शोर... एक प्रेमकहानी - 4 अर्चना यादव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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शोर... एक प्रेमकहानी - 4

पुलिस ने अच्छे से समझाया उनके इस तरह समझाने से ऐसा लग रहा है की वो सुलह की आड़ में ये चाहते हैं की नरेन्द्र भी अब केस ना करे जो मम्मी के एक्सीडेंट के बाद से वो सोच रहा है करने के लिए. नरेन्द्र भी समझ गया था की ये सब उसी के लिए जाल बुना गया है. वो भी बस हां हां करता रहा क्यों की दूसरा रास्ता अब नहीं बचा है.

खबर मिलते ही उसके दोस्त भी पुलिस स्टेशन पहुंच गये. वहाँ से निकलने के बाद वो काफी देर तक उनके साथ ही रहा. उस दिन उसने शराब भी पी थी इसलिए उसके दोस्त उसे घर तक छोड़ने आये थे. श्यामली अपनी खिड़की से देख रही थी की अब तक नहीं आया क्या हुआ होगा अगर जेल हो गयी तो निकलना मुश्किल हो जायेगा. जब नरेन्द्र को देखती है तो खुश हो जाती है. आवेश में नीचे दौड़ती है उसे गले से लगाने को लेकिन जब गेट से बाहर पैर निकालती है तो खुद ही रुक जाती है बस उसे देखती रह जाती है.

इसके बाद अब लगभग सब नार्मल हो गया है एक महीने से ज्यादा का समय बीत चुका उस घटना को. लेकिन श्यामली नोटिश करती की नरेन्द्र अब ज्यादातर खिड़की की ही तरफ देखता है. जब भी नरेन्द्र का अहसास होता वो खिड़की पर जाती तो नरेन्द्र उसकी तरफ ही देख रहा होता. अब वो उसकी तरफ देख ही नहीं पाती थी क्यों की अब हमेशा नरेन्द्र देखता मिलता उसे. वो अब अनायास ही खुश रहने लगी खुद का ध्यान भी रखने लगी जब की अब भी नरेन्द्र उसे देख नहीं पा रहा था. अब भी नरेन्द्र की किस्मत में हिलता हुआ पर्दा ही था कभी कभी एकाध झलक मिल जाती थी.

श्यामली तेज़ के साथ अस्पताल गयी है उसे सीजनल बुखार है. वापस लौटते समय तेज़ का फोन बजने लगा उसने रिसीव किया तो पता चला की धंधे में कोई लफडा हो गया है. वो जाना नहीं चाहता था लेकिन बार बार काल आने के बाद जाना पड़ा. उसने तो चाहा था की रिक्सा में बैठा के जाय लेकिन श्यामली बोली- भाई मैं चली जाउंगी आप जाओ.

श्यामली रिक्से का इंतजार कर रही है अचानक से नरेन्द्र सामने से आता है. वो देखते ही शॉक हो जाती है. धड़कने रफ्तार पकड़ लेती हैं वो पलट जाती है फिर धीरे धीरे आगे बढ़ने लगती है. नरेन्द्र पास आकर बाइक रोक देता है. आज पहली बार वो देखता है श्यामली को करीब से सांवला रंग लेकिन गजब की खूबसूरत. काली बड़ी आँखें और उसकी मुस्कान किसी को भी दीवाना कर दे. घर जा रही हो .... मैं भी घर ही जा रहा हूँ चलो छोड़ दूंगा. नो थैंक्स मैं चली जाउंगी ऑटो से... लेकिन नरेन्द्र नहीं माना और श्यामली भी ज्यादा इंकार नहीं कर पाई.

रास्ते में ज्यादा बात नहीं हुयी लेकिन बाइक से उतरते ही नरेन्द्र ने अपना विजिटिंग कार्ड दे दिया ये कहते हुए मैं तुमसे बात करना चाहता हूँ और तुम्हारे कॉल का इंतजार रहेगा. घर आने के बाद श्यामली सोचती रही कॉल करूं या नहीं फिर कॉल मिला ही देती है लेकिन रिंग होने से पहले कट कर देती है. लेकिन इधर नरेन्द्र भी इसी इंतजार में बैठा है की अब कॉल आया अब कॉल आया. जब मिस कॉल होती है तो तुरंत कॉल मिला देता है. फिर बातों का सिलसिला शुरू हो जाता है.

बातों बातों में श्यामली बताती है की उसने मास्टर्स कर लिया है. वो गवर्नमेंट जॉब की तैयारी करना चाहती है लेकिन भाई कहते हैं की शादी के बाद करना जो हसबैंड करने देगा तो यहाँ रहते हुए जॉब करूं भाई को पसंद नहीं. तेज़ को ये भी नही पसंद की वो घर से बाहर निकले. जब बहुत जरूरी होता है तभी घर से बाहर निकलती है. अब तो घर से बाहर निकलने से डर लगता है नरेन्द्र पूछता है किस बात का डर तो बताती है बाहर बहुत शोर है बाहर और मुझे शोर से डर लगता है.