Andar Khulnewali khidki - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

अंदर खुलने वाली खिड़की - 1

अंदर खुलने वाली खिड़की

(1)

बारिश हो रही थी। दोनों बारिश देख रहे थे।

बरिश न भी होती तो भी, वे दोनों नीले रंग की दो अलग अलग, लम्बी, पतली खिड़कियों से सर निकाल कर बाहर देखा करते। वे हमेशा, इसी तरह, बाहर देखते हुए, बाहर से देखने पर अलग अलग तरह से दिखते। बाहर से खिड़कियों को देखने पर बूढ़ा पूरा दिखता, क्योंकि वह खिड़की की चौखट पर एक पैर मोड़ कर बैठता था। बुढ़िया आधी दिखती, क्योंकि वह खिड़की की चौखट पर दोनों हथेलियाँ रख कर झुकी हुयी होती। बूढ़े का चेहरा जबड़े की हडि्‌डयों पर उभरा हुआ था। नाक नुकीली थी। कान लम्बे और बालों से भरे थे। आँखें स्लेटी थीं जिसके किनारों पर सफेद कीचड़ भरा रहता था। होठ मोटे थे जिनके किनारों पर लार चिपकी रहती थी। उसकी आँखों पर गोल, सुनहरे फ्रेम का चश्मा था जो उसे सभ्य और पढ़े लिखे इंसान जैसा बना देता था। बुढ़िया का चेहरा छोटा और सुंदर था। उसकी गंदुमी खाल के नीचे गहरी लाली थी। उसका हीमोग्लोबिन कभी तेरह से कम नहीं हुआ था, तब भी नही, जब बूढ़े की ज़िद और फुसलाने के मिले जुले षडयंत्र में फंस पर उसने दो बार गर्भपात करा लिया था। उसकी भौहा के जोड़ के ऊपर, बड़ी, गोल, लाल बिंदी चिपकी रहती थी, जिसे वह सोते समय भी नहीं हटाती थी। पचपन साल से बारह साल पहले तक, बूढ़े की आक्रामक, कामुक चेष्टाओं के बाद भी, बिंदी कभी नहीं गिरी थी। बिंदी के नीचे उसकी आँखे थीं। ये गहरी काली थीं। पलकें उससे भी गहरी काली और घनी थीं। भौंहे उससे भी ज्यादा काली और घनी थीं। पचपन साल पहले जब उसे बूढ़े पर कभी प्यार आ जाता था, तो उसकी सबसे छोटी उंगली पकड़ कर, उसकी पोर को अपनी पलकों से सहलाती। उसके चेहरे की खाल, जहरीले बिचखापड़ के चमड़े से बनी ढपली की तरह कसी और चमकदार थी। खिड़की पर झुक कर खड़े होने से बुढ़िया के सर के थोड़े से बचे और खुले बाल, कंधों के ऊपर से उसी तरह लटक आते थे, जैसे पके हुए भुट्‌टे के सिरे पर सफेद भूरे बाल लटकते हैं। बूढ़े के सर पर बाल नहीं थे। कभी सर्दियों में जब धूप की रोशनी सीधे उसके सर पर पड़ती, तो उसके सर पर लगा, कोल्हू के सामने खड़े होकर निकाला गया ताजी सरसों का तेल, झील के पानी की तरह चमक मारता।

उन दोनों की खिड़कियाँ हमेशा से अलग अलग थीं। दोनों अपने अलग अलग तरीकों से, किसी भी वहशी लालसा कि गिरफ्त से अलग, बाहर झांका करते। समय को पेड़ों की फुनगियों पर चढ़ते उतरते देखते। रोशनी, अंधेरों और उनमें बनती बिगड़ती आकृतियों को कभी उदासी, कभी भय, कभी उत्सुकता और कभी गहरी ऊब से देखते। अपने इस देखने को वे कभी एक दूसरे से साझा नहीं करते। एक के देखने में दूसरा कभी शामिल नहीं हुआ था।

