अपनों से मिला दर्द
एक दिन धरती माता काफी विचलित हो रही थी। चेहरे की चमक और मन में शांति का भाव दोनों लुप्त हो गए। कारण था मनुष्य का अनैतिक पाप कर्म, वनों की कटाई और अवांछित कार्यों की ओर अधिक ध्यान देना।
वह प्राकृतिक संसाधनों का अनियंत्रित दोहन एवं धन संपदा बढ़ाने में लगा था। जिससे अपना जीवन वैभव पूर्ण जी सके। महाशक्तियां अनगिनत परमाणु हथियार बनाने में लगी थीं। अन्य देशों जैसे उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति किन जॉ, चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग उन्हें चुनौती दे रहे थे।
रूस और अमेरिका गाहे-बगाहे एक दूसरे के आमने-सामने हो जाते थे। सर्वशक्तिमान बनने की होड़ में किसी भी देश को दूषरे का नेतृत्व स्वीकार नहीं था। मनुष्य ईश्वर की सबसे सुंदर रचना है। वह खूंखार एवं स्वार्थी हो गया।विनाश के बारे में वह सोच नहीं पा रहा था।
मिसाइलों और बमों का जखीरा एकत्रित करने में लगा हुआ था।चीजें हाथ से निकलती देख पृथ्वी मां क्रोधित हो गई। चीखती- चिल्लाती अपने जन्मदाता सूर्य देव के पास पहुंची। उसकी आंखें लाल हो रही थी। पुत्र चंद्रमा को पता चला तो वह भी मां के पास आ गया।
"मां,क्या बात है? आज आपके अंदर शान्ति का अभाव दिख रहा है। आप इस तरह हाथों में मुंह छुपाकर उकड़ू बैठी हैं। बताओ ना मां"- चंद्रमा ने पूछा। वह रोने लगी। कोई उत्तर नहीं मिला तो सूर्य देव चिंतित हो गए। सोचा अवश्य कोई गंभीर बात है। पुत्री की दयनीय स्थिति देखकर पिता का चिंतित होना स्वाभाविक है।
" पुत्री, मुझे बताओ तुम्हें क्या कष्ट है? संसार में कौन सा दुष्ट है? जिसने तुम्हारा चैन हरण कर लिया है"- सूर्यदेव ने कहा।धरती माता की सिसकियां तेज हो गई। चंद्र देव ने मां के आंसू पोंछे तब वह मानसिक रूप से सामान्य हुई और बोली-
"पिताश्री, मुझे बचा लीजिए। मैं अनेक संकटों से घिर चुकी हूं।आपने मुझे सहारा ना दिया तो मेरा नष्ट होना अवश्यंभावी है"।
" ऐसी क्या घटना घट गई है, पुत्री? जो चेहरे पर निराशा के बादल छाए हुए हैं। तुम्हारी खनकती हुई आवाज जो मुझे सुकून दिया करती थी। हंसती मुस्कुराती रहती थी। आज वह रोने को विवश है। बताओ पुत्री"- सूर्यदेव ने कहा।
"देव,मेरी निराशा का कारण मेरे अपने बेटे मनुष्य हैं।उसके वैज्ञानिक अब तक अच्छे बुरे हजारों अविष्कार कर चुके हैं। यह अविष्कार उसने अपनी सुख सुविधा के लिए किए हैं। कुछ स्वयं को शक्तिशाली बनाने के लिए"- धरती माता ने सिसकते हुए कहा।
" यह बात तुम्हारी सोलह आने सच है। विध्वंशक हदियारों से मेरा भी दिल दहल जाता है। एक घटना मेरे साथ भी घट चुकी है,पुत्री।एक बंदर मेरे पास भी आया था। उसने मुझे फल समझकर अपने मुंह में बंद कर लिया। भगवान विष्णु की कृपा से मैं उस बंदर की पकड़ से स्वतंत्र हो पाया"- सूर्य देव ने कहा।
"हां हां, पिताजी यह घटना मैंने भी सुनी थी"। उस घटना के बारे में सुनकर मैं भयभीत हो गई थी ।
