तानाबाना -10 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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तानाबाना -10

10

मंगला अल्पायु में ही विधवा हो गयी थी । दो बेटियों की शादी करने के बाद जीवन थोङा सा पटरी पर आया था कि देश आजाद हो गया था । इस आजादी की हमें बहुत बङी कीमत चुकानी पङी । अंग्रेज अपना बोरिया बिस्तर बाँध कर जा चुके थे पर राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक हर मोर्चे पर हम हार गये थे लेकिन इससे भी ज्यादा यह नुक्सान व्यक्तिगत था जिसकी भरपाई होना नामुमकिन था । देश दो भागों में बँट गया । साथ ही शुरु हुआ पलायन । लोग बदहवास हुए एक सिरे से दूसरे सिरे पर भाग रहे थे जिसका बायोप्रोडक्ट थे साम्प्रदायिक दंगे । भीषण मार-काट मची थी । लोग मर रहे थे । लोग मार रहे थे । लोग लूट रहे थे । लोग लुट रहे थे । चारों ओर भूख, गरीबी और बीमारियाँ थी । हिंदू और मुसलमान दोनों मजहबों की औरतें अगवा की जा रही थी । अपनी हवस का शिकार बनाई जा रही थी । मारी जा रही थी । घरों में जबरन डाली जा रही थी ।

सतघरा भी इस जलती आग की तपिश से अछूता नहीं था । इस गाँव के लोगों की कई रिश्तेदारियों में यह भाने बीत चुके थे । डर और सहम सब पर तारी था । आज की रात भी सबने करवटें बदलते और ईश्वर को याद करते निकाली थी ।

दिन अभी निकलने की तैयारी कर रहा था । सूरज ने डरते डरते अंधेरे की चादर से बाहर मुँह निकाला ही था । चिङियाँ अपने घोंसले में बैठी उठूँ या सो जाऊँ कि कशमकश में थी । जमना ने दही बिलोने के लिए चाटी में मधानी डाली और परांत में आटा डाल गूंधने बैठी । सुरसती के पैर फिर से भारी थे । पाँचवे महीने का उतार था सो वह घिया काट रही थी पीढे पर बैठी बैठी । मंगला और लज्जा बच्चों को नहलाकर कपङे पहना रही थी और मरद काम धंधे पर जाने की तैयारी कर रहे थे । मुंशी पशुओं का दूध निकालने के लिए पशुओं के बाङे में गया हुआ अभी लौटा नहीं था कि मिल्ट्री की गाङियाँ सायरन बजाती हुई आ पहुँची ।

गाँव के चौक में गाङी रोककर फौजी अफसर ने भोंपू पर ऐलान किया – “ गाँव में रह रहे सारे हिंदु परिवार सुनो । तुम्हारे गाँव भी जल्द ही बलवइयों की जद में आनेवाले हैं । तुम सबकी जान खतरे में है । हिंदोस्तान सरकार के हुक्म से हम आप सबको लेने आए हैं । आपके पास सिर्फ दस मिनट हैं । दस मिनट के अंदर अंदर अपनेआप बाहर आकर गाङी में बैठ जाओ । हिंदोस्तान सरकार ने सब के खाने पीने और रहने का पुख्ता इंतजाम कर रखा है । जल्दी करो, नहीं तो हमें जबरदस्ती करनी पङेगी । खींच कर बाहर निकालना पङेगा । गोलियां भी चलानी पङ सकती हैं इसलिए दस मिनट बीतने से पहले सब बाहर आ जाओ “ ।

औरतें मरद जहाँ बैठे थे, जहाँ खङे थे, जङ हो गये । देस छोङना पङेगा, इसका कुछ कुछ अंदेशा तो सबको था पर इस तरह खङे पैर निकलना पङेगा । ये दिन इतनी जल्दी आ जाएगा और इस तरह, ऐसा तो किसी ने कभी सोचा भी नहीं था । बाहर लाउडस्पीकर लगातार चिल्ला रहा था । हर घर से रोने, चीखने, चिल्लाने और बैन करने की आवाजें आने लगी थी । अपना घर दुआर छोङना, वह भी सदा सदा के लिए इतना आसान कहाँ होता है जितना हाकिम समझ लेते हैं ।

फौजियों ने लोगों की बांह पकङ पकङकर घरों से बाहर निकालना शुरु किया तो सब लोग हरकत में आ गए । लज्जा और धर्मशीला ने छोटे बच्चों में से किसी को उँगली से लगाया, किसी को गोद उठाया और कपङों की छोटी छोटी गठरियां उठाए बाहर आ भीङ में खङी हो गयी । जमना ने अधबिलोया दही टोकनी में डाला और उठा लिया । कृष्ण ने अपने कपङों की संदूकङी उठा ली । प्रीतम को कुछ न सूझा तो उसने गेहूँ की बोरी उठाकर ट्रक में रख ली । बाकी सब गाँववालों का भी यही हाल था । जिसके हाथ जो लगा, जिसको जो सामान दिखाई दिया, वही लेकर चल पङा था । इतने भरे घरों में से क्या उठाएँ, कितना उठाएँ किसी को समझ ही नहीं आ रहा था । मिनटों में ही ट्रक भर गया । लोगों खासकर औरतों की सिसकियाँ सुनने लगी थी । औरतों ने घर की दहलीज पर माथा टेक कर दो बूँद आँसू गिराए । ट्रक चलने को हुआ । सबने अपनी मातृभूमि, अपने घरों, घर की दहलीज को आँसू भरी बेबस आँखों से देखा और भारी मन लिए ट्रक में चढ गए । पता नहीं अब यह गाँव खेङे कब देखना नसीब होगा । कभी देख पाएँगे भी या नहीं । एक हौंका निकला । कहीं ठंडी साँस भरी गयी ।

