शादी की तारीख तय होते ही दोनों घरों में शादी की तैयारियां होनी शुरू हो गई थी। आकाश की मां के अरमान तो बहुत थे कि उसकी भी बहू दूसरी बहुओं की तरह उसके लिए गहने व खूब सुंदर कपड़े लत्ते लेकर आए, साथ ही मोटा दहेज।
चांदनी के घर की हालत देखकर उसे लग नहीं रहा था कि वहां से ऐसा कुछ आने वाला है। खुलकर वह कुछ कह नहीं सकती थी क्योंकि उसे अपने बेटे के नाराज होने का डर था। फिर भी बातों ही बातों में उसने आकाश और उसके पापा के सामने अपनी बात रखते हुए कहा
"देखो आकाश इतना तो तुम्हें पता है कि हमारे और चांदनी के घर के हालात में जमीन आसमान का अंतर है। मेरी बात का बुरा मत मानना लेकिन एक बात कहना चाहती हूं कि मैंने तुम्हारी खुशी के लिए हां कर दी है और हमें उनसे कुछ चाहिए भी नहीं लेकिन बेटा जिस समाज में हम उठते बैठते हैं और जिस प्रकार का हमारे यहां शादी ब्याह में चलन हैं ,उतना तो हम उनसे अपेक्षा कर सकते हैं ना!"
"मैं आपकी बात समझा नहीं मम्मी आप क्या कहना चाहते हो!"
"मैं बस इतना ही कहना चाहती हूं कि तुम उनसे यह कहो कि बारातियों की खातिरदारी का इंतजाम हमारे हिसाब से हो और उनके यहां से जो रिश्तेदारों के कपड़े वह भी थोड़े ढंग के होने चाहिए। जिससे समाज में हमारी जग हंसाई ना हो।"
"मम्मी कैसी बात कर रही हो आप। मुझे दुनियादारी का इतना ज्ञान नहीं फिर भी मैं इतना तो समझता हूं कि लड़की के मां-बाप अपनी हैसियत से बढ़कर उसकी शादी में सब इंतजाम करते हैं। तो क्या अच्छा लगेगा अपने मुंह से कहकर उन्हें और परेशान करना। जहां तक लेने देने की बात है, हमारे रिश्तेदार हैं। हम उन्हें देंगे अपने हिसाब से ना कि , लड़की वालों से अपेक्षा करें। मम्मी प्लीज आगे से ऐसी छोटी सोच वाली बात कर मेरा दिल मत दुखाना। बहुत इज्जत करता हूं मैं आपकी।"
आकाश की मम्मी को बुरा तो बहुत लगा लेकिन आकाश के आगे उसकी एक ना चल पा रही थी।
उधर चांदनी की मम्मी अपने बड़ों से सलाह ले हर छोटी बात का ध्यान रख रही थी। जिससे कि शादी वाले दिन किसी तरह की परेशानी ना हो। अपनी ओर से तो वह हैसियत से बढ़कर ही खर्च रही थी कि जिससे उसकी बेटी को भविष्य में किसी बात के लिए सुनना ना पड़े। चांदनी व उसकी ससुराल वालों के कपड़े लत्ते व गहने भी उसने उनके हिसाब से खरीदे थे। अपनी ओर से तो चांदनी की मम्मी ने कोई कोर कसर उठा ना रखी थी। रिश्तेदार सब सामान को देखकर खूब तारीफ कर रहे थे।
"बस इसकी ससुराल वाले को भी सब भा जाए तो मुझे तसल्ली मिले!" वह सब से यही कहती ।
आखिर शादी का दिन आ गया। रश्मि चांदनी के साथ ही थी और वही उसे तैयार करवा कर लाई थी।
वरमाला के समय जब आकाश की नजर चांदनी पर पड़ी तो वह अपलक उसे देखता ही रह गया। पीछे से उसके दोस्तों ने उसे कहा
" यार भाभी जी तेरे साथ ही जाएंगी। अभी तो वरमाला उनके गले में डाल दे फिर सारी उम्र उन्हें यूं ही निहारते रहना ।" उसकी बात सुन सभी ठहाके मार हंसने लगे और चांदनी शरमा गई।
