हैं आगे पीछे तो कोई है नही हमही जरा उनकेर खातिर चाय दलिया बनावै लाग ,अरे मनई मनई के काम आवत हेै’’ प्रिंसपलनी अर्थात मेरे घर के ठीक सामने रहने वाली अवकाश प्राप्त प्रधानाचार्या मिसेज चंदानी मिसेज चंदानी का नाम आते ही लगभग सत्तरवर्षीय वृद्धा का चेहरा सामने आ जाता है जिन्हे मैने अपने इस घर में रहने के छः वर्षों के अन्तराल में संभवतः छः बार ही देखा होगा कठोर भाव लिये उनका चेहरा आज भी उनके कड़क प्रधानाचार्या होने की पुष्टि करता है ऊँची चारदीवरी विशालकाय फाटक लंबे लंबे वृक्ष और घनी लताओं से घिरा उनका आवास स्वयं में किसी रहस्यात्मक बंगले से कम नही लगता उस पर से करेला नीम चढा हैं उनके भेड़िये जैसे आकार प्रकार के ख्ूंाखार दो कुत्ते जो फाटक के सामने से फेरी वाला भी निकल जाए तो गुर्रा कर अपना आक्रोश व्यक्त करते हैं । जब मैं पहली बार इस घर में रहने आयी तो सामने के मकान में लगी नामपट्टिका में भू0 पू0 प्रधानाचार्या मिसेज चंदानी का नाम पढ़ कर ही उनका परिचय प्राप्त हुआ था पर महीनों न तो रामी के अतिरिक्त मैने किसी को उनके घर में जाते देखा न ही किसी को घर से निकलते । पर अधिक ताँक झाँक की प्रकृति न होने के कारण और कुछ नई होने के कारण मैंने कभी उस घर में रहने वालों के विषय में अधिक जानने का प्रयास नही किया।
वह तो एक दिन में अपने पड़ोस की शुभा से बातें कर रही थी कि एक गंभीर मुखमुद्रा वाली वृद्धा को रिक्शे से उतर कर अंदर जाते देखा ,मेैं उत्सुकतावश मुड़़ कर उन्हे देखने लगी तो शुभा ने मुझे कोहनी मार कर कहा व्यंग्य से कहा ‘‘ अरे उधर मत देख बुढ़िया बुरा मान जाएगी ’’एक सुशिक्षित वृद्धा के लिये संबोधन मुझे फांस सा चुभा पर उनके बारे में जानने की जिज्ञासा में उस चुभन को दरकिनार कर मैं शुभा को प्रश्नवाचक दृष्टि से देखने लगी । शुभा मेरी जिज्ञासा शान्त करते हुए बोली ‘‘ अरे पता नही यह कैसी रुखी और बद्दिमाग बुढ़िया है जिसे मानुष्ज्ञ गंध ही नही सुहाती कोई भूला भटका इसके द्वार पहुंच जाए तो पहले तो खूंखार कुत्ते ही उसकी राह रोक लेते हैं और कहीे गलती से वह बाहर ही मिल गयीं तो अपने कुत्तों से भी अधिक खूंखार ऐसे भावों से देखेंगी मानेा जाने वाले ने उनके घर जा कर पता नही उनका क्या छीन लिया हो । फिर शुभा ने बताया कि प्रारम्भ में जब वह इस कालोनी में आई तो पड़ोसी धर्म के नाते उनसे मिलने जाने का अपराध कर बैठी थी ।जब शुभा ने घंटी बजाई तो तुरंत ही दोनो कुत्ते फाटक के उस पार फाटक पर पैर रख कर खड़े हो गए और जोर जोर से भौंक कर उसे वापस जाने का आदेश देने लगे पर कुत्तों की भाष्ज्ञा से अपरिचित शुभा ने पुनः यह सोच कर घंटी बजा दी कि कुततों की मालकिन आ कर इन कुत्तों को हटाएगी तो वह फाटक से भीतर प्रवेश कर पाएंगी । उसकी आशा के अनुरुप मालकिन बाहर तो आई पर चेहरे पर नितान्त अनिच्छा या लगभग उपेक्षा के भाव लिये। मरता क्या न करता शुभा यह तो समझ गई कि उसने यहां आ कर त्रुटि की है पर मालकिन को बाहर