जल्दी से सब उसे हॉस्पिटल लेकर पहुंचे। होश आने पर चांदनी ने जब अपने आपको हॉस्पिटल में पाया तो आकाश की ओर प्रश्न भरी नजरों से देखा। तब आकाश ने उसे कहा "तुम काम करते हुए बेहोश हो गई थी।"
"हम घर कब चलेगे!" उसने पूछा
"अभी डॉक्टर ने कहा है दो-चार दिन तुम्हें यही रहना होगा। जिससे वह अच्छे से तुम्हारी बीमारी को पहचान, उस का इलाज कर सके।"
"आकाश, दो-चार दिन मैं यहां कैसे रहूंगी। मुझे घर चलना है।। मैं अब ठीक हूं।"
"नहीं चांदनी दो-चार दिन की बात है। यहीं रहकर तुम्हारा अच्छे से इलाज हो सकता है। मैंने गलती कर दी। जो इतनी ढील दी। पहले ही तुम्हें यहां ले आता तो यह नौबत ना आती। और तुम अकेली क्यों हो। मैं हूं ना यहां पर और मैंने तुम्हारी मम्मी को भी फोन कर दिया है, वह भी आती होगी ।"
"क्यों बताया उन्हें! परेशान हो जाएंगी मुझे इस हालत में देखकर।"
"यह बात छुपाने से कहां छुपती। दूसरों से उन्हें पता चलता तो उन्हें दुख होता। उन्हें लगता कि शादी के बाद तुम सचमुच पराई हो गई हो। अपनी मां को देखकर तुम वैसे ही सही हो जाओगी।" आकाश उसे समझाते हुए बोला।
थोड़ी ही देर में चांदनी की मां आ गई। उन्हें देखकर चांदनी के आंसू निकल आए लेकिन वह अपने आपको संभालें रही और उसे समझाते हुए बोली "अरे इतनी छोटी सी बीमारी से घबरा गई। देखना जल्दी तू सही हो जाएगी। बस खुश रहने की कोशिश कर। जितना इसके बारे में सोचेंगी, उतनी ही तकलीफ होगी और सुन मैं तेरे साथ ही रहूंगी यहां पर।"
दादी ने भी चांदनी को समझाते हुए यही कहा और बोली "हां बहु, तेरे साथ रहने से इसे भी हिम्मत मिलेगी घर और पोते को मैं अपने आप देख लूंगी।"
यह सुनकर आकाश बोला "नहीं मम्मी जी, आप परेशान मत हो। मैं और मम्मी है सब संभाल लेंगे।"
सुनकर मीरा देवी मुंह बनाते हुए बोली " अगर यह रुकना चाहती हो तो इसमें बुराई क्या है! आखिर बेटी है, यह इनकी। हम सभी यहां इसकी सेवा में लगे रहे तो घर को कौन संभालेगा।"
मीरा देवी की बात सुन चांदनी की मां को अच्छा तो नहीं लगा। फिर भी वह उनकी हां में हां मिलाते हुए बोली "हां हां बहन जी आप घर बार देखिए, मैं रूकती हूं इसके पास। दो-चार दिन की ही तो बात है दो-चार दिन बाद तो छुट्टी मिल ही जाएगी इसे।"
"पता नहीं दो-चार दिन की बात है या लंबा ही चलेगा। मुझे तो नहीं लगता इसकी हालत देखकर। पता नहीं कौन सी बीमारी है इसे।" मीरा देवी गुस्से से बोली।
उनकी बात सुनकर चांदनी की मां हैरान रह गई "यह कैसी बात कर रहे हो आप! शुभ शुभ बोलो और बीमारी तो किसी को भी हो सकती है। इस पर किसका जोर।"
"अब आप मेरा मुंह मत खुलवाओ। मुझे तो लगता है यह बीमारी इसे अभी नहीं लगी बल्कि पहले से ही है ।जिसे आप लोगों ने हमसे छुपा कर इसे हमारे सिर मढ़ दिया।"
"मम्मी कैसी बात कर रही हो आप। कुछ तो सोच कर बोलो। यह लोग क्यों करेंगे ऐसा। क्यों अपनी कड़वी बातों से इन्हें और दुख पहुंचा रही हो!"
