दूसरे हॉस्पिटल में एडमिट होने के बाद चांदनी के स्वास्थ्य में सुधार होने शुरू हो गया । डॉक्टरों ने उसको कैंसर होने की संभावना से साफ इनकार किया। हां, उसे टीबी की शिकायत जरूर थी। चांदनी की मां और रश्मि को समझ नहीं आ रहा था कि जब चांदनी को कैंसर था ही नहीं तो डॉक्टरों ने क्यों इतना बड़ा झूठ बोला। रश्मि ने निश्चय कर लिया था कि वह आकाश से मिल, उसे सारी बातें जरूर बताएगी। बस एक बात का अफसोस था कि उस हॉस्पिटल वालों से कोई रिपोर्ट भी तो उन्हें नहीं दी, जिसके आधार पर वह अपनी बात को सही साबित कर सकें। रश्मि के मन में अनेक आशंकाएं उठ रही थी।
चांदनी को 1 सप्ताह हो गया था। वहां से आए हुए लेकिन आकाश उससे मिलने नहीं आया था। वह रोज इस बारे में पूछते हैं तो उसकी मां कोई ना कोई बहाना कर टाल देती थी। आज तो उसने ठान लिया था कि अगर आकाश नहीं आया तो वह अपना इलाज नहीं करवाएगी।
तब उसकी मां ने उसे समझाते हुए कहा "बेटा पहले ही तुम्हारी बीमारी देख वह बहुत परेशान रहा। काम धंधे पर भी ध्यान ना दे सका। एक औरत को सब बातों का ध्यान रखना पड़ता है । दूसरा उसके चाचा जी की तबीयत अभी तक नहीं सुधरी है तो वह अभी वहां से आया नहीं है। तू जल्दी से सही हो जा। फिर तुझे वहां जाना ही है। वैसे भी डॉक्टर कह रहे हैं कि एक हफ्ते की बात है, उसके बाद तुम्हें डिस्चार्ज कर देंगे। तब जितनी चाहे शिकायतें करनी हो कर लेना दामाद जी से। तेरी दादी की तबीयत भी ठीक नहीं रहती आजकल। तू सही होकर अपनी ससुराल चली जाए तो मैं उन पर भी ध्यान दूं। मेरी रानी बेटी अपनी मां की बात मानेगी ना।" सुन चांदनी ने एक छोटे बच्चे की भांति सहमति में सिर हिला दिया।
रश्मि ने अपने पति को सारी बातें बताई सुनकर वह बोलें
" हां रश्मि, मैं भी एक दो बार आकाश से मिला लेकिन वह तो बिल्कुल ही बदल गया। चांदनी का नाम सुनते ही ऐसा बर्ताव करता है जैसे किसी दुश्मन का नाम ले दिया हो उसके सामने।"
"मैं इस बारे में उससे बात करूंगी । उसने ही रिश्ते की पहल की थी। वह तो नहीं आई थी, उससे रिश्ता जोड़ने। मैं ऐसे अपनी सहेली की जिंदगी बर्बाद नहीं होने दूंगी। सुनो आप मेरा इतना सा काम कर दो कि एक बार मुझे उससे कहीं भी मिलवा दो। मैं उसे समझाऊंगी और जो उसके दिमाग में वहम है, उसे निकालने की कोशिश करूंगी। प्लीज मेरी सहेली का घर फिर से बसाने में मेरी मदद करो।"
रश्मि मैं कहां इंकार कर रहा हूं तुम्हें उससे मिलवाने से लेकिन वो यहां हो तो तुम मिलोगी ना उससे। वह तो काफी दिनों से पता नहीं कहां गया हुआ है। घर पर फोन किया था तो चाची जी ने टका सा जवाब दे दिया उसे नहीं पता वह कहां गया हुआ है। अब तो हम लोग उसके बस आने का इंतजार कर सकते हैं।"
"आकाश की मम्मी झूठ तो नहीं बोल रही । हो सकता है वह हमें उनसे मिलने देना ना चाहती हो। तुमने अपने दोस्तों से पता किया या उसके ऑफिस में पता करवाया था।"
"हां यार, वह तो काफी दिनों से अपने ऑफिस गया ही नहीं और ना ही किसी दोस्त से मिला। मुझे यकीन नहीं होता आकाश क्यों खुद को दुख दे रहा है और उसे भी। वह तो हम सभी दोस्तों में सबसे समझदार समझा जाता था और आज!"