बुला कर उल्टे पाँव लौट जाना उसे अशि ष्टता लगी अतः उसने अपने खिसियाए चेहरे पर सप्रयास मुस्कान लाते हुए कहा ‘‘नमस्ते मैं आपके सामने के बगल वाले घर में रहती हूं ’’ ‘‘तो ?’’,मिसेज चंदानी के इस रुखे प्रश्न और चेहरे के भाव देख कर थूक गटकते हुए वह बोली ‘‘ जी पड़ोस के नाते आपसे मिलने आई थी ,पर शायद आप व्यस्त हैं अतः चलती हूं ’’ और यह कह कर वह उल्टे पाँव लौट पड़ी ,मिसेज चंदानी ने भी उसे रोकने का प्रयास नही किया।चार पंाच पग चल कर उसने एक बार मुड़ कर पीछे देखा तो वह अपने कुत्तों को सहला रही थीं और उनके चेहरे पर कुछ समय आया कठोर भाव तिरोहित होने लगा था शुभा को ऐसा प्रतीत हुआ मानो वह अपने कुत्तों को अपना दायित्व भली भांति निभाने के लिये शाबाशी दे रही हों । वह दिन और आज का दिन शुभा ने उनके घर जाना तो दूर उनसे कभी दृष्टि भी नही मिलाई। शुभा का यह कटु अनुभव सुन कर मैने भी कभी उनसे परिचय बढ़ाने का साहस नही किया ,हँा मन में उनके इस असामान्य व्यवहार के प्रति भीगे हुए नए चूने के समान बनेक प्रश्न खुदबुदाते रहते हैं में प्रायः सोचती कि यह ऐसी क्यों हैं परोक्ष में कोई तो कारण होगा जो इतनी शिक्षित ,प्रधानाचार्या के पद से अवकाश प्राप्त महिला समाज के मघ्य रह कर भी शिष्टाचारों को किनारे रख कर पानी में चिकनाई के समान सदा अलग ही रहती हैं । पर उनके शुष्क व्यवहार के बारे में यदा कदा सुनी बातें मेरी जिज्ञासा के बुलबुलों को अन्दर ही अन्दर खुदबुदाने को बाध्य करतीं ।
बच्चे तो उन्हे परोक्ष में चांडालिन तक कहते क्योंकि सड़क पर क्रिकेट खेलते बच्चों की गेंद प्रायः उनके घर की चारदीवारी फांद कर उनके घर की बगिया में संेध लगाने का अपराध कर बैठती ।पहले तो बच्चों ने गेंद वापस देने की अनुनय विनय की पर उत्तर में उन्होने अपने कुत्तों को खोल दिया, जो फाटक के उसपार से ही बच्चों को इतना भयाक्रांत कर देते कि वे बेचारे निराश हो कर लौट जाते । कुछ खेलने की अदम्य इच्छा और कुछ बाल्यावस्था का दुःसाहस ,एक दो लड़कों ने तो द्वार फांद कर अपनी संम्पत्ति वापस लेने का प्रयास भी किया पर अपनी तीव्र ध्राणशक्ति के चलते उन प्रहरी कुत्तों ने बच्चों के प्रयास को असफल ही नही बनाया वरन् एक लड़का मिंटू जो ऊँची चारदीवारी पर लगभग चढ़ ही गया था कुत्तों की खूंखार गुर्राहट सुन कर ऐसा थर्राया कि सीधे पके आम या धरती पर आ गिरा जिससे उसके पाँव की हड्डी टूट गई और वह डेढ़ माह तक बिसतर पर पड़ा रहा ।अब तो बच्चे गेंद उस पार चले जाने पर आपस में जेब खर्च जोड़ कर नई गेंद लाना ही श्रेयस्कर समझते हैं।
आज रामी बता रही थी कि मिसेज चंदानी कुछ खा पी नही रही हैं दर्द से तड़प रही हैं ,उनका उठना बैठना दूभर हो गया है ,बस डा0 सुबह शाम आ कर सुई लगा जाता है और बेचारी दिन भर एकाकी पड़ी रहती हैं बस रामी ही उनका काम कर देती है।मुझे उनका क अ और एकाकीपन देख कर उनसे सहानुभूति हो रही थी जैसी भी हैं मानवता के नाते मेरा मन कर रहा था कि उनका हाल चाल पूछ आऊँ पर कुछ पड़ोसियों की व्यंगोक्तियों और कुछ उनके खूंखार कुत्तों के डर से जो कुठ ही क्षणों में किसी को भी क्षत विक्षत करने में सक्षम हैं मैं उनके घर जाने का साहस नही कर पाई ।हाँ मैने इतना अवश्य किया कि रामी को उनकी सेवा के कारण मेरे घर आने में होने वाली देर में अवश्य छूट दे दी भले ही मुझे कुछ कार्य स्वयं ही करने पड़ते ।