बूढ़ा चौखट के एक पल्ले पर चिपक कर इस तरह बैठता कि उसका सर बुढ़िया की तरफ होता। वह बुढ़िया को पार करके ही सामने देख पाता था। उसके इस तरह बैठने और देखने में चाहे अनचाहे, बुढ़िया हमेशा शामिल रहती थी, उसी तरह, जिस तरह पिछले पचपन सालों से उसकी जिंदगी में शामिल रहती आयी थी। बुढ़िया को इस तरह हमेशा देखने और पैर मोड़ कर खिड़की की चौखट पर बैठने से बूढ़ा बचना चाहता था, पर उसकी मजबूरी थी। 12 साल पहले उसके एक कूल्हे की हड्‌डी टूट गयी थी। उसके बाद वह उस कूल्हे पर जोर दे कर नहीं बैठ पाता था। दूसरे कूल्हे पर ही पूरा शरीर टिका कर, थोड़ा तिरछा हो कर बैठता था। बुढ़िया जानती थी कि वह बूढ़े के देखने में हर समय शामिल है। बुढ़िया यह भी जानती थी, कि सर्तक और चोर तरीके से बूढ़ा चुपचाप, उसके मन में उठने वाली हलचलें, दिमाग में आने वाले विचार भाँपा करता है, उसी तरह, जिस तरह पिछले पचपन सालों से भाँपता रहा है। बुढ़िया की नीयत और भविष्य के इरादों को समझने की कोशिश करता रहा है। वह कब उस पर झपटेगी, कब घृणा और कब हिकारत से देखेगी इसका अनुमान लगाने की कोशिश भी करता रहा है। बुढ़िया अपने इस तरह हमेशा देखे जाने की परवाह नहीं करती थी। पिछले पचपन सालों से बूढ़ा उसे हर तरह से, हर रुप में, हर जगह देख रहा था। पिछले पचपन सालों से बुढ़िया खुद को इस तरह देखे जाने को देख रही थी, इसलिए बूढ़े के देखने में अब बुढ़िया की ज़ाहिरा दिलचस्पी पूरी तरह खत्म हो चुकी थी। पचपन सालों में बुढ़िया उसके हर ओछे और शातिर तरीके से भी वाक़िफ हो चुकी थी। बूढ़े से पूरी तरह बेनियाज़, अब वह नीचे सड़क पर गुजरते लोगों को देखती। सड़कें, ठेले, भीड़ और हलचलें देखती। कभी सर उठा कर सामने दो सौ साल पुरानी, खजाने की खंडहर इमारत की टूटी दीवारों पर उगे पौधे, दरारों में दुबके कबूतर और हरी काई चाटती दीमकों को देखा करती। कभी खंडहर के पार बादल, मौसम, पेड़ और अपाहिज ईश्वर की परछाइयाँ देखती।

पिछले 12 सालों से इसी तरह, बाहर देखते हुए, दोनों का अपनी अपनी जिंदगी कुतरते चले जाने का सिलसिला चल रहा था। इन 12 सालों में ऐसा कभी नहीं हुआ कि उन्होंने अपनी खिडकियाँ बदल ली हों या दोनों ने कभी एक ही खिड़की से एक साथ बाहर झांका हो। सच तो यह था, कि पिछले 12 सालों में घृणा की हदों तक एक दूसरे से ऊबे हुए उन दोनों ने, खिड़कियों के बहाने अपनी अलग अलग जिंदगी और अलग अलग दुनिया चुन ली थी। अपने हिस्से की खिड़कियों की तरह वे अपनी भावनाएं भी, जो अक्सर एक दूसरे के प्रति कुटिलता या शंका से भरी होतीं, अपने अपने हिस्से में जीते रहे। पिछले 12 सालों में उन्होंने किसी भी बात पर एक दूसरे के लिए अपनी तय की हुयी स्थिति नहीं बदली। इतना जरूर था, कि बुढ़िया की तरफ बूढ़े का सर होने और उसे लगातार देखते रहने से, यह संभावना बनी हुयी थी कि दोनों के बीच शायद कभी कोई पचपन साल पहले की सद्‌भावना जाग उठे, कोई जुड़ाव बन जाए। बूढ़े की कामुकता और घृणा की मिलीजुली दृष्टि में बुढ़िया के लिए कोई नरमी, कोई आसक्ति या कोई मधुर स्मृति जाग उठे। बुढ़िया को यह आशंका बनी रहती थी कि ऐसा कभी हो सकता है। उसके देखने का बूढ़ा कोई गलत अर्थ न लगा ले इसलिए बुढ़िया ने कभी सर घुमा कर बूढ़े को पूरी नजर से नहीं देखा, जबकि चाहती तो वह बूढ़े को उसी सरलता से, उसी तरह देख सकती थी, जिस तरह सर घुमा कर बची हुयी दुनिया देखा करती थी। शुरू में कभी घोखे से उसकी नजर बूढ़े की तरफ चली गयी, तो उसने बूढ़े के लार सने होठों पर तिरछी मुस्कान, कामुकता और कुटिलता की अश्लील पर्त चढ़ी देखी। जाँघों के बीच रखा उसका हाथ देखा। वह भय और घृणा से सन गयी थी। तब पहली बार और उसके बाद कई बार, उसने अपने अंदर इस उफनती इच्छा को महसूस किया कि काश चौखट पर बैठा बूढ़ा ऊँघने लगे और चौथी मंजिल से गिर कर मर जाए या फिर वही उसे नीचे ढकेल दे। बूढ़ा शायद उसकी इस उफनती इच्छा या ढकेलने के इरादे को भाँप गया था, इसलिए जब भी वह चौखट पर बैठता, अपने बदन को कमरे के अंदर की ओर झुका कर तिरछा बैठता, जिससे कभी नींद में गिरे तो अंदर ही गिरे और अगर बुढ़िया उसे बाहर ढकेलना चाहे, तो वह चौखट में फँस जाए।

