mera sahera sajega maa ke hath books and stories free download online pdf in Hindi

मेरा सहेरा सजेगा मां के हाथ

आज मधु जी का पूरा घर फूलों की सजावट व उनकी खुशबू से महक रहा था। घर में रिश्तेदारों की चहल-पहल थी और पकवानों की खुशबू चारों ओर बिखरी हुई थी।
घर में मंगलगीतों के साथ, ढोलक की थापें भी सुनाई दे रही थी।यह सब शुभ आयोजन था, मधु जी के इकलौते बेटे राजन की शादी का। मधु जी का मन तो खुशियों से भरा था लेकिन व्यस्तता के कारण वह अपने बेटे से ही नहीं मिल पा रही थी। तभी किसी ने आवाज दी लड़की वालेसगाई के लिए आ गए ।मधु जी का परिवार उनकी आवभगत में लग गया ।सगाई की तैयारी होने लगी।
उनका बेटा राजन जब तैयार होकर बाहर आया तो मधु जी उसे देखती रह गई बिल्कुल वैसा ही तो लग रहा था, जैसे आज से 28 साल पहले इसके पापा अपनी शादी के समय लग रहे थे। राजन से उनकी नजर ही नहीं हट रही थी। मधु जी आगे बढ़ती उससे पहले ही उसके ताऊ और ताई जी आगे आए और उसे आयोजन स्थल पर ले गए।

