सफेद रंग - भाग 2 Namita Verma द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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सफेद रंग - भाग 2

मुन्नी जैसे तैसे होश को संभालते हुए घर पहुँची एक अदना सी उम्मीद लिए,कि शायद उसके बाबा उसके साथ ऐसा नहीं करेंगे, उसकी ये सारी शंकाऐ तो अब सिर्फ बाबा ही दूर कर सकते थे,(उम्मीदों को लगाना कभी से बुरा ना हुआ ना ही कभी होगा,मगर बुरा है तो उन उम्मीदों का टूट जाना ) खासकर ऐसे इंसानों से लगाई गई उम्मीदें जिन्होंने हमें बचपन से ही उम्मीद लगाना सिखाया हो,मुन्नी का गला अब सूख चुका था मुन्नी ने अपना बस्ता पटकते हुए अपने कमरे का दरवाजा मूंद लिया,रे मुन्नी क्या हुआ -मुन्नी की मां ने आवाज लगाई, क्या हुआ उस गीता से फिर झगड़ आई क्या, घर के काम में मगन मुन्नी की मां भूल चुकी थी शायद की बात क्या है?या भूलने का दिखावा कर रही हो (ये शक्ति पूरे संसार में माँओ के पास ही तो है, दुनिया भर का तूफान समेटे रखती अपने अंदर और बाहर कैसे शांत दिखती है )अंदर से धीमी सी आवाज आई कुछ नहीं हुआ मां,
बाबा आए तो मुझे आवाज लगा दियो, अच्छा ठीक है ,इतना कहकर मुन्नी की माँ ने चुप रहना बेहतर समझा। इंतजार करते-करते अब मुन्नी सो चुकी थी,उधर मुन्नी की मां बड़बड़ा रही थी कि किधर रह गए समय का कुछ भी ख्याल नहीं है इनको ,तभी दरवाज़े से आवाज आई कि वो गिरधर की वजह से लेट हो गया मैं, उसने लड़के वालों के यहां फोन मिला दिया था, इतना सुनते ही मुन्नी की मां बरस पड़ी,इतनी जल्दी काहे कर रहे हो हमारी मुन्नी कहीं भागी थोड़ी जा रही है,अरे मुन्नी कि मां तुमको नहीं समझ आएगा ई रिश्ता हाथ से निकल गया तो, और "मुन्नी की मर्जी का क्या?" मुन्नी की मां ने कहा,(ये सवाल ऐसा सवाल था जिसका इस पुरुष प्रधान समाज में कोई महत्व ही नहीं था सुनकर भी अनसुना कर देना आम बात थी) अपने फैसले पर मुन्नी की खुशी की मुहर लगाते हुए,मुन्नी के बाबा ने कहा कि हमारी मुन्नी है वो हमारी बिटिया का बुरा थोड़ी ना सोचेंगे, इतनी आवाज सुन कर मुन्नी अब उठ चुकी थी,उसने आंखें मलते हुए पूछा मां- बाबा आ गए क्या?हां मुन्नी, मुन्नी के बाबा ने ही जवाब दिया मुन्नी दौड़कर अपनी बाबा के गले से लिपट गई और एक सांस में जितनी शिकायतें कर सकती थी उसने कर दी, अपनी बिटिया को ऐसे बिलखते देख एक बार तो मुन्नी के बाबा का दिल पसीजा,अगले ही पल उसने खुद को झूठी तसल्ली देते हुए अपने आप को कहां मुन्नी तो नादान है अपनी अच्छी बुरी की खबर थोड़ी है उसे उसका भला तो हमें ही देखना होगा।अरे बिटिया रुक जाओ ऐसे थोड़ी ना करते हैं देखो तुम तो मेरी राजकुमारी हो ना तुम्हारे लिए राजकुमार तो तुम्हारे बाबा ही तो ढूंढेगे।
"बिटिया तो पैदा होते ही लिखवा कर आती है कि एको दिन तो उन्हें जाना ही दूजे घर,
पर बाबा मैं अभी ब्याहा नहीं कराना चाहती मुझे पढ़ना हैं मुझे आप दोनों के लिए कुछ करना है,आप ही तो कहते थे मेरी बिटिया अफसर बनेगी।
मुन्नी उस वक्त ऐसे कोर्ट में दलीलें पेश कर रही थी जहां सालों से ही फैसला एक तरफा होता आया है,(कहाँ तो था आप सबको की उम्मीदें खतरनाक होती है),अरे बिटिया तु अब भी तो किसी अफसर से कम थोड़ी होगी, इतने बड़े घर में ब्याह होगा तेरा,सभी पर मेरी बिटिया ऑर्डर झाडेगी और हमसे जब चाहे मिल लियो लड़का अपने बनारस का ही तो है,ये कहते हुए मुन्नी के पापा ने मुन्नी की मां को देखा "सभी को पता है कि मुन्नी की मां को ब्याह के बाद कितनी बार घर भेजा गया था उन घंटों को मिला कर शायद 1 दिन भी ना बने" इतना सुनकर भी मुन्नी की जिद्द शांत नहीं हो रही थी ना ही उसके आंसू सूख रहे थे ,गुस्से में मुन्नी के पापा ने मुन्नी की मां को कहा इसको समझा लियो कल आएंगे लड़के वाले,