रश्मि ने सारी बातें चाची को बताई तो वह बोली 'रश्मि, चांदनी के सामने कुछ ना कहना। अभी उसकी तबीयत में कुछ सुधार हुआ है। घर जाकर आमने सामने बैठ, उसे सब बातें समझाने की कोशिश करेंगे। बस एक बार उसे छुट्टी मिल जाए।"
आखिर चांदनी पूरी तरह स्वस्थ हो, अपने घर आ गई। चांदनी की मम्मी ने उसके ससुराल फोन किया तो उसकी सास ने टका सा जवाब देते हुए कहा "अब हमारा उससे कोई मतलब नहीं। आप रखिए अपनी बेटी को अपने पास।"
"बहन जी कैसी बात कर रहे हो आप। भला इतनी सी बात से रिश्ते भी टूटते हैं। बीमारी पर किसका जोर! यह किसी की सगी नहीं! कब किसको लग जाए, कौन बता सकता है और अब तो वह पूरी तरह ठीक है। शादी के बाद तो बेटी ससुराल में ही अच्छी लगती है।"
"बहन जी अपनी रोगिनी बेटी को अपने पास ही रखिए। क्या पता इसका रोग फिर से कब उभर आए! क्यों उसे मेरे बेटे के पल्ले दोबारा बांधने में लगी हो बड़ी मुश्किल से संभला है वह।"
"आप आकाश जी से एक बार बात तो कराइए?"
"वह यहां नहीं है और होता भी तो आप दोनों से बात नही करता। नफरत करता है आप दोनों मां बेटी से वह। आइंदा से यहां दोबारा फोन मत करना ।" कह उन्होंने फोन काट दिया।
चांदनी की मां तो यह सब सुन माथा पकड़ बैठ गई। आखिर ऐसी क्या गलती कर दी, हम बेटियों ने। जो आकाश जी हमसे इतनी नफरत कर रहे हैं। कल तक तो वह चांदनी को 2 दिन के लिए भी नहीं छोड़ते थे और अब 3 महीने से ज्यादा हो गए।कब तक झूठ बोलूं उससे। हे भगवान! तू ही राह दिखा। सोच, अपनी आंखों में आए आंसू पोंछने लगी।
"मम्मी अब तो मैं ठीक हूं। देखो दवाइयां भी मेरी बंद होने वाली है। आपने आकाश जी को बता दिया ना सब कुछ। वैसे आप सही कहती हो। वह ज्यादा बिजी है तो मैं उन्हें क्यों आने के लिए कहूं। मैं रोहित (भाई) को अपने साथ लेकर खुद ही चली जाती हूं अपनी ससुराल। देखना मुझे अचानक आया देख वह कैसे सरप्राइस होंगे। मैं उनके चेहरे पर वह खुशी देखना चाहती हूं। ठीक कहा ना मम्मी।"
"उसकी बात सुन उनका मन भर आया। किसी तरह अपने आप पर काबू करते हुए हैं बोली " शादी हो गई है तेरी ,पर बचपना नहीं गया। बेटा अभी तेरी शादी को 1 साल भी नहीं हुआ। इसलिए अपने आप वहां जाना अच्छा नहीं लगेगा। तेरी सास भी क्या सोचेगी कि तू मेरे लिए बोझ है इसलिए मैंने तुझे भेज दिया। क्या अपनी मम्मी की जग हंसाई करवाएगी ससुराल में। बस एक-दो दिन में आकाश जी फोन करके बोल दे कि कब आ रहे हैं, फिर मैं अपनी बेटी को ससुराल ले जाने के लिए ढेर सारी सामान दिलवाऊंगी। खूब अच्छे से विदा करूंगी तुझे। तब तक तू अपने खाने पीने पर ध्यान दें। देख तो कैसे दो-तीन महीनों में कैसे सूखकर कांटा हो गई है। रंग कैसा काला पड़ गया है। अपनी सेहत पर ध्यान दें।
पहले जैसी मेरी सुंदर सी बिट्टू बन जा। दामाद जी मुझसे नाराज हो जाएंगे कि मैंने तुम्हारा ध्यान नहीं रखा समझी।"
चांदनी की मां कई बार आकाश के घर फोन कर चुकी थी लेकिन या तो वहां कोई फोन उठाता नहीं और उठाता भी तो उनकी आवाज सुन काट देते। अब उन्होंने निश्चय कर लिया था कि वह वहां जाकर खुद बात करेंगी। इसके लिए उन्होंने रश्मि से बात की तो वह बोली
