मुखौटा
मुकेश पंडया
रंगमंच पर अभिनय कला मे अभिनय सहित जरूरी संगीत,गायन,नृत्य,रंगमंच सज्जा,श्रृंगार,परिधान आदी जैसी विविध कलाओं के साथ साथ मुखौटा बनाने की कला भी सिखाई जाती है।मुखौटा नाट्याचार्य भरतमुनि द्वारा निर्देशित अभिनय के नै रस सहित विविध भावों और मुद्राओं को प्रदर्शित करता है। अभिनय प्रशिक्षण के दौरान एक दिवस हमें भी मुखौटा बनाने का हुनर सिखाया गया और साथ में नाटक में अभिनय में मुखौटे का क्या संदर्भ है उसकी भी हमें जानकारी दी गई। मुखौटे वैसे तो कागज,गुब्बारा और गौद अर्थात गुंदर द्वारा बनाये जाते है परंतु लकड़ी के साथ साथ मिट्टी,धातु और प्लास्टिक के सजावटी मुखौटों का भी आज बाजार में प्रचलन है। मुखौटे देश,देशकाल तथा देश की संस्कृति का भी वहन करते है। धार्मिक, सामाजिक, राजकीय पात्रों को तथा समयकाल को जीवंत करने में भी मुखौटे अहम भूमिका निभाते हैं। आदमी अपने भावों को छुपाने के लिए भी समय और मतलब के हिसाब से मुखौटे का उपयोग-दुरपयोग कर लेता है। सेशन पूर्ण होने के पश्च्यात हमारे गुरूजी ने सभी कलाकारों को दो दिवस में मुखौटा बना कर प्रस्तुत करने का हमें आदेश दिया। तीन दिवस बाद हम सभी कलाकार अपने अपने मुखौटे के साथ उपस्थित हुए।हमें अपने अपने मुखौटे की प्रस्तुति के समय मुखौटे की बनावट,उसके पीछे का सच,उसका अर्थ,संदर्भ बताना जरूरी था। सभी कलाकार बारी बारी मुखौटा बनाने का कारण,इतिहास,संदर्भ,उसके दिखावे और भाव के विषय में समझा रहे थे।मैंने भी मेरा वक्त आने पर मेरे मुखौटे के सांदर्भीक सभी बातें प्रस्तुत की। यह प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद गुरूजी ने मुझे किसी भी एक मुखौटे को अपने चहेरे पर लगाने अर्थात पहनने के लिए कहा।मैंने गुरुजी की आज्ञा का पालन करते हुए एक मुखौटा अपने चहेरे पर लगा लिया।फिर गुरूजी उस मुखौटे की बनावट की खूबीयाँ और खामियाँ बताने लगे।कुछ समय बाद गुरूजीने मुझे दुसरा मुखौटा चहेरे पर लगाने के लिए कहा।गुरूजी फिर उसकी भी खामियाँ और खुबीयाँ बताने लगे। इस दुसरे मुखौटे ने मुझे कुछ विचलित और आंदोलित कर दिया। गुरूजी मुज्ञे एक के बाद एक मुखौटा लगाने का आदेश देते रहे और मैं उनकी आज्ञा का पालन करता रहा।हर नया मुखौटा मुज्ञे अधिक से अधिक आंदोलित करने लगा।हर मुखौटे के बाद मेरी बैचेनी बढ़ती जा रही थी।इस प्रक्रिया से में अत्यंत परेशान हो गया था मैं उस समय की मेरी मानसिक स्थिती का में बयान नहीं कर सकता हुं। तकरीबन सभी मुखौटे अपने चहेरे पर लगा लेने के बाद अंत में गुरूजीने मेरा मुखौटा मुझे अपने चहेरे पर लगाने का आदेश दिया।आदेश सुनकर जैसे मेरे तोते उड़ने लगे परंतु गुरूजी की आज्ञा मानने के सिवाय मेरे पास कोई चारा नहीं था परंतु अब उनके आदेश का पालन करना मेरे लिए अत्यंत मुश्किल था। अंततः मैंने हिंमत बटोर कर उनकी आज्ञा का पालन करने से इनकार कर दिया।