तीन चार दिन ही बीते होंगे कि रामी पुनः पूर्ववत प्रातः अपने समय पर उपस्थित हो गई मैने पूछा ‘‘तुम्हारी प्रिंसपलनी की तबियत ठीक हो गई क्या ?’’मेरा इतना कहना था कि उसको मानो अपने मन की भड़ास निकालने का अवसर मिल गया हो ,टेढ़ा मुंह बना कर बोली ‘‘ अरे कल की मरती आज मरें हमें का करै का है ’ और फिर अविरल प्रवाह में उनके लिये अपशब्दों की बौछार प्रारम्भ कर दी उसके इस प्रहार से मिसेज चंदानी का तो पता नही पर मेरा तन अवश्य आहत हो गया मैने लगभग उसे डांटते हुए कहा ‘‘ क्या अनाप शनाप बोले जा रही है कल तक तो उनकी इतनी सेवा करती थी और आज उस दुखी आत्मा को कोस कर क्यों पाप की भागी बन रही है ’’अरे दीदी आप का पता नही बुढ़िया बड़ी घाघ है, अरे हम का नही कियै ओह के बरै ? गू मूत तक साफ कियै तेल लगावा दलिया बनावा पर ऊ नासुक्री बुढ़िया हमका तो टका नाही दिहिस ’’ फिर पास आ कर धीमे स्वर में बोली दीदी तोहका पता है बगल वाले चैबे जी मीठी मीठी बतिया बनाय के बुढ़िया केर मकान अपनै नाम कराय लिहिन ’’ मुझे सारी कहानी वष्ज्र्ञा के बाद धुले आकाश के समान स्पष्ट दिखने लगी ,मै समझ गई कि जिसे मैं रामी की भलमनसाहत समझ रही थी वह कुछ पाने का स्वार्थ था । पर मुझे रामी की बात का विश्वास नही हुआ चैबे परिवार तो मिसेज चंदानी की सर्वाधिक बुराई करता था फिर वह पढ़ी लिखी महिला अपना सब कुछ उन्हे क्यों देंगी ’’ पर फिर और लोगों से भी ज्ञात हुआ कि आज कल चैबे जी का पूरा घर दिन रात उन्हे घेरे रहता है और उनकी सेवा में जुटा है ,उनका बेकार बेटा जिसका दादी की अंतिम इच्छा पूर्ण करने हेतु बिना कमाई के ही विवाह कर दिया गया था अपनी पत्नी सहित मिसेज चंदानी के घर पर ही डेरा डाले हुए है । रामी की तो उन्होने एक प्रकार से छुट्टी ही कर दी है बस बर्तन साफ करवा कर उसे चलता कर देती हैं ।वह तो रामी ने किसी समय काम के बहाने से उनके मघ्य होने वाले वार्तालाप से इस रहस्य को जान लिया । संभवतः मिसेज चंदानी ने इस असहाय अवस्था में डूबते में तिनके का सहारा पा कर यह निर्णय लिया होगा अथवा लेने को विवश हुई होंगी।
दो ही तीन दिनों में नाटक में नया मोड़ आ गया । मैं सो कर उठी ही थी कि बाहर से लोगो की जोर जोर से बहस करने की घ्वनि सुन कर में बाहर आ गई । वहां देखा कि मिसेज चंदानी के घर के सामने एक कार खड़ी है और एक सूटेड बूटेड सज्जन चैबे जी से कह रहे हैं ‘‘ आप कौन होते हैं मेरी मदर के बारे में कुछ तय करने वाले ,पता नही इन्हे कौन कौन सी दवा देकर और ,भी बीमार कर दिया उनका इलाज मेै किसी अस्पताल में कराऊंगा ’’चैबे जी