" बेटी, तुम सच कह रही हो। मनुष्य नाम के प्राणी का उपचार करने के लिए भगवान ही सक्षम है। तुम्हें याद है, जब हिरण्याक्ष ने तुम्हारा अपहरण कर लिया था। पाताल लोक में छिपा दिया था।तब भगवान विष्णु ने बराह रूप धारण कर तुम्हारा उद्धार किया था"- सूर्यदेव ने कहा।
"पता नहीं आजकल भगवान विष्णु अवतार क्यों नहीं ले रहे हैं? मेरे यहां त्राहि-त्राहि मची हुई है। लूटमार, भ्रष्टाचार, दुष्कर्म, प्रदूषण, काला धन जैसे अनैतिक कार्य हो रहे हैं। मैं बरसों से बीमार चल रही हूं। उन्हें मेरी परवाह नहीं है"- पृथ्वी ने कहा।वह आह भरकर दर्द से कराहने लगी।
"बिटिया, घर गृहस्थी में नरम गरम चलता ही है।किसी की संतान अच्छी निकलती है तो सम्राट अशोक, कालिदास, तुलसीदास, रवीन्द्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी की तरह मर्यादाएं स्थापित करती है। परंतु विध्वंस की तरफ मुड़ जाए तो इब्राहीम दाऊद, किम जॉन, हिटलर बनने में देर नहीं लगती है"-सूर्य देव ने निराशा भरे स्वर में कहा।
"नाना जी, संसार में 193 देश हैं।उनकी अपनी अपनी सेनाएं हैं। एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए परमाणु हथियार, मिसाइल, एक से एक बेहतरीन लड़ाकू विमान बनाते रहते हैं। आजकल चीन ने एक वायरस बनाया है। कोविड-19 नाम का कोरोना वायरस लापरवाही से लीक हो गया। उसने लाखों व्यक्तियों को मौत के घाट उतार दिया"-चंद्रमा ने कहा।
"यह बात तो मैं भी सुन रही हूं। अमेरिका, ब्राजील, ब्रिटेन, जर्मनी, भारत चिल्ला चिल्लाकर चीन को कोस रहे हैं। उसके ऊपर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए हैं। पश्चिमी देश चीन पर आक्रमण करने की सोच रहे हैं"-सूर्य देव दोनों की बातें गंभीरता से सुन रहे थे।उनके मांथे की लकीर शैव रूप धारण करती जा रही थी।
" यदि तीसरा विश्व युद्ध हो जाता है तो माता श्री का क्या होगा? इतना विकिरण फैलेगा कि जिस गाय के सींग पर माता श्री अवलंबित हैं, वह गाय माता क्रोधित होकर माता श्री को अपने सींग से उतार कर भाग जाएगी"- चंद्रमा ने कहा।
"पुत्र, मेरे अंदर बहुत सारा गरम-गरम लावा भरा है। अभी तक ठंडा नहीं हुआ है। दबाव बढ़ जाता है तो ज्वालामुखी फूट पड़ता है। तब मुझे बहुत शांति मिलती है।पेट दर्द कम हो जाता है।"
"मेरा दोहिता अच्छा है। वह प्रकाशित तो तुमसे होता है। परंतु अपनी शीतल किरणों से प्राणियों को सुख देता है"- सूर्य देव ने कहा।
"अंततः है तो यह मेरा ही पुत्र ना। सच में यह मेरा सुपात्र बेटा है"- कहते हुए पृथ्वी के चेहरे पर लालिमा आ गई। थोड़ी देर बाद अचानक उनका रंग पीला पड़ने
लगा ।
"माते! यकायक आपका रंग परिवर्तित क्यों हो गया?- चंद्रमा ने कहा।
" मुझे तो अनेक समस्याओं ने घेर लिया है।
आ ई ई ई।मुंआ,आइंस्टीन एटम बम का आविष्कार कर गया। वह नोबेल पुरस्कार की स्थापना करके महान बन गया।यहां सभी देश उसका परीक्षण करते रहते हैं। मुझे सामान्य होने में महीने लग जाते हैं।"
"यह बात तो मैंने भी अनुभव की है-"चंद्रमा ने कहा।
सूर्यदेव -"क्या पुत्र"?
