आगे तुम्हारी मर्जी
रमिता आज बहुत खुश थी, खुशी की बात तो थी ही... बरसों से जिस अवसर का बेकरारी से इंतजार था आज वो दिन आ ही गया ।
ऑफिस पहुंचते ही चपरासी ने चेयरमैन सर का मेसेज दिया- "आपको अन्दर बुलाया है ।"
अन्दर पहुंचते ही सर ने एक अदद मुस्कुराहट उसकी ओर उछाली और साथ ही एक लिफाफा उसकी ओर बढ़ा दिया । उसने उत्सुकता से लिफाफा खोल तो जी धक्क से रह गया ।
प्रमोशन लेटर के साथ तीन महीने की ट्रेनिंग वो भी अमेरिका मे !
पल भर को दिमाग चेतना शून्य हो गया ।
"हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!"
सर की आवाज से वह चौंकी, आंखों की कोरो को मुसकुरा कर पोंछा ।
"घर जाओ और तैयारी शुरु करो ! अगले सप्ताह तक निकलना होगा तुम्हें!"
"जी...!" बस मुंह से इतना ही निकला ।
आज घर मीलों दूर लग रहा था । जी चाह रहा था कि बस उड़ कर घर पहुंच जाए और रोहन को कसकर गले लगा ले पर रोहन तो ऑफिस होगा ।
कैब में बैठे-बैठे ही उसने रोहन को फोन किया और एक ही सांस मे पूरी बात बता दी ।
"ओके...घर आकर बात करता हूँ, अभी बिजी हूँ!" रोहन ने संक्षिप्त सा जवाब दिया और फोन काट दिया ।
रमिता इतनी खुश थी की रोहन का रुखा सा जवाब उसे जरा भी नागवार न लगा ।
रमिता ने घर आते ही ब्रीफकेस निकाला और तैयारी ने जुट गई । गुनगुनाते हुए घंटो काम में लगी रही और समय का पता ही नही चला ।
शाम को रोहन आया तो उसने खुशी के मारे झट रोहन को गले लगा लिया । रोहन ने बेरुखी से उसे दूर करते हुए कहा- "देख भी रही हो की कितना थका हुआ हूँ और तुम्हें रोमांस सूझ रहा है ।"
"रोहन मैने तुम्हें बताया तो था फोन पर प्रमोशन के बारे !"
"हाँ हाँ...प्रमोशन हो गई तो क्या आसमान सिर पर उठा लोगी...दुनिया की प्रमोशन होती है...इसमें नया क्या है!"
रमिता रोहन की बातों से असहज हो गई पर खुद को संयत करते हुए कहा-
"रोहन ! नया ये है कि ट्रेनिंग के लिये तीन महीने के लिये अमेरिका जाना है, ऐसा मौका किसी किसी को मिलता है!"
"अमेरिका ! पागल हो गई हो क्या! ये तो तुमने फोन पर नही बताया!"
"रोहन मैं तुम्हें सरप्राइज देना चाहती थी...!"
"सरप्राइज ! घर गृहस्थी की कोई चिंता भी है कि नही...कि बस सैर सपाटा...!"
"रोहन सैर सपाटा नही ऑन जॉब ट्रेनिंग है ये !"
"तुम कहीं नही जा रही...समझी !"
"पर...मेरा कैरिअर ! इतना अच्छा अवसर यूँ ही गंवा दूँ!"
"घर गंवाने से तो नौकरी गंवाना ज्यादा अच्छा होगा... आगे तुम्हारी मर्जी !"
रोहन ने तौलिया उठाया और बाथरुम की ओर बढ़ गया । "शॉवर लेकर आ रहा हूं तब तक चाय तैयार रखना!"
रमिता धम्म से पलंग पर बैठ गई । गालों पर आँसू ढुलक आए । मन खिन्न हो उठा, हिम्मत कर उठी, रसोई में गई, चाय चढ़ाई । दिमाग तो और ही ख्यालो में खोया हुआ था । यूं लगा सारी पढ़ाई सारी इच्छाएं चाय की पतीली में जलकर खाक हो गई हैं ।
टीवी की तेज आवाज से चौंकी । कप में चाय डाली, टेबल पर ट्रे रखते हुए पूछा-
"रोहन अगर तुम्हें अमेरिका जाने का मौका मिलता तो क्या तुम मिस करते!"
"मैं तो पुरुष हूँ मैं क्यूँ मिस करता...जरुर जाता...तीन की जगह छह महीने लगा कर आता!"
"मैं स्त्री हूँ तो मेरे जाने पर रोक क्यूं... सिर्फ तीन महीने की बात है आशा है तुम मैनेज कर लोगे...आगे तुम्हारी मर्जी!"
रमिता ने दृढ़ता से कहा और अपना चाय का कप उठाकर बाहर गैलरी की खुली हवा में आ गई । मंद मंद शीतल हवा के मस्त झोंके मानो उसकी पीठ थपथपा रहे थे ।
अंजू खरबंदा
दिल्ली