कमरे में जब अंधेरा हो जाता, तब रोशनी की जरूरत होती। शुरू में यह सवाल टेढ़ा था कि कौन खिड़की से हट कर बत्ती जलाए और रोशनी करे। पर 12 साल पहले इन्होंने इस कठिन गुत्थी को बिना झगड़े के तय कर लिया था। बुढ़िया ने अपने लिए तीन दिन और बूढ़े के लिए चार दिन तय कर दिए थे। बुढ़िया ने अपने हिस्से में एक दिन कम रखा था। बूढ़े ने इस पर बहस नहीं की थी। दिन भी बुढ़िया ने अपनी मर्जी से तय किए थे। इस पर भी बूढ़े ने बहस नहीं की थी। बुढ़िया के हिस्से के तीन दिन वे थे, जो पचपन साल पहले उसने बूढ़े से संभोग करने के लिए चुने थे। इस काम को करने के लिए उसे पूरा अंधेरा चाहिए होता था। इस क्रिया के विमोचन से पहले कमरे की रोशनी वह खुद बंद करती और समापन के बाद खुद खोलती थी। बुढ़िया तब से ही सिर्फ तीन दिन रोशनी करने की आदी थी। बूढ़ा तब से ही एक दिन ज्यादा रोशनी करता चला आ रहा था। बुढ़िया ने हफ्ते के जो तीन दिन चुने थे, उनके चुने जाने के पीछे भी कारण था। पचपन साल से भी पहले, उसका पहला प्रेमी, उससे इन्हीं तीन दिन उससे मिलता था। शाम को वह उसके कॉफी हाउस में आता। उसे क्रीम वाली कॉफी का आर्डर देता। जूक बॉक्स में चवन्नी डाल कर जूक बॉक्स पर ‘यू आर द क्रीम इन माई कॉफी‘ गाने का रिकार्ड लगाता और सुनता। तब पके हुए भुट्‌टे की तरह गठी, चमक और ताजगी से भरी देह वाली बुढ़िया को देखते हुए, एक के बाद दूसरी, तीसरी कॉफी पीता। ज्यादा क्रीम डलवाता और हर कॉफी के साथ यह गाना सुनता। बाद में, जब वे ढलान पर बने हरी घास वाले उस कब्रिस्तान के खंडहर में मिलने लगे, जो नदी किनारे खत्म होता था, और जहाँ जैतून के पेड़ के नीचे, बुढ़िया उसको चुबंन देने और लेने लगी, और उसके जिद करने पर, कि वह रोज काफी हाउस क्यों नही आता, खासतौर से तब, जब उसकी विधवा मालकिन अपने बेटी के घर दोपहर का खाना खाने जाती है और दो घंटे सोने के बाद लौटती है, तब उसके प्रेमी ने बताया था कि वह टूटे हुए सितार बनाने वाली दुकान में काम करता है, और टूटा सितार बनाने के लिए संगीत का ज्ञान जरूरी है, इसलिए चार दिन वह संगीत सीखने गुरू के पास जाता है, इसलिए नहीं आ सकता, और शाम से पहले इसलिए नही आ सकता, क्योंकि उसका मालिक भी, दोपहर को खाना खा कर सोता है और दुकान की जिम्मेदारी उस पर होती है। बाद में जब बुढ़िया ने बूढ़े से शादी की और अपाहिज ईश्वर और दीमक खाए धर्म ग्रंथों के पवित्र और नैतिक नियमों से प्रेरित हो कर, हफ्ते में सिर्फ तीन दिन संभोग करने का व्रत लिया, तब इसके लिए उसने अपने पहले प्रेमी से मिलने वाले तीन दिन चुने। पिछले 12 सालों में कमरे में रोशनी करने की ही एक बात थी, जिस पर उनमें कभी झगड़ा नहीं हुआ। जैसे ही दिन का पीलापन स्लेटी और फिर सुरमई हो कर गाढ़ा होना शुरू होता, और नीचे सड़क पर खाना बनाने वालों के चूल्हों से धुँआ उठने लगता, और दर्द दूर करने वाली दवाएं खा कर वेश्याएं सजने संवरने लगतीं, उनके कमरे में रोशनी हो जाती।