"यही कि धरती पर बहुत सारे उद्योग धंधे, थर्मल प्लांट कोयले से चलाए जाते हैं। इससे जो कार्बन डाइ ऑक्साइड गैस निकलती है, उससे अंतरिक्ष में ओजोन परत नष्ट हो रही है। प्राणियों को बीमारियां हो जाती हैं"- सूर्यदेव बोले।
" एक बात और"।
" पिताश्री,मनुष्य 50-60 मंजिल के भवन और मूर्तियों का निर्माण करने लगा है। इससे मेरे घूमने का चक्र गड़बड़ा जाता है"।
" निसंदेह अंतरिक्ष में तुम्हारा घूर्णन चक्र इसीलिए गड़बड़ा रहा था। मेरी गुरुत्वाकर्षण शक्ति बहुत अधिक शक्तिशाली है। तुम जब भी अपनी कक्षा के मार्ग से इधर-उधर होती तो वह तुम्हें तुम्हारी कक्षा में घूमने को बाध्य कर देती। अन्यथा तुम अंतरिक्ष के किसी ब्लैक होल में समा जाती। बिटिया अब भगवान के पास चलते हैं"- सूर्यदेव ने कहा तो पृथ्वी मां चलने के लिए शीघ्र तैयार हो गई।
"पिताश्री, अब सभी बातें भगवान विष्णु के सम्मुख करेंगे। वह कुछ न कुछ हल अवश्य निकालेंगे। जगत के पालनहार तो वही हैं। विष्णु कुछ सहायता कर सकें तो उनकी मेरे ऊपर विशेष कृपा होगी। चलो पुत्र तुम भी चलो। तुम्हें भी उनके दर्शन हो जाएंगे। इसके बाद तीनों ही सूर्यदेव के सात घोड़ों वाले रथ पर सवार होकर विष्णु लोक को प्रस्थान कर गए।
क्षीर सागर में पहुंचकर वहां देखा तो त्रिलोकीनाथ शेष शैया पर विश्राम कर रहे हैं। तीनों देवताओं ने हाथ जोड़कर कहा -"त्राहिमाम त्राहिमाम"। माता पृथ्वी करुण पुकार करती हुई अपने घुटनों पर बैठ गई।
इधर गाय माता और धरणीधर दोनों को पता चला तो वे भी विष्णु लोक चले आए। जिससे धरती माता के पक्ष को मजबूती से प्रस्तुत किया जा सके।देवी लक्ष्मी तो सदैव ही पृथ्वी के पक्ष में अपना समर्थन देती रही हैं।वह बोली-
"हे पदम नाभ! आप तो अंतर्यामी हैं। धरा देवी, मानव पुत्रों की गतिविधियों से विचलित होकर आपके पास सहायता हेतु पधारी हैं। इनका कष्ट हरण कीजिए"।
"हे प्रकृति पालकों,पृथ्वी पर मनुष्य ने जो संकट खड़े किए हैं।उन से मैं भलीभांति परिचित हूं।
"हे देव! आप परिचित हैं तो पुत्री पृथ्वी के
दुःख दूर करने में विलंब क्यों"- सूर्य देव ने कहा तो देवी लक्ष्मी पुनः बोली-
"पदमनाथ, पृथ्वी पर घटने वाली घटनाओं से मैं दुःखी हूं।अतः इस मानव नाम के प्राणी को ऐसा दंड दीजिए कि वह युगों युगों तक पृथ्वी पर विनाश के बीज न बो सके।मगर आप अवतार क्यों नहीं ले रहे हैं"।
"हां देवी,मानव ब्रह्मा जी की सबसे उत्तम रचनाओं में प्रथम स्थान पर है। परंतु उसमें उन्होंने ऐसे कई विकार डाल दिए हैं कि वह दूसरे को तुच्छ और स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए विनाश करना प्रारंभ कर देता है। इसके लिए उसने बहुत सारे घातक हथियार बनाए हैं। अंतरिक्ष में रॉकेट,उपग्रह तक छोड़ रहा है"।
"देवी,निश्चिंत रहिए। आप अपने आंसुओं को विराम दीजिए।अभी मेरे अवतार लेने का समय नहीं आया है। समय आएगा तो मैं अवश्य आपकी गोद में अवतार लूंगा। पापियों को उनके पाप कर्मों का दंड दूंगा। राक्षसी प्रकृति वालों का वध भी करूंगा"-भगवान विष्णु ने कहा। पृथ्वी की चिंताओं को दूर करने के लिए केवल आश्वासन मिला तो वहां उपस्थितो' के मांथे की लकीरें गहरी हो गईं।
'नहीं पद्मनाभ! ऐसे नहीं चलेगा। जिस समय मनुष्य एटम बम का परीक्षण करता है या ऊंची इमारतों का निर्माण करता है तो उस समय पृथ्वी के कंपायमान हो जाने से मेरे सींग पर उसका संतुलन बिगड़ जाता है। उसे संभालने में मुझे कठिनता के हजारों समुद्र पार करने पड़ते हैं। बताइए प्रभु, अवतार लेने की आप की क्या योजना है"? वहां खड़ी गाय माता ने कहा जो काफी समय से चुपचाप चर्चा सुन रही थी । जब उसका धैर्य समाप्त हो गया,अंततः उसे बोलना ही पड़ा।
"प्रभु, गाय माता मेरे फन पर खड़ी है। आप सोचिए इन परिस्थितियों में मेरी क्या हालत होती होगी"? धरणीधर भी बोल पड़े। काफी देर सोचने के बाद भगवान विष्णु की आवाज गूंजी-
" जय विजय"।
" जी स्वामी"।
" तुम अभी प्रस्थान करो। यमराज एवं शनि देव दोनों को हमारे समक्ष प्रस्तुत होने के लिए कहो"।
"जो आज्ञा प्रभु"।
इसके बाद जय बजे प्रस्थान कर जाते हैं। शनिदेव और यमराज को भगवान विष्णु के समक्ष प्रस्तुत होने का समाचार देते हैं। नारायण के निर्देश प्राप्त होते ही दोनों उनके दरबार में प्रकट हो जाते हैं।ब्रह्मांड में कोई भी घटना अपना आकार ले रही हो। वहां महर्षि नारद ना प्रकट हों ऐसा तो असंभव है।
" नारायण,नारायण। प्रभु भक्त का प्रणाम स्वीकार करें"।
"महर्षि नारद, आप भी"।
"हां प्रभू मैं।आपके यहां कोई हलचल हो रही हो।वहां मैं न हूं, यह हो ही नहीं सकता "- नारद जी ने कहा। माता लक्ष्मी ने उन्हें उचित स्थान ग्रहण करने के लिए संकेत किया।
"प्रभु,आपने हमें क्यों याद किया ह"?
