सुहाना सफर बाली का Uddhav Bhaiwal द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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सुहाना सफर बाली का

उद्धव भयवाल

औरंगाबाद

सुहाना सफर बाली का

मेरे छोटे दोस्तों,

आज मैं तुम्हें इंडोनेशिया इस मनोरम देश में स्थित एक मनोरम जगह का सफर कराऊंगा|

कई दिनों से मैं बाली तथा पुरे इंडोनेशिया के प्राकृतिक सौन्दर्य के विषय में सुनता आ रहा था| इसलिए वहाँ जाने का बड़ा मन कर रहा था| मेरी यह इच्छा हाल ही में सम्पन्न हुई| मैं तथा मेरी धर्मपत्नी निर्मला एक समूह के साथ औरंगाबाद के ‘हेरम्ब ट्रैव्हल्स’ नामक टूर कम्पनी के द्वारा आयोजित सफर पर चल पड़े| ६ सितम्बर से १३ सितम्बर तक के सात दिनों में हम लोग जकार्ता एवं बाली का सफर कर आए|

इस पुरे सफर के दौरान ‘हेरम्ब’ ने रहने-खाने की अच्छी व्यवस्था की थी| विशेष बात यह, कि सारी जगहों पर हम भारतीय भोजन का आस्वाद ले पाए|

६ सितम्बर की रात ग्यारह बजे मुम्बई के आंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे से इंडोनेशिया के ‘गरुडा’ हवाई जहाज़ ने बैंकाक से होते हुए जकार्ता जाने के लिए उड़ान भरी और हम सारे लोग आतुरता से जकार्ता पहुँचने की राह देखने लगे|

दोस्तों, जकार्ता यह शहर इंडोनेशिया की राजधानी है, यह शायद तुम सभी जानते होंगे| जकार्ता से पहले बैंकाक हवाईअड्डे पर हमारा हवाई जहाज़ एक घंटा रुका| वहाँ हम सब यात्रियों की कड़ी सुरक्षा जाँच की गई|

बैंकाक से निकलकर हम सात तारीख को जकार्ता के स्थानीय समयानुसार सुबह दस बजे जकार्ता हवाईअड्डे पर पहुँचे| हवाईअड्डे की सारी आवश्यक गतिविधियाँ पूरी करने के पश्चात् दोपहर लगभग पौने बारा बजे बस से रेस्तरां की ओर चल दिए| साढ़े बारा बजे हम ‘होटल गणेशा’ नामक रेस्तरां जा पहुँचे| दोपहर का भोजन कर हम साढ़े तिन बजे रात्रि को ठहरने हेतु ‘निओ होटल’ आए|

दुसरे दिन, अर्थात ८ तारीख को, सवेरे होटल में नाश्ता पूरा कर हम आठ बजे इंडोनेशिया का सब से पुरातन बंदर 'सुंदा केलेपा' देखने हेतु बस से निकल पड़े|

सुंदा केलेपा यह प्राचीन बंदर लकड़ी की विशाल नौकाओं के लिए विख्यात है| वहाँ ऐसी ही एक नौका के निकट हम ने फ़ोटो खींचे, वह बहुत ही मज़ेदार अनुभव था| कई लोग तो नौका से सटकर खड़े हुए तथा सेल्फी खींचने लगे|

वहाँ से हम 'तमन मिनी इंडोनेशिया पार्क' देखने गए| मेरे बालमित्रों, इंडोनेशिया की समृद्ध कलात्मक एवं सांस्कृतिक विविधता का प्रतिबिम्ब इस जगह हम देख सकते हैं|

इस उपरान्त हम ने इंडोनेशिया का सर्वाधिक बड़ा एवं अत्याधुनिक बंदर, ‘अंचोल’ देखा| फिर दोपहर होटल गणेशा में भोजन कर हम ने जकार्ता के विख्यात नैशनल म्यूजियम एवं राष्ट्रीय स्मारक को भेंट दी|