शादी की सभी रस्में पूरी हो गई और अब चांदनी की विदाई की बेला आ गई थी। सभी परिजनों की आंखों में इस समय अपनी लाडली को विदा करते समय आंसू रोके नहीं रुक रहे थे। चांदी की मां ने किसी तरह अपनी को संभाला हुआ था । क्योंकि उन्हें मां और पिता दोनों की जिम्मेदारी निभानी थी और वह इस घड़ी में कमजोर नहीं पड़ना चाहती थी।
दादी बार-बार चांदनी को यही समझाती "बिटिया ससुराल में अब सास ससुर ही तेरे मां बाप है। उनका हर कहना मानना। छोटी-छोटी बातों को दिल से मत लगाना। समय से घर के कामों को करना। अपने मायके के संस्कारों का सदा मान सम्मान बनाए रखना। तेरे मायके की मान मर्यादा वक्षइज्जत अब तेरे ही हाथ है। उसे सदा संभाल कर रखना ।"
अपनी बेटी को विदा करते समय चांदनी की मां ने उसे गले लगाते हुए कहा "बिटिया दादी ने तुझे सब समझा ही दिया है। बस एक ही बात कहना चाहूंगी ।कुछ भी दुख तकलीफ हो अपनी मां को जरूर बताना। इस घर के दरवाजे तेरे लिए हमेशा खुले हैं, खुले रहेंगे। अपने को कभी पराया मत समझना। मन लगाकर सास ससुर की सेवा करना। अब से वही तेरे माता पिता है।"
चांदनी से तो कुछ बोला ही नहीं जा रहा था। इतने वर्षों जिस घर आंगन में वह खेली, वह अब पीछे छूट रहा था।" मां, मां कैसी रहोगी तुम मेरे बगैर! "
"तू कहीं दूर थोड़े ही जा रही है। जब तेरी याद आयेगी बुला लूंगी तुझे।" उन्होंने चांदनी के आंसू पोंछे। उसके भाई ने उसे डोली में बिठाया।
चलते हुए आकाश ने चांदनी की मां के जब पैर छुए तो उन्होंने उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा "बेटा ध्यान रखना इसका। तुम्हारे हाथों इसके जीवन की बागडोर दी है मैंने। आशा करती हूं हर सुख दुख में तुम इसके साथ रहोगे।" कह उन्होंने हाथ जोड़ दिए।
"यह क्या कर रही हो मम्मी जी आप। आज से चांदनी का हर सुख-दुख मेरा है और मैं उसे हमेशा खुश रखूंगा। वादा है मेरा आपसे।"
आज चांदनी की मुंह दिखाई की रस्म थी। सभी रिश्तेदार व अड़ोस पड़ोस की महिलाएं जो भी उसे देखती, उसकी सुंदरता की तारीफ किए बगैर ना रह पाता। मीरा दाद देनी होगी तेरे आकाश की । बिल्कुल चांद का टुकड़ा पसंद किया है इसने। सच में चांद की चांदनी है यह तो। सच चेहरे पर से तो नजर हट हीं नहीं रही। क्यों रे आकाश दिखता तो तू बड़ा सीधा सादा सा था। लेकिन निकला सबसे तेज। "
"और क्या चाची! ऐसे ही थोड़ी ना इतने दिन तक रुका था मैं। कहते हैं ना सब्र का फल मीठा होता है। देख लो मां और सुन भी लो अपने बेटे की तारीफ।"
"तेरी नहीं, तेरी बहू की कर रही है हम तो तारीफ!" चाची हंसते हुए बोली। उन सब की बातें सुन चांदनी शरमा गई।
उधर आकाश की मां दान दहेज को देखकर मुंह फुलाए घूम रही थी। जब उसकी जेठानी ने उसे ऐसे देखा तो पूछा
" क्यों मीरा ऐसे मुंह क्यों लटका रखा है तूने। देख सब बहू की इतनी तारीफ कर रहे हैं!"
