आभास - 2 Priya Saini द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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आभास - 2

वक़्त बीतने लगा तो हमनें सोचा कि जब तक स्वेता नहीं आती हम अपने डायलॉग की रिहर्सल करते हैं। हम हँसी मजाक करते हुए अपने डायलॉग की रिहर्सल करने लगे। तभी स्वेता का फोन आया, उसने बताया वह अपने घर में किसी काम में उलझी हुई है तो वह रिहर्सल के लिए नहीं आ सकती। ये सुनकर रानी और मैं निराश हो गए पर हम कर भी क्या सकते थे। फिर हम अकेले जितनी रिहर्सल कर सकते थे वह हमनें की।

रिहर्सल भी पूरी हो गई थी परन्तु अभी मेरे भाई लेने नहीं आये थे तो रानी मुझे अपना घर दिखाने लगी। उसका घर मुझे बहुत पसंद आ रहा था क्योंकि वहाँ खेलने के लिये अच्छी जगह मिल रही थी। घर देखते हुए हम रानी की छत पर पहुँचे। जैसे जैसे हम उसकी छत की तरफ बढ़ रहे थे मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मैं पहले भी यहाँ आ चुकी हूँ। जैसे-जैसे मैं आगे बढ़ रही थी आगे आने वाली जगह की छवि मेरे मस्तिष्क में पहले से आ रही थी और वास्तविक में जगह भी बिल्कुल वैसी ही थी।
जिस तरह किसी फिल्म में पुनर्जन्म के बाद हीरो को वहाँ पहुँच कर धुँधला सा याद आने लगता है। मुझे बिल्कुल वैसा तो नहीं लग रहा था पर हाँ, मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मैं पहले भी वहाँ गई हूँ। उस स्थान को मैनें पहले भी देखा है। हूबहू वही जगह, उसी जगह सीढ़िया सब कुछ देखा हुआ। मैनें रानी को बोला, "मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं इस स्थान को जानती हूँ।" यह सुनकर वह हँसने लगी। मैनें उसे समझाने की कोशिश भी की परन्तु उसके लिए ये बस एक मजाक था। फिर उससे मैनें इस बात का जिक्र नहीं किया।
दिन का वक़्त था धूप तेज होने के कारण हम जल्दी नीचे उतर आए। कुछ ही देर में मेरे भाई भी मुझे लेने आ गए। मैं रानी के घर से तो चली आई पर ये बात मेरे मस्तिष्क में घर कर गई। मैं सोचती रहती कि कब और कहाँ मैनें उस स्थान को देखा था। धुँधला सा था सब पर मैंनें देखा था परन्तु कभी समझ ही नहीं आया, कहाँ। इस बात पर कोई यकीन नहीं करता इसीलिए मैनें इसका जिक्र भी किसी से नहीं किया।
उस बात को तो सालों बीत गये पर आज भी मुझे बहुत बार ऐसा आभास होता है कि जो मैं बोल रही हूँ, ऐसा मैनें पहले भी बोला है और आस पास के व्यक्ति अब ये करने या ये बोलने वाले हैं। सच कहूँ तो थोड़ा डर भी लगता है क्योंकि जो मस्तिष्क में आता है वह नकारात्मक ही होता है जैसे मुझे डाँट पड़ रही हो या पड़ने वाली हो, परिस्थिति खराब होने जैसा प्रतीत होता है पर शुकर इस बात का है कि अभी तक वास्तविकता में इसका कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं हुआ है। ऐसा लगता है जैसे होनी टल गई हो।
कुछ घटना बहुत मामूली सी जान पड़ती है पर प्रभाव अपना ज़िन्दगीभर के लिए छोड़ जाती हैं। मुझे भी कहाँ पता था वह छोटी सी घटना मेरे जहन में इस क़दर समा जायेगी। सच है या वहम ये तो नहीं कह सकती पर हाँ आभास मुझे आज भी होते हैं।