मेरी अंकू - 3 - अंतिम भाग VANDANA VANI SINGH द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मेरी अंकू - 3 - अंतिम भाग

अब बेचैनिया एसी हो गई थी हम रोज़ मिले तो भी कम था एसा कैसे जिएंगे कुछ समझ नहीं आ रहा था मै ने कंप्यूटर की पढ़ाई के बहने मिलने लगा और नजदीकियां बढ़ती रही जब मेरा ट्रैनिंग का स्थान निर्धाित हुआ 16 जून उस दिन बस ओ खुलकर रो नहीं पाई लेकिन आंसू उसकी नजरों में बने रहे वो मेरी आख़िरी मुलाक़ात थी हम घंटे भर इक दूसरे को देखते कब कॉफी काफी ठनडी हो गई हमे प पता ही नहीं चला हम बस देखते रहे एक दूसरे को। मै अगले दिन सामान लेने अपने प्रयोग जो ट्रैनिंग के लिए जरूरी था मै उसकी तयारी में लगे रहे
वो बहुत दूर था। लेकिन मुझे जाना तो था ही ये हुआ जाने से पहले मिल लेना।
लेकिन जाने की तारीख़ अचानक से आई और दूर का रास्ता था मुझे बिना मिले जाना पड़ा।
जून का गया मै दिसंबर में वापस आया तीन दिन की छुट्टी में आने में इतनी थकान हो गई थी दूसरे दिन जब मैं दोपहर में उठा तो फोन किया की मै मिल लेता हूं वो कुछ काम में थी मैं ने मै अपने काम क लेता हूं, कुछ कपड़े धुलने के लिए लाया था धुला उसके बाद मै खरीदारी करने लिए चला गया क्यो की थंड के कुछ कपड़े लेने थे खरीदारी अपने घर परिवार के साथ थोड़ा समय बिताया और दूसरे दिन जब मिले तो पहली बार था जब उसे मै ने पूरे छह महीने बाद देखा था हम दोनों जब गले मिले तो बस रोने के अलावा कुछ भी समझ नहीं आ रहा था एसा लग रहा था जैसे मेरा दिल आज के बाद ना धड़केगा, हम दोनों बहुत देर तक एक दूसरे के गले लगे रहे।
क्यो उस समय हम ये जानते थे कि अब ये आखिरी मुलाकात है।
अंकिता... अब ये प्यार ये मुलाकाते बस यही तक है
हमारे पास रोने के सिवा क्या बस रोए जा रहे थे ।
मिलकर मै वापस ट्रेनिंग के लिए चला गया, ईधर अंकिता भी अपनी जिंदगी में घुलने लगी उस लड़के से बात भी करने लगी । मै भी कोशिश में था कि भूल पऊ लेकिन मेरे दर्द की कोई थाह नहीं थी कहा जाए किसको बताए कैसे जिए किस से हाल कहे अपना किस से कहे की मेरा हृदय फटा जा रहा है, एसा लग रहा था ये जाति वाद किसने बनाया मुझे क्यो झुका दिया गया ना मेरा ट्रैनिंग में मन लगे ना ही पढ़ाई में एसे लगे सब को पीछे करके अंकिता के पास चला जाऊ एक वहीं तो है जो मेरे दर्द को समझ पाएगी मुझे सुकून देगी । लेकिन नसीब का खेल देखो हम अंकिता से दूरी करने लगे थे हम ये सोच रहे थे कि दुनिया भर की खुशियां उसे मिले उसके आने वाली जिंदगी एसी हो जिसमें सिर्फ खुशियां हो ।
आख़िर वो दिन भी आ गया जिसको सोच कर आज भी रूह में कम्पन होने लगता है हृदय आज भी उतने दर्द से भर जाता आज सादी है अंकिता की मेरे यहां ट्रेनिंग पर डी आई जी आए थे उसने हमारी पूरी टीम को दंड दिया हमे घुटनों के बल चलाया जिस से पैरो को कोहनियां कट गई लेकिन दर्द बहुत कम था मेरे लिए मेरे दिल में तो आग के सोले जल रहे थे उन दिनों को याद करके एसा लगता कैसे मै ने सह लिया । ये सब अंकिता के लिए था सादी के एक हफ़्ते बाद अंकिता का फोन आया।
अंकिता.. कैसे आप?
जिसकी एक आवाज़ मुझे ऊर्जा सी भर्ती वो आज मुझे पराई सी एहसास हो रही थी और मै अपने ह्रदय के कम्पन को खामोशी में दबाने की कोशिश में था।
अरुण.. मै ठीक हूं! तुम कैसी हो
अंकिता..मै भी ठीक हूं।
उसने मुझे बताया कि परिवार में कम लोग है पति जी भी अच्छे है मुझे इस बात का सुकून था कि अंकिता अपनी लाइफ में तो अच्छी उस की ख़ुशी मेरे लिए मरहम बन गई।
लेकिन मै ने उस से कभी ना बात करने की ठानी और नम्बर भी अपने फोन से हटा दिया जिस से मै कभी उसको कभी फोन ना कर पाऊं
वक्त सारे ज़ख्मों को भर देता मेरा भी ज़ख्म भरने लगा।
अंकिता ...
