सड़क Mukta Priyadarshani द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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सड़क

एक दिन फुर्स़त के समय मैं फेसबुक स्क्रॉल कर रही थी कि एक तस्वीर दिखी, वो तस्वीर मेरी एक दोस्त ने शेयर की थी और उसके ऊपर कैप्शन डला था - 'ब्यूटीफुल'।
उस तस्वीर को देखते ही खुश हो मैंने कमैण्ट किया - 'ये तो मेरे घर वाली सड़क है'।
जी हाँ वह तस्वीर एक सड़क की थी वो भी मेरे घर वाली सड़क। वैसे तो सभी सड़कें एक जैसी लगती हैं पर ये तो जानी पहचानी सड़क थी भला इसको में कैसे न पहचानती? आखिर इतने सालों का साथ है हमारा, साल में तीन-चार बार घर आते-जाते मुलाकात होती रहती है। रास्ते भर मुझे इंतज़ार रहता है इस सड़क का। यह सड़क कुछ ऐसी लगती है जैसे कठिन चढ़ाई में एक सुविधाजनक विश्रामगृह। बड़ा सुकून है इस सड़क में ठीक वैसे ही जैसा वह तस्वीर दिखा रही थी।
धुली-धुली सी चौड़ी मगर घुमावदार सड़क, जिसके दोनों ओर पहाड़ थे, सड़क के एक ओर बहती कोशी नदी और नदी से कुछ ही ऊँचाई पर बनी यह सड़क। एक जगह जहाँ एक-दो मोड़ लगातार पर छोटे थे, उन्हीं मोड़ों में से बीच वाले मोड़ पर एक छोटी पुलिया थी। सबसे पहला मोड़ जो कुछ अधिक चौड़ा था, उस मोड़ पर नदी की तरफ़ खड़ा था आँखों को सुखद अनुभव देता लाल फूलों से लदा एक विशाल सेमल का पेड़। जिसने इस तस्वीर में चार चाँद लगा दिए थे। चारों ओर हरियाली ही हरियाली और खुला नीला आसमान।
यह सड़क सिर्फ मेरी ही नहीं वहाँ से आने जाने वाले हर यात्री की पसंदीदा है। इस सुंदर सड़क ने भी न जाने कितने कष्ट झेले हैं। मैंने भी इसके घावों को प्रत्यक्ष देखा है। कितना डरावना रहा होगा वो मंज़र। सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। उस हादसे के बाद जब उस सड़क को वाहनों की आवाजाही के लिए खोला गया तो उसकी वह दुर्गत देख हर किसी का गला भर आता था। हर कोई कहता "धत्त तेरे की..अच्छी खासी सड़क बर्बाद हो गई"।
हुआ यूं था कि साल 2010 की बरसात ने उत्तराखण्ड के कई इलाकों को तबाह कर दिया था। हर तरफ़ सिर्फ मौत मंडरा रही थी। अकसर उफ़नती नदियों में जन-जीवन को बहते देखा जा सकता था। कहीं अचानक बढ़ते पानी में कोई बह जाता तो कहीं भूस्खलन में पूरा का पूरा गाँव बर्बाद हो जाता। चारों ओर डरावना और शोकाकुल माहौल था। कुछ ऐसी ही आपदा की शिकार हुई थी यह सड़क भी।
एक रात अचानक लगातार बारिश और बादल फटने की वजह से नदी का पानी बढ़ गया और दूसरी तरफ़ पहाड़ जगह-जगह से खिसकने लगे। मलवे के साथ गिरते थे बड़े विशाल पत्थर। उस रात इस सड़क के आस-पास बसे गाँव अचानक आई इस मुसीबत से बहुत प्रभावित हुए। ना घर में रहकर जान बचती दिखती थी और ना ही बाहर भागकर। नीचे से उफ़नती कोशी नदी का रुख अचानक बदल गया और गरजती हुई लहरों ने धीरे-धीरे सड़क को काटना शुरू कर दिया। देखते ही देखते आधी सड़क धड़ाम से नदी में जा गिरी और किसी कागज़ के पन्ने सी बह गई। साथ ही जलमग्न हो गईं कई दुकानें और आलिशान मकान। लोग अपनी जान बचाने बाहर भागे तो पहाड़ का एक बहुत बड़ा भाग खिसका और उसके मलवे में कई मासूम जानें दफ़न हो गईं। वहाँ से बाहर निकलना या वहाँ तक पहुँचना उस वक्त नामुमकिन था। ना किसी दिशा में जान बचती दिखती थी और ना ही बचाव दल को फ़ोन कर पाने को नेटवर्क पर उस स्थिति में किसे अपने सामान की सुध होगी। मौत के तांडव का शोर मदद की पुकार से ज्यादा ऊँचा था। हर तरफ़ बस मौत मंडरा रही थी सिर्फ़ और सिर्फ़ मौत।
उस रात के बाद यह सड़क कई हफ़्तों तक बंद रही। कुछ सालों तक इसे सही करने का काम चलता रहा। अब यह सड़क फिर से अपने पुराने सुंदर रूप को पा चुकी है। हाँ कुछ समय ज़रूर लगा पर अब वह घाव भर चुके हैं पर कहीं-कहीं कुछ निशान आज भी उस बेरहम रात की याद दिला ही देते हैं।
उस दिन वह तस्वीर देख मुझे यह किस्सा याद आया था। अब इस सड़क से गुजरते हुए यह तस्वीर याद आती है और हर बार मैं देखती हूँ सुखद अनुभव देने वाला वह लाल फूलों से लदा विशाल सेमल का पेड़ जो किसी मरह़म सा लगता है।