बाहर के अंधेरे से इन खिड़कियों को देखने पर, इस रोशनी में उन दोनों के अलावा कमरे में और बहुत सी चीजें दिखायी देने लगतीं। ये चीजें उनकी पुरानी, ठहरी और अब एक मामूली, सस्ती जिंदगी और उसके बीत चुके बहुत से खुशहाल और बदहाल दिनों के बारे में बतातीं। बाहर से उस पुरानी, बड़ी और बहुत सी खिड़कियों वाली बदरंग इमारत केे ढ़ाँचे के अंदर सबसे पहले उनका बड़ा, चौकोर कमरा दिखता। पुराने बैठकखानों की तरह बनी उसकी ऊँची छत दिखती। छत के नीचे दीवारों के ऊपरी हिस्सों पर कई रोशनदान दिखते जिनमे कुछ के शीशे और रस्सी खींचने के लिए बनी घिर्रियाँ टूट चुकी थीं। बारह साल पहले रोशनदान जैसे रह गए थे, वैसे ही पड़े थे। इन टूटे शीशों से सर्दियों की ठंडी हवा, कुहासा, बारिश की बूंदें, थोड़ी धूप, आँधी में टूटे पत्ते और झांकता हुआ बंदर दिख जाता था। खिड़की से बिल्कुल सामने दिखने वाली बड़ी दीवार सपाट, चौड़ी और सीलन भरी थी। उसकी पपड़ी आठ जगह उखड़ी थी जो चोट की तरह तितिलियों, तीन तरह के फूल और एक तिलचट्‌टे की शक्ल बनाती थीं। दीवार के नीचे वाले हिस्से में फायर प्लेस बना था। 12 साल से फायर प्लेस के अंदर आग नहीं जली थी। धुँआ निकलने वाले रास्ते पर कबूतरों ने घर बना लिए थे। उस रास्ते से नीचे उतर कर अक्सर वे फायर प्लेस में आ जाते, जहाँ से कमरे में घूमते थे। मेन्टलपीस पर दवाओं की शीशियाँ, घड़ी, नेल कटर, रबर बैंड, कागज का पैड, पेन स्टैंड, नकली फूलों का गुलदस्ता, गाँधी के तीन बंदर, ग्लोब, अगरबत्ती के दो पैकेट रखे थे। मेन्टलपीस के ऊपर का दीवार पर रेम्ब्रा, गोया, सल्वाडोर डाली और पिकासो के चित्रों के डुप्लीकेट लगे थे। इन्हें बुढ़िया शादी में अपने साथ लायी थी। कॉफी हाउस की मालकिन ने काफी हाउस की दीवार से उतार कर उसे उपहार में दिए थे। इन्हीं चित्रों के साथ कांच के फ्रेम में दो सर्टिफिकेट जड़े थे। एक बुढ़िया का था, जो उसे ‘रेड क्रास‘ ने दिया था, जब सितार वाले प्रेमी के चले जाने के बाद आए एक भूकम्प में, उसने घायल लोगों की मदद के लिए रक्त इकट्‌ठा किया था। एक सर्टिफिकेट बूढ़े का था, जो उसे जिला स्तर पर कुश्ती का मुकाबला जीतने कि लिए किसी टुच्ची संस्था ने दिया था।