मै अंकिता मुझे आप पहले भी जान चुके लेकिन यहां मै अपने दिल की बाते मै ने वरुण को कितना प्यार और किन प्रस्थित में किया आपको प पता चलेगा ।
वरुण मेरी दोस्त उर्मी का दोस्त था मेरी पहली मुाक़ात जब वो पहली बार मेरे विद्यालय में झगड़ा किया था मुझे बुरा लगा कितना घमंड एसा कोन होता हमारी थोड़ी बहस भी हुई।
उस बीच मै किसी और के साथ प्यार में थी मुझे ज्यादा कुछ सोचने का अवसर ना मिला लेकिन जिस इंसान से मुझे प्यार था वो मेरी सोच से बहुत परे था जिस कारण मेरा अलगाव हो गया जब ये बात उर्मी ने अरुण को बताई तो उसका फोन आया मेरे पास उसने मुझे बहुत समझने कि कोशिश की, पहली बार मुझे लगा कि अरुण के बारे में मै कितना गलत थी मुझे टूटे हुए रिश्ते जो भी दर्द मिला था वो अरुण से कम होता था इस तरह से मेरी वरुण से बात होने लगी । देखने में भी वरुण काफी अच्छे दिखते हैं और सोभव भी मेरे अनुकूल सा हो रहा था वो मेरे गुस्से मेरे मस्ती मेरी हर ख्वाहिश को कितने अच्छे स समझ लेता ये सब बाते मुझे वरुण के करीब कर रही थी लेकिन कभी एसा हुआ की किसी लड़की अपने दिल की सारी बाते शब्दों में कही हो तो मै कैसे कह देती मै तो पहले भी इस प्यार में हारी थी मेरे लिए तो वरुण मुझे से बात कर ले यही बहुत है।
जब एक दिन उसने अपने दिल कि बात मुझ से कह दिया , तब भी उसका जवाब देना मेरे बस में नहीं था मुझे उस के साथ और समय चाहिए एस लिए मै ने हा और ना में कोई जवाब नहीं दिया। मगर मेरे भी दिल जगह बन गई वरुण के लिए बस इतना जानना था मुझे की ये प्यार ही है वरुण का या कुछ और और इस कारण मै ने अपने दिल की बात छुपा ली।
लेकिन प्यार तो महसूस होता एक खुशबू के जैसे जो आंखो से लबो से आवाज़ बन कर निकलता है।
मेरी बेचानिया मुझे संभालने ना दे रही थी मुझे कहना पड़ा मुझे भी प्यार है वरुण तुम से बड़ी रात थी मुझे बात करना था लेकिन इतनी ख़ुशी होने के कारण मुझे सुबह तक का इंतजार करने को कहा फिर जब रात को उसने फिर वापस फोन किया तो मै सो गई थी । सुबह हम मिलने को तय किए और मिले भी इस तरह जब सम्भव हो हम मिले सबकुछ अच्छा चल रहा था। मेरी मम्मी बीमार हो गई बड़ा परेशान रहने लगी लेकिन हर परेशानी में वरुण मेरा बराबर का भागीदार होता मेरी मम्मी के ना रहने के बाद भी उसने कितनी हसानी से मुझे सम्भाल लिया लेकिन मेरे दुख कम ना हुए कुछ महीने बाद ही पापा भी नहीं रहे । मेरे सिर मम्मी पापा दोनों का हाथ हट गया जो भी था वो वरुण थे जिसके साथ मै पूरी जिंदगी बिताना चाहती थी लेकिन हमारे घर वाले नहीं माने हम दोनों ने समझता कर लिया कहते की एक इस्त्री में दर्द सहने की ज्यादा ताकत होती वो ताकत मुझ में उमड़ आई थी मैं सब सहने के लिए तयार थी वो वरुण से दूरी हो या कुछ और , लेकिन दर्द में आंसू ही साथ देते और मेरे आंसू ने मुझे मजबूत बना दिया और हम दूर होने लगे वरुण से उसकी नौकरी और ट्रैनिंग दोनों की ख़ुशी भी थी और दुःख भी क्यो की हमारे सपने टूट चुके थे।
मुझे इतनी हिम्मत ना होती अगर वरुण ने इतना प्यार ना किया होता अब तो बस इतना चाहती जैसे मै ने प्यार निभाया है वैसे ही अपनी सादी के रिश्ते को निभा सकू अभी ज्यादा दिन ना हुए है लेकिन परिवार अच्छा है तो रहने में आसानी होती लेकिन कोई कैसे भूल सकता जिसे दिलो जान से चाहा हो। लेकिन अब यही पर सब ख़तम हो गया।


समाप्त