का तो पूरा परिवार ताल ठोंक कर लड़ने की मुद्रा में खड़ा था ,उनकी पत्नी हाथ नचा कर बोली ‘‘रहने दो बड़े आए माँ की चिन्ता करने वाले ,सालों तो इधर झांका भी नही अब आखिर समय में जब मकान पर हक की बात आई तो चले आए लाड़ले बेटा बन कर ’’ वह सज्जन क्रोध से लाल पीले हुए जा रहे थे । जब उनका चैबे जी की पत्नी के आगे वश न चला तो अपनी आंग्ल भाष्ज्ञा का प्रभाव डालने का प्रयास करते हुए चैबे जी से बोले ‘‘ प्लीज आस्क युअर वादफ टु बिहेव हर सेल्फ ’’इस पर चैबे जी की पत्नी बोलीं ‘‘बस बस जादा अंग्रेजी में न टरटराओ ,खबरदार जो अम्मा जी को यहां से ले गए ’’मैं विस्मय विमूढ़ थी ‘ तो क्या इनका बेटा भी है फिर यह यहां अकेली क्यों रहती हैं इतने दिनों से बीमार हें और बेटा आज आया ’मैं अपनी संवाददाता रामी की प्रतीक्षा करने लगी ,मेरी इस रहस्यमय प्रकरण में रुचि बढ़ती जा रही थी ,तभी रामी आ गई घटना के इस नाटकीय मोड़ से वह अति उत्साहित थी ,वह प्रसन्न हो कर बोली ‘‘ देखा दीदी चैबे की सारी चालाकी धरी रह गई ’’ मैने कहा ‘‘पर आज तक तो इनका बेटा दिखा नही ’’ इस पर ज्ञात हुआ कि वह इनका सौतेला बेटा है और इन दोनो का कोई संबध नही है ,पर इस समय चैबे जी से जली भुनी रामी को वह देवदूत सा लग रहा था ,वह बेटे का पक्ष लेते हुए बोलीं ‘‘अरे कछु होय है तो उनके मरद की औलाद ,प्रिंसपलनी के घर जायदाद पर तो उसी का हक बनता है चैबिआइन खाली अम्मा जी ,अम्माजी कह कर ऊकेर हक थेाड़े ही हड़प लेइहैं ’’ मैने उसे टोक कर पूछा पर मिसेज चंदानी के क्या हाल हैं ’’ ‘‘ ऊ तो बेहोस हेैं उनकर बिटवा बड़े अस्पताल ले गवा है उसका अविरल वार्तालाप फिर प्रारम्भ हो गया‘‘ अरे दीदी ईचैबे तो खूब टांग अड़ाय रहै पर उनकेर बिटवा ठहरा पहुंच वाला थाना कचहरी की धमकी दे कर लै गवा है आपन महतारी का ’’ ‘‘ पर जब उसका इनसे कोई संबध ही नही था तो उसे पता कैसे चला ’’,‘‘ अरे अइसन बात कहीं छिपत है का सबय जानत रहै कि चैबे का गुल खिलाय हैं कोऊ फून कर दियै होई सो सुन कर ऊ दौरे आय ’’ मैं समझ गई कि यह सब रामी के प्रचार प्रसार का परिणाम है । मुझे न जाने क्यों मिसेज चंदानी की चिन्ता हो रही थी कोई भी कराए पर उनकी सेवा सुश्रुषा हो जाय।
मिसेज चंदानी के अस्पताल जाने के बाद सामने घर विचित्र सूनसान लगने लगा था उनके कुत्ते उदास से द्वार पर ही बैठे रहते थे यहां तक कि फाटक के पास से निकलने वालों को भौंक भी नही रहे थे संभवतः जिसकी सुरक्षा का दायित्व उनके ऊपर था उनके चले जाने पर उन्ेु भैंकना भी निष्प्रयोजन लग रहा था । भले मिसेज चंदोनी से मेरा कोई संबध नही था फिर भी मानवता के नाते इस स्थिति में स्वयं मैं को उन्हे देखने के लिये अस्पताल जाने से रोक नही पायी थी । वहां पहुंच कर पता चला कि वह आई सी यू में हेै ,मैं वहां पहुंची तो मेरे आश्चर्य की सीमा नही रही जिन्हे मैं नितान्त एकाकी समझ रही थी उनके बेटे के अतिरिक्त दो बहनों और भाइयों के परिवार भी थे । मेरे लिये उनका एकाकी जीवन और भी रहस्यमय बन गया ।