नैशनल म्यूजियम को पुरातत्वशास्त्रीय, वंशशास्त्रीय, ऐतिहासिक तथा भौगोलिक महत्त्व है| जकार्ता के मध्यवर्ती परिसर में स्थित राष्ट्रीय स्मारक १३२ मीटर ऊँचा है, और इंडोनेशिया के स्वतंत्रता संग्राम की याद निरंतर दिलाता रहता है|

दोस्तों, जकार्ता शहर के रस्तों पर हमेशा भीडभाड लगी रहती है| शाम को ट्रैफ़िक जाम के कारण हमारी बस ने केवल सात किलोमीटर की दूरी तय कर ‘रायल किचन’ नामक रेस्तरां पहुँचने के लिए पूरा सवा घंटा लिया; है न मज़े की बात? ‘रायल किचन’ में रात का खाना खाने के पश्चात् रात सवा दस बजे हम लोग अपने होटल पहुँचे|

९ सितम्बर की सुबह होटल में नाश्ता कर ७.५० बजे सारा सामान समेटकर हमने होटल छोड़ा और लगभग साढ़े आठ बजे जकार्ता के हवाईअड्डे आ पहुँचे| हवाईअड्डे पर आवश्यक गतिविधियाँ पूर्ण कर हम बाली जाने के लिए तैयार हो गए| ११.३५ बजे हवाई जहाज़ ने बाली की ओर उड़ान भरी और बाली के स्थानीय समयानुसार दोपहर २.४० बजे हम बाली के हवाईअड्डे पर उतरे| हेरम्ब ट्रैव्हल्स के स्थानीय प्रतिनिधि ने समूह के हर मनुष्य के गले में चंपा का हार पहनाकर हमारा स्वागत किया| यह अनुभव हम सब के लिए नया था|

बालमित्रों, परदेस में अनजान जगह यदि कोई हार वगैरह पहनाकर अपनेपन से आवभगत करे, तो ख़ुशी तो होती है न?

बाली के हवाईअड्डे से हम दोपहर लगभग पौने चार बजे एक रेस्तरां गए और खाना खाकर पाँच बजे क्रूज़ की ओर चल दिए| मित्रों, क्या तुम जानते हो क्रूज क्या होता है? क्रूज़ एक विशाल नौका होती है, जिसका समंदर पर्यटनहेतु प्रयोग किया जाता है| शाम छह से लेकर साढ़े आठ बजे तक उस नौका पर हमने कई मनोरंजक कार्यक्रमों का तथा भोजन का आस्वाद लिया और रात के विश्रामहेतु रात सवा नौ बजे ‘होटल अस्टोन कुटा’ नामक होटल पहुँचे|

दुसरे दिन, अर्थात दस तारीख को, होटल में नाश्ता कर हम घूमने निकले|

बालमित्रों, बाली विख्यात है तरह-तरह के नमूनों के चांदी के आभूषण तथा लकड़ी की कारागिरी के लिए| जहाँ चांदी ने आभूषण बनाए जाते हैं, वह कारखाना हम ने देखा| कई कारीगर वहाँ चांदी के सुंदर-सुंदर गहने बना रहा थे| उन्हें देखना अत्यधिक आनंददायक था| वहाँ के चांदी के आभूषणों का विशाल शोरूम हम ने देखा| लकड़ी की नक्काशी एवं बारीक़ कारीगरी ने हम सब को चौंका दिया|

दोपहर को हम ने ‘किंतामनी ज्वालामुखी’ नामक जागृत ज्वालामुखी देखी| इसे ‘माउन्ट बाटूर’ भी कहा जाता है| यह बाली का लोकप्रिय पर्यटन स्थान है| उस का समीपवर्ती बाटूर तालाब भी हम ने देखा| बाटूर पर्वत शृंखला से घिरा हुआ यह बाटूर तालाब पर्यटकों का आकर्षण केंद्र है|

यहाँ से निकलकर शाम पौने पाँच बजे हम 'तीर्थ एम्प्युल मंदिर', अर्थात पवित्र झरनों का मंदिर देखने गए| यहाँ हर स्त्री-पुरुष को लुंगी पहनना अनिवार्य है| इसलिए वहाँ सब को लुंगी दी जाती है| यहाँ पवित्र कुण्ड में स्नान कर के पिंडदान तथा अन्य धार्मिक विधि करते हुए कई लोग दिखाई दिए|