"सूखी तारीफ से क्या होता है जिज्जी! यह देखो ना कपड़े और जेवर भी कितनी हल्की हैं। अभी यही औरतें इन कपड़ों को देख कितनी बातें बनाएंगी। नाक कटवा दी आकाश ने तो मेरी! ऐसे छोटे घर में रिश्ता कर।"
"इतनी परेशान क्यों हो रही है। कहीं ना कहीं तो समझौता करना पड़ता है। अरे छोटे घर से आई हैं, दब कर रहेगी तुझसे। रौब बना रहेगा तेरा। जैसे हमारे देवर पर चलता है।"
"क्या जिज्जी आप , कुछ भी ना! आकाश तो उसके खिलाफ एक बात भी नहीं सुनता!"
"अरे अभी नए-नए रंग चाव दिखाएगा। जैसे ही घर गृहस्ती के चक्रों में फंसा, सब रंग उतर जाएगा इसका।
अपना मूड ठीक कर नहीं तो सबको बातें बनाने का मौका मिल जाएगा। हां जिज्जी कह तो आप ठीक रही हो।"
रात को चांदनी अपने कमरे में आकाश का इंतजार कर रही थी। जैसे ही आकाश के आने की आहट सुनाई दी ,वह अपने आप में ही और सिमट गई । मन में मीठा सा डर व खुशी के मिले-जुले भाव उमड़ रहे थे उसके।
आकाश के दरवाजा बंद करते ही उसका दिल और जोर जोर से धड़कने लगा। आकाश उसके पास आकर बैठ गया और उसके चेहरे को अपनी हथेलियों से ऊपर उठाते हुए बोला
"सच अपने नाम को तुम सार्थक करती हो चांदनी। तुम्हारी इस मोहिनी छवि ने ही तो मुझे तुम्हारा दीवाना बना दिया था। यकीन नहीं होता आज तुम मेरे साथ हो।" कहते हुए उसने चांदनी के माथे पर अपने प्यार की मुहर लगा दी। चांदनी का चेहरा शर्म से लाल हो गया।
तुम भी कुछ कहो ना। जब से रिश्ता पक्का हुआ है, मैं तो तुम्हारी आवाज सुनने को तरस गया हूं। फोन पर भी तो तुम बात नहीं करती थी। अब तो हम एक हो गए हैं ,फिर मुझसे शर्माना कैसा। मैं भी तो सुनूं तुम मेरे बारे में क्या सोचती हो!"
चांदनी कहना तो बहुत कुछ चाहती थी लेकिन कहते हुए उसके होंठ लरज रहें थे। आकाश का स्पर्श पा उसके शरीर में सिरहन सी दौड़ गई थी। आकाश ने फिर कहा "बोलो ना! कुछ तो कहो। "
चांदनी ने शरमाते हुए कहा "मैं आपसे कितना प्रेम करती हूं शायद इसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती। यह तो समय ही आपको बताएगा और मैंने आपके बाहरी रंग रूप से नहीं आपकी आत्मा से प्रेम किया है और यही मैं आपसे चाहती हूं। सुंदरता का क्या है आज है तो कल ढल जाएगी लेकिन आत्मिक सुंदरता हमेशा बनी रहती है। "
चांदनी की बात सुन आकाश बोला "तुम्हारे रूप के साथ-साथ तुम्हारे विचार भी कितने सुंदर हैं। मुझे नहीं पता था यह चंचल सी लड़की इतनी समझदार होगी!" कहते हुए आकाश ने उसे अपनी बाहों में समेट लिया। आज दो शरीरों का नहीं आत्माओं का मधुर मिलन था। दो से एक होने का। रात की मधुर बेला में नवजीवन की एक नई शुरुआत।
क्रमशः
सरोज ✍️