"मैं सब सही कह रही हूं और एक दिन तुझे भी मेरी बातों पर यकीन हो जाएगा।" कह वह चली गई।
चांदनी की मां और दादी तो पहले से ही अपनी बेटी की बीमारी से दुखी थे ।ऊपर से उसकी सास का यह रूप देख वह और भी चिंतित हो गए।
आकाश ने उन्हें कहा "मम्मी जी, आप मेरी मम्मी की बातों को दिल पर मत लेना। वह चांदनी के बीमार होने से चिंतित है इसलिए थोड़ा ज्यादा बोल गई वरना चांदनी से ही पूछ लो, वह उसका कितना ध्यान रखती है।" आकाश ने कह तो दिया लेकिन उसे भी पता था कि उसकी बातों में कितनी सच्चाई है।
6 दिन बीत गए थे लेकिन चांदनी की हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा था। डॉक्टर भी मर्ज समझ नहीं पा रहे थे। आकाश के बार-बार पूछने पर हमेशा यही कहते "देखिए आकाश जी हम इलाज कर रहे हैं लेकिन इनकी बीमारी कब तक ठीक होगी, कह नहीं सकते। कुछ भी बीमारी देखने में छोटी लगती है लेकिन समय लेती है। आप धैर्य रखें और उनका भी हौसला बढ़ाएं।"
जैसे जैसे दिन बीत रहे थे, चांदनी का शरीर कंकाल होता जा रहा था। आंखों के नीचे काले गड्ढे और निस्तेज चेहरा। उसके घुटनों तक लहराते बाल भी बीमारी के कारण लगातार टूट रहे थे और अब तो हाल यह था कि सिर पर बाल नाममात्र के ही बचे थे।
चांदनी की मां तो अपनी बेटी की यह हालत देख अंदर ही अंदर घुल रही थी। अपना दुख तो उसने किसी तरह पी लिया था लेकिन बेटी के जीवन में आया यह दुख उससे देखा नहीं जा रहा था। किससे अपनी मन की कहे। सास भी तो चांदनी के गम में लगभग चारपाई पर ही लग गई थी। चांदनी के सामने वह हमेशा ऐसे दिखाती जैसे कुछ हुआ ही ना हो और उसका भी हौसला बढ़ाती ।
चांदनी के मुंह पर तो बस एक ही बात थी "मां मुझे क्या हुआ है! हम घर कब जाएंगे! मैं ठीक हो जाऊंगी ना। मैं मरना नहीं चाहती!"
चांदनी की ऐसी बातें सुन उसका कलेजा छलनी हो जाता। वह हमेशा उसे ढांढस बांधते हुए यही कहते हैं "बिट्टू सुख दुख तो जीवन का हिस्सा है। देखना तू जल्दी ही सही हो जाएगी और फिर से उसी तरह चहकेगी।"
आकाश भी उसके सिर पर प्यार से हाथ रखते हुए "यही कहता मैं हूं ना तुम्हारे साथ। तुम फिकर मत करो।"
चांदनी के सास ससुर ने तो उसकी तरफ से मुंह मोड़ लिया था। अब तो वो दोनों कभी कभार ही हॉस्पिटल में देखने उसे आते हैं और जब भी आते , हमेशा दिल दुखाने वाली बातें करते ।दोनों मां बेटी को बस इस बात की तसल्ली थी कि आकाश उनके साथ है और यही उनके लिए काफी था।
लेकिन आकाश वह अपने मन की व्यथा किस से कहें। घर में जाते ही उसकी मां शुरू हो जाती
" धोखा दिया है उसने तुझे। अपने प्यार के जाल में फंसा तेरी जिंदगी बर्बाद कर दी उसने। महीना होने को आया कौन सी ऐसी बीमारी है जो समझ में नहीं आ रही है। उसके बाप को कैंसर था, उसे भी वही बीमारी है। देख लेना डॉक्टर से सांठगांठ कर रखी होगी उन्होंने। उसकी बीमारी के लक्षण देख समझ में नहीं आता क्या तुझे। वैसे तो वह ठीक होगी नहीं और हो भी गई तो फिर वह बात ना रहेगी।"