दूसरे दिन, अर्थात ११ सितम्बर को, होटल में नाश्ता कर हम लगभग साढ़े नौ बजे तांजुंग बेनॉ बीच की ओर चल पड़े| बीच पर हम सब ने 'बनाना बोट राईड' का आनंद लिया| किसी ने पैरासेलिंग की तो किसी ने स्कुबा डायव्हिंग की| इस प्रकार तरह-तरह की जलक्रीडाओं का आनंद हम ने लिया|

दोपहर लगभग ढ़ाई बजे वहाँ से हम बाली के विख्यात ‘उलूवाटू’ मंदिर के लिए निकल पड़े| वहाँ हम साढ़े तिन बजे पहुँचे| यह मंदिर बाली के छह प्रमुख मंदिरों में एक है| इसे आध्यात्मिक केंद्र माना जाता है| यहाँ भी हर स्त्री-पुरुष को मंदिर प्रवेश के पूर्व लुंगी पहनना अनिवार्य आहे| वहाँ थोड़ी देर रुककर लगभग साढ़े चार बजे हम लोग निकट के विख्यात ‘लुवाक काफी प्लैन्टेशन’ जा पहुँचे| काफी के बागान देखते हुए और वहाँ के कर्मचारीयों द्वारा बनाकर दी गई अलग-अलग तरह की काफी एवं चाय की चुस्कियाँ लेते हुए कुछ देर तक हम वहीं घूमते रहे|

दूसरे दिन, अर्थात बारह तारीख को नाश्ता करने के पश्चात् लगभग दस बजे हिन्दी महासागर स्थित एक चट्टान पर खड़े ‘तानाह लाट’ मंदिर की ओर निकल पड़े| समंदर में ज्वार चढ़ा था| इसलिए गहरे पानी से होते हुए मंदिर तक हम चलकर गए| गरुड़ के मुख से निकलती पानी की धारा वहाँ का प्रमुख आकर्षण है| समंदर किनारे स्थित व्ह्यु पाइंट पर खड़े होकर चट्टानों से टकराती लहरे देखना यह एक अद्भुत अनुभव था|

१३ सितम्बर था इस यात्रा का अंतिम दिन| सुबह साढ़े छह बजे ही होटल में नाश्ता तैयार रखा गया था| नाश्ता कर, सारा सामान लेकर लगभग साढ़े सात बजे होटल छोड़ कर हम दस मिनटों में बाली के डेनपसार हवाईअड्डे पहुँचे| तुरंत सारी आवश्यक गतिविधियाँ पूरी कर हम जकार्ता जाने वाले हवाई जहाज़ की राह देखने लगे| साढ़े दस बजे हवाई जहाज़ ने उड़ान भरी और जकार्ता के स्थानीय समयानुसार हम साढ़े ग्यारह बजे जकार्ता पहुँचे|

वहाँ से १२.४५ बजे दूसरे हवाई जहाज़ से बैंकाक होते हुए हम मुम्बई के लिए चल पड़े| पौने चार बजे हवाई जहाज़ बैंकाक पहुँचा और वहाँ एक घंटा उसने विश्राम किया| उस दौरान सारे यात्रियों की फिर एक बार सुरक्षा जाँच की गई| जब सवा पाँच बजे हवाई जहाज़ मुंबई के लिए निकल पड़ा, तब यात्रा समाप्त होने की भावना मन में जाग उठी| भारतीय समयानुसार रात सवा आठ बजे हम मुंबई के अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे पहुँचे और हमारी यात्रा का पूर्णविराम हुआ|

बालमित्रों, बाली का यह सफ़र तुम्हें पसंद आया न?

उद्धव भयवाल

१९, शांतीनाथ हाऊसिंग सोसायटी

गादिया विहार रोड

शहानूरवाडी

औरंगाबाद ४३१००९

मो: ८८८८९२५४८८