वो भूली दास्तां, भाग-१४ Saroj Prajapati द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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वो भूली दास्तां, भाग-१४

जब से चांदनी ने आकाश से फोन पर बात की, तब से ही वह उदास रहने लगी थी। हंसना बोलना तो उसने कब का छोड़ दिया था । अब अपने को कमरे में बंद कर लिया था। इतनी बार उसकी दादी और भाई ने उसे समझाने की कोशिश की लेकिन जैसे उसने अपने आसपास एक अकेलेपन का घेरा बना लिया था। खाना पीना भी ना के बराबर ही हो गया था। कल जब पड़ोसन में आकर यह बताया कि सुना है आकाश अगले महीने शादी कर रहा है। तबसे चांदनी की मम्मी देख रही थी कि वह कुछ ज्यादा ही परेशान हो गई है। दोपहर में खाना भी नहीं खाया और रात को जब उसकी मम्मी ने उसे खाने के लिए बोला तब भी उसने भूख ना होने का बहाना कर , सोने चली गई।
रात को अचानक चांदनी की मम्मी की आंख खुली तो उसने देखा चांदनी वहां नहीं थी। उसका दिल जोर-जोर से अनजानी आशंकाओं से धड़कने लगा वह दूसरे कमरे में गई तो देखकर दंग रह गई, चांदनी एक रस्सी लिए बैठी थी और!
उसकी मम्मी ने झट से उसके हाथ से उसे छीन दूर फेंका और गुस्से से बोली "यह क्या कर रही थी तू ! पागल हो गई है क्या! पता भी है तुझे क्या करने जा रही थी!"

"हां मुझे सब पता है! मैं मरने जा रही थी। मैं मरना चाहती हूं। अब मुझे और नहीं जीना। जिऊं भी तो किसके लिए! जिसको सहारा बनाया था, वह तो मुझे झूठी और मक्कार कह बीच मझधार में छोड़ चला गया। मैं मरना चाहती हूं मैं आपको परेशान नहीं करना चाहती । मम्मी, प्लीज मुझे मर जाने दो।"
"चार-पांच महीने में वह तेरा सब कुछ हो गया। हम तेरे कुछ नहीं। अरे, 9 महीने तुझे पेट में रखा और 20 21 साल पाल पोस कर बड़ा किया, वह कुछ नहीं! वह मक्कार तेरे लिए सब कुछ और तेरी मां की ममता कुछ नहीं! मरते तो कायर है और मुझे पता है मेरी बेटी कायर नहीं। मैंने हमेशा तुझे हिम्मती लड़की के रूप में देखा है और आज क्या तू अपनी मम्मी पापा के नाम पर धब्बा लगाना चाहती है!"
"नहीं मम्मी ऐसा कुछ नहीं। मैं आपको और तंग नहीं करना चाहती । मैं आपको सिर्फ चिंताओं से मुक्ति देना चाहती हूं। मुझे पता है , मेरे कारण आप कितनी परेशान हो रहे हो। बस और कुछ नहीं!"
"बहुत बढ़िया तरीका निकाला है तूने अपनी मां को चिंताओं से मुक्त करने का! अरे ,तुझे पता भी है तेरे जाने के बाद क्या हम जी पाएंगे। मुक्त ही करना चाहती है मुझे और सबको तो चल तीन फंदे और बना। हम सब तेरे साथ लटक जाते हैं। सभी चिंताओं से मुक्त हो जाएंगे। यही चाहती है ना तू!"

"नहीं मम्मी ऐसा नहीं!!!" कहते हुए वह जोर जोर से रोने लगी। मम्मी मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा। मैं क्या करूं। मुझे यहां से दूर ले चलो। यहां रहूंगी तो मुझे उसकी यादें जीने नहीं देगी। मैं घुट घुट कर मर जाऊंगी। प्लीज मम्मी कुछ करो।"
अपनी बेटी की हालत देख चांदनी की मम्मी का कलेजा फटने को हो गया ।अपने को किसी तरह से उन्होंने रोके रखा और चांदनी को संभालते हुए बोली "तू यहां से दूर जाना चाहती है। हां, मैं तुझे ले चलूंगी। बस तू एक वादा कर ,फिर कभी ऐसी बुरे विचार मन में नहीं लाएगी। उसके लिए मरना चाहती थी, जो तुझे भूल कर नई दुनिया बसाने चला है। भूल जा तू भी उसे। अपनी मां का ख्याल नहीं आया। चाहती तो मैं
भी तेरे पापा के जाने के बाद यही आसान रास्ता चुनती लेकिन मैं कमजोर नहीं थी। मुझे जीना था और दुनिया को दिखाना था कि एक अकेली औरत भी अपने बच्चों को पाल पोस कर बड़ा कर सकती है। बस मेरी बेटी तुझे भी मैं यही कहती हूं। फाड़ दे अपनी जिंदगी से इस काले पन्ने को और एक नई कहानी लिख। आगे बढ़ और जी कर दिखा। भगवान एक रास्ता बंद करता है तो दूसरा खोलता है। समझ रही हो ना तू।"
"हां मम्मी, आप ठीक कहती हो। पता नहीं मुझे क्या हो गया था लेकिन वादा है आपसे, आज के बाद मेरे मुंह पर उस आदमी का नाम कभी नहीं आएगा। उसके कारण मैंने खुद को और आपको बहुत दुख दे लिए लेकिन अब और नहीं।"