सभी दिन रात वहां पर अस्पताल में ही पड़े रहते ।दिन पर दिन व्यतीत होते जा रहे थे पर अपनी निजी व्यस्तताओं के पश्चात भी कोई वहां से जाने को भी तैयार नही था सभी एक दूसरे को जाने को कहते । मिसेज चंदानी यथावत बेसुध थी काश वह देख पातीं कि उनके कितने हितैष्ज्ञी हैं।नित्य जाते जाते सबके वार्तालाप से मिसेज चंदानी के अतीत जीवन के कुछ पन्ने मेरे हाथ लग गए थे ।उनका पूरा नाम पुनीता चंदानी है वह अपने पांच भाई बहनों में सबसे बड़ी हैं और पिता की अकस्मात मृत्यु के कारण उन्होने अध्यापन करके दोनों भाइयों और बहनों को उनके पैरों पर खड़ा करके उनकी गृहस्थी संवारते संवारते उनकी गृहस्थी बसाने की आयु मुठ्ठी से रेत के समान फिसल गई थी फिर जब सब भाई बहन अपनी अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गए तब शनैः शनैः वह स्वयं को उनके जीवन में अवांछित अनुभव करने लगीं । तभी पुनीता की जीवन रुपी नाव समय के प्रवाह में लक्ष्यहीन बहती हुई अपनी मित्र के भाई अधेड़ आयु के विधुर श्रीरमेश चंदानी से जा टकरायी । अपनों से आहत और एकाकी जीवन यात्रा से थकी पुनीता ने इसी किनारे लगना श्रेयस्कर समझाऔर इस प्रकार वह मिसेज चंदानी बन गईं । यह उनके भाई बहनो को रास न आया उन्हे समझ न आया कि इस आयु में विवाह करने की क्या आवश्यकता थी । यह दुर्भाग्य ही था कि मिसेज चंदानी ने उनसे मुंह मोड़ा तो भाग्य ने भी उनसे मंुह मोड ़लिया समय के तीव्र प्रवाह ने उनके किनारे को छिन्न भिन्न कर दिया ,पांच वष्ज्र्ञ भी न बीते थे कि श्री चंदानी की हृदयाघात से मृत्यु हो गई ।उनके एक मात्र पुत्र सुजय से वैसे भी उनके विशेष्ज्ञ तन्तु नही जुड़ पाए थे । श्री चंदानी का घर पूर्व पत्नी के नाम ही था इससे पूर्व कि वह अपने अधिकार का प्रश्न उठाए दूरदर्शी सुजय ने दूसरा घर खरीदने के बहाने से वह घर बेच कर अपने नाम से घर खरीद कर पुनीता को एक किनारे कर दिया और इस प्रकार अपने अनचाहे कर्तव्य और अधिकार में भागीदारी से मुक्ति पाई ।वह तो मिसेज चंदानी स्वयं समर्थ थीं अतः यह घर खरीद लिया ।पर जो भी हो इस समय सभी उनके स्वास्थ्य को ले कर चिन्तित थे ,उनके कष्ट में सब प्रस्तुत थे यही क्या कम है ? सभी एक दूसरे से बढ़़ कर उनके करीबी बनने का प्रयास कर रहे थे ।
मैें अपने विचारों में मग्न थी कि आई सी यू से डाक्टर बाहर आए उन्हे देख कर सभी उत्सुकता से डाक्टर के समीप सिमट आए डाक्टर ने गंभीर वाणी में कहा ‘‘ मिसेज चंदानी का जीवन तो हमने बचा लिया है वह कुछ देर में होश में भी आ भी जाएंगी पर शायद उनके बांए तरफ के अंग लकवाग्रस्त हो गए हैं ’’ यह सुनते ही कुछ ही देर में अभी तक स्वयं को उनके सबसे अधिक प्रिय सिद्ध करने की होड़ में रस्साकशी कर रहे उनके सम्बन्धियों के मध्य की रस्सी अचानक एक झटके से टूट गई , उन्हे अनायास अपने आवश्यक कार्य याद आ गए और मिसेज चंदानी के आंख खोलने से पूर्व ही उनका चिर आत्मीय एकाकीपन उनके पास सिमट आया था ।