"चाची जी मैं आपके साथ तो नहीं चल सकती क्योंकि मेरी सास मुझे इस बात की इजाजत नहीं देगी कि मैं दूसरों के घरेलू मामलों में दखल दूं। उनकी बातों से ऊपर हो आपके साथ जाऊं, यह तो आप भी नहीं चाहेंगी। आप मेरी मजबूरी समझिए। हां मैं आपसे वादा करती हूं कि आकाश से मैं जरूर मिलूंगी। इस बारे में मैंने अपने पति से बात कर ली है। जैसे ही पता चलेगा, वह आ गया है। वह मुझे उससे मिलवाने लेकर जरूर जाएंगे। मैं पूरी कोशिश करूंगी कि उसे सच्चाई का पता चले और उसकी आंखों पर छाया झूठ तो पर्दा हट जाए।"
"ठीक है बिटिया, तू अपनी जगह सही है। कोशिश जरूर करना तेरा ही आसरा है। तुझे तो वैसे भी पता है कि इसके पापा के जाने के बाद सब रिश्तेदारों ने हमसे कैसे मुंह मोड़ लिया। अपना दुख तो मैंने झेल लिया लेकिन बेटी का दुख नहीं देखा जाता। जब भी उसका मुंह देखती हूं, कलेजा फटने को हो जाता है।" कह उन्होंने फोन रख दिया।
चांदनी की मां ,दादी और भाई तीनों आज उसकी ससुराल वालों से बात करने के लिए जा रहे थे। तीनों को तैयार देख चांदनी ने पूछा
"मां आप तीनों सुबह-सुबह कहां जा रहे हो। आपने तो मुझे कुछ बताया नहीं कि आपको कहीं जाना है।"
"बेटा तुझे पता है ना कई दिनों से तेरी दादी की तबीयत सही नहीं है। उन्हें दवाई दिलाने ले जा रहे है।" कह वह चले गए।
तीनों को अचानक इतनी सुबह आया देख। मीरा देवी सकपका गई। फिर अपने आप को संभालते हुए बोली "आप बिना बताए! वैसे तो मैंने आपसे मना ही किया था कि अब हमारा आपका कोई रिश्ता नहीं है। फिर आप लोग यहां क्यों आए ।हमें आपसे कोई बात नहीं करनी।" कहकर वह अंदर चली गई।
रोहित को उनकी बातों का बहुत बुरा लगा। फिर भी वह लोग बिना बुलाए अंदर चले गए क्योंकि आज उन्हें अपने मान सम्मान से ज्यादा अपनी बेटी की खुशियों की फिक्र थी।
उन्हें देख आकाश के पापा ने उन्हें बैठने के लिए कहा और बोले "बहन जी बात को बढ़ाने से तो कोई फायदा नहीं है। जब आकाश यह रिश्ता रखना ही नहीं चाहता तो आप लोग क्यों जबरदस्ती रिश्ता जोड़ने पर लगे हो।"
"भाई साहब वह तो बच्चे हैं लेकिन हम तो बड़े हैं। अगर दोनों बच्चों का किसी बात पर मनमुटाव है भी तो आमने-सामने बैठकर सुलझाया जा सकता है। ना कि उसे और उलझाएं। शादी कोई गुड्डा गुड़ियों का खेल तो नहीं, जो इतनी सी बात पर यूं छोड़ दिया जाए। वैसे भी नयी नयी गृहस्ती में छोटी-छोटी बातों पर मनमुटाव हो ही जाता है। आप दामाद जी को समझाएं और अगर उन्हें हमारी कोई बात बुरी लगी है तो हम माफी मांगने को तैयार हैं। बस अब तो आप चांदनी को लिवा लाने की तैयारी करें। वह पूरी तरह ठीक है। आपको यकीन नहीं तो डॉक्टर की रिपोर्ट देख सकते हैं।"
आकाश के पापा कुछ कहते हैं उसे पहले ही मीरा देवी बोल पड़ी। "हमें ना आपके डॉक्टर की रिपोर्ट पर भरोसा है और ना ही आप लोगों पर। एक बार जो रिश्ते में दरार आ गई ,वह चाह कर भी नहीं भरी जा सकती। मैंने पहले भी कहा था, अब चांदनी इस घर में कभी नहीं आएंगी। इसलिए बातों को बढ़ाने से कोई फायदा नहीं। आकाश और हम उससे सारे रिश्ते तोड़ते हैं या तो आप बैठ कर यही सुलाह कर ले नहीं तो फिर हम आपके पास कोर्ट के जरिए तलाक का नोटिस भिजवा देंगे।"
क्रमशः
सरोज ✍️