"मुझे पता था मेरी बेटी भावुक है पर कमजोर नहीं । " उन्होंने चांदनी के सिर पर प्यार से हाथ रख दिया और बोली "चल नहीं तो दादी जाग जाएगी और उन्हें पता चला तो बहुत दुखी होगी।"
चांदनी की मम्मी ने घर बदलने के बारे में अपने बेटे व सास से बात की तो दोनों ने हीं इस बारे में सहमति जताई। पहले उन्होंने अपने गांव जाकर रहने की सोची। लेकिन दादी ने मना करते हुए कहा " बहू गांव में नहीं। गांव में लोग बिट्टू को जानते। उन्हीं बातों को बार-बार कुरेद कर उसके जख्मों को कभी भरने नहीं देंगे। हम ऐसी जगह चलेंगे जहां हमें कोई ना जानता हो।"
"हां मां सही कह रही हो आप मैं भी यही सोच रही हूं। किसी नई जगह पर ही जाकर एक बार फिर से नया जीवन शुरू करते हैं ।" सबके विचार जानने के बाद चांदनी की मम्मी ने यहां से जल्द से जल्द घर बदलने का मन बना लिया और रोहित के साथ दौड़-धूप शुरू कर दी।
1 दिन रश्मि अपने मायके आई हुई थी तो वह चांदनी से मिलने आई। चांदनी की मम्मी ने उसे घर शिफ्ट करने की बातें बताई और बोली "बिटिया तुझे ही बता रहे हैं ।अभी बाहर मत बताना। हम नहीं चाहते किसी को पता चले। वैसे भी मैं यहां से दूर ले जाना चाहती हूं अपनी बेटी को। मैं नहीं चाहती पुराने लोग और पुरानी यादें उसे तंग करें। चाहती हूं कि वह इन बुरी यादों से उबर जाएं और एक नया जीवन शुरू करें।"
"हां चाची, आपने बिल्कुल सही सोचा। मैं भी चाहती हूं मेरी सहेली एक बार फिर से आबाद हो। फिर से हंसे। फिर से बोले। एक बात कहूं चाची आपसे मैं! पता नहीं क्यों मै अपने आप को चांदनी का कसूरवार मानती हूं। ना मैं यह रिश्ता लेकर आती । ना उसकी जिंदगी बर्बाद होता। शायद आज के बाद मैं उससे मिलूं भी नहीं। क्योंकि मुझे लगता है मुझे देख शायद उसकी तकलीफ और बढ़ जाती होगी। यह फैसला मेरे लिए मुश्किल है लेकिन चांदनी के भले के लिए यह भी सही है। हां आपसे फोन पर बात कर अपनी सहेली का पता लेते रहूंगी। मिलूंगी नहीं जब तक जरूरी ना हो या उसकी जिंदगी में पहले जैसी खुशियां ना आ जाए तब तक।"
"नहीं बिटिया इसमें तेरा दोष नहीं। भाग्य की लिखी कौन मिटा सका है आज तक। तूने तो उसके भले कि सोची थी । खैर अब उन बातों को सोच कर दिए क्या फायदा। "
"अच्छा चाची चलती हूं लेकिन यहां से जाने से पहले एक बार मुझे फोन जरुर कर लेना।"
"हां हां बिटिया तुझे बता कर ही जाऊंगी।"
कुछ महीनों की मेहनत के बाद चांदनी के परिवार को एक बहुत ही अच्छी जगह मकान मिल गया। छोटी सी कालोनी थी। जो कुछ साल पहले ही बसी थी। पास में ही मंदिर व पार्क था।
आज उन्होंने घर शिफ्ट कर लिया था। सामान उतारने में पूरा दिन चला गया। शाम को वह सभी थकान उतार ही रहे थे कि
दरवाजे की घंटी बज उठी। चांदनी की मम्मी ने हैरान होते हुए उसकी दादी की तरफ देखा और बोली " कौन हो सकता है। आज ही तो हम आए हैं!"
वह अभी दादी से यह कह रही थी कि रोहित ने दरवाजा खोल दिया। सामने अधेड़ उम्र की एक महिला खड़ी हुई थी। उन्होंने चांदनी की मम्मी और दादी को नमस्कार किया और बोली "मैं आपके साथ वाले घर में ही रहती हूं। दोपहर में आप सबका सामान उतरते हुए देख बहुत खुशी हुई क्योंकि एक साल से यह मकान खाली पड़ा था। आप लोगों के आ जाने से हमारा पड़ोस भी आबाद हो गया।"
चांदनी की मम्मी ने मुस्कुराते हुए उनका स्वागत किया और बैठने के लिए कहा तो वह बोली "नहीं बहनजी, मैं तो आप सबके लिए चाय लेकर आ रही थी। मुझे पता है कि आप लोग कई घंटों से सामान को सैट करने में लगे हो और रसोई का सामान भी अभी इधर उधर होगा। इसलिए मैं चाय ले आई थी। आप सब चाय पी कर अपनी थकान उतार लो। दूसरी बात आज खाना आप सभी हमारे यहां साथ खाइएगा।"

