कुछ पल याद मै !
करीब नौ साल पहलें का एक बिछडा दोस्त मिला। मे बहुत खुश था उस्से देख कर,और वो मुझको देखकर जैसे चमत्कारीक आश्चर्य मै था,वो भी बेईन्तहा खुश था,उसके खुशी के मारे बोलते बोलते रुक रुक कर अपने आप को बहुत बड़ा धन्यवान मानतां की कीतने साल बाद मिलें अच्छा लगा, मैने कहा, अब कुछ बोलेंगे या ऐसे ही हसी हसीमे वोह पुराने दिनो की ढेर सारी बातो मै पिगल जाएंगें,
उसने सबकुछ पूछ लिया कैसे हो, ईतने साल क्यां कीया,
कहा थे,स्कूल के बाद नौकरी या कोलेज,सादी हुईं की नहीं हुई और हुई भी तो बच्चे है या अभी तैयारी,बीवी है तो कैसी है कहा की है प्रेमविवाह हुए या परिवार दिलाई महोब्बत, तो ईन सारे सवालो के जवाबों मै मेरे ढाई घंटे बीत गएँ और यह तीसरी चाय आ चुकी थी,
मे ने भी पूछा वो सवाल जो वो हरी ईन्सान चाहता है की क़ोई हमारी खबर ले और समस्याओं कोई सुलझावा नहीं केवल उस्से बांटते फिरें मेने भी पूछ लीया था उन्ही जवाबो मेने अपने भी सवाल पूछे उसने भी अच्छे से सबकुछ कहा और मुझे सुनाया,
फिर नई बात क्यां मेने कहा?
उनसे बोला अरे यार कल जब मै अपने छोटे शहरमे आयां ईतने साल बाद तो वो कविता मिलीं थी यार,
ईतना बोलतें ही वो गहरी सोंच मे चला गयां,
फिर मेने बहुत दिलचस्पी लगाई उस्सी बात पे और कहाँ अबे यार,- कौन वो कविता अपनी क्लासमेट दसवीं कक्षा वाली, उसने बोला हा, यार वहीं मे ने कहा उसका और तुम्हारा लंबा चला था ना, वो बोला कुछ भी तो नहीं सिर्फ अफवाए थी हमारी हम तो हम ही थे मन ही मन महोब्बतीए फिरते थे,
मे ने बेसबरी से पूछा हा तो बताओ कब कहाँ कैसे और कीतना मिले,
उसने बोला वो बोलते बोलते एक गहरे प्यारमे डूबा लगता था, मेने कहा एक चाय का घुंट लगा और बता! वो बोला वो नशा ही और था यार।
क्या था बे बताएगा या यु ही,! नाटक करेगां।
वो मिलीं थी, दूध लेने गयां था वो भी लाईन मै खडी थी और उसके पीछे मै,वो और हम दोनो बिलकुल अंजान थे शोशियल डिस्टेन्सींग के नाते थोडी दूरी थी पर दिखाई साफ देता था,
मे ने पूछा क्यां दिखा तुम्हे,
उसने बोला वही लाल कलर के बाल और मास्क तहत दूपट्टा ढंका चहेरा,वो आईब्रो मे उसकी आंख जेसे तीर बन गई थी और वो सब पुराने दिनो की यादो पर वार कर रही थी,उन दिनो मे हालाकी कुछ भी न था हमारे बींच पर सबकुछ था जो याद दिला रहा था, उसने भी देखा मेरा भी मास्क था तो वो कुछ बोलती तो क्यां बोल पाती भीड थी पर दूर दूर थे सब थोडे बहुत,उसने तीन चार बार प्रयास कीए हो गे कुछ अंजान कहीं देखा जाना पहचाना चहेरा ऐसा दिखाई दिया उसके मुख पर,
पर मे उसकी वो नशीन आंखो पर ही मारा जा रहा था, और कुछ बोल पाऊँ ऐसी कोई तैयारी ही न थी,उसकी आंखो की गहराई मे ही बात चल रही थी उसका बदन भी करीब करीब कोई नौजवान लडकी जैसा ही था बडी ही फीट थी, और कस के बंधा दूपट्टा ही दूरी बनाएं बैठा था,
मे पीछे से उसकी बंधी झुल्फो से बात कर रहा था वो पुरानी कविता से और मेरी और उसकी सब गीनी चुनी बाते आज भी उस्से याद है या मे ही पर था वो सब से,!
मेने सोचा हा होंगा सायद वो मुझे देखकर आश्चर्य मै थी थोडी पर चहेरा ढंका ईसलीए बोल नहीं पाई या पहेचान नहीं की,
और मेने पूछा और बताओ यार,! क्यां हुआ वो बोली तुम बोले क़ोई कोन्टेक्ट लिया बात की!
अरे सब छोड़ना यार,
तो बताओना बे यार,
वो बोला,की
जब मे पूरी हिंमत और पेरो तहत अपने पूरे बदन को बांध कर और जोर से सांस भर कर उस्से वो आवाज देता था एक बार बोला आवाज नही नीकली दूसरी बार भी आवाज दबी की दबी ही रह गई और तीसरी बार मै जब बोलने गयां तो वो उस्स आंटीने बोलीं की आज घर पर ज़ल्दी जाना है दोने बच्चे पडोश के वहां छोड के आई हु,। बस ईतनी ही आवाज मे वो सब बीते दीनो का जवाब मिल गयां,उन पढाई के दिनो मे भी गीन के दो तीन बार बात हुई थी और देखो यह नौ साल का वक्त भी एक लाईन मे ही मेने वो सब बात कीए बगैर बी सबकुछं उससे जान लिया,
और वो दूध लेकर रास्ते मे बड़ी ही तेज़ी से जाने लगी,और वो जाती ही रही मे उस बीते पल को देख रहा था,
हम बड़े हो चुके थे, मुझे लगा कीतने बड़े होंगे सायद,
बस हम बच्चे से थोडे बडे थे तब मीलते थे और वो बच्चे की माँ पर जवां थी अभी तक वहीं अंदाज, वही रूप, वहीं हालचाल पर समय बदला था सायद,।
मे कुछ ना बोल पायां आज भी उस्से!
जिंदगीथी धीरे धीरे कितनी रफ्तार से आगे नीकल लेतीं है की ईन कीलोमीटर का पता नहीं चलता!
मै ने कहाँ अबे बुड़बक हो कुछ पल के लीए तो रोक लेते,
उसने कहा तु कुछ नहीं जानता यह सब!
मे ने कहाँ चल बे फुट्ट कीतने साल बाद तो भी घीसी पीट्टी ही वही कोरी कहानियाँ सुनाने लगां,!
उसने कहाँ चल चले हम वहीं पर अपने घर!
---विजय प्रजापति