" तुम्हारे लिए बहुत आवश्यक कार्य आन पड़ा है।उसे सिर्फ तुम ही हल कर सकते हैं"।
" बताइए जगदीश्वर, हम आपके लिए क्या कर सकते हैं? यह हमारा सौभाग्य है कि आप हमें अपनी सेवा करने का अवसर प्रदान कर रहे हैं"।
"तो सुनो, यमराज जी आप पृथ्वी लोक जाएं।
"मैं तैयार हूं, देव। आप बताइए तो सही"।
" पृथ्वी पर मानव नाम का प्राणी, देवी पृथ्वी के लिए अनेकों समस्याएं खड़ी कर रहा है। आप शीघ्र जाएं और उन्हें हल करें।"
"प्रभु,में पृथ्वी पर नहीं जाऊंगा। एक बार विचरण के लिए मैं ऐसे ही वहां पहुंच गया। वहां के मनुष्यों ने मुझे फंसा लिया था। भविष्य वाणी ग्रंथ विलुप्त कर दिया था। चित्रगुप्त को भी वहां काफी पापड़ बेलने पड़े।आप शनिदेव को भेज दीजिए।उनकी नजर टेढ़ी होते ही मनुष्य हेकड़ी भूल जाएगा"।
"आपका क्या विचार है शनि देव"?
"हे सर्वेश्वर,मैं आपकी आज्ञा का पालन अवश्य करूंगा। परंतु मेरा एक निवेदन है।
"वह क्या"?
"प्रभु,चीन की बुहान प्रयोगशाला से कोरोना नाम का वायरस वैज्ञानिकों की लापरवाही से लीक हो गया।वह संसार भर में फैल गया है। इन जीवाणुओं के बिषेले प्रभाव से कई लाख मनुष्य प्राण त्याग चुके हैं। इसका अभी तक कोई टीका नहीं बन पाया है। जिससे कोरोना को नियंत्रित किया जा सके"।
" हमने तुम्हें जो कार्य सौंपा है उसे पूरा करने के लिए तुम्हें क्या चाहिए"?
"दो चीजें चाहिए"।
" वह क्या"?
"प्रभु चेहरे पर लगाने के लिए बढ़िया गुणवत्ता का मास्क और पहनने के लिए पीपीपी किट। मैं यह दोनों चीजें पहन कर जाऊंगा तो कोरोना का मेरे ऊपर कोई प्रभाव नहीं होगा"।
भगवान विष्णु के अपना हाथ ऊपर उठाते ही उत्तम गुणवत्ता की दोनों चीजें प्रकट हो गई। इन्हें पहनकर शनिदेव मृत्यु लोक चल दिए। पृथ्वी वासियों को उपग्रहों से भेजे गए चित्रों से पता चला कि विष्णु लोक से शनिदेव आए हुए हैं। जिनपिंग, पुतिन, ट्रंप, अब्दुल्लाह हाशमी, इमरान खान शनिदेव के पास भागे भागे चले आए। उनके सामने गिड़गिड़ाने लगे।
"आदरणीय शनिदेव, आप हमारी तरफ टेढ़ी नजर से ना करें।अन्यथा हमारा विनाश निश्चित है।कृपया हमारे ऊपर दया कीजिए। हम मानते हैं कि हमने घातक हथियार बना लिए हैं। उन से एक मिनट में पृथ्वी को नष्ट किया जा सकता है। परंतु उन सभी हथियारों को हम नष्ट करने को तैयार हैं"। हे शनिदेव!हमें क्षमा कीजिए"।
इसके बाद पृथ्वी वासियों ने सभी हथियारों, अणु बमों,मिसाइलों, वायरस की प्रयोगशालाओं, रॉकेट, उपग्रहों को नष्ट कर दिया। आगे उनका निर्माण एवं परीक्षण न करने की शपथ ली।
नोट- रचना अप्रकाशित और मौलिक है.