"अरे नहीं बहन जी ,आप इतनी परेशान क्यों हो रहे हो। हम बना लेंगे। चाय के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आपने हमारे लिए इतना सोचा।"
"बहन जी 4 साल पहले जब मैं यहां आई थी तो मेरे पड़ोसियों ने भी मेरा इसी तरह स्वागत किया था और मेरी परेशानी को समझा था। आज जब आप मेरे पड़ोस में आए हो तो मेरा भी फर्ज बनता है कि मैं आपकी परेशानी को समझूं। इसलिए ज्यादा सोच विचार मत करो और मुझे सेवा का छोटा सा मौका दो।"
चांदनी की मम्मी ने अपनी सास की ओर देखा तो वह सहमति में सिर हिलाते हुए उस पड़ोसन से बोली
"तुम्हारे विचार सुनकर बहुत अच्छा लगा बेटी। अगर सभी लोग एक दूसरे के इसी तरह सुख दुख समझे तो फिर बात ही क्या! हम तो अपने आप को खुशकिस्मत मानते हैं कि आप जैसे पड़ोसी हमें मिले। हम कैसे तुम्हारे निमंत्रण को ठुकरा दे। हम जरूर आएंगे।"

उनके जाते ही चांदनी अपनी मम्मी से नाराज़ होते हुए बोली "मम्मी क्या जरूरत थी इनविटेशन‌ मानने की। ना हम उनको जानते हैं ना पहचानते। ऐसे कैसे उनके घर जाकर खाना खा ले। मैं नहीं जाऊंगी आप लोग चले जाना।"
"बिट्टू यह क्या बात हुई भला ! इतने प्यार से वह न्योता देकर गई है। आज के समय में रिश्तेदार व सगे संबंधी भी किसी को दो रोटी खिलाने में झिझकते हैं और वह इंसानियत के नाते या कहो हमारी समस्या समझ कर खुद चल कर आई तो हम ना कर देते क्या। "
"यही तो मैं कह रही हूं मम्मी जब रिश्तेदार व जिस पर हम सबसे ज्यादा भरोसा करते हैं ।वही मुंह फेर ले तो अनजान लोगों पर क्या भरोसा करना!"
उसकी बात सुन चांदी की मम्मी समझ गई थी कि वह क्या कहना चाहती है । वह उसे समझाते हुए बोली "बिट्टू जरूरी नहीं कि सारी दुनिया एक जैसी हो। हम सब को एक ही एक ही नजरिए से देखने लगे तो दुनिया में रहना मुश्किल हो जाएगा।"

"चलो आप सही भी हो, तब भी मैं नहीं जाऊंगी और आप प्लीज मुझे दोबारा मत कहना मैं थक गई हूं और अब आराम करने जा रही हूं।"
उसकी मम्मी ने भी उससे ज्यादा बहस करना सही ना समझा । इसलिए उन्होंने आगे बात ना बढा,चुप रहना ही बेहतर समझा।
क्रमशः
सरोज ✍️