"मां क्यों दिन रात मुझे ऐसी बातें सुना परेशान करती हो। मेरे मन पर क्या बीत रही है, उसे समझने की कोशिश क्यों नहीं करती । मेरा दुख कम करने की बजाय हमेशा उसे बढ़ाने की बात करती हो। डॉक्टर ने कहा है सही हो जाएगी वह। भरोसा मुझे उन पर। वह जरूर वापस आएगी।" आकाश दुखी होते हुए बोला।
तेरे इस सीधेपन का ही तो उन्होंने फायदा उठाया है। तेरी मां हूं तेरे भले की ही सोचूंगी। उस रोगिनी के साथ जिसको ऐसी बीमारी लगी हो, कैसे पूरी उम्र निभाएगा। अगर वह वापस आती भी है तो क्या भावनाओं की सहारे पूरी जिंदगी निकाल देगा। क्या वह पति की जरूरतें पूरी कर पाएंगी। तुझे पत्नी का सुख दे पाएंगी! क्या तुझे औलाद दे पाएगी! बेटा मैंने तेरी बात हमेशा मानी है। अब तू भी मेरी सुन। इकलौता चिराग है तू इस घर का। उसे भूल जा जीवन में आगे बढ़। यही तेरे लिए और इस घर के लिए सही होगा। इसके पीछे अपनी जिंदगी बर्बाद मत कर।
रोज-रोज अपनी मां के मुंह से ऐसी बातें सुन वह भी उनकी तरह ही सोचने लगा था। उसके मन में भी कहीं ना कहीं यह विचार घर कर गया था कि हो ना हो चांदनी को यह मर्ज पहले से था। क्या ऐसी बीमार लड़की के साथ वह पूरी जिंदगी गुजार पाएगा! अभी तो जिंदगी की शुरुआत ही हुई थी और यह सब! 2 महीने ही गुजरे हैं अभी तो और जिंदगी कैसे नीरज और बेरस हो गई है। वह तो बीमार है इसलिए! और उसके साथ साथ मैं भी! क्या करूं, क्या नहीं! छोड़ दूं उसका साथ! बढ़ जाऊं आगे! लेकिन ऐसे कैसे, यह तो सही नहीं! प्यार किया है मैंने उससे! पर क्या प्यार के सहारे जिंदगी कट जाएगी। हे भगवान, कुछ समझ नहीं आ रहा। कह सिर पर हाथ रख कर बैठ गया वह।
और आज रात जब वह घर में लड़खड़ाते कदमों से आया तो मीरा देवी उसे देख दुखी हो गई और उसे संभालते हुए बोली पागल हो गया है क्या! क्यों ऐसी धोखेबाज लड़की के गम में घुले जा रहा है। शराब से तेरा गम कम ना होगा! छोड़ दे उसे और आगे की सोच!"
"मां मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। कौन सही है, कौन गलत!
मैं सोच सोच कर पागल हो जाऊंगा!" कहते कहते वह रो पड़ा।
मीरा देवी ने मन में ठान लिया था कि वह उसको चांदनी से दूर ले जाकर ही रहेगी। चाहे उसके लिए कुछ भी करना पड़े।
अगले दिन मीरा देवी हॉस्पिटल गई और चांदनी के डॉक्टर से मिल कुछ ही देर में मुस्कुराती हुई बाहर निकली और बिना उससे मिले उसका हालचाल जाने वापस आ गई।
आकाश को देख वह बोली "हॉस्पिटल जा रहा है क्या, चांदनी से मिलने! वैसे डॉक्टर क्या कहते हैं , कब तक ठीक हो जाएगी। कुछ अंदाजा है!"
"पता नहीं दो-चार दिन से मेरी डॉक्टर से इस बारे में बात नहीं हुई।"
" तो पूछ तो सही। पता तो चले कुछ सुधार हो भी रहा है या यूं ही। नहीं तो हॉस्पिटल बदल ले। "
"हॉस्पिटल बदलने से क्या होगा। मां शहर का सबसे अच्छा हॉस्पिटल है। चलो आज डॉक्टर से पूछता हूं।"
क्रमशः
सरोज ✍️