अचानक सुरसती चिल्लाई, अरे हमारा मुंशी तो पीछे ही रह गया । गाय की धार निकालने गया था । आता ही होनै । रोको गाङी । सभी सवारियों ने दोहराया – भाई रोको गाङी । उसे भी आ जाने दो । पर ट्रक चल पङा तो चल पङा । सवारियों के पास खङा फौजी बोला – चिंता मत करो । अभी हमारे कई चक्कर लगने हैं । अगली गाङी से आ जाएगा । हमें जाकर साहब को रिपोर्ट करना है इसलिए रुक नहीं सकते ।

लोग रोको रोको कहते रह गये और ट्रक कई मील पार कर गया । डरे सहमे लोग आखिर चुप हो गये । सिकुङ कर घुटनों में सिर दिए बैठ गये थे । करते भी क्या,उन्हें तो यह भी पता नहीं था कि कहां ले जाये जा रहे हैं । इसी तरह बैठे बैठे मुश्किल से दो ढाई घंटे बीते होंगे कि एक झटके से ट्रक रुक गया ।

“ उतरो सारे “ ।

लोगों ने गरदन उठाई – ये कहाँ आ गये हम । एकदम उजाङ बंजर धरती । दूर दूर तक कोई बस्ती का नामो निशान नहीं । यहाँ उतर कर करेंगे क्या ?

उन्हें असमंजस में देख फौजी अफसर नीचे उतरा – सुनो अब तुम हिंदोस्तान में हो, आज से तुम्हारा अपना वतन । यहाँ से कोई दो - तीन किलोमीटर पर कैंप बने हैं । वहाँ तक पैदल जाना पङेगा, वहाँ तुम लोगों के रहने खाने का पूरा इंतजाम है । हमें गाङी यहीं से वापस ले जानी है । अभी बहुत लोग वहाँ पाकिस्तान में फँसे हैं, उन्हें भी लाना है ।

बेमन से ही सही, लोग उतर गये और गाङी जैसे आई थी, वैसे ही धूल उङाती वापस चली गयी । लोग कुछ देर तो ठगे से वहीं खङे रहे फिर छोटे छोटे टोलों में बँट गये और पैदल ही कैंप की ओर चल पङे । तीन किलोमीटर बताई गयी दूरी खत्म होने में ही नहीं आ रही थी । लोग भूखे प्यासे चल रहे थे । करीब घंटे भर पैदल चलने के बाद तंबू दिखाई दिए तो लोगों ने सुख की साँस ली । तंबुओं के बाहर रजिस्टर लिए तीन लोग बैठे थे । जब ये लोग पहुँचे तो दो वालंटियर तंबु से निकल आए । इन लोगों को कतार में खङा करके इनके नाम पते दर्ज किए गये और सब एक बङे से तंबू में भेज दिए गये । वहाँ बिछी दरी पर पहले से ही बहुत लोग थे । कुछ बैठे, कुछ लेटे, कुछ खङे लोग । यह परिवार भी उस भीङ का हिस्सा हो गया । औरतों और बच्चों को वहाँ टिकाकर चंद्र और प्रीतम वापस रजिस्टर वाले लोगों के पास आ खङे हुए । हर आने वाले दल को गौर से देखते । शायद अब मुंशी आ जाए पर मुंशी का दूर दूर तक कोई अता पता नहीं था । अगले दिन चंद्र उस जगह भी जा आया जहाँ ट्रक ने उन्हें उतारा था । वह बार बार पते दर्ज करने वालों के पास भी जाता । मुंशी का कहीं कोई सुराग न था । लाहौर की तरफ जा रहे फौजियों को अपना पता लिखवाता और लौटते फौजियों से भाई के बारे में जानना चाहता । आखिर एक दिन लौटे हुए फौजियों ने बताया कि अब सतघरा तो क्या, आसपास के किसी गाँव शहर में कोई हिंदु नहीं बचा । सब निकाल लिए गए हैं । अगर कोई रह गया होगा तो मुसलमानों द्वारा मार दिया गया होगा । सुना है, कुछ लोग मुसलमान भी बना लिए गये हैं ।

औरतों और बच्चों का रो रोकर पहले ही बुरा हाल था, इस खबर ने उन्हें बिल्कुल सुन्न कर दिया । जो थोङी बहुत उम्मीद बची थी, वह भी जाती रही ।