अपने बाबा के मुंह से ये शब्द सुनते ही मुन्नी की उस अदना सी उम्मीद ने भी दम तोड़ दिया।मुन्नी की आंखे के आंसू और जीवन दोनों सूख रहे थे,उधर मुन्नी के पापा बड़बड़ा रहे थे हम तो इनके दुश्मन है ना हम तो हमेशा गलत ही होंगे,
"इसमें उस पिता की भी क्या गलती एक पिता के लिए तो उसकी बेटी की शादी ही सबसे बड़ा तीर्थ होता है,पैदा होते ही उन्हें बिटिया की पढ़ाई से ज्यादा ब्याहा की फिक्र होती है और ये तो समाज का नियम भी है ,आज तक किसी ने कहा समाज के नियमों का विरोध किया है। (कैसे हम अपनी खुशियों को अपनी जिम्मेदारियों को दूसरों की जिंदगी का फैसला समझ उस पर थोप देते हैं, उस फैसले में सब होता है,सबकी खुशियां होती है सिवाऐ उस इंसान की खुशियों के),खैर हम इतना क्यों सोच रहे हैं ?हमारी जिंदगी थोड़ी हैं,मुन्नी भी रात से चुप थी,अपने बाबा के फैसले को उसने अब अपनी किस्मत समझ ली थी, बिना कुछ बोले चुपचाप वही करती रहीं जो उसके बाबा ने उसे कहाँ,
लड़के वाले आ गए थे,साथ में लड़का भी आया था, लडका दिखने में सांवले से रंग, का ऊँचे कदवाला, देखने में करीब 24-25 साल का नौजवान लग रहा था,मुन्नी ने नजर उठाकर भी नही देखा कि कौन आ रहा हैं, उसके चेहरे की मासूम मुस्कान अब कहीं दुबक कर बैठ गई थी,
लडके को लड़की दिखाई गई ,उसने मुन्नी को ऊपर से नीचे नजर भर देखा और कहा ठीक है ,
अपनी मां को कहा कि बाकी आप देख लेना काम-वाम आता है कि नहीं ,मुन्नी को अब वैसे भी किसी से आस नहीं थी कि उससे कोई पूछे कि उसे लड़का पसंद है या नहीं और हुआभी वैसा ही उधर लड़के वाले अपने बेटे का गुणगान कर रहे थे कि हमारा बेटा यहां पढ़ा ,उतना पढ़ा ना जाने क्या-क्या,
मुन्नी की पढ़ाई का जिक्र भी नहीं हुआ
और करे भी क्यों भला ?
मुन्नी अब एक मुर्दे की तरह हो चुकी थी उसे सिर्फ अपने आसपास आवाजे ही सुनाई दे रही थी,कुछ जानी पहचानी तो कुछ नई,उसे पता ही नहीं चला कि कब उसे लाया गया ओर कब उसके हाथों में लाल चूड़ी पहना कर उसका रिश्ता पक्का कर दिया गया,
इतनी नफरत उसे चूड़ियों से आज से पहले कभी नहीं हुई थी, वहां सब खुश थे सिवाऐ मुन्नी के उनकी भाषा में कहे तो ये सब उसी की खुशी के लिए ही तो हो रहा था।1माह के बाद ब्याह की तारीख रख दी गई ,
और किसी ने इनकार भी नहीं किया कि इतनी जल्दी क्यों,
उस रात मुन्नी ने अपने सारे सपने,अपनी मासूमियत अपनी उम्मीदे सबका अपने हाथों से गला घोट दिया था,
मुन्नी उस रात इतना फूट-फूटकर रोई कि उम्र भर के आंसू आज ही खर्च करने हो,
कहना आसान होता है कि, कहां एक रात में किसी की जिंदगी उजड जाती है ,कहां किसी का सब छीन जाता होगा,
मगर मुन्नी उस रात मुन्नी से राधिका बन चुकी थी और अपनी मुन्नी की अर्थी उसने खुद अपने हाथों से उठाई थी, खुद को तसल्ली दे रही थी कि शायद ऐसा ही होता होगा, मां के साथ भी ऐसा ही हुआ होगा, मां की मां के साथ भी, तो मैं कैसे बदल सकती हूं सब।
हां सच में मुन्नी ने हार मान ली थी ,इतना चौक क्यों रहे हो ?आपको क्या लगा वह बगावत करेगी तो उसे जीने दिया जाएगा,16 बरस की नन्ही जान एक खिलौने,कुछ चूड़ियों के लिए आज तक बस इतनी ही जिद्द करती आई है ,आज तक उसने बस इतनी ही जिद्द करना सीखा है और उसके मां-बाबा भी मान जाते थे, क्योंकि वो कहां अपनी बिटिया के आंसू देख पाते थे ,
मगर अब,
अब क्या ?
"रात के आंसू कहां ,भला कभी सुबह का चेहरा देख पाते हैं और रही बात निशानों की वो तो पानी से धुल जाते हैं"
To be continue......
©️Namita verma🦋