सगाई के बाद पंडित जी ने राजन से कहा "बेटा यह सगाई के शगुन का सामन अपनी मां को दे दो।"मधु जी आगे जाने लगी ,तभी उसके जेठ जी चिल्लाते हुए बोले
"पंडित जी को तो पता नहीं तुम्हारे बारे में ,तुम्हें तो पता है ।फिर क्यों अपने बेटे का अमंगल करने जा रही हो।"जेठानी भी हां में हां मिलाते हुए बोली
" वैसे सही कह रहे हैं तेरे जेठजी। यह शुभ कार्य तो सुहागन औरतें ही करती है।"उनकी बातें सुन मधु जी के पैर वही ठिठक गए। वह अपनी आंखों में आए आंसुओं व चेहरे की पीड़ा को छुपाते हुए बोली
" दीदी खुशी में ध्यान ही ना रहा।जाओ आप ले लो शगुन ।"बुरा राजन को भी बहुत लगा लेकिन चाहते हुए भी वह सबके सामने कुछ ना बोल सका। अपनी मां का चेहरा देख वह भी अंदर ही अंदर टूट कर रह गया।सगाई के बाद बहुत नाच गाना हुआ। यार दोस्तों के साथ वह भी उसमें शामिल था लेकिन अंदर ही अंदर उसे कुछ खाए जा रहा था।देर रात सभी आराम करने के लिए अपने अपने कमरों में लेटे हुए थे। बहुत कोशिश करने के बाद भी राजन को नींद नहीं आ रही थी। शाम का वाकया बार-बार उसकी आंखों के सामने आ रहा था। आज वह इतना कमजोर कैसे हो गया। अपनी मां का अपमान सबके सामने होते देखता रहा। वह मां जिसने पापा के जाने के बाद कभी उसे किसी चीज की कमी महसूस ना होने दें। कभी दुखी भी होती है तो अकेले कमरे में रो लेती लेकिन उसके सामने हमेशा मुस्कुराती रहती। 15 साल का ही तो था वह, जब पापा उन्हें अकेला छोड़ इस दुनिया से चले गये थे। मां बेटा दोनों ही तो उनके अचानक जाने से एकदम से टूट गए थे । जो रिश्तेदार आज सगे बन रहे हैं। साल भर में ही है सबने उनसे मुंह मोड़ लिया था कि कहीं कुछ मांग ना ले। तब कैसे मां ने अपने दुख को अंदर ही अंदर पी गई थी और उसके लिए फिर से उठ खड़ी हुई। उसकी पढ़ाई पूरी करने के लिए क्या कुछ नहीं किया उसने। रिश्तेदार कहते थे कि क्या जरूरी है इतना पैसा पढ़ाई में खर्च करना। मां ‌सुनती सबकी लेकिन करती वही जिसमें मुझे खुशी मिलती थी। आज उनके त्याग व तपस्या से ही तो मैं अपने सपने पूरे कर पाया हूं। लेकिन मैं कितना स्वार्थी निकला। मैंने आज दूसरों की परवाह की ,अपनी मां की खुशी की नहींं। राजन अपनी मां के कमरे मे जाने के लिए उठा तो उसे अपनी मां बाहर बरामदे में ही टहलती नजर आई।
राजन को देखते ही वह चेहरे के भाव छुपाते हुए हुए बोली "बेटा इतनी रात में तुम! यहां! अभी तक सोए नहीं। पता है ना कल शादी है तेरी, जा आराम कर। कल पूरा दिन सांस लेने की फुर्सत ना मिलेगी तुझे।""
मां मुझे माफ कर दो। मैं बहुत बुरा हूं। ताऊ जी आपको इतना कुछ कहते रहे और मैं चुपचाप सुनता रहा।"
"नहीं बेटा, तू इस बात के लिए अपने आप को कसूरवार मत मान। तेरे ताऊजी सही कह रहे थे। यह शुभ काम...!" कहते हुए मधु जी का गला भर आया।"
मम्मी , एक मां अपने बच्चों के लिए कभी अशुभ नहीं हो सकती। आज वह सबके सामने हमारे शुभचिंतक बन रहे हैं। इतने सालों से कहां थे वह!""बेटा ऐसे मत बोल। उन्होंने सुन लिया तो बुरा मान जाएंगे। मेहमान है वह हमारे। मैं नहीं चाहती शादी में कोई भी नाराज हो। जो वह कहते हैं चुपचाप कर ले। मैं तो घर की ही हूं। बाद में तो मुझे ही करना है सब कुछ लेकिन अभी किसी को कुछ मत कहना। जा अब तू सो जा।"अगले दिन सभी बारात की तैयारी कर रहे थे जैसे हीसेहरा बंधने का समय आया तो ताऊजी व उनके दामाद राजन को सेहरा बांधने के लिए आगे बढ़े। राजन ने कहा "माफ करना ताऊजी, यह अधिकार मेरी मां का है। वही मुझे अपने हाथों से सेहरा बांधेगी।""पागल हो गए हो क्या, तुम मां बेटा! कल समझाया था ना कि वह शादी के शुभ कार्यों में हाथ नहीं लगा सकती फिर!""ताऊ जी मै नही मानता इन बातों को!""अगर तुम्हें अपनी ही चलानी थी तो हमें क्या यहां पर बेज्जती करने के लिए बुलाया था।" ताऊ जी नाराज होते हुए बोले।"पागल हो गया है क्या राजन। कल तुझे इतना समझाया था उसके बाद भी।" मधु जी उसे समझाते हुए बोली।"मां इतने सालों से आप कहती आई हो ना कि तुझे तेरी बारात के लिए मैं अपने हाथों से तैयार करूगी, सेहरा बांधूंगी और बारात में खूब नाचूंगी। आज जब मेरे जीवन का इतना बड़ा दिन है और आपका सपना हकीकत में बदलने को है तो आप दुनिया की सुन रही हो। मां आप से बढ़कर मेरे लिए कोई शुभ नहीं। आप के कारण ही मैं इस दुनिया में आया और यहां तक पहुंचा। आज तक आपने मेरी खुशी के लिए दूसरों की बातों को सुनकर भी अनसुना किया तो आज अपने बेटे की इतनी बड़ी खुशी में शामिल नहीं होंओगी। आओ मां, करो अपना सपना पूरा। बांधों मेरे सिर पर सेहरा।"मधु जी ने उसके हाथ से सेहरा ले राजन के माथे पर सजा दिया और अपने बेटे को गले लगाते हुए उसे ढेर सारे आशीर्वाद दिए । उसके बाद मधु जी आंखों में खुशी के आंसू लिए, अपने बेटे के साथ बैंड बाजे के सामने जमकर नाची। "दोस्तों इन दकियानूसी रीति-रिवाजों से बढ़कर है अपनों की खुशियां। क्यों हम उन लोगों की फिक्र करें, जो हमारी परवाह नहीं करते। लोग क्या कहेंगे, इसकी परवाह ना करें अपितु अपनी मन की करें क्योंकि कहने वाले तो अच्छाई में भी बुराइयां निकाल ही देते हैं।

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