वैसे मैं भी अपने मुखौटे के बारे में गुरूजी की राय सुनना चाहता था परंतु उनकी आज्ञा का पालन करना मेरे वश में नहीं था।मुखैटोने मुझे जैसे निचोड़ कर रख दिया था।गुरूजीने मुझसे उनकी आज्ञा न मानने का कारण जानना चाहा तो मैंने कहा क्षमा करें गुरूदेव सभी के सामने इसका कारण बताना मुझे उचित नहीं लग रहा है। मेरा जवाब सुनकर गुरूजी कुछ न बोले फिर मेरे पर भावनात्मक दबाव बनाते हुए बोले “एक तरफ मुझे गुरूजी भी कहते हो और दुसरी तरफ मेरी आज्ञा का अनादर भी करते हो। जो कहना है सबके सामने ही कहना होगा।“ मैं गुरूजी की बात से खामोश हो गया।उनके आदेश और आग्रह के चलते मैंने गुरूजी से कहा “गुरूजी जो भी मुखौटा मैंने अपने चहेरे पर लगाया उसने मुझे बड़ी परेशानी में डाल दिया,हर मुखौटा मेरी परेशानी और गभराट बढ़ा रहा था और मैं उसकी जाल में उलझता जा रहा था। वे मुझे अलग दुनिया और भावो में बहा ले जाते थे।’’ “अच्छा !यदी तुम मुखौटे के भावों और द्रश्यों का अनुभव करते हो तो यह तो अच्छी बात है,यदी तुम इसका एहसास कर सकते हो तो तुम्हारा अभिनय जीवंत हो उठेगा।” “नहीं गुरूजी वह भाव नहीं थे। बिलकुल अलग भाव आते थे।’’ “तो फिर कौन से भावों मे डूबते जा रहे थे ?” गुरूजी की बात पर सब ठहाका लगाने लगे। लोगों के ठहाके पर मुझे थोड़ा गुस्सा आ गया मैंने कहा “गुरूजी मैंने जीस व्यकित का मुखौटा अपने चहेरे पर लगाया वह मुखौटा मुझे उस व्यक्ति की असलियत,उसकी फितरत बताता था।हर मुखौटा एक नई बात ले कर आता था जीसे देख-सुन कर मैं ड़रने लगा था।” मेरी बात सुनकर कमरे में सन्नाटा छा गया। कुछ क्षण पहेले मुस्कान बीखेरने वाले चहेरे अब जैसे एक दुसरे से अपना चहेरा छुपा रहे थे। “गुरूजी,मैं अपना ही मुखौटा चहेरे पर लगाने से ड़र रहा था की यदी यह मेरी असलियत बयां कर देगा तो मैं खुद को मुंह दिखाने लायक नहीं रहुंगा।मैं जीवनभर आईने में अपनी सुरत नहीं देख पाऊंगा। बस इस ड़र के कारण मैं आपकी आज्ञा का पालन करने से इन्कार कर रहा था।” मेरी सफाई सुनकर कुछ देर बाद गुरूजी बोले “बेटा जो तुमने बनाया है वह तो नकली मुखौटा है।शायद तुम्हें तुम्हारे असली मुखौटे ने परेशान कर रखा है,जो तुम्हें दुसरों के ही चित्र दिखाता है।उस मुखौटे को उतार फेंको सब अपने आप बराबर हो जायेगा। मुखौटे के पीछे की नकली दुनिया आदमी को हंमेशा परेशान करने वाली होती है, ”कहते हुए गुरूजीने मेरे सर पर हाथ रखा तो मेरा मन कुछ शांत हुआ।
**** उस मुखौटे को मैंने अपने भीतर के कमरे में लगा रखा है। मैं उसे देख कर अपने भीतर के मुखौटे के लिए सोचता रहता हुं, मैंने निश्चय किया है इस मुखौटे को अपने चहेरे पर तब ही लगाऊंगा जब कभी भारी मुश्किल या समस्या में पडुंगा,हो सकता है यह मुखौटा उस समय मुझे मेरी असलियत बता दे और उससे मेरी समस्या का निवारण हो जाए और स्वयं को बदलने का मौका मिल जाय !!!! वैसे आपकी क्या राय है ?
समाप्त