एक उम्मीद - भाग - 2 Neha Awasthi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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एक उम्मीद - भाग - 2

अभी तक कहानी में आपने देखा है कि उसकी सास और ससुर का ही जिक्र है पर बेटे का नहीं क्योंकि उनका बेटा बस अपनी मां के इशारे पर चलता है, उसमें अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करने की छमता नहीं है । (शायद उसकी कुछ गलत कमियों की वजह से ही वो रिश्ते में झुक गई हो, हो सकता है ऐसा भी)।
आगे कहानी पर आते हैं, देखते हैं क्या होता है ।
धीरे-धीरे सारे रिश्तेदार अपने-अपने घर जाने लगते हैं और कविता की जिंदगी थोड़ा आसान होने लगती है । शादी की भागम भाग खत्म हो गई होती है । उसे उनके घर को समझने में ज्यादा वक्त नहीं लगा वह उसमें खुद को ढाल रही थी ।
एक महीना तो उसका बड़े ही आराम और प्यार से कट जाता है । पग फेरे की रस्म होती है । घर पहुंचते ही मां को सारी बातें बड़ी खुशी से बताती है, तो उसके घर वाले भी उस की खुशी देखकर संतुष्ट हो जाते हैं । पर आने वाले समय से सब अंजान होते हैं । वो वापस अपनी ससुराल आती है और वहां शुरू होता है उसकी मुश्किलों का दौर । उसके बाद हर रंग उसको बदला नजर आता है । पती का हर बात पर चिल्लाना, हाथ उठाना, गाली देना और भी बहुत कुछ । वो ये सब देखकर परेशान हो जाती है पर खुद को संभालती है और उसमें भी उनका प्यार देखकर बात छोड़ देती है । लेकिन अब तो घर में हर किसी के ताने शुरु हो चुके थे । सब उसे दहेज के लिए परेशान करते थे और ताना देते थे कि तू अपने घर से लायी ही क्या है । वो यह सब सहन करती रही और यह नज़ारा अब रोज की आदत बन चुका था । उसे अब इस घर में घुटन होंने लगी थी पर वह करती भी तो क्या क्योंकि मायके वालों के सामने सब कुछ अच्छा था तो वो उन्हें परेशान भी नहीं करना चाहती थी और इधर उस पर दबाव बन रहा था कि वह मायके वालों से पैसे ले ।
यह हाल चलता रहा, उसकी हालत दिन पर दिन बदतर होती जा रही थी । उसके चेहरे से मुस्कान उड़ती जा रहा थी । वह हर दिन इसी सोच में पड़ी रहती कि वो इस घर से कैसे बाहर निकले । वह अपनी जिंदगी से थक चुकी थी, हार चुकी थी वह अब जीना नहीं चाहती थी । एक दिन ऐसे ही उसकी नजर टेबल पर रखे न्यूज़पेपर पर पड़ती है । उसमें इंटरनेशनल पोयम कंपटीशन के बारे में ऐड दिया होता है, जिसका प्राइज भी बहुत अच्छा होता है जिसकी पोयम को फर्स्ट प्राइज मिलेगा उसे प्रेसिडेंट से अवार्ड मिलना होता है । जिसे पढ़कर उसे अपनी लेखन कला की याद आती है और वह अपनी डायरी लेकर पुरानी कविताओं में खो जाती है । उसे इस नर्क भरी जिंदगी से बाहर निकलने की एक उम्मीद मिल जाती है, जिसे वह किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती थी । और वह सोचने लगती है कि ऐसी कविता क्या लिखूँ जिससे मैं प्राइज जीत सकूँ । इस बारे में वह अपनी बहन स्नेहा को बताती है, तो वह उसकी मदद करती है । और कविता बिना बताए इस कंपटीशन में पार्टिसिपेट करने का सोचती है । बाद में उसे ख्याल आता है कि वह क्यों ना अपनी ही जिंदगी पर एक खूबसूरत कविता लिखे और होता भी ऐसा ही है वह इतनी खूबसूरत कविता लिखती है और बिना किसी परिणाम की परवाह किए उसे अपनी बहन स्नेहा से उस एड्रेस पर पोस्ट करवा देती है । बस अब वह अपनी जिंदगी जीना चाहती है और अपनी घुटन भरी जिंदगी में फिर से मुस्कुराने की कोशिश करने लगती है । कुछ माह बाद उसके मायके में एक लैटर आता है । जो उसी कंपटीशन का रिजल्ट होता है जिसे सुनकर उसकी जिंदगी बदल जाती है । उसकी पोयम को फ़र्स्ट प्राइज अवार्ड के लिए सिलेक्ट किया जाता है और उसे 5 दिन में दिल्ली बुलाया गया होता है । वह अपना सामान लेकर मायके जाती है और वहीं से बिना बताए दिल्ली चली जाती है । अगले दिन वह national tv पर सबके सामने प्राइज लेती है । उसी वक्त वह मन ही मन में फैसला लेती है कि वह अब अपनी जिंदगी में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखेगी और अपनी जिंदगी को एक खूबसूरत लम्हे की तरह जियेगी ।
कविता के साथ जो हुआ अगर उसमें उसे कोई उम्मीद ना मिलती तो पता नहीं उसकी जिंदगी के साथ क्या हुआ होता । उसने अपनी लेखन शक्ती को पहचाना और उससे उम्मीद जागी । जिससे वह अपनी जिंदगी बदलने में भी सफल रही । इसी तरह हमें अपने अंदर की शक्ति को कभी नहीं भूलना चाहिए । वह शक्ति ही हममें एक उम्मीद जगाती है ।