फायर प्लेस के दोनों तरफ बर्मा टीक के बने पलंग पड़े थे, जो उस पेड़ को काट कर बनाए गए थे, जब बर्मा भारत में शामिल था और पेड़ भारत में था। 12 साल पहले तक दोनों पलंग जुड़े हुए थे बूढ़ा और बुढ़िया सर्दियों में फायरप्लेस में आग जला कर, इस पलंग पर प्रेम करते थे। अब वे अलग थे। दोनों पलंग के सिरहाने एक छोटी मेज रखी थी। दोनों मेजों पर उनके अलग अलग सामान रखे थे। बूढ़े के सिरहाने वाली मेज पर चश्मा, किताब, हिसाब किताब की डायरी, दांत खोदने की तांबे की सुई, चूरन की शीशियाँ और टार्च थी। बुढ़िया के सिरहाने वाली मेज पर प्रार्थना की छोटी किताब, क्रीम, टार्च, आँख में डालने वाली दवा और चश्मा था। सोने से पहले दोनों अपने अपने पलंग पर देर तक बैठे रहते। बूढ़ा अपनी हिसाब किताब की डायरी में लाशों का हिसाब करता रहता। बुढ़िया पुरानी तस्वीरों के एलबम में उस भेड़ की तस्वीर देखती जिसकी पीठ पर लाल पेंट से ‘आई लव यू‘ लिख कर कॉफी हाउस के बाहर उसके प्रेमी ने अपने प्रेम का इज़हार किया था। बुढ़िया जब भेड़ देखती, अपनी अस्थि मज्जा तक में धँसा गाना ‘यू आर द क्रीम इन माई कॅाफी‘ गुनगुनाती, जो लाशों का हिसाब करते हुए बूढ़े के कानों के पास भनभनाती मक्खी की तरह उसे परेशान करता रहता।

इस बड़े कमरे के साथ एक दूसरा कमरा भी दिखता। यह कमरा पूरा एक साथ नहीं बल्कि हिस्सों में दिखता था। इसके एक हिस्से में बड़ी मेज दिखती थी जिसका टॉप हरे मोजै़क का बना था। इस मेज पर गैस का चूल्हा, बरतन, चाय की पत्तियाँ, पानी की बोतलें रखी थीं। साथ की दूसरी मेज पर छोटे डिब्बों में अनाज रखे थे। दूसरे हिस्से में दीवार में बनी अलमारी दिखती थी। दीवार में एक बिना पल्लोें वाली अलमारी थी जिसमे पुराने अखबार, ताश की गड्‌डी जिसमें सिर्फ तीन इक्के थे, बिना चिमनी की लालटेन, पहाड़ी नदी में मिलने वाले 3 गोल पत्थर, चूहेदानी, बाल्टी, सैंडिल, हथौड़ी, तबला, बड़ा पर्स, प्लास्टिक के फूल और टूटी बाँह वाली वीनस की मूर्ति रखी थी। एक हिस्से में स्टैंड पर लटके कपड़े, कूड़े की टोकरी, मेज, कुर्सी, फर्श पर रखे जूते चप्पल दिखते।

उन दोनों के अलावा घर में एक औरत दो बार आती। सुबह और फिर शाम को। जब वह घर में आती तब खिड़कियाँ खाली रहतीं। खिड़कियों से वह अंदर काम करती दिखती। बुढ़िया तब उसके साथ साथ घूमती या उसके आसपास रहती। बड़बड़ाती, हिदायतें देती उसकी मदद करती या तेज और ऊँची आवाज में देर तक बोलती रहती। 12 साल पहले तक, काम वाली के आने के समय बूढ़ा घर से निकल जाता था, या यूँ कहा जा सकता है, काम करने वाली यह कोशिश करती कि उसके जाने के बाद ही वह घर में आए, जिससे कि बूढे़ की पैनी और परेशान करने वाली चौकन्नी निगाहों, और उपस्थिति से बच कर असानी से काम कर सके। 12 साल पहले के और 12 साल पहले से, यह औरत उनके घर में काम कर रही थी या उनके साथ निबाह रही थी। दो बार गुस्से में उसने काम छोड़ दिया था। एक बार बुढ़िया ने उसे हटा कर दूसरी औरत रख ली थी। पर वह रूकी नहीं। बूढ़े की लोलुप और बुढ़िया की चौकन्नी निगाह, कर्कश आवाज और पागलपन की हद तक सफाई की खब्त से वह भाग गयी। दो दिन में ही बुढ़िया को फिर उसी पुरानी औरत के घर जाना पड़ा। उसने उसे अपने दोनों के बुढ़ापे, अकेलेपन, पुराने संबध, और वक्त बेवक्त उसकी हर तरह से मदद करने की याद दिलायी। उसे भावनात्मक स्तर पर फुसलाया और तोड़ा जिसमें वह अनुभवी और कुशल थी। उसके रूपए भी बढ़ाए। तब वह पुरानी औरत काम पर लौटी। 12 साल से बुढ़िया ने उससे लड़ना या उसके पास खड़े होना और बूढ़े ने उसके दैहिक भोग की कल्पनाओं और संभावनाओं पर विचार करना छोड़ दिया था।

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