यात्रा स्वाती यादव द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

यात्रा

बात बहुत पुरानी नहीं है , बाते कभी पुरानी नहीं होती ही नहीं ।जब भी उन बातो को याद किया जाता है वो नई होती रहती है।

बहोत खुशी और शांती थी आज विराट के पास ,घर से दूर पढ़ने जा रहा था ।"बस भी हुए ये शोर ,रोज सुबह से ये बड़े आवाज वाला रेडिओ लगा देते है पिताजी ,और तुम भी मां इतनी जोर से से भी कोई आरती गाता है? "..ये सब आज का नहीं है रोज इस तरह की बातें होती ही रहती थी विराट के साथ ।

वो विराट जिसके एक मध्यम वर्गीय पिता और एक ऐसी मां ने पाल पोस कर बड़ा किया जिन्होंने विराट के कई सपनों को अपने से ऊपर रखा और रखते हूए खुद शायद काफी नीचे चले आए । उन्ही की आवाजें उसे शोर लगती थी अब ,वो दूर चले जाना चाहता था इस शोर से ,आज वही दिन था ।

अपनी स्नातक की पढ़ाई के लिए वो शहर जा रहा था ,उसे बड़ी ख़ुशी थी कि अब उसे रोज इस शोर का सामना नहीं करना पड़ेगा ,उसे इस शोर और जिन भी चीजों से तकलीफ़ थी वो अब दूर होने जा रही थी ।

शाम की ट्रेन थी बड़े उत्साह से वो अपना सब सामान लेकर निकला था घर से, हा निकलते समय उसे घर से दूर होने का दुख नहीं था , मगर उसके माता- पिता जरूर दुखी थे कुछ टूट सा गया हो उनके भीतर ।

शहर पहुंचा अपने कमरे में गया बहुत शांती थी वहां ..रोज काॅलेज और फिर कमरे पर वापसी तक का सफर तय हो गया था । कॉलेज में कई मित्र थे पर ऐसे जो सिर्फ वक्त वाले थे ,वो होते है न जब उन्हें काम हो तो उनके पास बड़ा वक्त होता है वैसे ही ।शुरू के दो साल तक तो ठीक रहा पर अब वहां कुछ बदलने लगा था वो विराट जिसे घर के शोर से नफरत थी उस अब उस शांती भरे कमरे में घुटन होने लगीं थी ,कोई ऐसा करीब था नहीं जिससे वो बाते कर सके यहां सब की अपनी दुनिया थी और वो अपनी दुनिया में अकेला । दो साल बीत गए थे ।आज उसका आखिरी दिन था उस शहर में अब उसे एक यात्रा करनी थी शहर से घर की ओर ,एक वो दिन था जब वो घर से यहां आने के ख़ुश था और एक ये जब वो वही वापस जाना चाहता था जहां वो कभी लौटना नहीं चाहता था ।

इस गांव से शहर तक को दूरी की यात्रा ने उसे एक और यात्रा करवाई थी वो थी शांती से शोर की

अपने ट्रेन कि सीट पर बैठा वो विराट जो शहर आया था और जो अब वापस जा रहा था उसे इस यात्रा ने सिर्फ डिग्री ही नहीं दी ..अंतर भी समझा दिया था शोर का उस शोर में घुली शांती का ।

रास्ते भर वो यही सोच रहा था जिसे वो शोर समझ रहा था शायद वहीं उसे शांती देता था या वो कभी शोर था ही नहीं ।

-स्वाती यादव